72 करोड़ धार्मिक पुस्तकें छापने वाले गीताप्रेस के अध्यक्ष राधेश्याम खेमका को पद्म विभूषण


जीवन भर पत्तल में किया भोजन, चमड़े की वस्तुओं से परहेज 
- मरणोपरांत मिला पद्म विभूषण सम्मान
धर्म नगरी / DN News 
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पूरी जिंदगी चमड़े की वस्तुओं से परहेज करने वाले राधेश्याम उसूलों के इतने पक्के थे कि उन्होंने कभी चर्म वस्तुओं से बने जूते भी नहीं पहने। आज उन्हें पद्म विभूषण पुरस्कार मिलने की घोषणा पर गीताप्रेस खुशियाँ मना रहा है।

73 वें गणतंत्र दिवस के मौके पर गीता प्रेस के अध्यक्ष रहे ‘राधेश्याम खेमका (RadheyShyam Khemka)’ को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का ऐलान हुआ है। उन्हें ये अवार्ड मरणोपरांत साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया है। खेमका ने अपना पूरा जीवन गीता प्रेस को समर्पित किया था और वह लंबे समय तक सनातन धर्म की पत्रिका ‘कल्याण’ के संपादन कार्य से जुड़े थे। वर्ष 2002 में उन्होंने काशी में वेद विद्यालय की स्थापना भी की थी।

वाराणसी में सन्तों में बीता जीवन-
साल 2014 से अपने निधन तक गीता प्रेस ट्रस्ट बोर्ड के अध्यक्ष रहे राधेश्याम मूलत: मुंगेर के रहने वाले थे। उनका जन्म 12 दिसंबर 1935 को मुंगेर में ही हुआ था। परन्तु बाद में पढ़ाई के साथ-साथ बनारस में उनका अधिकांश समय बीता। उनके पिता मुंगेर जिले से यूपी के वाराणसी आए थे। वाराणसी में राधेश्याम ने अपना अधिक से अधिक समय संतों के बीच गुजारा और शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती व पुरी के शंकराचार्य स्वामी निरंजनदेव तीर्थ का सानिध्य पाकर अपना विकास किया। उनकी पढ़ाई बीएचयू से हुई।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उन्होंने एमए किया और बाद में गीताप्रेस की "कल्याण" पत्रिका के संपादक बने। इसके बाद उनका पूरा जीवन गीता प्रेस के लिए बीता। राधेश्याम खेमका ने गीताप्रेस से जुड़े रहते हुए ‘कल्याण’ के 38 वार्षिक विशेषाँक, 460 संपादित अंक प्रकाशित करवाए। रिपोर्ट्स के अनुसार, उनके संपादन काल के काम में "कल्याण" की 9 करोड़ 54 लाख 46 हजार प्रतियाँ प्रकाशित हुई थीं।
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सात्विक प्रवृत्ति के राधेश्याम खेमकाजी  अत्यंत धर्म-प्रयत्न व्यक्ति थे। उन्होंने आजीवन पत्तल में खाना खाया और कुल्हड़ में पानी पिया। पूरी जिंदगी चमड़े की वस्तुओं से परहेज करने वाले राधेश्याम उसूलों के इतने पक्के थे, कि उन्होंने कभी चर्म वस्तुओं से बने जूते भी नहीं पहने। आज उन्हें पद्म विभूषण पुरस्कार मिलने की घोषणा पर गीताप्रेस आनंद मना रहा है।

गीताप्रेस के ट्रस्टी देवीदयाल अग्रवाल व प्रबंधक लालमणि तिवारी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहते हैं, राधेश्याम खेमका ने गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष की तैयारियों के क्रम में पिछले साल 7 मार्च को वाराणसी में गीताप्रेस प्रबंधन के साथ बैठक की थी। इस बैठक के एक माह बाद ही अप्रैल 2021 में उनका निधन हो गया। अपने जीवित रहते हुए उन्होंने जिन संगठनों को सेवा दी उसमें मारवाड़ी सेवा संघ, मुमुक्षु भवन, श्रीराम लक्ष्मी मारवाड़ी अस्पताल गोदौलिया, बिड़ला अस्पताल मछोदरी, काशी गोशाला ट्रस्ट सम्मिलित हैं।

छपी 72 करोड़ से अधिक पुस्तकें-
उल्लेखनीय है, गीताप्रेस में कर्मकांड व संस्कारों से संबंधित पुस्तकों का प्रकाशन राधेश्याम खेमका के सुझाव पर आरंभ हुआ। जिस गीता प्रेस को जीवन समर्पित करने के बाद राधेश्याम को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया, उसकी स्थापना के बाद से अब तक 72 करोड़ से अधिक सनातन से जुड़ी पुस्तकें प्रकाशित की हैं।
गीता प्रेस, गोरखपुर 
गीता प्रेस से प्रकाशित 72 करोड़ से अधिक पुस्तकों में सर्वाधिक 15 करोड़ 60 लाख श्रीमद् भगवत गीता है। इसके अलावा श्रीरामचरित मानस, पुराण, हनुमान चालीसा, दुर्गा, सप्तशती, सुंदरकांड की संख्या भी करोड़ों में प्रकाशित हुई।


