#Social_Media : कश्मीर फाइल्स के विरोध में अटलजी, भाजपा का नाम घसीटने वालों को जवाब...


- 31 साल बाद मोहम्मद अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे पर हत्या का मुकदमा
- दिल्ली में बस यात्रा की एक सच्ची घटना
मुफ्तखोरों का मनोविज्ञान 
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कई मित्र मुझे लगातार संदेश भेज रहे हैं... उस संदेश में एक पोस्ट का जिक्र किया गया है... वो पोस्ट किसी कम्युनिस्ट ने लिखी है... पोस्ट में लिखा गया है कि भक्त कश्मीरी पंडितों पर मातम मना रहे हैं, लेकिन ये नहीं बता रहे हैं कि जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हो रहा था उस वक्त केंद्र में वीपी सिंह की सरकार थी जिसको अटल बिहारी वाजपेयी का समर्थन प्राप्त था। इस पोस्ट को एंटी हिंदू लोग... हिंदूवादी ग्रुप्स में डाल रहे हैं... इस पोस्ट के उत्तर के रूप में ये पोस्ट लिख रहा हूं-

-19 जनवरी 1990 का दिन वो ट्रिगर प्वाइंट था जब श्रीनगर की मस्जिदों से ये ऐलान हो गया था कि कश्मीरी हिंदुओं तुम या तो इस्लाम स्वीकार कर लो या फिर मर जाओ... इसके अलावा मस्जिदों से मुसलमानों ने रात भर ये नारे भी लगाए थे कि तुम अगर अपनी हिंदू औरतों को छोड़कर भाग जाओगे तो हम तुम्हारी जान बख्श देंगे !

-19 जनवरी 1990 की उस काली रात को दिल्ली में प्रधानमंत्री वी पी सिंह थे और गृह मंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद थे । इस सरकार को नेशनल फ्रंट की सरकार कहा जाता था । और इस सरकार में बीजेपी का कोई भी नेता शामिल नहीं था। अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी इस सरकार में किसी भी पद पर नहीं थे। वो किसी भी मंत्रिमंडल में भी नहीं थे। वो सरकार द्वारा सृजित किसी समिति के पद पर भी नहीं थे। ये सरकार कैसे बनी और क्या इस सरकार के लिए गए निर्णयों में बीजेपी की कोई भूमिका थी, इस पर हम आगे बात करेंगे... फिलहाल दोबारा कश्मीर पर लौटते हैं।

-जब 19 जनवरी 1990 से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हुआ तब जगमोहन को जम्मू कश्मीर का राज्यपाल बनाकर भेजा गया था । उस वक्त कश्मीर में सर्दियां चल रही थीं और कश्मीर घाटी पूरी तरह देश से कट जाती थी क्योंकि तब आज के जैसे संसाधन नहीं थे । जगमोहन खुद जम्मू में थे और श्रीनगर नहीं आ पा रहे थे लेकिन उनको ये खबरें पता लग रही थीं कि कश्मीरी पंडित घाटी के अंदर बहुत डरे हुए हैं... उस वक्त घाटी के अंदर कश्मीरी पंडितों को मारा काटा जा रहा था... रेप किया जा रहा था... जम्मू कश्मीर की पुलिस को कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा करनी थी लेकिन उसमें ज्यादातर मुसलमान ही थे इसलिए उन्होंने कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा में कोई बचाव नहीं किया ।

