देश की सुरक्षा पर कम, सत्ता पर अधिक ध्यान रखने वाली पाक सेना को-

पाकिस्तान का संयुक्त विपक्ष दिखा रहा आईना


(धर्म नगरी / डीएन न्यूज) वाट्सएप- 6261868110 
-अनुराधा त्रिवेदी*
पाकिस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है, कि पाकिस्तान सेना को विपक्षी पार्टियां अपने निशाने पर ले रही हैं। पाकिस्तान में सेना को चुनौती देने की हिम्मत किसी भी राजनीतिक दल में नहीं है। मौलाना फजल उर रहमान इस समय इमरान की आंखों का कांटा बने हुए हैं। जो इस वक्त सेना को खरी-खोटी सुनाने से बाज नहीं आ रहे। वहीं, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के युवा अध्यक्ष बिलावन भुट्टो जरदारी लंबे समय से सेना के पीछे निशाना साध रहे हैं। 2018 में इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनें, तभी से ये आरोप लग रहा है, कि सेना ने उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी दी है। दूसरे नवाज शरीफ भी इमरान सरकार पर हमलावर हैं। दूसरी तरफ इमरान सरकार अपने खिलाफ उठ रही आवाजों को दबाने के लिए विपक्षी नेताओं को जेल में डाल रहे हैं।

इमरान, मौलाना फजल, नवाज शरीफ 
एक तरह से
निर्वासित या यूं कहें भगोड़ा (जैसा पाकिस्तानी सरकार कहती है) नवाज शरीफ लंडन में रहकर विपक्ष की रैली को संबोधित कर रहे हैं। नवाज शरीफ ने ये जरूर कहा, कि इमरान से दिक्कत नहीं है। दिक्कत है सेना से। शरीफ ने कहा, सेना को सियासत से दूर रहना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई पर भी तंज कसा। नवाज शरीफ तीन बार प्रधानमंत्री बनें। तीनों बार सेना के दबाव में उन्हें पद छोडऩा पड़ा। दूसरी तरफ बिलावल भुट्टो ने सेना को चेतावनी दी थी, कि यदि सेना इमरान खान का समर्थन बंद नहीं करेगी, तो विधानसभा और संसद से सभी चुने हुए प्रतिनिधि इस्तीफा दे देंगे।

बिलावल भुट्टो 
बिलावल ने गिलिगिट और बालटिस्तान को पांचवा राज्य बनाने पर आपत्ति दर्ज करते हुए कहा, इस काम में सेना का दखल क्यों ? पिछले 20 सितंबर को पाकिस्तान के 11 विपक्षी दलों ने एक गठबंधन बनाया। इस गठबंधन को डेमोक्रेटिक मूवमेंट का नाम दिया गया। जनवरी 2021 मेें यह गठबंधन इस्लामाबाद में मार्च निकालेगा। जगह-जगह अभी से विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। बिलावल और नवाज शरीफ इमरान को सेलेक्टेड प्रधानमंत्री कह रहे हैं।


नवाज शरीफ, मरियम नवाब
पाकिस्तान में अपने विरोधियों को निशाना बनाने के लिए कुछ नहीं है, तब यहां की सरकार अपने उन नागरिकों को भारतीय एजेंट कह रही है, जब बहस की कोई गुंजाइश ही नहीं है, तब अपने विरोधियों को गाली देने के लिए भारतीय एजेंट कहने से उपयुक्त शायद कुछ और नहीं है। सरकार ने अपने विरोधियों को परेशान करने के लिए बड़ा कदम उठाया और अपनी ही पार्टी के एक सदस्य के जरिए नवाज शरीफ, उनकी बेटी मरियम नवाब, पीएनएलएन में शामिल तीन पूर्व सैन्य जनरलों तथा पाक अधिकृत कश्मीर के मौजूदा प्रधानमंत्री के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करवाया। वास्तव में ये इमरान खान के लिए बड़ी शर्मिंदगी की बात है, जो खुद को कश्मीर का राजदूत कहते हैं। इस बात से जनता भी बहुत ज्यादा नाराज है, कि जनता की समस्याओं को सुलझाने के बजाय सरकार केवल विपक्षी नेताओं पर निशाना साधने में व्यक्त है।


पाकिस्तान का प्रमुख अखबार डॉन लिखता है, कि यह ब्रिटिश औपनिवेशिक अतीत का अवशेष है, जब लोगों के मौलिक लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलने के लिए देशद्रोह कानून का हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। पाकिस्तान में बहुत कम नेता है, जिनपर देशद्रोह का आरोप नहीं लगा है। लेखक और पत्रकार भी इस आरोप से नहीं बच सके हैं। इसकी शुरुआत नेता नवाज शरीफ से हुई, जो आजकल लंडन में बैठकर सेना के ऊपर उग्र आरोपों के बम बरसा रहे हैं। उन्होंने सेना को, सरकार के ऊपर सरकार बताया। आंदोलन में शामिल होने वाले महत्वपूर्ण नेताओं में एक मौलाना फजलुर उल रहमान है, जो जमायत उलेमा ए इस्लाम फजल के प्रमुख हैं। उन्हें विपक्षी दलों को संगठन मनोनीत किया गया है। हालांकि, मौलाना पिछले चुनाव में विफल रहे थे। संसद में भी उनकी दावेदारी तगड़ी नहीं है, लेकिन बाहर सड़कों पर हजारों लोगों को वो इकट्ठा कर सकते हैं।

मौलाना को विपक्षी दलों का प्रमुख बनाने की एक प्रमुख वजह है, कि विपक्ष को इस बात का डर है, कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पीएमएलएम के शीर्ष नेतृत्व को उन मामलों में गिरफ्तार किया जा सकता है, जिनपर अदालतों में सुनवाई चल रही है, जिसमें नवाज शरीफ को भगोड़ा घोषित करने की न्यायालयीन तैयारी भी है। पाकिस्तान का इतिहास रहा है, कि सेना का ध्यान बार्डर पर कम, देश की सुरक्षा पर कम और सत्ता कुर्सी पर अधिक रहा है। पाकिस्तान की सेना निर्वाचित सरकारों को गिराकर सत्ता हथियाती रही है। चाहे जनरल अयूब हों, चाहे जनरल जिया उल हक हो या राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ हो। पाकिस्तानी जनरल देश की सुरक्षा को आतंकवादियों को सौंपकर खुद सेना, सत्ता के गलियारों में फिरती नजर आती है।

आज जब गिलगिट और बालटिस्तान में राजनीतिक मुद्दों पर सेना की दखलअंदाजी बढ़ी है, तो विपक्ष ने एक संयुक्त मोर्चा बनाकर सेना को शीश दिखाना शुरू किया। विपक्षी पार्टियां जो सेना का विरोध कर रही हैं, वो विरोधियो को भारतीय एजेंट बता रही हैं। अब इमरान पर शनि की साढ़े साती शुरू हो चुकी है और वहां तख्ता पलट के लक्षण भी दिखने लगे हैं। इन सब घटनाक्रमों से सेना प्रमुख जनरल बाजवा की भी परेशानियां बढ़ गई हैं, क्योंकि इसबार संयुक्त विपक्ष ने सीधे ऊंगली उठाना शुरू कर दिया है। 

*प्रबंध सम्पादक- धर्म नगरी, DN News
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