हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की ऐसी मिसाल कि जल उठा झारखंड...! हिजाब में कौन है... ?
- हिजाब में सलमा है या सलीम, कौन जान पायेगा ? चुनिंदा प्रतिक्रिया व व्यंग
- "आप मुसलमान हो इसलिए मैं हिन्दू हूँ। अन्यथा मैं तो विश्व मानव हूँ।"
- ममता का UP आना बंगाल की तर्ज पर मुसलमानों को उकसाना है क्या ?
- मतदान के दिन छुट्टी न मनाना, पहले वोट देने जाना UP के हिन्दुओं
- ये कैसा प्रेम है समाजवादीयों का ब्राह्मण के प्रति ! यूपी के लोगों की प्रतिक्रिया
- KFC के बाद पिज्जा हट का बहिष्कार, Hyundai, Kia भी झेल रहे बायकॉट कश्मीर में खूनखराबा करने वालों को Hyundai ने बताया फ्रीडम फाइटर
- इस्लाम में प्रेम मतलब धर्म परिवर्तन !धर्म नगरी / DN News
(W.app- 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, विज्ञापन व सदस्यों हेतु)
माँ सरस्वती की प्रतिमा के विसर्जन के दिन कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा रुपेश पांडेय की हत्या के बाद एकत्रित हुए हिन्दू। |
अब इसी तरह का मामला सामने आ रहा है। हजारीबाग जिले में बरही से लगभग 15 किलोमीटर दूर दुलमाहा गांव में 6 फरवरी को सरस्वती माता की प्रतिमा विसर्जन जुलूस में शामिल 17 वर्षीय रूपेश कुमार पांडे की कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों ने हत्या कर दी। घटना के कुछ समय बाद ही वहां के डीएसपी नाजिर अख्तर सामने आए और कहा कि यह प्रेम प्रसंग का मामला था। पुलिस ने बिना जांच यह बता दिया कि वह इस घटना को 'मॉब लिचिंग' नहीं मानती है। लोग मान रहे हैं कि पुलिस कट्टरपंथियों को बचाने के लिए आगे आ गई। कुछ लोगों ने तो यह भी कहा कि बिना सरकारी निर्देश पुलिस ऐसा नहीं कर सकती है। यही कारण है कि झारखंड में कट्टरपंथी मुसलमानों की भीड़ आए दिन हिंदुओं की हत्या कर रही है।
जो लोग मोटरसाइकिल चोर तबरेज की पिटाई पर संसद से लेकर सड़क तक हल्ला मचा रहे थे, वे लोग भी हिंदुओं की हत्या पर चुप हैं। वहीं नेता प्रतिपक्ष सह भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने ट्वीट कर कहा कि बरही में एक युवक की निर्ममता से पिटाई हुई, उसके बाद उसकी मौत हो गई। यह झारखंड की बदतर कानून-व्यवस्था की जीवंत तस्वीर है। उन्होंने प्रशासन से सभी दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग की और रूपेश के परिजनों को एक करोड़ रुपए का मुआवजा देने की मांग की है। रूपेश की हत्या के मामले में अब तक असलम, पप्पू और दो अन्य लोग पकड़े गए हैं।
बरही विधानसभा क्षेत्र है। यहां पहले भी हिंदुओं को प्रताड़ित करने की अनेक घटनाएं हुई हैं। पिछले साल जब राम मंदिर के लिए निधि समर्पण कार्यक्रम के लिए रथ निकाला गया था, उस समय भी बरही में उसे रोकने का प्रयास किया गया था। इस कारण कई दिनों तक वहां तनाव रहा था। यही नहीं, गत वर्ष छठ पूजा के समय कुछ जिहादियों ने 17 जगहों पर गिरगिट को मारकर टांग दिया गया था, ताकि श्रद्धालुओं को जाने-आने में परेशानी हो और वे अशुद्ध हो जाएं।