-केंद्र की तरफ के आर्मी को भी कश्मीर में शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए भेजा गया था । लेकिन आर्मी अपने आप कुछ भी नहीं कर सकती है जब वो किसी इलाके में जाती है तो उसे कानून व्यवस्था को बहाल करने के लिए उस राज्य की पुलिस के इशारों पर ही निर्भर रहना पड़ता है.... जम्मू कश्मीर पुलिस को ही ये तय करना था कि आर्मी कहां लगाई जाए और कहां नहीं ? और जम्मू कश्मीर पुलिस के मुस्लिम अफसरों ने जिहाद का पूरा फर्ज निभाते हुए आर्मी को सही तरीके से काम करने ही नहीं दिया।
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-इसके बाद जब हजारों की संख्या में कश्मीरी पंडित भाग भाग कर जम्मू के कैंप्स में आने लगे.... तब भी किसी पत्रकार ने जाकर ये जहमत नहीं उठाई कि कश्मीरी पंडितों का दर्द लोगों को बताया जाए । लेकिन धीरे धीरे कश्मीरी पंडितों के कैंप्स से इस्लामी आतंकवाद का सच लोगों के सामने आया । उस समय आज की तरह सोशल मीडिया भी नहीं था । कश्मीरी पंडितों का पलायन साल 2000 तक चलता रहा !

-अब जैसे की कम्युनिस्टों ने अपनी पोस्ट में ये आरोप लगाया है कि जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ तो सरकार भक्तों की थी ये बात पूरी तरह से गलत है । दरअसल, साल 1989 के चुनाव में राजीव गांधी की हार हुई... कांग्रेस को 197 सीटें मिलीं... वी पी सिंह को 141 सीटें मिलीं और बीजेपी को 85 लोकसभा सीटें मिली थीं। जनमत का सम्मान करते हुए कांग्रेस ने सरकार बनाने का प्रयास नहीं किया। वी पी सिंह सबसे बड़े विपक्षी दल थे लिहाजा उनको सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति के द्वारा आमंत्रित किया गया।

-छोटी छोटी पार्टियों के साथ मिलकर वी पी सिंह ने एक गठबंधन बनाया जिसका नाम रखा गया... नेशनल फ्रंट... इस नेशनल फ्रंट का अध्यक्ष तेलगुदेशम पार्टी के एन टी रामाराव को बनाया गया... लेकिन फिर भी नेशनल फ्रंट के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं था... इसलिए एन टी रामाराव ने लाल कृष्ण आडवाणी को एक चिट्ठी लिखी और उनसे बिना शर्त समर्थन मांगा

आडवाणी जी ने अपनी जीवनी "माई कंट्री माई लाइफ" में इस चिट्ठी को छापा है... इसके जवाब में आडवाणी ने एनटी रामाराव को एक चिट्ठी लिखी थी। उस चिट्ठी में आडवाणी ने वीपी सिंह की आलोचना करने के बाद ये कहा, कि वो जनता के मत का सम्मान करते हुए... वीपी सिंह की सरकार को आलोचनात्मक समर्थन देते हैं... ये समर्थन भी बाहर से दिया गया था। सरकार में बीजेपी का कोई रोल नहीं था।

-कश्मीरी पंडितों के पलायन पर वी पी सिंह की विफलता... गृहमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी रूबैया सईद का अपहरण और फिर आतंकवादियों को रिहा किया जाना... घाटी में जिहाद से निपटने में वी पी सिंह की नाकामी और राम मंदिर आंदोलन पर वी पी सिंह सरकार के विरोधी रुख... और राम रथ यात्रा के दौरान आडवाणी की बिहार में गिरफ्तारी के बाद 23 अक्टूबर 1990 को ये स्पष्ट हो गया कि अब वी पी सिंह के पास बाहर से बीजेपी का कोई समर्थन नहीं है... और नवंबर 1990 में ही वी पी सिंह की सरकार गिर गई

- उसके बाद 1996 में अटल जी के सीएम बनने तक लगातार पांच साल चुन चुन कर कश्मीरी पंडितों का सफाया होता रहा लेकिन हर कांग्रेसी जिहाद के समर्थन में लगा रहा । मुस्लिम वोट बैंक खो जाने के डर से किसी ने कश्मीरी पंडितों का साथ नहीं दिया । पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस दर्द को अपनी जीवनी में बयान किया है जिस पर हम आगे कभी जरूर बात करेंगे

-इस संबंध में बीजेपी को दोष देना गलत है, क्योंकि आतंकवादी की पहली गोली का शिकार भी बीजेपी का एक नेता ही हुआ जो कि कश्मीरी पंडित था... आगे कभी उसकी भी चर्चा होगी !

