आज के दिन जन्मी आनंदीबाई जोशी, जो 19 साल में बनी देश की पहली महिला डॉक्टर
आज के दिन 1774 में भारत में खुला पहला डाकघर
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| डॉ. आनंदीबाई जोशी |
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आज से ठीक 157 साल पहले 31 मार्च 1865 को पुणे में भारत की पहली महिला डॉक्टरों में एक आनंदीबाई गोपाल जोशी का जन्म हुआ था। वे उस काल (दौर) में डॉक्टर बनीं, जब महिलाओं के लिए पढ़ना-लिखना सपना सरीखा हुआ करता था।
पुणे के ब्राह्मण परिवार में जन्मी आनंदी जब मात्रा 9 वर्ष की थी, तब उनका विवाह 25 साल के गोपालराव जोशी से कर दिया गया। 14 साल की आयु में आनंदी मां बन गईं, लेकिन 10 दिनों के भीतर ही उनके नवजात बच्चे की मृत्यु हो गई। बच्चे को खोने की पीड़ा ने आनंदी को दु:खी करने के साथ ही एक लक्ष्य भी दिया। उन्होंने ठान लिया कि वे एक दिन डॉक्टर बनकर रहेंगी। उनके इस संकल्प को पूरा करने में उनके पति ने भी उनकी पूरी सहायता की।
अमेरिका से डॉक्टर की डिग्री
पेंसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में आनंदी ने दाखिला लिया। इसके लिए उन्होंने अपने सारे गहने बेच दिए। कुछ लोगों ने आनंदी के इस कदम में उनका साथ देते हुए सहायता के लिए 200 रुपये की मदद की। आनंदी ने मात्र 19 साल की उम्र में एमडी की डिग्री प्राप्त की। वह पहली भारतीय महिला थीं, जिसे यह डिग्री मिली। बाद में आनंदी बाई भारत लौटी और कोल्हापुर रियासत के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल के महिला वार्ड में प्रभारी चिकित्सक पद पर नियुक्त हुईं। परन्तु, डाॅक्टरी की प्रैक्टिस के दौरान वह टीबी की बीमारी की शिकार हो गईं। 26 फरवरी 1887 में मात्र 22 साल की आयु में बीमारी के कारण आनंदीबाई का निधन हो गया।
निःसंदेह आनंदी बाई बहुत कड़े परिश्रम के कारण ही आगे बढ़ी, जिसके बिना उस समय उनका आगे बढ़ पाना लगभग असम्भव सा था। ऐसे इसलिए, कि जिस काल में महिलाओं को घर से निकलने भी नहीं दिया जाता था, उन दिनों विदेश जाकर मेडिकल की पढ़ाई करके भारत की पहली महिला डॉक्टर बनी आनंदीबाई गोपालराव जोशी को जाता है। उसकी सफलता और इस पूरी कहानी के नायक उनके पति गोपालराव भी रहें, जिनके साथ के बिना आनंदीबेन जोशी का देश की पहली महिला डॉक्टर बनना कठिन था। ऐसा इसलिए क्योंकि जब महिलाओं के लिए पढ़ना-लिखना केवल एक सपने की तरह होता था, उस दौर में भी आनंदी के पति की सोच काफी मॉडर्न जमाने से संबंध रखती थी।
ऐसा इसलिए क्योंकि अपने से अधिक पढ़ी-लिखी पत्नी आज भी एक मर्द को हजम नहीं होती हैं। हालांकि, गोपालराव बिल्कुल अलग इंसान थे, जिन्होंने न केवल अपनी पत्नी की तरक्की को ही अपनी किस्मत बना लिया बल्कि उनके लिए समाज से लड़ने में भी गुरेज नहीं किया।
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| डॉ. आनंदीबाई आनंदराव जोशी #साभार गूगल |
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1774: भारत में डाक सेवा शुरू, पहला डाकघर खुला।
1870: अमेरिका में पहली बार किसी अश्वेत नागरिक ने वोट दिया। अश्वेतों को समान अधिकार दिलाने की दिशा में यह एक बड़ी सफलता मिली।
1968 - American President Lyndon B. Johnson speaks to the nation of "Steps to Limit the War in Vietnam" in a television address. At the conclusion of his speech, he announces: "I shall not seek, and I will not accept, the nomination of my party for another term as your President."
6 साल में कविताएं लिखने लगी, आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ ने सबको झकझोर दिया
माधवी कुट्टी के उपनाम से विख्यात कवयित्री, अंग्रेज़ी और मलयालम की प्रसिद्ध लेखिका कमला दास की आज जयंती है। मलयालम में लघु कथा के सबसे प्रमुख लेखकों में से एक कमला दास मानी जाती हैं। व्यक्तिगत जीवन में अत्यंत साधारण रूप से जीवन जीने वाली कमला दास ने जब कागज पर अपनी भावनाओं को उकेरते हुए रचनाएं लिखी, तो वे दूसरों के लिए भी एक प्रेरणा बन गई. साल 1984 में उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। आजादी से 13 साल पहले 1934 में केरल में जन्मी कमला दास ने बहुत छोटी उम्र में कविताएं लिखना शुरू कर दिया। उनकी मां बालमणि अम्मा भी बहुत अच्छी कवियित्री थीं। उनकी लेखनी का भी कमला दास पर काफी असर पड़ा।
मां से प्रेरणा लेकर उन्होंने केवल 6 साल की आयु में कविताएं लिखनी शुरू कर दिया। जब अपनी जिंदगी को लेकर उन्होंने आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ लिखी तो सबको झकझोर कर रख दिया था। उन्होंने अपने जीवन को शब्दों में पिरोते हुए बेबाकी से स्त्री भावनाओं को उकेरा। उनके जीवन पर 2018 में एक फिल्म बनी थी आमी।
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