प्रयागराज माघ मेला : पौष पूर्णिमा (28 जनवरी 2021) से, एक माह का...
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संगम प्रयागराज में गंगा-यमुना (अदृश्य सरस्वती) का मिलन |
राजेश पाठक*
प्रयागराज में दान का बड़ा ही महत्व है, जो कुम्भ, अर्धकुम्भ एवं माघ मेले के काल में और भी बढ़ जाता हैं. इस काल में यहाँ पर दान देने वाले एवं लेने वाले दोनों को लाभ होता है. अतः तीर्थराज प्रयाग में दिया दान त्याग से भी श्रेष्ठ माना गया है. गो-दान, वस्त्र दान, द्रव्य दान, स्वर्ण दान आदि का बड़ा ही महत्व है. सम्राट हर्षवर्धन तो यहाँ हर बारह वर्ष पर अपना सर्वस्व दान दे देते थे.
सत्संग का शाब्दिक अर्थ यह होता है कि सत्य की संगत में रहना वाला। माघ मेले, कुम्भ अर्धकुम्भ में श्रद्धालुओं को सन्तों के सानिध्य में रहना चाहिए, उनके प्रवचनों को सुनना चाहिए, निस्वार्थ भाव एवं ऊंच-नीच का आडम्बर समाप्त हो सके और मनुष्य उत्कृष्ट जीवन उद्देश्य की ओर अग्रसर हो सके.
प्रयागराज में वेणी-दान-

प्रयागराज में माघ मेला मकर संक्रांति (14 जनवरी 2021) के स्नान के साथ संगम क्षेत्र में हो रहा है. पौराणिक मान्यता एवं परम्परानुसार पौष पूर्णिमा (28 जनवरी 2021) से एक माह का कल्पवास आरम्भ हो जाएगा। कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है, जो केवल तीर्थराज प्रयाग में हैं।
कल्पवास से एक कल्प का पुण्य मिल जाता है. माघ मेले में प्रयागराज संगम तट पर कल्पवास (Kalpwaas) का विशेष महत्व है. ग्रंथों के अनुसार, कल्पवास तभी करना चाहिए जब व्यक्ति अपनी सारी मोह-माया से मुक्त हो गया हो और अपने दायित्वों (जिम्मेदारियों) को पूरा कर चुका हो. ऐसा इसलिए माना जाता क्योंकि जब व्यक्ति जिम्मेदारियों में जकड़ा होता है तो उस पर आत्मनियंत्रण करना थोड़ा कठिन हो जाता है।
पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास की पूरी कथा व्यवस्था का वर्णन किया है. उनके अनुसार कल्पवासी को 21 नियमों का पालन करना चाहिए-
नियम-
सत्य बोलना, अहिंसा, इन्द्रियों का शमन करना , सभी प्राणियों पर दयाभाव का भाव रखना, ब्रह्मचर्य का पालन करना , व्यसनों का त्याग करना, सूर्योदय से पूर्व शैय्या-त्याग करना, नित्य तीन बार सुरसरि-स्न्नान करना, त्रिकालसंध्या, पितरों का पिण्डदान करना, यथा-शक्ति दान करना, अन्तर्मुखी जप, सत्संग, क्षेत्र संन्यास अर्थात संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, परनिन्दा त्याग, साधु सन्यासियों की सेवा, जप एवं संकीर्तन, एक समय भोजन, भूमि शयन, अग्नि सेवन न कराना. जिनमें से ब्रह्मचर्य, व्रत एवं उपवास, देव पूजन, सत्संग, दान करने विशेष महत्व होता है।
पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास की पूरी कथा व्यवस्था का वर्णन किया है. उनके अनुसार कल्पवासी को 21 नियमों का पालन करना चाहिए-
नियम-
सत्य बोलना, अहिंसा, इन्द्रियों का शमन करना , सभी प्राणियों पर दयाभाव का भाव रखना, ब्रह्मचर्य का पालन करना , व्यसनों का त्याग करना, सूर्योदय से पूर्व शैय्या-त्याग करना, नित्य तीन बार सुरसरि-स्न्नान करना, त्रिकालसंध्या, पितरों का पिण्डदान करना, यथा-शक्ति दान करना, अन्तर्मुखी जप, सत्संग, क्षेत्र संन्यास अर्थात संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, परनिन्दा त्याग, साधु सन्यासियों की सेवा, जप एवं संकीर्तन, एक समय भोजन, भूमि शयन, अग्नि सेवन न कराना. जिनमें से ब्रह्मचर्य, व्रत एवं उपवास, देव पूजन, सत्संग, दान करने विशेष महत्व होता है।
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ब्रह्मचर्य-ब्रह्मचर्य का अर्थ है ब्रह्म का आचरण करना। ब्रह्मचर्य को इस दृष्टि से भी देख सकते है कि शरीर और मन से काम की इच्छा का निषेध करना।एक अनुशासित जीवन को जीना और नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में समायोजित करना।
पाठकों से- "धर्म नगरी" की प्रति आश्रम, मठ / अपने घर, कार्यालय मंगवाने (सदस्यता) अथवा आगामी अंक में सहयोग कर अपने नाम से प्रतियाँ देशभर में भिजवाने हेतु कृपया सम्पर्क करें- मो. 9752404020, मो./वाट्सएप- 6261868110 अथवा ट्वीटर- www.twitter.com/DharmNagari या ईमेल- dharm.nagari@gmail.com पर सम्पर्क करें
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माघ मेले का एक दृश्य (फाइल फोटो) |
उपवास और दान-
उपवास का आशय हम यहां अनाहार के अर्थ में लेते हैं। उपवास एक प्रकार की शक्ति है जिसके बल से जहां रोगों को दूर कर स्वस्थ रहा जा सकता है। वहीं, इसके माध्यम से सिद्धि और समृद्धि भी प्राप्त की जा सकती है। उपवास के अभ्यास से व्यक्ति कई-कई महीनों तक भूख और प्यास से मुक्त रह सकता है।
उपवास का आशय हम यहां अनाहार के अर्थ में लेते हैं। उपवास एक प्रकार की शक्ति है जिसके बल से जहां रोगों को दूर कर स्वस्थ रहा जा सकता है। वहीं, इसके माध्यम से सिद्धि और समृद्धि भी प्राप्त की जा सकती है। उपवास के अभ्यास से व्यक्ति कई-कई महीनों तक भूख और प्यास से मुक्त रह सकता है।
प्रयागराज में दान का बड़ा ही महत्व है, जो कुम्भ, अर्धकुम्भ एवं माघ मेले के काल में और भी बढ़ जाता हैं. इस काल में यहाँ पर दान देने वाले एवं लेने वाले दोनों को लाभ होता है. अतः तीर्थराज प्रयाग में दिया दान त्याग से भी श्रेष्ठ माना गया है. गो-दान, वस्त्र दान, द्रव्य दान, स्वर्ण दान आदि का बड़ा ही महत्व है. सम्राट हर्षवर्धन तो यहाँ हर बारह वर्ष पर अपना सर्वस्व दान दे देते थे.
