पाकिस्तान की क्या जरूरत, महबूबा और फारुख हैं न !

सरकार से मिले बंगले में, सरकारी खाने को खाकर, सरकारी लॉन में बैठकर, सरकार और संविधान को पानी पी-पीकर कोसने वाले नेताओं को अब सबक सिखाना चाहिए


(धर्म नगरी / डीएन न्यूज) वाट्सएप- 6261868110 

-अनुराधा त्रिवेदी*
भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग इस कदर बढ़ गया है, कि लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में अब जिम्मेदार संवैधानिक पदों पर रहे लोग भी खुल्लम खुल्ला देश तोडऩे की बात करने लगे हैं। भारत का शत्रु देश है पाकिस्तान, जिसकी करतूतें दुनियाभर में किसी से छिपी नहीं हैं। दिक्कत तब आती है, जब देश के नागरिकों के टैक्स के पैसे से, सरकारी संसाधानों के सुख-सुविधा से और देश में ही रहते हुए ये पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले लोग देश तोडऩे की बात करते हैं। आम नागरिक स्तब्ध होकर देश की सरकार की ओर देखता है और सोचता है, कि ये अभिव्यक्ति की कैसी आजादी है ?

चन्द सेकुलर जमात के लोग जब इनके सुर में सुर मिलाते हैं, तथाकथित मीडिया के लोग उनके साथ शामिल हो जाते हैं, तब निश्चित ही इस देश के आम नागरिक का खून खौल उठता है। वह अपेक्षा करता है, कि सरकार उनके खिलाफ कड़े कदम जरूर उठाएगी। भारत के संविधान में देशद्रोह के लिए या देशद्रोही भाषा बोले जाने पर आम नागरिक भी उन देशद्रोहियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा सकता है। धारा-370 हटने के बाद महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला के बयानों को लेकर देश में भारी गुस्सा है। देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा रहे हैं।

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कश्मीरी हिन्दू हर साल 19 जनवरी को करते हैं विरोध 
जब 19 जनवरी 1990 के दिन से कश्मीर घाटी को हिन्दुओं से खाली कराया गया, उस समय फारुख अब्दुला ही राज्य के सीएम थे। उसी समय उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज होना चाहिए था। गौरतलब है, कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पास किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफे्रंस के नेता फारुख अब्दुला और उमर अब्दुल्ला को पुलिस कस्टडी में ले लिया गया था। महबूबा मुफ्ती ने संसद में धारा-370 को निरस्त किए जाने संबंधी घोषणा के तत्काल बाद दो ट्वीट किए थे। पहले ट्वीट में महबूबा ने कहा था- यह भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला दिन है। जम्मू-कश्मीर के नेतृत्व में 1947 में भारत के साथ जाने का जो फैसला लिया था, वो गलत साबित हो गया। भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद-370 हटाने का फैसला अवैध और असंवैधानिक है।


वहीं, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा था, कि भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद-370 को हटाना जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ धोखा है। जम्मू-कश्मीर का भरोसा टूट गया है। भारत सरकार के इस फैसले से भयानक दुष्परिणाम सामने आएंगे। फारुख अब्दुला ने पिछले दिनों बेहद विवादास्पद बयान दिया, कि हमने 370 हटाने को कभी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने उम्मीद जताई, कि चीन की कोशिशों से 370 फिर से बहाल होगी। फारुख ने आगे कहा, चीन लद्दाख में जो कुछ भी कर रहा है, वो 370 हटाने के कारण है। हम चीन की मदद से ही धारा-370 और धारा 35-ए दोबारा बहाल कराएंगे। उन्होंने कहा, हमें ये कबूल नहीं है, जबतक आप 370 को हटाएंगे नहीं, हम तक तब रुकने वाले नहीं हैं। इसको लेकर सोशल मीडिया में घमासान मच गया।

उमर , महबूबा, फारुख सरकारी बंगले में 
सरकार पर चारों ओर से दबाव है, कि महबूबा मफ्ती और फारुख अब्दुला पर तुरंत कड़ी कार्रवाई हो
फारुख अब्दुल्ला को फौरन गिरफ्तार करना चाहिए, देशद्रोह का मामला दर्ज होना चाहिए। फारुख और महबूबा दोनों को फिर से बिना सुविधा वाली जेल में डालना चाहिए। भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा-370 को खत्म कर दिया था और राज्य का पुनर्गठन कर उसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था। जम्मू-कश्मीर के बड़े राजनीतिक दल नेशनल कांफे्रंन्स और पीडीपी ने इसका कड़ा विरोध किया था। जिसके बाद उनके नेताओं को नजरबन्द कर दिया गया था। दो दिन पहले महबूबा मुफ्ती जेल से छूटकर आई है। आते ही उन्होंने बयान जारी किया और कहा, कि मुझे देशद्रोही कहलाने पर गर्व है। मैं किसी भी कीमत पर 370 को स्वीकार नहीं करुंगी, क्योंकि इसने मुझे दुखी किया है।

कल रात उमर अब्दुल्ला, फारुख अब्दुल्ला, जो कि एक-दूसरे के धुर और कड़े विरोधी हैं, एक-दूसरे से गले मिले और 370 हटाने की मांग करते हुए भारत के खिलाफ बयान दिया। देश की जनता इनके बयानों से बहुत ज्यादा आहत है। तथाकथित जन्नत से आने वाले जहरीले बयान न केवल देश में गुस्सा भर रहे हैं, बल्कि सरकार को भी सीधी चुनौती देते हुए आड़े हाथों ले रहे हैं। ये तीनों सियासी चेहरे और इनके साथ तमाम विरोधी दल के नेता बैठक करना शुरू कर चुके हैं और लगातार भारत विरोधी बयान जारी कर रहे हैं। ये समय है, जब देशद्रोहियों को सबक सिखाया जाना देश की मांग हो गई है। 

फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बयान देश में वैमनस्य और हिंसा बढ़ाने वाले हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में नागरिकों ने इन नेताओं पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया है। इनकी राष्ट्रीय निष्ठा पर प्रश्न उठाया है। इन्होंने देश की सरकार के खिलाफ जनता को भड़काने की कोशिश की है। महबूबा ने कश्मीर को मुस्लिम राज्य बताते हुए इसपर भारत द्वारा कब्जा करना बताया, जो उसने कश्मीर में इस्तेमाल किया। महबूबा मुफ्ती ने पूर्व में देश विरोधी बयान दिए। जमाते इस्लामिया जैसे संगठनों को सपोर्ट किया। महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला के बयानों की भारी निन्दा हो रही है। 

आज देश की आवश्यकता है, कि वह अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की समीक्षा करे। अभिव्यक्ति के दायरे क्या हैं, ये अब निर्धारित होना चाहिए। अभिव्यक्ति का मतलब देश के दुश्मनों का साथ देना तो कदापि नहीं हो सकता। सच तो ये है, कि धारा-370 हटने के बाद इन दुकानदारों के शटर गिर गए हैं। सरकार से मिले बंगले में, सरकार के दिए खाने को खाकर, सरकार के दिए लॉन में बैठकर, सरकार और संविधान को पानी पी-पीकर कोस रहे हैं। इन नेताओं को सबक क्यों नहीं सिखाया जाना चाहिए। इनके बयानों ने केवल भारत के दुश्मनों को ही खुश किया है और देश की छवि को खराब की है। फिर इनको कैसे देश का मित्र माना जाए ?
*प्रबंध सम्पादक- धर्म नगरी, DN News
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