6 फरवरी को सरस्वती प्रतिमा के विसर्जन के दौरान कोडरमा के मरकच्चो थाना क्षेत्र में भी हिंदुओं पर पथराव किया गया। श्रद्धालु जब भजन-कीर्तन करते हुए विसर्जन के लिए जा रहे थे तो कट्टरपंथियों की भीड़ ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया। नहीं मानने पर उन पर हमला किया गया। इसमें 10 लोग घायल हुए हैं। इसमें छह साल का एक बच्चा भी शामिल है। सरस्वती प्रतिमा विसर्जन जुलूस पर जामताड़ा के करमाटांड़ थाना क्षेत्र के फिटकोरिया गाँव में भी कट्टरपंथी मुसलमानों ने हमला किया। इन लोगों ने पहले मस्जिद के सामने से प्रतिमा को ले जाने से मना किया था। इसकी जानकारी पुलिस को दी गई, तो पुलिस ने मुसलमानों के दबाव पर बरसों पुराने रास्ते से हिंदुओं को जाने से रोक दिया। 6 फरवरी को चतरा और गिरीडीह में भी तनाव पैदा हुआ। तनाव को देखते हुए इस समय हजारीबाग, कोडरमा, चतरा और गिरिडीह जिले में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है।
कुछ दिन पहले सिमडेगा में भी संजू प्रधान को कुछ लोगों ने बुरी तरह पीटा और उसके बाद उसे जिंदा ही आग में फेंक दिया था। तड़प-तडप कर उसकी मौत हुई थी। दुर्भाग्य से उसे भी पुलिस ने 'मॉब लिचिंग' नहीं माना था। #पांचजन्य से साभार
रुपेश जी की फोटो देखने उसके ट्वीटर @RupeshK24002597 लॉग इन करें
ऐसा क्यों नहीं करती भाजपा, संघ ?
...ऐसे सभी हिन्दुओं को @RSSorg @BJP4India #bjp को 10-20 लाख या अधिक का तुरंत सहायता भी देना चाहिए,
स्थानीय भाजपा के नेता- पार्षद, विधायक, सांसद को पीड़ित #हिंदू के परिवार को न्याय भी दिलाना चाहिए। परन्तु कदाचित ऐसा कुछ नहीं होता। अब BJP, RSS को अपनी कार्यशैली बदलनी चाहिए। केवल हिन्दुओं के कत्ल की घटना को भाजपा नेताओं, प्रवक्ताओं को अपने बयानों तक, चुनाव भाषण या रैली तक या प्रेस कांफ्रेंस तक सीमित नहीं रखना चाहिए। वैसे भी एकजुट होकर सक्रिय नहीं हो रहा, जो सक्रिय होते हैं या हैं, उनके पास संसाधन, धन नहीं है। भाजपा और संघ क्यों नहीं अपने विहिप और बजरंग दल के युवकों की ऊर्जा व अनुभव का सदुपयोग (उनकों स्वावलंबी बनाते हुए) समाज एवं देशहित में नहीं करती ? केवल बयान से कुछ नहीं होगा। अगर भाजपा व उसकी मातृ-संस्था (RSS) अपनी कार्यशैली नहीं बदलती, तो 2024 में मोदीजी का पुनः प्रधानमंत्री बनना 2019 की तुलना में बहुत दुष्कर हो जाएगा... 6261868110 केवल सक्रिय राष्ट्रवादियों के लिए। आज देश में हिन्दू-हित में शीघ्रातिशीघ्र कानून बनाने की बहुत है और "कैसे व कौन से कानून बनने चाहिए" इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट अश्विन उपाध्याय के सुझाव व सलाह पर्याप्त हैं।
स्थानीय भाजपा के नेता- पार्षद, विधायक, सांसद को पीड़ित #हिंदू के परिवार को न्याय भी दिलाना चाहिए। परन्तु कदाचित ऐसा कुछ नहीं होता। अब BJP, RSS को अपनी कार्यशैली बदलनी चाहिए। केवल हिन्दुओं के कत्ल की घटना को भाजपा नेताओं, प्रवक्ताओं को अपने बयानों तक, चुनाव भाषण या रैली तक या प्रेस कांफ्रेंस तक सीमित नहीं रखना चाहिए। वैसे भी एकजुट होकर सक्रिय नहीं हो रहा, जो सक्रिय होते हैं या हैं, उनके पास संसाधन, धन नहीं है। भाजपा और संघ क्यों नहीं अपने विहिप और बजरंग दल के युवकों की ऊर्जा व अनुभव का सदुपयोग (उनकों स्वावलंबी बनाते हुए) समाज एवं देशहित में नहीं करती ? केवल बयान से कुछ नहीं होगा। अगर भाजपा व उसकी मातृ-संस्था (RSS) अपनी कार्यशैली नहीं बदलती, तो 2024 में मोदीजी का पुनः प्रधानमंत्री बनना 2019 की तुलना में बहुत दुष्कर हो जाएगा... 6261868110 केवल सक्रिय राष्ट्रवादियों के लिए। आज देश में हिन्दू-हित में शीघ्रातिशीघ्र कानून बनाने की बहुत है और "कैसे व कौन से कानून बनने चाहिए" इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट अश्विन उपाध्याय के सुझाव व सलाह पर्याप्त हैं।
