चैत्र नवरात्रि : नया वर्ष, कैसे करें कलश व चौकी स्थापना, राशि अनुसार नित्य मंत्र जाप, जाने...


नवरात्रि में विशेष योग, क्या करें - क्या नहीं ?

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-राजेश पाठक (अवै. संपादक)  

तिथि के आधार पर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को चैत्र नवरात्रि का भी प्रारंभ होता है। पंचांग के अनुसार, एक अप्रैल (शुक्रवार) दिन में 11:53 बजे से चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि आरंभ होगी और अगले दिन 2 अप्रैल (शनिवार) को 11:58 बजे तक रहेगी। इस कारण गुड़ी पड़वा 2 अप्रैल को मनाया जाएगा। 
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन गुड़ी पड़वा मनाते हैं एवं नया संवत्सर प्रारंभ होता है। गुड़ी पड़वा को उगादी और संवत्सर पडवो भी कहते हैं, जिसे मुख्यत: महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश में मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा को नया साल के पहले दिन के रूप में मनाते हैं। गुड़ी का अर्थ "विजय पताका" एवं पड़वा आशय "प्रतिपदा"। गुड़ी पड़वा के अवसर पर घरों में ध्वज लगाते हैं और उसे सजाते हैं इस दिन भगवान श्रीराम और मां दुर्गा की पूजा करने का विधान है। 
धार्मिक मान्यतानुसार, गुड़ी पड़वा यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इस दिन ही सतयुग आरंभ हुआ। इस दिन चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिन होता है और मां दुर्गा की पूजा के लिए घरों में कलश स्थापना किया जाता है, उसके बाद मां शैलपुत्री की पूजा करते हैं।

मां दुर्गा का आगमन, वाहन व महत्व-
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि (2 अप्रैल, 2022) को नवरात्रि का आरंभ कलश स्थापना से होगा। माता सिंह की सवारी करती हैं, परन्तु नवरात्रि में पृथ्वी पर आते समय उनका वाहन (सवारी) बदल जाती है। वाहन नवरात्रि के प्रारंभ होने वाले दिन (प्रतिपदा या प्रथमा तिथि) पर निर्भर करती है। अर्थात जिस दिन नवरात्रि आरंभ होता है, उस दिन के आधार पर उनकी सवारी निर्धारित होती है। इसी प्रकार से माता जिस दिन विदा होती हैं, उस दिन के आधार पर "प्रस्थान की सवारी" तय होती है। उदया तिथि अनुसार चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल शनिवार को प्रारंभ हो रहा है। 

पौराणिक मान्यतानुसार, जब नवरात्रि का प्रारंभ शनिवार या मंगलवार को हो, तो मां दुर्गा का आगमन घोड़े पर होता है। इस वर्ष (विक्रम संवत-2079) चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर पृथ्वी लोक आएंगी। घोड़े को युद्ध का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है, इस वर्ष शासन-सत्ता को विरोध का सामना करना पड़ सकता है। कुछ स्थानों पर सत्ता परिवर्तन भी देखने को मिल सकता है।

जिस प्रकार माता के आगमन का वाहन (सवारी) होता है, वैसे ही उनके प्रस्थान की भी वाहन होती है। इस बार चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि 10 अप्रैल रविवार को है। रविवार या सोमवार को मां दुर्गा भैंसे की सवारी पर प्रस्थान करती हैं। भैंसे की सवारी का अर्थ है रोग, दोष और कष्ट का बढ़ना। इस प्रकार मां दुर्गा के प्रस्थान से यह संकेत मिलता है] कि लोगों को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। संयमित एवं संतुलित जीवन व्यतीत करना चाहिए। अपने जीवन को मां दुर्गा की भक्ति में लगाएं, उनकी कृपा से सभी दुख, रोग, कष्ट या दोष दूर हो जाएंगे।

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नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह क्रम शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।

चैत्र नवरात्रि : पूजन सामग्री-
- पूजा के लिए मां दुर्गा की नई मूर्ति या चित्र
- लाल रंग की चौकी और पीला वस्त्र, पूजा के लिए एक आसन
- माता रानी के लिए एक नई लाल रंग की चुनरी
- घट स्थापना हेतु मिट्टी का कलश, आम / अशोक की 5 हरी पत्तियां (कलश पर रखने के लिए)
- लाल सिंदूर, गुड़हल का फूल एवं अन्य लाल रंग के फूल, फूलों की माला
- माता रानी के लिए श्रृंगार सामग्री, एक नई साड़ी
- अक्षत, गंगाजल, शहद, कलावा, चंदन, रोली, जटा वाला नारियल, सूखा नारियल नारियल
- गाय का घी, धूप, अगरबत्ती, पान का पत्ता, सुपारी, लौंग, इलायची, कपूर, अगरबत्ती
- दीपक, बत्ती के लिए रुई, केसर, नैवेद्य, पंचमेवा, गुग्गल, लोबान, जौ, फल, मिठाई, उप्पलें
- हवन-कुंड, आम की सूखी लकड़ियां, माचिस, लाल रंग का ध्वज आदि
- श्री दुर्गा चालीसा, श्री दुर्गा सप्तशती एवं दुर्गा आरती की पुस्तक

