महाराष्ट्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका, 12 भाजपा विधायकों के निलंबन को बताया असंवैधानिक...
विधायकों के एक साल के निलंबन को किया रद्द
महाराष्ट्र में कुल 288 सीटों में बीजेपी 105 कांग्रेस, 44 शिवसेना, 56 एनसीपी, 54 एआईएमआईएम को है
महाराष्ट्र विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के 12 विधायकों के निलंबन मामले में महाराष्ट्र की महा अघाड़ी सरकार को झटका लगा है। बीजेपी विधायकों के एक साल के निलंबन को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया। बीते साल (5 जुलाई 2021) को विधानसभा के पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव के साथ अपमानजनक और दुर्व्यवहार करने के आरोप में विधायकों को दूसरे दिन एक साल के लिए निलंबित किया था। आरोप के अनुसार, ये विधायक ओबीसी आरक्षण को लेकर हंगामा कर रहे थे। निलंबन का प्रस्ताव संसदीय कामकाज मंत्री अनिल परभ द्वारा लाया गया था, जिसे ध्वनि मत से मंजूर किया था।
कोर्ट ने अपने निंयल में कहा, एक सत्र से ज्यादा का निलंबन सदन के अधिकार में नहीं है और ऐसा करना असंवैधानिक है। जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा, विधायकों को एक साल तक निलंबित करना निष्कासन से भी बदतर है और ये पूरे निर्वाचन क्षेत्र को सजा देने जैसा होगा। ‘कोई भी इन निर्वाचन क्षेत्रों का सदन में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, क्योंकि क्षेत्र के विधायक सदन में मौजूद नहीं होंगे। यह सदस्य को नहीं बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र को सजा देने के बराबर है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि वो एक साल के निलंबन की सजा की न्यायिक समीक्षा करेगा। वहीं, महाराष्ट्र सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा है। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की बेंच ने मामले की सुनवाई की।
कोर्ट ने यह भी बताया कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, एक निर्वाचन क्षेत्र 6 महीने से अधिक की अवधि के लिए बिना प्रतिनिधित्व के नहीं रह सकता है। कोर्ट ने महाराष्ट्र की इस दलील को ठुकरा दिया, कि अदालत एक विधानसभा द्वारा दिए गए दंड की मात्रा की जांच नहीं कर सकती है।
| महाराष्ट्र विधानसभा पर भाजपा विधायकों का प्रदर्शन (फोटो फाइल ) |
निलंबन होने वालों में आशीष शेलार, अतुल भातखलकर, नारायण कुचे, गिरिश महाजन, अभिमन्यु पवार, संजय कुटे, पराग अलवणी, राम सातपुते, योगेश सागर, कीर्ति कुमार बागडिया, हरीश पिंपले, जयकुमार रावल के नाम सम्मिलित हैं।
धर्म नगरी / DN News
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महाराष्ट्र विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के 12 विधायकों के निलंबन मामले में महाराष्ट्र की महा अघाड़ी सरकार को झटका लगा है। बीजेपी विधायकों के एक साल के निलंबन को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया। बीते साल (5 जुलाई 2021) को विधानसभा के पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव के साथ अपमानजनक और दुर्व्यवहार करने के आरोप में विधायकों को दूसरे दिन एक साल के लिए निलंबित किया था। आरोप के अनुसार, ये विधायक ओबीसी आरक्षण को लेकर हंगामा कर रहे थे। निलंबन का प्रस्ताव संसदीय कामकाज मंत्री अनिल परभ द्वारा लाया गया था, जिसे ध्वनि मत से मंजूर किया था।
कोर्ट ने अपने निंयल में कहा, एक सत्र से ज्यादा का निलंबन सदन के अधिकार में नहीं है और ऐसा करना असंवैधानिक है। जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा, विधायकों को एक साल तक निलंबित करना निष्कासन से भी बदतर है और ये पूरे निर्वाचन क्षेत्र को सजा देने जैसा होगा। ‘कोई भी इन निर्वाचन क्षेत्रों का सदन में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, क्योंकि क्षेत्र के विधायक सदन में मौजूद नहीं होंगे। यह सदस्य को नहीं बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र को सजा देने के बराबर है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि वो एक साल के निलंबन की सजा की न्यायिक समीक्षा करेगा। वहीं, महाराष्ट्र सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा है। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की बेंच ने मामले की सुनवाई की।
