नवरात्रि : माँ महागौरीकी कृपा से प्राप्त होती हैं अलौकिक सिद्धियां

 #Shardiya_Navratri  नवरात्रि : आठवां दिन 

माँ महागौरी- माता महागौरी की पूजा साधक अलौकिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए करते हैं. इनका मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:



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नवरात्रि का आज आठवां दिन- महाअष्टमी (24 अक्टूबर) है। आज मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूरे देश व दुनियाभर में सनातन हिन्दुओं द्वारा विशेष पूजा की जाएगी। शिवपुराण  के अनुसार, महागौरी को आठ साल की आयु में ही अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का आभास हो गया था। इसलिए उन्होंने 8 साल की उम्र से ही भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या आरम्भ कर दी थी। इसलिए अष्टमी के दिन महागौरी का पूजन करने का विधान है। इस दिन मां की पूजा में श्री दुर्गासप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करना विशेष फलदायी होता है।

माँ महागौरी का स्वरूप- 
मां महागौरी को शिवा भी कहा जाता है। इनके एक हाथ में दुर्गा शक्ति का प्रतीक त्रिशूल है तो दूसरे हाथ में भगवान शिव का प्रतीक डमरू है। अपने सांसारिक रूप में महागौरी उज्ज्वल, कोमल, श्वेत वर्णी तथा श्वेत वस्त्रधारी और चतुर्भुजा हैं। इनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू है तो तीसरा हाथ वरमुद्रा में हैं और चौथा हाथ एक गृहस्थ महिला की शक्ति को दर्शाता हुआ है। महागौरी को गायन और संगीत बहुत पसंद है। ये सफेद वृषभ यानी बैल पर सवार रहती हैं। इनके समस्त आभूषण आदि भी श्वेत हैं। महागौरी की उपासना से पूर्वसंचित पाप नष्ट हो जाते हैं।

मां महागौरी की कथा-  
श्रीदुर्गा सप्तशती में वर्णन है- शुंभ निशुंभ से पराजित होकर गंगा के तट पर देवताओं ने जिस देवी की प्रार्थना की थी वह महागौरी ही थीं। देवी गौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ जिसने शुंभ निशुंभ के आतंक से देवों को मुक्ति दिलाई। देवी गौरी शिव की अर्धांगिनी हैं और इस कारण वे शिवा और शाम्भवी नाम से भी पूजित हैं। मां के गौर वर्ण के संदर्भ में एक कथा है कि भगवान भोलेनाथ को पति रूप में पाने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की जिससे इनका शरीर काला पड़ गया। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने इन्हें स्वीकार किया और गंगा जल की धार जैसी ही देवी पर पड़ी देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो गईं और उन्हें मां गौरी नाम मिला। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं-
“सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। 
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।”

माँ महागौरी के पूजन का महत्व- 
माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए।महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से भक्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए। पुराणों में माँ महागौरी की महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत्‌ की ओर प्रेरित करके असत्‌ का विनाश करती हैं। हमें प्रपत्तिभाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए।
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देखें माँ महागौरी की स्तुति-
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https://youtu.be/ExPCLDbrCoc 

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माँ महागौरी की पूजन विधि-
देवी गौरी की पूजा का विधान भी पूर्ववत है। अर्थात जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक आपने मां की पूजा की है उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी प्रत्येक दिन की तरह देवी की पंचोपचार सहित पूजा करते हैं।इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराकर वस्त्राभूषणों द्वारा पूर्ण शृंगार किया जाता है और फिर विधिपूर्वक आराधना की जाती है। हवन की अग्नि जलाकर धूप, कपूर, घी, गुग्गुल और हवन सामग्री की आहुतियां दीजिए। सिन्दूर में एक जायफल को लपेटकर आहुति देने का भी विधान है। धूप, दीप, नैवेद्य से देवी की पूजा करने के बाद मातेश्वरी की जय बोलते हुए 101 परिक्रमाएं दी जाती हैं। इस पर्व पर नवमी को प्रात: काल देवी का पूजन किया जाता हैं। अनेक पकवानों से दुर्गाजी को भोग लगाया जाता है। छोटे बालक-बालिकाओं की पूजा करके उन्हें पूड़ी, हलवा, चने और भेंट दी जाती है। इस दिन कुलदेवी और कुलदेवताओं की पूजा की जाती है। कन्याओं को भोजन करवाया जाता है।

माँ महागौरी का ध्यान मंत्र- 
श्वेते वृषे समारुढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा। 
महगौरी पूजन करते समय इस मंत्र से देवी का ध्यान करना चाहिए।

करें कन्या पूजन-
मां शक्ति के इस स्वरूप की पूजा में नारियल, हलवा, पूड़ी और सब्जी का भोग लगाया जाता है। आज के दिन काले चने का प्रसाद विशेषरूप से बनाया जाता है।
पूजन के बाद कुंवारी कन्याओं को भोजन कराने और उनका पूजन करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है। महागौरी माता अन्नपूर्णा स्वरूप भी हैं। इसलिए कन्याओं को भोजन कराने और उनका पूजन-सम्मान करने से धन, वैभव और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

महागौरी की पूजा करते समय जहां तक हो गुलाबी रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। महागौरी गृहस्थ आश्रम की देवी हैं औरजब गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक है। एक परिवार को प्रेम के धागों से ही गूंथकर रखा जा सकते हैं, इसलिए आज के दिन गुलाबी रंग पहनना शुभ रहता है।