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हजारीबाग के बरही में रविवार की रात हुई नाबालिग युवक रुपेश कुमार पांडेय की मौत के मामले में सोमवार को FIR दर्ज की गई। इसमें 27 नामजद सहित कुल अज्ञात 100 लोगों को आरोपी बनाया गया है। घटना के विरोध में सोमवार को इलाके में दुकानें बंद रहीं। पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने की मांग को लेकर GT रोड जाम किया गया। जानकारी मिलने के बाद उपायुक्त आदित्य कुमार आनंद, पुलिस अधीक्षक मनोज रतन चौथे सहित आला अधिकारियों की टीम मौके पर पहुंची। करीब 2 घंटे की लंबी वार्ता के बाद जाम खत्म कराया गया।
परिवार को आश्वासन दिया गया कि इस मामले की निष्पक्ष जांच होगी। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। पूर्व विधायक मनोज कुमार यादव और विधायक उमाशंकर अकेला मौके पर पहुंचे। दोनों ने प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत कर हालात को संभालने का अनुरोध किया। प्रशासन के अनुरोध पर पीड़ित परिवार ने सोमवार को दुलमहा नदी घाट पर युवक का अंतिम संस्कार कर दिया।
मरने वाले युवक के चाचा ने दर्ज कराई FIR
नई टांड (पिपरघोघर) निवासी युवक की मौत के मामले में चाचा अनिल कुमार पांडेय ने प्राथमिकी दर्ज कराई। इसमें बताया गया कि उनका भतीजा रूपेश कुमार पांडेय उदय मोबाइल दुकान में काम करता था। शाम साढ़े पांच बजे उनके दो दोस्तों ने मूर्ति विसर्जन कार्यक्रम में भाग लेने के लिए उसे बुलाया। पांच मिनट में वापस आने की बात कह कर युवक दुकान से निकला। वह जैसी ही दुलमहा देवी मंडप के पास पहुंचा। पहले से मौजूद लोगों ने उसे पकड़ लिया। मारपीट की गई। इसमें युवक बेहोश हो गया।
युवक को घायल अवस्था में इलाज के लिए अनुमंडलीय अस्पताल बरही ले जाया गया। यहां चिकित्सकों ने युवक को मृत घोषित कर दिया। पीड़ित पक्ष का आरोप है कि सुनियोजित तरीके से षड्यंत्र रचकर घटना को अंजाम दिया है। पीड़ित परिवार की मांग है कि राज्य में भीड़ की हिंसा के लिए बने नए कानून के तहत इस मामले में कार्रवाई की जाए।
इस मामले में मो. असलम उर्फ पप्पू मियां अब्बा (father) लेट इस्माइल मिया, मो अनीस अब्बा मो नौशाद, मो कैफ अब्बामो. आताउल तीनों ग्राम दुलमहा,मो. गुफरान अब्बा मो. मुसताक ग्राम करियातपुर, मो. चांद अब्बा मो. जावेद, मो. ओसामा पिता आरिफ मियां, मो. एहताम अब्बा मो. नौशाद, मो. नाहिद पिता मो. इकबाल, मो. सोनू पिता मो. नईम मियां, मो. शहबान पिता मो. नईम, मो फैसल अब्बा मो तस्लीम मियां, मो चांद पिता मो रब्बानी मियां, मो अमन पिता मो उमर मिया, मो आसिफ पिता मो जावेद, मो जशीद अब्बा मो जावेद, मो रिजवान अब्बा मो हासिम मियां, मो सलमान, मो इरफान अब्बा मो याकूब मिया, मो सलमान उर्फ माले, मो छोटे पिता रियाज मियां, मो इस्तेखार अब्बा मरहूम इशाक मियां,मो तैयब पिता मो अयूब, मो सदीक अब्बा मो इस्तेखार मियां, मो इकबाल पिता मो याकूब मियां, मो हसन अब्बा मो अहिया, मो अनीस अब्बा मो नौशाद, मो साहेब अब्बा मो नौशाद (सभी दुलमहा निवासी) नामजद आरोपी हैं। इसके अलावे 100 अज्ञात लोगों को भी आरोपी बनाया गया है। पुलिस ने इस मामले में 3 लोगों को पहले ही गिरफ्तार कर लिया है।