घटस्थापना- 
देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश / घट की स्थापना की जाती है। घट स्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना । कार्यरत शक्ति तत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।

घटस्थापना हेतु सर्वप्रथम जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मौली बाँध दें। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोडा सा इत्र डाल दें। कलश में पंचरत्न डालें। कलश में कुछ सिक्के रख दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें।

श्रीदेवी भागवत पुराण के अनुसारपञ्चपल्लवसंयुक्तं वेदमन्त्रैः सुसंस्कृतम्। सुतीर्थजलसम्पूर्णं हेमरत्नैः समन्वितम्॥” अर्थात कलश पंचपल्लवयुक्त, वैदिक मन्त्रों से भली भाँति संस्कृत, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्न मई होना चाहिए।
नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मौली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है: अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”। अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। "हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इसमें पधारें।" अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को सुगंध (इत्र) समर्पित करें।

चौकी की स्थापना-
कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है। नवरात्रि प्रतिपदा के दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ चित्र स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्ण मंत्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें "हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।" उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।

नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है, जो नौ दिन तक जलती रहती है। दीपक के नीचे "चावल" रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा "सप्तधान्य" रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है
माता की पूजा "लाल रंग के कम्बल" के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है

नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक (माता के पूजन हेतु सोने, चाँदी, कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है) जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। माँ भगवती को इत्र/अत्तर विशेष प्रिय है। साथ ही प्रतिदिन कंडे की धुनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कर्पूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए नवरात्रि में पान और गुलाब की ७ पंखुरियां रखें तथा मां भगवती को अर्पित कर दें
। मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है। किस दिन किस चीज का भोग लगाना है ये भी विशेष महत्व रखता है।

घटस्थापना व मुहूर्त-
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ : 1 अप्रैल प्रातः 11:53 बजे से
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि का समापन : 2 अप्रैल प्रातः 11:58 बजे
प्रात:काल घटस्थापना का शुभ समय (2 अप्रैल, शनिवार): 6:10 बजे से 8:31 बजे तक
दोपहर में घटस्थापना का शुभ समय 
(2 अप्रैल, शनिवार): 12 बजे से 12:50 बजे तक

प्रतिपदा / गुड़ी पड़वा पर विशेष योग- 
गुड़ी पड़वा पर इंद्र-योग, अमृत-सिद्धि योग एवं सर्वार्थ-सिद्धि योग बन रहा है। 2 अप्रैल को इंद्र-योग प्रातः 8:31 बजे तक है। अमृत-सिद्धि योग एवं सर्वार्थ-सिद्धि योग 1 अप्रैल को प्रातः 10:40 बजे से 2 अप्रैल को प्रातः 6:10 बजे तक रहेगा। रेवती नक्षत्र गुड़ी पड़वा को दिन में 11:21 बजे तक है। उसके बाद अश्विनी नक्षत्र शुरु होगा।

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चैत्र नवरात्रि के शुभ योग- 
सर्वार्थ सिद्धि योग- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सर्वार्थ-सिद्धि योग को अत्यंत शुभ माना गया है। इस नवरात्रि के नौ दिनों में 6 दिन यह शुभ योग बन रहा है। नवरात्रि की प्रतिपदा के अतिरिक्त 3, 5, 6, 9 और 10 अप्रैल को भी सर्वार्थ-सिद्धि योग रहेगा। मान्यता है, यह योग भक्तों के सभी काम बनाने वाला योग माना जाता है, इस योग में व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

अमृतसिद्धि योग- नवरात्रि के पहले दिन "अमृत सिद्धि" योग लग रहा है। इस योग में सभी प्रकार के कार्य को शुभ माना जाता है। इस योग को अमृत फल देने वाला माना जाता है। उल्लेखनीय है, नवरात्रि शनिवार के दिन रोहिणी नक्षत्र में शुरू हो रहे हैं, जिसके कारण इसे अमृत सिद्धि योग कहा जाता है।