सत्संग का शाब्दिक अर्थ यह होता है कि सत्य की संगत में रहना वाला। माघ मेले, कुम्भ अर्धकुम्भ में श्रद्धालुओं को सन्तों के सानिध्य में रहना चाहिए, उनके प्रवचनों को सुनना चाहिए, निस्वार्थ भाव एवं ऊंच-नीच का आडम्बर समाप्त हो सके और मनुष्य उत्कृष्ट जीवन उद्देश्य की ओर अग्रसर हो सके.
प्रयागराज में वेणी-दान-
प्रयागराज संगम क्षेत्र में वेणी दान को गंगा, यमुना और सरस्वती को प्रसन्न करने वाला माना जाता है। भगवान वेणीमाधव ने स्वयं कहा था, कि जो स्त्रियां इस पुण्य धारा में अपनी वेणी (चोटी) का दान करेंगी, उन्हें सन्तान, सम्पत्ति, सौभाग्य और आयु प्राप्त होगी। उन्हें पति के साथ स्वर्ग का सुख मिलेगा।
पूजन, श्राद्ध एवं तर्पण-
मान्यता हैं, कुम्भ के अतिरिक्त माघ मास में देवतागण स्वयं प्रयाग के संगम तट पर विचरण करते हैं. इस समय श्रद्धा भाव से उनका ध्यान करने से कल्याण होता है. देव पूजन में श्रद्धा का भाव सर्वोपरी है, और यह बहुत फलदयी होता है।
वहीं, प्रयागराज में श्राद्धकर्म पुरोहितों के माध्यम से होता है, जिसके लिए प्रयागराज में विशेषकर पुरोहित होते हैं जिनके पास श्राद्ध कर्म करवाने हेतु आये व्यक्ति की वंशावली होती है. वहीं, तर्पण कर्म के लिए पुरोहित की अनिवार्यता नहीं होती। यदि व्यक्ति समूचित प्रक्रिया का समस्त सम्पादन कर सकता है तो यह कर्म स्वयंद्वारा भी किया जा सकता है।
मान्यता हैं, कुम्भ के अतिरिक्त माघ मास में देवतागण स्वयं प्रयाग के संगम तट पर विचरण करते हैं. इस समय श्रद्धा भाव से उनका ध्यान करने से कल्याण होता है. देव पूजन में श्रद्धा का भाव सर्वोपरी है, और यह बहुत फलदयी होता है।
वहीं, प्रयागराज में श्राद्धकर्म पुरोहितों के माध्यम से होता है, जिसके लिए प्रयागराज में विशेषकर पुरोहित होते हैं जिनके पास श्राद्ध कर्म करवाने हेतु आये व्यक्ति की वंशावली होती है. वहीं, तर्पण कर्म के लिए पुरोहित की अनिवार्यता नहीं होती। यदि व्यक्ति समूचित प्रक्रिया का समस्त सम्पादन कर सकता है तो यह कर्म स्वयंद्वारा भी किया जा सकता है।
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"धर्म नगरी" सूचना केंद्र हेल्प-लाइन : प्रयागराज माघ मेला, हरिद्वार कुम्भ में- वर्ष 2013 से आयोजित हो रहे शिविर के क्रम में "धर्म नगरी" द्वारा सूचना केंद्र हेल्प-लाइन प्रयागराज माघ मेला-2021 एवं हरिद्वार कुम्भ-2021 में लगाया जा रहा है। श्रद्धालुओं एवं तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु शिविर की सेवा में आप भी "धर्म नगरी" के बैंक खाते में सीधे आर्थिक सहयोग देकर चाहे तो उसके उपयोग की जानकारी भी हमसे पूंछें। सम्पर्क करें- मो. / वाट्सएप- 6261868110, मो.9752404020 ईमेल- dharm.nagari@gmail.com हेल्प-लाइन नंबर- 8109107075 (पूर्ववत ही है)।
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गंगा का जल पीने लायक है अथवा नहीं। यदि पीने लायक नहीं है तो...
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