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हिजाब में सलमा है या सलीम कौन जान पायेगा 😂
देखें-
देखें- (हिजाब या बुरखा की आड़ में क्राइम)-
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बुर्का भी केवल लाचार मुस्लिम औरतो के लिए है
दम है तो तैमूर की अम्मी, शाहरुख की बेटी, जावेद की पत्नी को पहनाकर दिखाओ।
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"मै हिजाब के बिना नहीं रह सकती" कहने वालियों को बाकायदा शपथपत्र भरवाकर बस एक छोटी सी शर्त के साथ स्कूल कालेज मे प्रवेश की अनुमति दे देनी चाहिए, कि यदि भविष्य मे कहीं भी बिना हिजाब के पाई गयी तो सजा शरीयत के अनुसार होगीवरना केवल स्कूल के अंदर के लिए ये नौटंकी नहीं चलेगी
फिर देखते हैं किस शेरनी मे कितना दम है
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ये (ऊपर जींस पहले लड़की) कर्नाटक के मांडया की वही लड़की मुस्कान है जो कल स्कूल बुर्के में गयी थी और कैमरे पर मजहबी नारे लगा कर फेमस हो गई और यूपी के दारूल उलूम इस्लामी के मौलाना ने मजहबी मान्यताएं मानने के लिए 5 लाख रु इनाम में दे दिए... औवेशी ने इसकी और इसके मां-बाप की इस्लामिक तहजीब सिखाने के लिए बहुत तारीफ की! लेकिन बुरका और हिजाब इन्हें केवल स्कूल में चाहिए, बाहर तो फ़टी जीन्स ओर टीशर्ट भी चलेगी, मजहब केवल स्कूल में लागू करवाना है, अपने जीवन में नही। अब इसे साजिश न कहें तो क्या कहें ?
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कल को कोई जैन धर्म बुद्ध धर्म मानने बाला बच्चा नग्न होकर स्कूल कॉलेज चला गया तो उसे धार्मिक अधिकार मिलेगा, कोई शैव धर्म मानने बाला बच्चा नग्न होकर स्कूल चला गया तो उसे धार्मिक आजादी मिलेगी,
बाकी किसी को कुछ नही चाहिए
इन मुसलमानों को सब चाहिये, जिन्होंने अपने लिए पूरा एक देश (पाकिस्तान) ले लिया
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हिजाब सिर्फ हिन्दुओ के स्कूलों में ही माँग क्यों ? कभी कॉन्वेंट स्कूल में हिजाब पहनने की जिद करके दे
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अगर आप अभी भी इस्लामी शरिया कानून के इच्छुक हैं तो हमने आपको 1947 में दो अलग इस्लामी देश दे दिए हैं। आप भारत छोड़ सकते थे। यदि आप यहाँ रहना चाहते हैं, तो आपको इस भारत देश के नियमों, कानून और शर्तों का पालन करना होगा। #एक_भारतीय
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राष्ट्रवादी भाइयों,
"करो या मरो" के नये जोश के साथ, सारी देशद्रोही ताकतें, हमारे विपक्षी राजनीतिक दलों ( जो कि प्रायः पारिवारिक व्यवसायिक दल ही हैं ), के साथ मिलकर, राष्ट्रीय सरकार जो पुराने षणयंत्रकारी देशविरोधी कानूनों को नष्ट और दुरूस्त करने में लगी है, को किसी भी तरह, अपदस्थ करने की, मुहिम में, पूरी ताकत के साथ, विदेशी शत्रुओं के साथ मिलकर, भयंकर इलाकों से सचेष्ट हैं और भाजपा सरकार को अपदस्थ करने के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसलिये सभी राष्ट्रवादी भाइयों को भी, संगठित रहते हुये, विरोधी दलों के इन इरादों को नष्ट-भ्रष्ट कर, कुचल देना होगा।🔥
इसी साल क्यो ?