रवि योग- 
रवि योग सभी कष्ट दूर करने वाला माना जाता है।इस योग में पूजा करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के दिनों में ये योग 4, 6 और 10 अप्रैल को बन रहा है. इन दिनों में मां का चालीसा पाठ करना लाभकारी होता है ।

रवि पुष्य योग- रवि पुष्य योग रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र होने से लगता है। इस योग को भी बहुत शुभ माना गया है। मान्यता है, इस योग में गृह-प्रवेश, ग्रह-शांति, शिक्षा संबंधी मामलों के लिए अच्छा माना जाता है। कोई भी नया व्यापार आरंभ करने हेतु ये समय उत्तम है। नवरात्रि में ये योग 10 अप्रैल को बन रहा है। इन दिन नवरात्रि की नवमी तिथि है। इसलिए इस दिन मां दुर्गा की पूजा से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

मांगलिक कार्य-
चैत्र माह में नवरात्र के कारण पाणिग्रह-संस्कार / विवाह, मुंडन, गृह-प्रवेश, नामकरण और अन्य शुभ और मांगलिक कार्य भी किए जा सकते हैं। नवरात्र के पश्चात 15 अप्रैल से एक बार पुनः विवाह के शुभ-मुहूर्त आरंभ होंगे। इसके बाद मई, जून और जुलाई में विवाह के कई शुभ मुहूर्त रहेंगे।

राशि के अनुसार करें मंत्र का जाप-
नवरात्रि के दिन माता दुर्गा की विशेष साधना के दिन होते हैं। यदि आपकी कोई मनोकामना है, तो श्रद्धापूर्वक माता की पूजा करते हुए राशि के अनुसार मंत्रों का श्रद्धापूर्वक जप करें, तो माता की कृपा अवश्य मिलेगी एवं मनोरथ सिद्ध होंगे।
मेष- नवरात्रि के प्रथम दिन (प्रतिपदा) से अंतिम दिन तक ॐ ह्रीं उमा देव्यै नम: या फिर ॐ महायोगायै नम: मंत्र का जाप करें। प्रत्येक दिन कम से कम एक माला जाप करना आवश्यक है। इसके साथ आप श्रद्धानुसार 5, 7, 9, 11, 21 आदि जितनी चाहें, उतनी माला कर सकते हैं।
वृष- अपनी कामना की पूर्ति के लिए ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिका देव्यै नम: या ॐ कारक्यै नम: मंत्र का जाप करें। श्रद्धा-भक्तिपूर्वक जाप से शीघ्र ही आपका मनोरथ सिद्ध होगा।
मिथुन- नवरात्रि पर्यन्त प्रतिदिन ॐ दुं दुर्गायै नम: अथवा फिर ॐ घोराये नम: मंत्र का जाप कम से कम एक माला अवश्य करें ।
कर्क- मां भगवती को प्रसन्न करने ॐ ललिता देव्यै नम: अथवा ॐ हस्त्नीयै नम: मंत्र का जाप रोजाना कम से कम एक माला अवश्य करें।

सिंह- माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम: या ॐ त्रिपुरांतकायै नम: मंत्र का जाप करें।
कन्या- इच्छित वर प्राप्ति हेतु नवरात्रि में ॐ शूल धारिणी देव्यै नम: या ॐ विश्वरुपायै नम: मंत्र का जाप करें। आपकी कामना अवश्यपूरी होगी।
तुला- आप पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ ॐ ह्रीं महालक्ष्म्यै नम: या ॐ रोद्रवेतायै नम: मंत्र का जाप कम से कम 108 बार (एक माला) अवश्य करें।
वृश्चिक- नवरात्रि में मां दुर्गा के मंत्र ॐ शक्तिरूपायै नम: या ॐ क्लीं कामाख्यै नम: का जाप करें। पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ प्रतिदिन एक माला जाप करने से भी माता की कृपा प्राप्त होगी।

धनु- नवरात्रि में ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे या ॐ गजाननाय नम: मंत्र का जाप करें। पूर्ण विश्वास से जाप करने से प्रभाव अवश्य दिखेगा।
मकर- नवरात्रि पर्यन्त ॐ पां पार्वती देव्यै नम: या ॐ सिंहमुख्यै नम: मंत्र का जाप करें। मां दुर्गा की कृपा शीघ्र प्राप्त होगी।
कुंभ- आप भी ॐ पां पार्वती देव्यै नम: या ॐ सिंहमुख्यै नम: मंत्र का जाप करें, क्योंकि कुंभ और मकर दोनों के स्वामी शनि हैं।
मीन- नवरात्रि पर मां दुर्गा के मंत्र ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं दुर्गा देव्यै नम: का जाप करें। श्रद्धा-भक्ति के साथ जाप करने से विशेष लाभ होगा।