11 करोड़ से अधिक श्रीरामचरित मानस- 
गीता प्रेस से प्रकाशित श्रीरामचरित मानस की संख्या 11 करोड़ 39 लाख है। पुराण, उपनिषद् आदि ग्रंथ 2 करोड़ 61 लाख है, महिला एवं बालकोपयोगी पुस्तकें 11 करोड़ 6 लाख, भक्त चरित्र एवं भजनमाला की किताबें मिलाकर 17 करोड़ 40 लाख प्रकाशित हुई हैं। अन्य प्रकाशन 12 करोड़ 73 लाख हैं। इस तरह अब तक गीता प्रेस से प्रकाशित होने वाली कुल किताबें 71 करोड़ 77 लाख है।

पद्म पुरस्कार-2022 की घोषणा-
उल्लेखनीय है, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार (25 जनवरी 2022) को पद्म पुरस्कारों की घोषणा की थी। सूची के अनुसार इस बार चार विभूतियों को पद्म विभूषण, 17 को पद्म भूषण, 107 को पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। इस सूची में 
राधेश्याक खेमका सहित उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, सीडीएस बिपिन रावत, शास्त्रीय गायिका प्रभा अत्रे पद्म विभूषण से सम्मानित होने वाले हैं।
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2021 में हुई पुस्तकों की रिकॉर्ड बिक्री-
विशेष उल्लेखनीय है, बीते वर्ष 2021 में गीता प्रेस गोरखपुर ने पुस्तकों की बिक्री के 98 वर्षों का रिकार्ड तोड़ा था, जब जुलाई से नवंबर 2021 के मध्य सर्वाधिक धार्मिक पुस्तकों की बिक्री हुई। इसमें अक्टूबर में सबसे बड़ा रिकार्ड बना, जब केवल अक्टूबर में 8.67 करोड़ रुपये की बिक्री हुई। इतनी बिक्री गीता प्रेस के स्थापना 1923 से लेकर कभी किसी एक माह में नहीं हुई। 

धार्मिक पुस्तकों की इतनी बिक्री का कारण कोरोना संक्रमण के बाद लोगों की रुचि धार्मिक पुस्तकों में बढ़ना रहा, जब कोरोना की दूसरी लहर में घर से बाहर निकलना भी ठप हो गया, कोरोना के संक्रमण की आशंका से लोग भयभीत हो गए, तब लोगों का ईश्वर, धर्म व धार्मिक साहित्य की तरफ रुझान बढ़ गया। इसी कारण 2018-19 में जब कोरोना नहीं था तो अप्रैल से नवंबर तक 42.19 करोड़ की तथा 2019-20 में इन्हीं महीनों में पुस्तकों की बिक्री 41.2 करोड़ रुपये की हुई। 

कोराेना काल में लोगों को शक्ति दी-
कोराेना संक्रमण काल को लेकर गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी का कहना था, कि कोरोना ऐसी आपदा का समय था, कि लोग ईश्वर की ओर उन्मुख हो गए। दूसरे अनेक प्रकाशन बंद हो गए या उन्होंने कम पुस्तकें छापी। स्कूल-कालेज बंद होने से सामान्य बुक सेलरों ने भी गीताप्रेस की पुस्तकें बेची। इन्हीं कारणों से गीताप्रेस की पुस्तकों की बिक्री बढ़ी। स्पष्ट है, कि कोरोना संक्रमण जैसे अभूतपूर्व आपदा व विपत्ति के काम में गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तकों से लाखों लोगों को मानसिक, आध्यमिक शान्ति दी, धैर्य से रहने, स्वयं पर नियंत्रण रखने एवं विपत्ति से लड़ने की शक्ति दी   
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पढ़ें वार्षिक राशिफल-
वर्ष-2022 का वार्षिक राशिफल... Annual Prediction of 12 Zodiac 
http://www.dharmnagari.com/2022/01/Rashiphal-2022-Annual-Prediction-of-12-Rashi.html 
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गर्भवती महिलाओं से पहलवान तक, बच्चों से बूढों तक, सबके लिए बथुआ अमृत समान है, बथुआ, साग ही नहीं एक औषधि है
http://www.dharmnagari.com/2022/01/Bathuve-ka-Saag-kyo-khaye-ese-padhkar-Aap-khane-lagenge-Bathuva.html
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