कर्नाटक के स्कूल कॉलेजों में मांग हो रही है कि आज "हमें हिजाब पहन कर स्कूल आने दिया जाए.."कहानी यंही तक रुक जाए तो शायद कोई दिक्कत नही....पर कहानी यंहा रुकेगी नही.....इस मांग के माने जाने के बाद असल कहानी शुरू होगी.....
मांग बढ़ेगी...
हमें स्कूल में नमाज अदा करने का मौका चाहिए...
उसके बाद
नमाज अदा करने के लिए अलग जगह चाहिए...
उसके बाद
कॉलेज कैंटीन में हलाल का काउंटर अलग हो जंहा बस हलाल ही परोसा जाए...
उसके बाद
हमारे प्रार्थना समय के दौरान क्लास व पढ़ाई से छूट मिलना चाहिए...
उसके बाद
रविवार को छुट्टी क्यों है? हमें शुक्रवार को छुट्टी दें...
उसके बाद
सिलेबस में कृष्ण, बुद्ध और राम के चैप्टर है, इन्हें हम ईश्वर नही कह सकते, तो उन सब की जरूरत नहीं है, इन्हें हटाये...
उसके बाद
अप्रैल और मई में स्कूल की छुट्टी क्यों है ? हमारे रमजान महीने में दे दो...
और उसके बाद ये सिलसिला रुकने वाला है नही...
जब वे बहुसंख्यक हो जाएंगे तो यही ईशनिंदा कहलाएगी... जिसके लिए हमारा कत्ल भी वाजिब है....
यही तो होते आया है अभी तक। जैसे-जैसे इनकी तादाद बढ़ेगी, अपनी नये-नये मांग रखेंगे।
आश्चर्य है, हमारे हिन्दू नेताओं, धर्माचार्यों ने, बुद्धिजीवियों ने, भारत में जो पूरा-पूरा गैर मुस्लिमों का हिस्सा है, जेहादियों को बसने की अनुमति क्यों कर दी ?
याद करें, जिन्ना ने अलग पाकिस्तान की मांग रखी थी, मुसलमानो के लिये इसी बात पर कि हमारे रीति-रिवाज एकदम भिन्न हैं और हम सुख-शांति से हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकते। इसी सिद्धांत पर देश का बंटवारा हो गया और फिर बंटवारे के समय से भी ज्यादा मुस्लिम भारत में हो गये और षड़यंत्र( जनसंख्या विस्फोट के द्वारा ) भी यही है कि-
"लड़कर लिया है पाकिस्तान, हंसते-हंसते लेंगे हिन्दुस्तान।"
अपने बच्चों की,अपनी पीढ़ियों को सुरक्षित वातारण और अपने देश (जो 1947 के बटवारे के बाद हमारे हिस्से आया) उसे बचने के लिए जागना है तो जागो भाइयों। हम सबको ही किसी ना किसी हिन्दू संस्था से तन-मन-धन से जुड़कर, हिन्दू राष्ट्र बनाना है नहीं तो ये मुस्लिम, गंगा-यमुनी तहजीब के षड़यंत्रकारी नारे में, भोले-भाले ग्रामीण हिन्दुओं को फंसाकर, लव जेहाद, जमीन जेहाद आदि-आदि जेहादी तरिकों से, अपना इस्लामीकरण का एजेंडा पूरा करने में सफल होंगें जो हमारे पुरखों के बलिदानों का अपमान ही होगा।
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तुमने हिजाब को संविधान से ऊपर रख दिया, इसलिए मैं भगवा लेकर आया हूं। अन्यथा संविधान के ड्रेस कोड का सम्मान करना हमारे संस्कार हैं। एक तरफ जहां दूसरे इस्लामिक देशों में हिजाब की अनिवार्यता को तालिबानी शासन बताकर प्रोटेस्ट किया जा रहा, वहीं भारत में आपको हिजाब क्यों चाहिए ? और चाहिए भी तो ठीक, लेकिन धर्मनिरपेक्ष विद्यालयों में भी क्यों चाहिए ?