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"काश ! उस रात केवल 1% लोग अपनी आत्मरक्षा में हथियार उठा लेते..."
 
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TheKashmirFiles के 7 Scenes आप नही देख पाएंगे, Bollywood फिर से चुप क्यों है ?
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31 साल बाद मोहम्मद अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे पर हत्या का मुकदमा

जिन कश्मीरी हिन्दू पण्डितो के टुकड़ों पर पला, उनसे की थी नमकहरामी, बीबीसी से कबूली थी 20 हत्या... सोचिये...! कितना गन्दा खून होगा उस नमक हराम का, उस दोगले का, जो रोटी हिन्दू पण्डितो की खाता था स्कूल की फीस हिन्दू पंडित देते थे। पहनने के कपड़े भी वहीं देते थे और उन्ही की हत्या की इस नमकहराम  ने किया...

सोचिए, उस समय कांग्रेस की सहयोगी सरकार कितनी दोगली और नपुंसक थी, कि बीबीसी संवाददाता को लाइव इंटरव्यू में कबूली 20 से ज्यादा हत्या पर कुछ नहीं हुआ था...
घाटी में 1990 कश्मीरी पंडितों की हत्या करने वाले फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे के जुर्म की फाइल फिर से खुलने जा रही है। अब सतीश टिक्कू के परिवार ने कोर्ट में अर्जी दायर की है। अदालत इस पर सुनवाई भी करने को तैयार भी हो गया है। श्रीनगर सेशन कोर्ट में सतीश टिक्कू हत्याकांड में 
हली शारीरिक सुनवाई। अदालत ने मामले को सकारात्मक रूप से सुना और जम्मू-कश्मीर सरकार को पिछले 31 वर्षों में किए गए कार्यों के लिए फटकार लगाई।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा- आरोपी बिट्टा कराटे के खिलाफ अब तक कोई चार्जशीट क्यों दायर नहीं की गई है ? सुनवाई में कोर्ट ने पीड़ित सतीश टिक्कू के परिवार से याचिका की हार्ड कॉपी कोर्ट में जमा करने को कहा है। यह सुनवाई परिवार के लिए एक आशा की किरण की तरह है। मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी। अधिवक्ता उत्सव बैंस ने श्रीनगर में News24 को बताया, जिन्होंने सतीश टिक्कू परिवार की ओर से याचिका दायर की थी।

हिन्दुओं का निर्मम हत्यारा उन्मादी मुस्लिम बिट्टा (माला पहने हुए)
आपको बता दें कि आतंकी बिट्टा कराटे ने एक चर्चित इंटरव्यू में कहा था कि उसने 20 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया था। आतंकी बिट्टा कराटे ने सबसे पहले उसने सतीश टिक्‍कू को जान से मारा था।सतीश टिक्कू उसका दोस्त था लेकिन पाकिस्तान परस्त लोगों के संपर्क रहने के बाद उसने यहां तक कह दिया था कि कश्मीर की आजादी के लिए तो वो अपनी मां और भाई का गला भी काट देता।

साल 1991 में दिए इंटरव्यू में बिट्टा ये भी बताता है, कि कैसे उसने 22 वर्षीय कश्मीरी पंडित सतीश कुमार टिक्कू की हत्या से घाटी में कत्लेआम का सिलसिला शुरू किया था। बिट्टा को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत भी गिरफ्तार किया गया था। बिट्टा पर 19 से अधिक उग्रवाद से संबंधित मामले थे। 
2008 में अमरनाथ विवाद के दौरान भी उसे गिरफ्तार किया गया था। बिट्टा मार्शल आर्ट में ट्रेंड था, इसलिए उसके नाम के आखिर में लोग कराटे लगाने लगे। बिट्टा कराटे ने करीब 16 साल सलाखों के पीछे बिताए। आखिर में 23 अक्टूबर, 2006 को टाडा अदालत ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया।

