चैत्र नवरात्रि : प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा को करें ये उपाय, तिथि के अनुसार देवी मंत्र, व्रत व कन्या पूजन...


माँ का स्वरुप, उसके अनुरूप पूजा की वस्तु

या  देवी  सर्वभूतेषु  शक्ति  रूपेण  संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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-रा.पाठक (अवैतनिक संपादक) 

हिंदू नववर्ष या नव संवत्सर "विक्रम संवत-2079" दो अप्रैल शनिवार को चैत्र नवरात्रि से हो रहा है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से यह हिन्दू नव वर्ष 2078 वर्ष पहले सम्राट विक्रमादित्य ने प्रारंभ किया था। हिन्दू नववर्ष को विक्रम संवत, नव संवत्सर, गुड़ी पड़वा, उगाडी आदि के नाम से भी जाना जाता है एवं उसी दिन से बसंत नवरात्रि का आरंभ होता है, जो चैत्र नवरात्रि के नाम से लोकप्रिय है।

अत्यंत पवित्र एवं प्रभावी नवरात्री पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना होती है। शास्त्रों में मां दुर्गा को शक्ति की देवी बताया गया है, इसलिए इसे शक्ति की उपासना का पर्व की कहा जाता है। नवरात्र में व्रत किये जाते हैं। मान्यता है, नवरात्र के व्रत रखने वालों को मां दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है और उनके सभी संकट दूर हो जाते हैं। माँ उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

सनातन हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का महत्व सर्वाधिक होता है। इस नवरात्रि में मां की मूर्ति विराजी जाती है। नवरात्रि-पर्यन्त माता के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है। प्राचीन काल से मान्यता है, नवरात्रि पर्यंत विधि-विधान से पूजा करने पर माता रानी अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। मां को प्रसन्न करने भक्त उपवास भी रखते हैं, कोई पूरे नवरात्रि या केवल प्रतिपदा, अष्टमी का।

नव संवत्सर के राजा हैं शनि-
विक्रम संवत 2079 शनिवार के दिन आरंभ हो रहा है, आठ हिंदू नववर्ष-2079 के राजा शनिदेव, मंत्री देव गुरु वृहस्पति एवं मेघेश बुध हैं। शनि के राजा होने से इस साल कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जिसमें निर्बल अर्थव्यवस्था, महामारी, महंगाई, सत्ता परिवर्तन, असुरक्षा, आतंकवादी घटनाएं आदि हैं।
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नव संवत्सर-2079 की विशेषता-
-.पौराणिक मान्यतानुसार, विक्रम संवत के प्रथम दिन ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी। श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी विक्रम संवत के प्रथम दिन हुआ। हिंदू नववर्ष के प्रथम दिन से ही नया पंचांग आरंभ होता है।

- विक्रम संवत कैलेंडर का पहला माह चैत्र और 12वां या अंतिम माह फाल्गुन होता है। इस कैलेंडर के तिथियों की गणनाएं पंचांग के आधार पर होती हैं। विक्रम संवत से 57 वर्ष पीछे है अंग्रेजी कैलेंडर।

- विक्रम संवत में प्रत्येक माह 30 दिन का होता है और सात दिनों का एक सप्ताह होता है। इस कैलेंडर में तिथि की गणना होती है। इसी विक्रम संवत कैलेंडर को आधार मानकर अन्य धर्म के लोगों ने अपने कैलेंडर बनाए।

- विक्रम संवत की प्रत्येक तिथि यानी दिन की गणना सूर्योदय को आधार मानकर किया जाता है. हिंदू कैलेंडर का हर दिन सूर्योदय से आरंभ होता है एवं अगले सूर्योदय तक मान्य होता है। इसलिए तिथि (प्रतिपदा, द्वितीया... एकादशी... अमावस्या या पूर्णिमा) जिस दिन सूर्योदय होता है (उदया तिथि) उसी दिन से तिथि आरंभ होना मानते है
 जैसे- चैत्र नवरात्रि प्रतिपदा एक अप्रैल दिन में लगेगी, परन्तु उदय तिथि के कारण दो अप्रैल को मानी जाएगी)।

- विक्रम संवत के एक माह के दो पक्ष होते हैं. पहला कृष्ण पक्ष जिसका अंतिम दिन (15वां दिन) अवश्य होता है. दूसरा पखवाड़ा या पक्ष- शुक्ल पक्ष होता है, जिसका अंतिम 15वां दिन पूर्णिमा होता है।