चाहिए इसलिए, कि इस्लामिक डोमिनेंस स्थापित करना है। अगर स्थापित ना करना होता तो हिजाब के लिए धरना पर बैठने की क्या आवश्यकता थी? क्योंकि आप हमें अपना इस्लाम दिखाना चाहती हैं, लिहाजा आपके इस्लाम को एक हिंदू बन कर ही अब हम देखना चाहते हैं।
रही बात इतने दिनों से हम भगवा ओढ़कर क्यों नहीं आते थे ? प्रश्न अच्छा है। उत्तर ले लीजिए कि अब हमने अपनी आंखें खोल ली है। इतने दिनों से हम केवल एक मानव थे। हर मूल्य पर स्वयं को एक मानव ही बनाए रखे। लेकिन आप सुधरे नहीं। हजार वर्ष बाद भी नहीं सुधरे। शासन से लेकर अतिक्रमण तक सब कुछ आपने किया। हम सहते गए। सहते गए। पर आप संतुष्ट ना हुए। आपने अति कर दिया। फिर पूछ रहे हैं आज हम भगवा ओढ़ रहे हैं तो पहले क्यों नहीं? इसलिए कि अब और अतिक्रमण हम बर्दाश्त नहीं कर सकते। याद रखिए, अगर हम पहले ओढ़ लिए होते, तो भारत आज अखंड अवश्य होता। अच्छा हुआ आप आज भी असंतुष्ट हैं। संघर्ष जारी रखिए। क्योंकि हमने भी हिंदू राष्ट्र का प्रण कर लिया है। बिना संघर्ष के कैसे बनेगा ?
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ममता का UP आना बंगाल की तर्ज पर मुसलमानों को उकसाना है क्या ?
पश्चिम बंगाल के चुनावों में हिन्दुओं की वोटिंग 64% थी, जबकि मुस्लिम की वोटिंग 95% थी...
31% घर बैठने वाले या वोटिंग के दिन छुट्टियाँ मनाने वाले हिन्दुओं ने सब चौपट कर दिया...
ये लिखने का तात्पर्य इतना ही है कि, योगीजी को वापस जिताना है तो वोट देने जाना भी है और दूसरों को प्रेरित भी करना है... घर बैठे रहने से सरकारें नहीं बनती...
बंगाल में 50 भाजपा प्रत्याशी लगभग 500-500 वोटों से हारे... और लगभग 40 प्रत्याशी ऐसे थे जो 2000 वोटों के अन्तर से हारे...
इसलिए एक एक वोट की कीमत समझिए और देशहित में, अपने धर्म समाज को अगले 5 साल सुरक्षा देने के लिए अपने voting day के दिन (केवल एक दिन) अवश्य निकलें... क्योंकि दूसरी सरकार बनते ही सबसे पहले राममंदिर निर्माण कार्य में कोई पेंच फंसाकर रोका जा सकता है
मित्रों चुनाव बीजेपी, योगी मोदी या किसी व्यक्तिगत विधायक का नहीं है... चुनाव है आपका... एक बार पूरी ताकत से हिन्दू स्वाभिमान के लिए वोट करो... चुनाव नहीं धर्म-युद्ध भी है ये....
अधिक से अधिक वोट करना और करवाना...यह लोमहर्षक और मानवता को शर्मसार करने वाली घटना 19 मार्च 2013 की है जब प्रदेश में स.पा. सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। इटावा जिले का संतोषपुर गांव और गांव के सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति शिव कुमार बाजपेई।
शिव कुमार बाजपेई की पत्नी उर्मिला बाजपेई अपने घर में बैठी हैं। एकाएक 20 -25 आदमी घर में प्रवेश करते हैं और उर्मिला बाजपेई को लातों से मारना शुरू कर देते हैं। वह गिर जाती हैं , उनका बाल और पैर पकड़कर खींचते हुए बाहर लाते हैं। उनके मुख पर कालिख पोतते हैं, उनके गले में जूतों और चप्पलों की माला पहनाते हैं और उन्हें गांव में घुमाते हैं और जब वे दर्द और अपमान से रोते हुए अपना मुंह हथेलियों से छुपाना चाहती हैं तो उनका हाथ पीछे बांध देते हैं। (यह घटना अविश्वसनीय लगती होगी लेकिन इसमें एक-एक शब्द अखबारों का है। तारीख 20 मार्च 2013)