कश्मीरी पंडितों की नृशंस हत्या करने वाले इस्लामिक आतंकवादी फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे पर 31 साल बाद केस चलाने जा रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बिजनेसमैन सतीश टिक्कू के परिवार ने श्रीनगर सेशंस कोर्ट में एक याचिका दायर कर आतंकी फारूक अहमद डार के खिलाफ फिर से सुनवाई करने की मांग की है। टिकू के परिवार की ओर से वरिष्ठ वकील उत्सव बैंस ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा। वहीं, कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सतीश टिक्कू के परिवार से याचिका की हार्ड कॉपी पेश करने को कहा है। अब इस मामले में 16 अप्रैल को फिर सुनवाई होगी।

साल 1990 में कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार करने वालों में शामिल बिट्टा कराटे ने एक लाइव टीवी इंटरव्यू में कबूल किया था कि उसने ही सतीश कुमार टिक्कू को मारा था। साथ ही आतंकी कराटे ने दावा किया था कि उसे टिक्कू को मारने के लिए ऊपर से आदेश मिला था। बताते हैं, कि फारूक अहमद डार ने इंटरव्यू में निर्दोष लोगों को खत्म का आदेश देने वाले जिस अज्ञात शख्स का नाम लिया था, वह जेकेएलएफ (JKLF) का शीर्ष कमांडर अशफाक मजीद वानी था। उसने ही घाटी में रहने वाले निर्दोष कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार करने का आदेश दिया था। वानी वह शख्स था, जो बिट्टा कराटे और अन्य को आतंकियों को प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान ले गया था।

पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठन जम्मू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) का नेतृत्व करने वाले बिट्टा ने 42 लोगों को बड़ी ही बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया था। उसने अपना जुर्म कबूलते हुए कहा था, कि 1990 में कम से कम 20 या ‘शायद 30-से 40 कश्मीरी पंडितों की हत्या’ की थी। उसने यह भी बताया था कि सतीश टिक्कू उसका करीबी दोस्त था।


आतंकी ने कहा था, “मैंने हिंदुओं को मारने के लिए 20 से 30 गज की दूरी से पिस्तौल का इस्तेमाल किया था। कभी-कभी, मैंने सुरक्षाकर्मियों पर गोली चलाने के लिए एके-47 राइफल का भी इस्तेमाल किया।” कराटे का कहना था, कि वह इसलिए आतंकवादी बना, क्योंकि उसे स्थानीय प्रशासन द्वारा परेशान किया गया था।

पाकिस्तान के निर्देश पर निर्दोष नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की बेरहमी से हत्या करने वाले बिट्टा की पहली बार गिरफ्तारी 1990 में हुई थी। उस पर कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का आरोप लगाया गया था, लेकिन सबूतों के अभाव में उसे 17 साल बाद ​रिहा कर दिया गया था। इसके बाद अमरनाथ भूमि विवाद उपद्रव मामले में उसे 2008 में गिरफ्तार किया गया, लेकिन इसके आठ महीने बाद उसकी रिहाई हो गई। साल 2019 में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने उसे आतंकी फंडिंग मामले में गिरफ्तार किया।


उल्लेखनीय है, विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर बनी फिल्म "द कश्मीर फाइल्स" ने कश्मीरी हिन्दुओं के 32 साल के घोर पीड़ा, यातना और उन्मादी मजहबी कट्टर लोगों के दोगलेपन कमीनेपन और हरामीपन को सामने लाकर रख दिया। आम हिन्दू की सोई चेतना जाग रही है, जो लगातार इस फ़िल्म को पसंद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस फिल्म की सराहना की है