कोर्ट ने यह भी बताया कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, एक निर्वाचन क्षेत्र 6 महीने से अधिक की अवधि के लिए बिना प्रतिनिधित्व के नहीं रह सकता है। कोर्ट ने महाराष्ट्र की इस दलील को ठुकरा दिया, कि अदालत एक विधानसभा द्वारा दिए गए दंड की मात्रा की जांच नहीं कर सकती है।
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बीजेपी विधायकों का तर्क-
याचिकाकर्ता बीजेपी विधायकों ने कहा, कि सदन द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया। निर्वाचन क्षेत्र के अधिकारों की रक्षा करने की जरूरत है। इस तरह से निष्कासन सरकार को महत्वपूर्ण मुद्दों में बहुमत वोट हासिल करने के लिए सदन में ताकत में हेरफेर करने की अनुमति दे सकता है।
याचिकाकर्ता विधायकों की ओर से महेश जेठमलानी, मुकुल रोहतगी, नीरज किशन कौल और सिद्धार्थ भटनागर प्रस्तुत हुए। इससे पहले 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- यह कहने की जरूरत नहीं है कि याचिका का लंबित रहना याचिकाकर्ता के कार्यकाल में कटौती के संबंध में सदन से आग्रह करने के रास्ते में नहीं आएगा। यह एक ऐसा मामला है, जिस पर सदन द्वारा विचार किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता विधायकों की ओर से महेश जेठमलानी, मुकुल रोहतगी, नीरज किशन कौल और सिद्धार्थ भटनागर प्रस्तुत हुए। इससे पहले 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- यह कहने की जरूरत नहीं है कि याचिका का लंबित रहना याचिकाकर्ता के कार्यकाल में कटौती के संबंध में सदन से आग्रह करने के रास्ते में नहीं आएगा। यह एक ऐसा मामला है, जिस पर सदन द्वारा विचार किया जा सकता है।
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महाराष्ट्र में किस पार्टी को कितनी सीटें-
कुल सीटें- 288 बीजेपी- 105 कांग्रेस- 44 शिवसेना- 56 एनसीपी- 54 एआईएमआईएम- 2 बहुजन विकास आघाडी- 3 सीपीआईएम- 1 जन सुराज्य शक्ति- 1 क्रांतिकारी शेतकारी पार्टी- 1 एमएनएस- 1 पीजैन्ट्स एण्ड वर्कर्स पार्टी ऑफ इण्डिया- 1 प्रहार जनशक्ति पार्टी- 2 राष्ट्रीय समाज पक्ष- 1 समाजवादी पार्टी- 2 स्वाभिमानी पक्ष- 1 निर्दलीय- 13
महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी-कांग्रेस ही नहीं, 10 से अधिक छोटी पार्टियों के विधायक हैं। विधानसभा चुनाव-2014 की तुलना में 2019 के विधानसभा चुनाव में शरद पवार की पार्टी एनसीपी की सीटों में सबसे अधिक वृद्धि हुई, जबकि बीजेपी के सीटों में खासी कमी आई है. शिवसेना को 56 सीटों पर जीत मिली। महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना साथ में चुनाव लड़ी और दोनों दलों के गठबंधन को बहुमत भी मिला, लेकिन शिवसेना ने बीजेपी की कम हुई सीटों के बीच मुख्यमंत्री पद की मांग की। उनके बाद बीजेपी-शिवसेना में दरार आ गई।
महाराष्ट्र की कुल 288 विधानसभा सीटों में बीजेपी को 105 सीटें जीती और सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। वहीं, (चुनाव के समय सहयोगी रही) शिवसेना को 56 सीटों पर जीत मिली। एनसीपी ने 54 सीटें जीती, कांग्रेस के खाते में 44 सीटें गई। 2014 की तुलना में 2019 के चुनाव में एनसीपी की सीटों में सबसे अधिक वृद्धि हुई, जबकि बीजेपी के सीटों में कमी आई।
विधानसभा चुनाव-2014 में- बीजेपी को 122, शिवसेना को 63, कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटें मिली थी. उस चुनाव में बीजेपी और शिवसेना अलग-अलग चुनाव लडे़। हालांकि, बाद में शिवसेना बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गई।
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