बेटे के वियोग में दर्जनों सुपरहिट गीत लिखे, जिसे आज भी आप सुनते हैं, ये सच्ची घटना है...


गीतकार पंडित भरत व्यास की, उनके खोए बेटे की...


(धर्म नगरी / DN News) 
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फ़िल्म "जनम जनम के फेरे" 1957 में रिलीज हुई। यह म्यूजिकल हिट साबित हुई। इस फ़िल्म के एक गाने "जरा सामने तो आओ छलिये" ने तो जैसे उस दौर में तहलका मचा दिया। यह गाना इतना सुपरहिट साबित हुआ और उस साल की 'बिनाका गीत माला" का यह नम्बर 1 गीत बन गया।

इस गाने का अनोखा किस्सा है। इस गाने को लिखा था पंडित भरत व्यास ने। पंडित भरत व्यास जी के एक बेटा था श्याम सुंदर व्यास ! श्याम सुंदर बहुत संवेदनशील था। एक दिन भरत जी से किसी बात पर क्रोधित होकर बेटा घर छोड़ कर चला गया।


भरत जी ने उसे लाख ढूंढा। रेडियो और समाचार पत्रों में विज्ञापन दिया। गली-गली दीवारों पर पोस्टर चिपकाए। धरती, आकाश और पाताल सब एक कर दिया। ज्योतिषियों से पूछा। मन्दिर, गुरद्वारे हर जगह मत्था टेका, लेकिन वो नही मिला। ज़मीन खा गई या आसमां निगल गया। आख़िर हो कहां पुत्र ? तेरी सारी इच्छाएं और हसरतें सर आंखों पर। तू लौट तो आ। बहुत निराश हो गए भरत व्यास।

उस समय भरत व्यास जी कैरियर के सर्वश्रेष्ठ काल से गुज़र रहे थे। ऐसे में बेटे के अचानक चले जाने से जीवन ठहर सा गया। किसी काम में मन नहीं लगता। निराशा से भरे ऐसे दौर में एक निर्माता भरत जी से मिलने आया और उन्हें अपनी फिल्म में गाने लिखने के लिए निवेदन किया। भरत जी ने पुत्र वियोग में उस निर्माता को अपने घर से निकल जाने को कह दिया। लेकिन उस समय भरत जी की धर्मपत्नी वहां आ गई। उन्होंने उस निर्माता से क्षमा मांगते हुए यह निवेदन किया कि वह अगले दिन सुबह पुनः भरत जी से मिलने आए। निर्माता मान गए। 

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इसके पश्चात उनकी धर्मपत्नी में भरत जी से यह निवेदन किया की पुत्र की याद में ही सही उन्हें इस फिल्म के गीत अवश्य लिखना चाहिए । ना मालूम क्या हुआ कि पंडित भरत व्यास ने अपनी धर्मपत्नी कि इस आग्रह को स्वीकार करते हुए गाने लिखना स्वीकार कर लिया।

उन्होंने गीत लिखा- "ज़रा सामने तो आ छलिये, छुप-छुप छलने में क्या राज़ है, यूँ छुप न सकेगा परमात्मा, मेरी आत्मा की यह आवाज़ है।" इसे 'जन्म जन्म के फेरे' (1957 ) फ़िल्म में शामिल किया गया। रफ़ी और लता जी ने इसे बड़ी तबियत से, दर्द भरे गले से गाया था। बहुत प्रसिद्ध हुआ यह गीत,  लेकिन दुःखद यह, कि बेटा फिर भी न लौटा।

मगर व्यासजी ने हिम्मत नहीं हारी। फ़िल्म 'रानी रूपमती' (1959 ) में उन्होंने एक और दर्द भरा गीत लिखा - "आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं, मेरा सूना पड़ा संगीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं"। इस गीत में भी बहुत दर्द था, और कशिश थी। इस बार व्यास जी की दुआ काम कर गई। बेटा घर लौट आया,  लेकिन आश्चर्य देखिये, कि वियोग के यह गाने उस दौर के युवा प्रेमियों के सर चढ़कर बोलते थे। यह पंडित व्यास जी की कलम का ही जादू था।

पंडित भरत व्यास राजस्थान के चुरू इलाके से 1943 में पहले पूना आये और फिर बंबई। बहुत संघर्ष किया। बेशुमार सुपर हिट गीत लिखे। हिंदी सिनेमा को उनकी देन का कोई मुक़ाबला नहीं। एक से बढ़ कर एक बढ़िया गीत उनकी कलम से निकले।