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दिल्ली में बस यात्रा की एक सच्ची घटना...
दिल्ली में बस मे बैठे हुए थी कि अचानक मुझे आदेशात्मक शब्द सुनाई दिए "भैया सीट से हट जाओ, मेरे साथ मेरे बच्चे है।"
बुर्का ओढ़े महिला ने एक 25 साल के लड़के से कहा तो लड़के ने बड़ी शालीनता से कहा "आप महिला सीट पर जाओ। मै महिला सीट पर नहीं बैठा हूँ।" वो बोली "वहां सब सीटों पर पहले से ही लेडीज बैठी हैं।" लड़के ने अपने कान के हेडफोन को हटाते हुए कहा, "मैं क्या करूं ? मुझे भजनपुरा जाना है जो अभी बहुत दूर है।" 
वो अपने बच्चो की धौंस दिखाने लगी कि मेरे छोटे-छोटे 4 बच्चे हैं। आपको शर्म नहीं आती ? आप जेंट्स हैं। आप सीट नही छोड़ सकते ?"

अब सब सवारियां मौन खड़ी तमाशा देखने लगी। मामला गर्म होने के साथ साथ मसालेदार हो रहा था। लड़के ने एक बड़ी अच्छी बात कही, "आप लोगो का यही ड्रामा है। हर साल एक बच्चा जनना और उसके ऊपर कूदना। क्या आपने हमसे पूछकर कर बच्चे पैदा किये थे? अजीब बात है? बच्चे पैदा करो तुम और सीट छोड़े हम? आपको बच्चों की इतनी ही फिक्र थी तो कैब करती या खाली बस में बैठती। अब तुम्हें सफर फ्री चाहिए, सीट चाहिए और दादागिरी भी चाहिए। जाइए, मैं नही देता आपको सीट।"

तभी बस के कंडक्टर ने भी कहा "भाई दे दो सीट।" लड़का फिर बोला- "मैं किसी महिला रिज़र्व सीट पर नही हुँ। भाई तू अपने टिकट काट।"
कंडक्टर शायद अरबी भेड़ था। कहने लगा "लेडी है! लगता है पेट से भी है।"
"तो मै क्या करूं ?" युवक ने कहा...
कंडक्टर चुप होकर बस के बाहर देखने लगा। इतने में मुझे ये तो यकीन हो गया लड़का जागरूक है। वह उसको बातों में धुनने को तैयार है। वो बुर्के वाली अक्कड से युवक के पास वाली सीट के पास ही खड़ी रही। लड़का भी बुदबुदाता रहा कि बच्चे तुम पैदा करते रहो। काफ़िर सीट देंगे? फिर तुम्हें अपना घर देंगे? और फिर वही कश्मीर वाले हालात पैदा करोगे।"
उस महिला को आगे बैठे एक इंसानियत के कर्मचारी ने अपनी सीट ऑफर कर दी। वो धम्म से बैठ गयी। उसने दो शिशु शावक गोद मे बिठा दिए। परंतु दो शावकों को खडे रहना पडा। अब वो बगल वाले से अपने शावकों के लिए सीट मांगने लगी।"

लड़के ने जोर से उस सेक्युलर को ताना मारा "भाई साहब! घर भी दे दो अपना, ये बच्चे वहां अच्छा जीवन जियेंगे।" इतने में कंडक्टर चिल्लाया "भाई! जिसे अप्सरा बॉर्डर उतरना हो उतर जाओ।"
बात वहीं रुक गयी और लड़का शांत हो गया। वो शाहीनबाग की शेरनी सीमापुरी उतर गई। मात्र 10 मिनट के सफर के लिये उस बुर्के वाली ने ये सब नाटक किया था।

ये घटना दिल्ली लोकल बस रूट नं.- 33 की है, जो नोएडा सेक्टर 37 से भजनपुरा की तरफ जाती है। रोज की तरह लोग इसमे घुसते है और अधिकांश अपने आफिस और दूसरे काम के लिए निकलते है। मैं महिला सीट पर बैठी ये सब नाटक देख रही थी। (दिल्ली एनसीआर की बसों में एक लाइन महिलाओं के लिए आरक्षित रहती है।)