नवरात्रि प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा को करें उपाय-
गंगाजल छिड़कें- हिंदू नववर्ष के पहले दिन चैत्र-प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा के दिन प्रातःकाल पूजन के बाद पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। फिर मां दुर्गा का ध्यान करें। ऐसा करने से घर-परिवार में प्रसन्नता एवं माता की कृपा बनी रहेगी।

हनुमानजी को भोग लगाएं- दो अप्रैल को शनिवार के दिन बजरंगबली को प्रसन्न करने गुड़ में चमेली का तेल मिलाकर भोग लगाएं। फिर हनुमान चालीसा पढ़ते हुए बजरंगबली की सात परिक्रमा करें। इससे आपको दु:खों से कमी / मुक्ति मिलेगी।

हरिद्रा के दाने डालें- 
गुड़ी पड़वा वाले दिन आपकी दुकान या जिस जगह पर आप व्यापार करते हैं उसके मुख्य द्वार के दोनों तरफ हरिद्रा के कुछ दाने डाल दें. ये उपाय करने से आपके घर में अचानक ही धन आगमन शुरू हो जाएगा।

गणपति मंदिर- गुड़ी पड़वा के दिन गणेश मंदिर जाकर भगवान गणेश को पांच सुपारी और 21 दुर्वा अर्पित करें. ये उपाय करने से पूरे वर्ष आपको धन की कमी नहीं होगी।

चावल का दान- यदि व्यापार में अनावश्यक रूप से बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं, तो गुड़ी पड़वा के दिन घर की किसी छोटी कन्या से एक कटोरी साबुत चावल किसी निर्धन व्यक्ति को दान करें।

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प्रतिदिन कन्या पूजन- 
प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है। श्रीदेवी भागवत पुराण के अनुसार-
एकैकां पूजयेत् कन्यामेकवृद्ध्या तथैव च।
द्विगुणं  त्रिगुणं  वापि प्रत्येकं नवकन्तु वा॥

अर्थात, नित्य ही एक कुमारी का पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक-एक-कुमारी की संख्या के वृद्धिक्रम से पूजन करें अथवा प्रतिदिन दुगुने-तिगुने के वृद्धिक्रम से और / या तो प्रत्येक दिन नौ कुमारी कन्याओं का पूजन करें।
यदि कोई व्यक्ति नवरात्रि पर्यन्त प्रतिदिन पूजा करने में असमर्थ हैं तो उसे अष्टमी तिथि को विशेष रूप से अवश्य पूजा करनी चाहिए। प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंश करने वाली महाभयानक भगवती भद्रकाली सहित करोङों योगिनियों सहित अष्टमी तिथि को ही प्रकट हुई थीं।

नवरात्रि व्रत की पूजा विधि-
नवरात्रि के दिनों में बहुत से लोग आठ दिनों- प्रतिपदा से अष्टमी तक व्रत रखते हैं एवं केवल फलाहार पर रहते हैं। फलाहार का अर्थ है, फल एवं और कुछ अन्य विशिष्ट सब्जियों से बना भोजन। फलाहार में सेंधा नमक का प्रयोग होता है। नौवें दिन भगवान राम के जन्म की रस्म और पूजा (राम नवमी) के बाद ही उपवास खोला जाता है। जो लोग आठ दिनों तक व्रत नहीं रखते, वे पहले और आख़िरी दिन उपवास रख लेते हैं। व्रत रखने वाले भूमि पर सोते हैं।

नवरात्रि व्रत में अन्न खाना निषेध है। सिंघाड़े के आटे की लप्सी, सूखे मेवे, कुटु के आटे की पूरी, समां के चावल की खीर, आलू, आलू का हलवा भी लें सकते हैं। इसके अलावा दूध, दही, घीया इन चीजों का फलाहार करना चाहिए। सेंधा नमक तथा काली मिर्च का प्रयोग करना चाहिए। दोपहर को (चाहें तो) फल भी ले सकते हैं।

दिन के अनुसार देवी के मंत्र- 
माँ भगवती के मंत्र (लाल रंग में छपे मंत्रों का विशेष महत्व होता है, अतः आप मंत्र को यहाँ अपने मोबाइल या कंप्यूटर को देखकर जप कर सकते हैं)

प्रतिपदा अर्थात पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा होती है. माँ शैलपुत्री धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य तथा मोक्ष की देवी मानी जाती हैं। माँ शैलपुत्री का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:

माँ ब्रह्मचारिणी- संयम, तप, वैराग्य तथा विजय की देवी मानी जाती हैं. माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:
माँ चन्द्रघंटा- माता चन्द्रघंटा की पूजा से दुखों, कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति होती हैमाता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:
माँ कूष्मांडा- रोग, दोष, शोक का नाश करने वाली तथा यश, बल व आयु की वृद्धि करनी वाली देवी हैंमाता का  मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:
माँ स्कंदमाता- सुख-शांति व मोक्ष प्रदान करने वाली हैं माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:
माँ कात्यायनी- भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति तथा मोक्ष दिलाने वाली हैं माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:
माँ कालरात्रि- माता कालरात्रि शत्रुओं का नाश, बाधा दूर कर सुख-शांति प्रदान कर मोक्ष देने वाली मानी जाती हैं इनका मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:
माँ महागौरी- माता महागौरी की पूजा साधक अलौकिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए करते हैं इनका मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:
माँ सिद्धिदात्री- नवरात्रि के अंतिम दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती हैं माँ सिद्धिदात्री सभी सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:
सुनें श्री दुर्गा चालीसा-
आपसे (Disclaimer)- उक्त लेख जानकारियां और सूचना ज्योतिर्विदों एवं पुस्तकों से साभार लिया गया है इनको करने से पूर्व कर्मकांडी ब्राह्मण या विद्वान से संपर्क करें। 
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नवरात्रि से पूर्व विशेष आग्रह (अपील) आपसे- ब्राह्मण या वैदिक विद्वान से किसी भी पूजा-पाठ के लिए यथासंभव सम्मानपूर्वक दक्षिणा देकर संतुष्ट करें, क्योंकि उसने कर्मकांड की शिक्षा ली है, आपके पूजा-पाठ के लिए समय-ऊर्जा दे रहा है, यह उसकी आजीविका है या परिवार के भरण-पोषण का माध्यम भी है -राजेश पाठक 6261868110     
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माँ का स्वरुप, उसके अनुरूप पूजा की वस्तु- 
नवरात्रि में देवी दुर्गा को प्रतिदिन किस चीज का भोग लगाएं, जिससे उनकी कृपा मिले, कष्ट व समस्याओं से मुक्ति मिले, सुख-शांति, धन-वैभव की प्राप्ति हो, इस प्रकार है-

प्रतिपदा की पूजा- देवी की साधना सदैव गौ-घृत से षोडशोपचार पूजा करें। गाय का घी अर्पण करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, विशेषरूप से आरोग्य लाभ होता है।

द्वितीया की पूजा- माता को शक्कर का भोग लगाकर उसका विशेष रूप से दान करना चाहिए. मान्याता है कि इस दिन शक्कर का दान करने से आयु बढ़ती है।

तृतीया की पूजा- दूध का महत्व होता है। माता की पूजा में विशेषरूप से दूध का उपयोग करें। फिर उस दूध को किसी ब्राह्मण को दान कर दें। दूध का दान दुःखों से मुक्ति का परम साधन है।

चतुर्थी की पूजा- देवी-पूजा में विशेष रूप से मालपुआ का नैवेद्य अर्पण करें। फिर इसे किसी सुयोग्य बाह्मण को दान कर दें। चतुर्थी को मालपुआ का दान करने से बुद्धि बल बढ़ता है।

पंचमी की पूजा का- देवी भगवती को केले का नैवेद्य चढ़ावें और यह प्रसाद किसी ब्राह्मण को दान करें। इससे विवेक बढ़ता है, निर्णय-शक्ति में असाधारण विकास होता है।

षष्ठी की पूजा- माता को शहद चढ़ाने का विशेष महत्व है। उस शहद को किसी ब्राह्मण को दान करने से व्यक्ति का सौंदर्य व आकर्षण बढ़ता है, समाज में उसको यश मिलता है।

सप्तमी की पूजा- विशेषरूप से गुड़ का नैवेद्य माँ को अर्पण करें। फिर गुड़ चढ़कार किसी ब्राह्मण को दान करने से जीवन के शोक, रोग दूर होते हैं, आकस्मिक विपत्ति से रक्षा होती है।

अष्टमी की पूजा- भगवती को नारियल का भोग अवश्य लगाये। इससे नाना प्रकार के पाप और पीड़ा का शमन होता है।

नवमी की पूजा- माता की पूजा धान के लावा से कर इसे किसी ब्राह्मण को दान करने से साधक को लोक–परलोक का सुख प्राप्त होता है।

दशमी की पूजा- दशमी तिथि के दिन माता को काले तिल का नैवेद्य का अर्पण करने से जीवन में किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है एवं ज्ञात–अज्ञात शत्रुओं का नाश होता है।

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