शास्त्रों में माता दुर्गा महागौरी के इन मंत्रों को गुप्त और अति चमत्कारी महामंत्र बताये गए है, जिनका जप करने से सभी प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होने लगती है। नवरात्रि काल में अष्टमी तिथि की रात में इन शक्तिशाली मंत्रों का निर्धारित संख्या में जप करने के बाद एक बार श्री दुर्गाशप्ती का पाठ भी करना चाहिए। नीचे दिए गए किसी भी एक मंत्र का चयन कर रात में 9 बजे से लेकर 12 बजे तक गाय के घी का दीपक जालकर, माता महागौरी का विधिवत आवाहन पूजन कर, कुल मंत्र जप तीन हजार जपने से मंत्र सिद्ध हो जाता है और मंत्र सिद्ध होने पर माता महागौरी प्रसन्न होकर सभी कामनाएं पूर्ण होने का आशीर्वाद देती है।
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मां दुर्गा के सिद्ध चमत्कारी मंत्र-
1- ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः 
2- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
3- सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

धन प्राप्ति की विशेष कामना हेतु मंत्र- 
मंत्र-
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:, 
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या, 
सर्वोपकारकरणाय सदाऽ‌र्द्रचित्ता ॥

ज्ञात-अज्ञात पाप कर्मों के दुष्फल से बचने के लिए अष्टमी तिथि को इस मंत्र का एक हजार बार जप करने सभी प्रकार के पापों के दुष्फल नष्ट हो जाते हैं । मंत्र-
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव ॥

उपरोक्त मंत्रों का जप पूरा होने के बाद जिस मंत्र का जप किया था, दूसरे दिन नवमी तिथि को सुबह 4 बजे से लेकर 8 बजे के बीच उसी जप किए मंत्र से 251 बार गाय के घी में शहद मिलाकर हवन यज्ञ करें। हवन के बाद 5 छोटी कन्याओं को भोजन भी खिलावें। ऐसा करने से जपकर्ता की एक साथ सैकड़ों कामनाएं पूरी हो जाती है।

इसी प्रकार तंत्र शास्त्र के जानकार साधक माता की पूजा अनेक गुप्त शक्तियों की प्राप्ति के लिए करते हैं। अगर किसी की कोई कामना पूरी नहीं हो पा रही हो, या परिवार में सब कुछ ठीक न चल रहा हो तो दुर्गा महाअष्टमी की विशेष रात में माता महागौरी के इन मंत्रों में से किसी भी एक का जप नीचे बताई गई शास्त्रों में निर्धारित संख्या में जरूर करें कुछ ही दिनों में जपकर्ता की सभी मनचाही कामनाएं पूरी होने लगेगी।
 
शास्त्रों में माता दुर्गा महागौरी के इन मंत्रों को गुप्त और अति चमत्कारी महामंत्र बताये गए है, जिनका जप करने से सभी प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होने लगती है। नवरात्रि काल में अष्टमी तिथि की रात में इन शक्तिशाली मंत्रों का निर्धारित संख्या में जप करने के बाद एक बार श्री दुर्गाशप्ती का पाठ भी करना चाहिए। नीचे दिए गए किसी भी एक मंत्र का चयन कर रात में 9 बजे से लेकर 12 बजे तक गाय के घी का दीपक जालकर, माता महागौरी का विधिवत आवाहन पूजन कर, कुल मंत्र जप तीन हजार जपने से मंत्र सिद्ध हो जाता है और मंत्र सिद्ध होने पर माता महागौरी प्रसन्न होकर सभी कामनाएं पूर्ण होने का आशीर्वाद देती है।

माँ दुर्गा की आरती-

जय अंबे गौरी, 
मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…

मांग सिंदूर विराजत,
टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना,
चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…

कनक समान कलेवर,
रक्तांबर राजै।
रक्तपुष्प गल माला,
कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…

केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी।
सुर-नर-मुनिजन सेवत,
तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…

कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर,
राजत सम ज्योती॥ ॐ जय…

शुंभ-निशुंभ बिदारे,
महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना,
निशदिन मदमाती॥ ॐ जय…

चण्ड-मुण्ड संहारे,
शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे,
सुर भय दूर करे॥ ॐ जय…

ब्रह्माणी, रूद्राणी,
तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी,
तुम शिव पटरानी॥ ॐ जय…

चौंसठ योगिनी गावत,
नृत्य करत भैंरू।
बाजत ताल मृदंगा,
अरू बाजत डमरू॥ ॐ जय…

तुम ही जग की माता,
तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता,
सुख संपति करता॥ ॐ जय…

भुजा चार अति शोभित,
वरमुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत,
सेवत नर नारी॥ ॐ जय…

कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत,
कोटि रतन ज्योती॥ ॐ जय…

श्री अंबेजी की आरति,
जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी,
सुख-संपति पावे॥ ॐ जय…

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आपसे निवेदन है (Disclaimer)- उक्त लेख जानकारियां, ज्योतिर्विदों, विद्वानों एवं प्रामाणिक पुस्तकों से साभार ली गई हैं फिर भी इनको करने से पूर्व कर्मकांडी ब्राह्मण या विद्वान से संपर्क करें। 

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