मैं मंद-मंद मुसकराई और सोचने लगी कि "जागना जरूरी है। अरे ढेर सारे बच्चे पैदा वो करें और survive हमे करना पड़ रहा है। वर्षों से यही चल आ रहा है लेकिन ये अब आगे नही चलना चाहिए। शायद ही नहीं बल्कि यकीनन अब लोगों में जागरूकता आ रही है जो अब हर शहर गांव व दूरदराज तक पहुंचनी चाहिए।"
--एक महिला पत्रकार..
- इस #Social_Media कॉलम में सभी फोटो प्रतीकात्मक एवं #साभार- सोशल_मीडिया से 
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मुफ्तखोरों का मनोविज्ञान 
लाल झंडा पकड़े नेता ने कॉमरेडों से कहा-
अगर तुम्हारे पास बीस-बीघा खेत है तो क्या तुम उसका आधा दस बीघा गरीबों को दे दोगे ?
सारे कामरेड एक साथ बोले- हाँ दे देंगे !
नेता ने फिर कहा- 
अगर तुम्हारे पास दो घर हैं तो क्या तुम एक घर गरीबों को दे दोगे ?
सारे कामरेड एक साथ बोले- हाँ दे देंगे !

नेता ने फिर कहा-
अगर तुम्हारे पास दो कार हैं तो क्या तुम एक कार ग़रीब को दे दोगे ?
सारे कामरेड एक साथ बोले- हाँ दे देंगे !

नेता ने फिर पूछा-
अगर तुम्हारे पास बीड़ी का बंडल हैं तो क्या उनमें से दो बीड़ी तुम अपने साथी को दे दोगे ?
सारे कामरेड एक साथ बोले- नहीं, बीड़ी तो बिल्कुल नहीं देंगे !

नेता बहुत चकित हुए और उन्होंने पूछा-
तुम अपना खेत दे दोगे गरीबों को, घर दे दोगे, कार दे दोगे मगर अपनी बीड़ी क्यों नहीं दोगे ? इतना बड़ा-बड़ा बलिदान कर सकते हो और बीड़ी पर अटक गए ? आख़िर क्यों ?
सारे कॉमरेड बोले-

ऐसा है कि हमारे पास न तो खेत हैं, न घर है और ना ही कार है ! हमारे पास सिर्फ बीड़ी बंडल हैं !
यही कम्युनिज्म का मूल स्वभाव होता है ! कम्युनिस्ट आपको हर वो चीज देने का वादा करता है जो उसके पास होती नहीं और न ही वो उसे अर्जित कर सकता है !
 
कम्युनिस्ट आपको ये सारी चीजें किसी और से छीनकर देने का वादा करता है !
और अर्बन नक्सल आपको फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री ट्रांसपोर्टेशन देने का वादा करता है, वह भी किसी और की गाढ़ी कमाई से !

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कथा हेतु सम्पर्क करें- व्यासपीठ की गरिमा एवं मर्यादा के अनुसार श्रीराम कथा, वाल्मीकि रामायण, श्रीमद भागवत कथा, शिव महापुराण या अन्य पौराणिक कथा करवाने हेतु संपर्क करें। कथा आप अपने बजट या आर्थिक क्षमता के अनुसार शहरी या ग्रामीण क्षेत्र में अथवा विदेश में करवाएं, हमारा कथा के आयोजन की योजना, मीडिया-प्रचार आदि में सहयोग रहेगा। -प्रसार प्रबंधक "धर्म नगरी / DN News" मो.9752404020, 8109107075-वाट्सएप ट्वीटर / Koo / इंस्टाग्राम- @DharmNagari ईमेल- dharm.nagari@gmail.com यूट्यूब- #DharmNagari_News    
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