चैत्र नवरात्रि में क्या न करें ?
वर्ष में चार नवरात्रि आती हैं। इसमें दो गुप्त नवरात्रि और एक शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि होती है। चैत्र माह में आने वाली चैत्र नवरात्रि का भी धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्व है। चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन नवमी को राम नवमी मनाई जाती है, जिस दिन प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। मान्यता है, नवरात्रि के दिन मां की उपासना से जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इसलिए चैत्र नवरात्रि में वर्जित कार्यों से बचें, जो इस प्रकार हैं-  
- तामसिक चीजों से दूर रहना रहें। मांस, मदिरा, तंबाकू, सिगरेट आदि का सेवन न करें,
- घर में लहसुन और प्याज वाला भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि दोनों वस्तु तामसिक श्रेणी में आती है,
- बाल, दाढ़ी और नाखून नहीं काटना चाहिए। चैत्र नवरात्रि व्रत से पहले या दशमी के बाद ये काम कर सकते हैं,
- दिन में शयन वर्जित है। सोने से आलस्य एवं नकारात्मकता आती है,
- नवरात्रि में चमड़े से बनी वस्तुओं का उपयोग न करें। चमड़े के बेल्ट, पर्स, जूते, चप्पल आदि का उपयोग बंद कर दें,
- मां दुर्गा के लिए अखंड-ज्योति जलाते हैं। पूरे नवरात्रि घर में हर समय कोई एक सदस्य अवश्य हो। घर को खाली नहीं छोड़ते हैं,
- नवरात्रि में काम वासना, क्रोध, लोभ, मोह आदि से दूर ही रहें। ऐसा नहीं करते हैं तो व्रत का फल प्राप्त नहीं होगा, दोष भी लगेगा,
- कन्या को मां दुर्गा का रूप माना जाता है। कोई ऐसा कार्य या व्यवहार न करें, जिससे कोई कन्या दुखी हो,उसका दिल न दुखाएं,
- नवरात्रि के समय में गृह क्लेश न करें। घर में शांति बनाएं रखें। वाद-विवाद न करें, धैर्य से काम लें।

चैत्र-वैशाख (अप्रैल) के व्रत, पर्व त्यौहार-
चैत्र माह अभी चल रहा है, जो हिंदू नववर्ष (Hindu New Year) का पहला माह होता है। फाल्गुन पूर्णिमा / होली के दूसरे दिन (चैत्र-कृष्ण प्रतिपदा से) से आरम्भ चैत्र व वैशाख माह अंग्रेज़ी कैलेंडर का अप्रैल है, जिसमें नवरात्रि, गुड़ी पड़वा, राम नवमी, बैशाखी, हनुमान जयंती, गणगौर जैसे पर्व होंगे- 
01 अप्रैल : चैत्र अमावस्या, अप्रैल फूल दिवस
02 अप्रैल : चैत्र नवरात्रि, गुड़ी पड़वा
03 अप्रैल : रमजान उपवास शुरू, झूलेलाल जयंती
04 अप्रैल : सोमवार व्रत, गणगौर पूजा, मत्स्य जयंती
05 अप्रैल : वरद चतुर्थी,  
06 अप्रैल : रोहिणी व्रत
07 अप्रैल : यमुना छठ, विश्व स्वास्थ्य दिवस
09 अप्रैल : अशोक अष्टमी, दुर्गाष्टमी व्रत
10 अप्रैल : श्री 
राम नवमी, श्री महातारा जयंती, स्वामीनारायण जयंती, पाम संडे 
12 अप्रैल : कामदा एकादशी
14 अप्रैल : प्रदोष व्रत, मेष संक्रांति, महावीर जयंती, बैसाखी
15 अप्रैल : गुड फ़्राइडे
16 अप्रैल : पूर्णिमा व्रत, हनुमान जयंती
17 अप्रैल : ईस्टर
19 अप्रैल : संकष्टी गणेश चतुर्थी, अंगारकी चतुर्थी
22 अप्रैल : पृथ्वी दिवस
23 अप्रैल : कालाष्टमी
26 अप्रैल : वल्लभाचार्य जयंती, वरुथिनी एकादशी
28 अप्रैल : प्रदोष व्रत
29 अप्रैल : मासिक शिवरात्रि, जमात-उल-विदा
30 अप्रैल : अमावस्या
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