शिव कुमार बाजपेई के सिर्फ इस गुनाह के कारण ही उनकी पत्नी उर्मिला बाजपेई के मुंह पर कालिख पोत कर, चप्पलों की माला पहनाकर और हाथ पीछे बांधकर पूरे गांव में घुमाया गया और उसके बाद यादवों का झुंड पूरे गांव में घूमा। जो भी सामने मिलता, उसे पीट-पीटकर गिरा देते और बेहद फूहड़ गालियां बकते हुए तथा औरतों को घर से निकाल कर पूरे गांव में नंगी घुमाने की धमकी देते हुए। गांव के प्राय: सभी ब्राह्मण परिवार घर के अंदर बंद , भय से कांप रहे थे और बाहर यादवों का चीख- चीख कर गालियां देने का क्रम चालू था । गांव के कुछ युवक हिम्मत करके पुलिस स्टेशन पहुंचे लेकिन वहां कोई सुनवाई नहीं हुई। यह सूचना कुछ ही देर में पूरे जिले में फैल गई और करीब 7 घंटे बाद आई. जी.के आदेश पर गांव में पी.ए.सी तैनात हुई और यादवी अत्याचार रुका।
फिर, शासन स्तर पर क्या हुआ ? पीड़ितों का एक दल जीप में लदकर इटावा से लखनऊ पहुंचा और ब्राम्हण प्रतिनिधि तथा मुख्यमंत्री का विश्वासपात्र समझकर राज्य सरकार के मंत्री अभिषेक मिश्र से मिला। उस दिन (20 मार्च 2013) प्रायः सभी अखबारों में यह घटना बहुत विस्तार से छपी थी । अतः अभिषेक मिश्र जी भी इससे पूरी तरह अवगत थे, लेकिन उन्होंने यह कह कर प्रतिनिधिमंडल को लौटा दिया कि यह मुख्यमंत्री के जिले का मामला है, मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता। सुना है अभिषेक मिश्र लखनऊ के सरोजनी नगर से सपा उम्मीदवार हैं और अखिलेश यादव को विश्वास दिलाया है कि क्षेत्र के सारे ब्राम्हण वोट उन्हें ही मिलेंगे।
यह एक बानगी है उस जंगलराज की जब एक यादव सिपाही अपने अधिकारी दरोगा को बिल्ला उतरवा लेने की धमकी देता था। बहुतों को याद होगा हजरतगंज (लखनऊ )के सी.ओ अतर सिंह यादव की जिसने अपने एस.एस.पी. को कभी सैल्यूट नहीं किया बल्कि हमेशा उनसे हाथ मिलाया। एस.एस .पी .की भी बर्दाश्त करने की मजबूरी थी क्योंकि अतर सिंह के नाम के साथ 'यादव' जुड़ा था।
वैसे तो तत्कालीन जंगलराज पर कई खंडों में पुस्तक लिखी जा सकती है लेकिन उदाहरण के लिए
एस.पी. अपर्णा गांगुली ने प्रेस को बताया कि साक्ष्य तो यही मिल रहे हैं कि हत्या राजनीतिक कारणों से की गई है। 11 हमलावरों में से 8 को पहचान लिया गया है और एक- तेजपाल को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन अभी तो सरकार का जातिवादी रूप आना शेष था। पुलिस डी.जी.पी. को ऊपर से निर्देश दिया गया और लखनऊ में डी.जी.पी. रिजवान ने बयान दिया, "बृजेश तिवारी और उनके परिवार की हत्या में समाजवादी पार्टी के किसी भी नेता या कार्यकर्ता का हाथ नहीं था।"
इस बयान पर हालांकि अनेक अखबार और राजनैतिक दल डी.जी.पी. रिजवान पर टूट पड़े। तमाम अखबारों ने लिखा कि झांसी की पुलिस अधीक्षक ने जब जांच कर सपा नेता और मुख्य अपराधी तेजपाल को हथियार सहित गिरफ्तार कर लिया है और 11 में से 8 सपा कार्यकर्ताओं की पहचान भी कर ली है तो लखनऊ में बैठकर डीजीपी कैसे कह सकते हैं कि वारदात में समाजवादी पार्टी के लोग शामिल नहीं हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने तो यहां तक लिखा था, कि श्री रिजवान एक पुलिस अधिकारी की तरह नहीं बल्कि राजनीतिक निष्ठा के अनुसार कार्य कर रहे हैं। लेकिन डी.जी.पी. का बयान ही उनका एक तरह से आदेश था और बृजेश तिवारी और उनके पूरे परिवार की हत्या के आरोपी छोड़ दिए गए। और समाजवादी पार्टी को इसका नतीजा भी मिला।
