क्या आप देवेंद्र जैसी ऐसी कोई सच्ची घटना हमें भेज सकते हैं-

सच्ची घटना : विश्वास करना लगभग असंभव 

दिल्ली में साधारण टैक्सी चालक देवेन्द्र की असाधारण घटना 

देवेन्द्र ने जब आपबीती सुनाई, तो पहले थानेदार हैरान हुआ था अब रिपोर्टर महोदय हैरान हो गए...

(धर्म नगरी / डीएन न्यूज) वाट्सएप- 6261868110 

देवेन्द्र अपनी टैक्सी में बैठा सवारी की प्रतीक्षा कर रहा था। थोड़ी देर में एक कश्मीर का निवासी आया और उसकी टैक्सी में बैठ गया। उसे एयरपोर्ट से पहाड़गंज तक जाना था। देवेन्द्र ने उसको पहाड़गंज छोड़ा। अपना किराया लिया और वापस टैक्सी स्टैंड की ओर चल पड़े। इसी बीच उनकी दृष्टि गाड़ी में पड़े एक बैग पर गई।

बैग को उठाया। समझने में क्षणभर भी न लगी, कि यह सवारी का बैग है, जिसे कुछ ही समय पहले वह पहाड़गंज छोड़ कर आये हैं। बैग को खंगाला तो देबेन्द्र दंग रह गये। बैग में कुछ स्वर्ण आभूषण, एक एप्पल का लैपटॉप, एक कैमरा और कुछ नगद पैसे थे। सब कुछ मिला के लगभग 7 या 8 लाख का सामान था। एकदम देवेन्द्र की आँखों के सामने फाइनेन्सर की तस्वीर आ गयी। इतने आभूषण बेच कर तो कर्जा आसानी से उतर सकता था। एक दम से प्रसन्न हो उठे।

मन में बैठा रावण जाग उठा। पराया माल अपना लगने लगा। परन्तु जीवन की यही तो विडम्बना है। मन में राम और रावण दोनों निवास करते हैं। कुछ ही दूर गये थे के मन में बैठे राम जाग उठे। देवेन्द्र  को लगा के वह कैसा पाप करने जा रहे थे।

नैतिकता आड़े आ गयी। बड़ी दुविधा थी। एक ओर आभूषण सामने पड़े थे और दूजी ओर अपनी अंतरात्मा खुद को ही धिक्कार रही थी। कुछ देर द्वंद चला पर अंत में विजय राम की ही हुई। देबेन्द्र पास के पुलिस स्टेशन गये और बैग ड्यूटी पर मौजूद थानेदार के हाथ में थमा दिया।

अब थानेदार कभी बैग में पड़े आभूषण देखे और कभी देबेन्द्र का चेहरा देखाथानेदार ने कहा- तू अगर चाहता तो यह बैग लेकर भाग सकता था।

देबेन्द्र ने जवाब दिया- साहब हम "गरीब" हैं "बेईमान" नहीं हैं। थानेदार भी निःशब्द हो गया। उसे लगा पता नहीं यह आदमी किस मिट्टी का बना है।

ख़ैर सवारी को उसका बैग सकुशल वापिस मिल गया। देबेन्द्र कि ईमानदारी के इनाम के रूप में मालिक ने उसे कुछ रुपये देने की पेशकश की तो देवेन्द्र ने साफ मना कर दिया।

असल कहानी अब पढ़ें –

थानेदार ने देवेन्द्र की ईमानदारी की गाथा एक मीडियाकर्मी के आगे सुना दी। मीडियाकर्मी भी थानेदार की तरह अवाक रह गया। उसने देवेन्द्र की ईमानदारी की खबर अखबार में छापने की ठान ली। वह देबेन्द्र से मिला और उसका साक्षात्कार लेते हुये पूछा- अगर बैग में पड़े सामान की कीमत (8 लाख रु) उसे मिल जायें तो वह क्या करेगा ?

देवेन्द्र ने आपबीती सुना दी। उसने कहा- पहले तो फाइनेन्सर का कर्जा चुकाएगा और फिर अगर सम्भव हुआ तो एक टैक्सी खरीदेगा।

पहले थानेदार हैरान हुआ था अब रिपोर्टर महोदय हैरान हो गए। रिपोर्टर ने कहा के तेरे सर पर कर्ज़ है तो तू बैग लेकर भाग क्यों नहीं गया।

देबेन्द्र ने रिपोर्टर महोदय से भी कहा के साहब, हम गरीब हैं पर बेईमान नहीं हैं। थानेदार की तरह अब रिपोर्टर को भी लगा के यह आदमी किस मिट्टी का बना है।

रिपोर्टर ने देबेन्द्र की ईमानदारी की गाथा एफ एम चैनल के एक रेडियो जॉकी को बताई। FM रेडियो के माध्यम से देवेन्द्र की कहानी दिल्ली-एनसीआर के निवासियों को सुना दी गई...

साथ ही साथ दिल्ली वालों को देवेन्द्र के कर्ज के विषय में भी बताया। इसी के साथ एक खाता नम्बर भी दे दिया... जिसमे धनराशि डालकर वह ईमानदार देबेन्द्र का कर्ज़ा उतारने में उसकी सहायता कर सकते थे।

2 घंटे... मात्र 120 मिनट में- दिल्ली ने देवेन्द्र के खाते में 91,751 रु डलवा दिये...  और टोटल 8 लाख रुपये मिले मात्र 2 दिन में।

सबने अपनी क्षमता के अनुसार पैसा दिया और दिल्ली ने देवेन्द्र की ईमानदारी के उपहार में उसे ऋण मुक्त कर दिया। लाखों लोगों ने देबेन्द्र की ईमानदारी को सराहा, प्रशंसा की...

देवेन्द्र आज भी कहते हैं, कि मन के रावण को राम पर हावी ना होने देना उनके जीवन की सबसे बड़ी जीत थी। अगर वह बैग लेकर भाग जाते तो कर्ज़ा तो उतार लेते पर खुद को कभी क्षमा न कर पाते।

मैं मानता हूँ के मन में बैठा रावण आज की व्यवस्था में हावी है। परन्तु बारीकी से देखें तो मन में बैठा राम आज भी दशानन का वध करने में सक्षम है। अच्छाई और बुराई मे आज भी धागे भर का अंतर है। इस ओर गये तो राम, उस ओर गये तो रावण।

देवेन्द्र ने दिल की सुनी और दिमाग के तर्क को नकार दिया। दिल से सोचने वालों के लिये एक बड़ी खूबसूरत बात कही गयी है-

"दिल होता "लेफ्ट" में है, पर होता सदैव राइट है... विश्वास न हो तो गूगल में ढूंढ लें, सर्च कर लीजिए कहानी बिल्कुल सच है।

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