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सुने श्रद्धेय भरत व्यासजी के मधुर व सुपरहिट गाने #साभार AIR 
https://www.youtube.com/watch?v=fTkwqMkJ8Oo&feature=youtu.be
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हिन्दी सिनेमा के महान गीतकार भरत व्यास ने अपने शब्दों से भारतीय सिनेमा को भक्ति, भाव और संस्कृति की नई ऊंचाइयां दीं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी भरत व्यास अच्छे अभिनेता और संवेदनशील कवि भी थे। 1942 में भाग्य को आजमाने के लिए भरत व्यास "सपनों की नगरी" मुंबई पहुंच गए। वहां उन्होंने कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया, लेकिन प्रसिद्धि उन्हें उनके गीतों के माध्यम से मिली। 

भरत व्यास को सबसे पहले बी.एम. व्यास के निर्देशन में 1943 में बनी फिल्म-दुहाई के गीत लिखने का अवसर मिला। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे फिल्मी दुनिया के प्रसिद्ध गीतकार बन गए। सारंगा, संत ज्ञानेश्वर, तूफ़ान और दिया, रानी रूपमती, गूंज उठी शहनाई, नवरंग, बूँद जो बन गई मोती, पूर्णिमा और दो आँखे बारह हाथ जैसी फिल्मों के गीतों ने भरत व्यास को सफलता की बुलंदियों तक पहुॅचा दिया। उनके कुछ सुपरहिट गाने / भजन ये हैं-

आधा है चंद्रमा रात आधी. तू छुपी है कहां मैं तपड़ता यहां…(नवरंग)
… निर्बल की लड़ाई भगवान से, यह कहानी है दिए और तूफ़ान की. (तूफ़ान और दिया)
... सारंगा तेरी याद में (सारंगा)…
... तुम गगन के चंद्रमा हो मैं धरा की धूल हूं (सती सावित्री)
… ज्योत से ज्योत जलाते चलो. (संत ज्ञानेश्वर)

तपस्वियों सी हैं अटल ये पवर्तों कि चोटियाँ
ये बर्फ़ कि घुमरदार घेरदार घाटियाँ
ध्वजा से ये खड़े हुए 
हैं वृक्ष देवदार के
गलीचे ये गुलाब के 
बगीचे ये बहार के
ये किस कवि की कल्पना...
ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार है ?
…हरी भरी वसुंधरा पे नीला नीला यह गगन, यह कौन चित्रकार है. (बूँद जो बन गई मोती)

जब जुल्मों का हो सामना, 
तब तू ही हमें थामना वो बुराई करें, 
हम भलाई भरें, 
नहीं बदले की हो कामना 
बढ़ उठे प्यार का हर कदम 
और मिटे बैर का ये भरम 
नेकी पर चले और बदी से टले, 
ताकी हँसते हुये निकले दम
…ऐ मालिक तेरे बंदे हम.सैयां झूठों का बड़ा सरताज़ निकला…(दो आंखें बारह हाथ)

…दीप जल रहा मगर रोशनी कहां…(अंधेर नगरी चौपट राजा)
…दिल का खिलौना हाय टूट गया
.…कह दो कोई न करे यहां प्यार …
तेरे सुर और मेरे गीत.…(गूँज उठी शहनाई)

…क़ैद में है बुलबुल, सैय्याद मुस्कुराये…(बेदर्द ज़माना क्या जाने ?) आदि। यह अमर नगमे आज भी गुनगुनाए जाते हैं। गोल्डन इरा के शौकीनों के अल्बम इन गानों के बिना अधूरे हैं।



 

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व्यास जी का यह गीत- ऐ मालिक तेरे बंदे हम. महाराष्ट्र के स्कूलों में सालों तक सुबह की प्रार्थना सभाओं का गीत बना रहा। पचास का दशक भरत व्यास के फ़िल्मी जीवन का सर्वश्रेष्ठ दौर था।

आज यह सारी बातें भुला दी गई, यद्यपि (6 जनवरी को) भरत व्यासजी की जन्म जयंती पर लोगों ने उनका स्मरण किया। पंडित भरत व्यास जी का जन्म 6 जनवरी, 1918 को बीकानेर में हुआ था। वे जाति से पुष्करना ब्राह्मण थे। मूल रूप से चूरू के थे। बचपन से ही इनमें कवि प्रतिभा दिखने लगी थी। आज की युवा पीढ़ी इस सुंदर शुद्ध हिंदी गीतो को बताने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।

पंडित भरत व्यास जी को नमन। #साभार 

कर्म करे किस्मत बने
जीवन का ये मर्म
प्राणी तेरे हाथ में
तेरा अपना कर्म  - भरत व्यास




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