याद होगा कि कुछ महीने पहले स.पा. ज़िलों- जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन करवा रही थी। ऐसा ही एक सम्मेलन झांसी में भी आयोजित किया गया लेकिन बृजेश तिवारी हत्याकांड और उसमें हुए जातीय पक्षपात से आहत झांसी के ब्राह्मणों ने स.पा. के उस आयोजन के बहिष्कार का निर्णय लिया और उस आयोजन में जिले का एक भी ब्राह्मण नहीं पहुंचा इसलिए उन्हें यह आयोजन रद्द करना पड़ा।
कहीं भी, कोई भी मुख्यमंत्री होगा, उसकी कोई जाति भी होगी । क्या उस जाति के लोगों द्वारा इटावा के संतोषपुर जैसी घटना का कोई दूसरा उदाहरण देश में मिलेगा? जहां एक निर्दोष, सम्भ्रांत महिला को बिना किसी दोष के, मुंह काला करके, जूतों की माला पहना कर गांव में घुमाया गया हो और पुलिस ने कोई कार्यवाही न की हो -यह अखिलेश यादव के राज में ही संभव है ।
( इस आलेख का संपूर्ण विवरण अखबारों से लिया गया है। वे अखबार हैं-
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हर हिंदू… 10 हिंदुओं को योगी को वोट देने के लिए तैयार करे… ये धर्मयुद्ध है… हार गए तो सब कुछ हिंदुओं के हाथ से निकल जाएगा
-हिंदू विरोधी छवि होने के बाद भी अखिलेश ने ममता को इसलिये बुलाया है ताकि यूपी के मुसलमानों को ये संदेश दिया जा सके कि जैसे बंगाल में मुसलमानों का एकमुश्त वोट टीएमसी को गया… वैसे ही मुसलमानों का एक मुश्त वोट अगर अखिलेश की तरफ गया तो ना सिर्फ अखिलेश की सरकार बनेगी बल्कि जिस तरह ममता के मुस्लिम गुंडों ने हिंदुओं का नरसंहार किया… हिंदू औरतों को सड़क पर खींच कर रेप किया और हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर कर दिया और फिर गांव में वापस लौटने के लिए टीएमसी के मुस्लिम गुंडों ने ये शर्त रखी की पहली काफिर औरतें हमारे हवाले कर दो… ठीक इसी तरह बंगाल की तर्ज पर यूपी के मुसलमानों को माल-ए-गनीमत की लूट और दंगे फ़साद का मौका मिलेगा
- मुसलमान हमेशा अपने वोट की पूरी क़ीमत वसूलता है बंगाल का चुनाव जीतने के बाद अपने वोट की क़ीमत मुसलमानों ने इस तरह से वसूली की हिंदुओं को असम पलायन करना पड़ा… इसीलिेए आपसे अनुरोध है कि अब हर हिंदू को जागना है और योगी जी के लिए वोट करना है जो संत हैं उनका कोई परिवार नहीं है… देश ही उनका परिवार है… योगी जी को सपोर्ट कीजिए.. थोड़ी बहुत तकलीफ़ भी हो तो उसके ऊपर हिंदुत्व की भावना को रखिए
-यूपी में वोटिंग शुरू हो गई है… इंतज़ार मत कीजिए कि जब पन्ना प्रमुख आएंगे और आपको कहेंगे कि वोट देने चलिए तब आप आराम से राजा की तरह उठेंगे और वोट डालने जाएंगे… ऐसा मत कीजिए…. सबसे पहले जाकर वोट डालिए… और कार्यकर्ताओं का काम आसान कीजिए…. कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाना आपका मक़सद होना चाहिए
-आप जिस तरह से भी मदद कर सकते हैं योगी जी की मदद कीजिए… बीजेपी वर्कर्स के लिए अपनी गाड़ियाँ ही दे दीजिए कि भाई इस गाड़ी में बैठाकर लोगों को ले जाइए… या उनको कम से कम पेट्रोल का खर्च ही दे दीजिए…. जैसा भी हो सके जो बन सके… बीजेपी के कार्यकर्ताओं की मदद कीजिए जो बिना स्वार्थ देश की सेवा में लगे हुए हैं
-एक बात और ध्यान रखनी है इस बार मुस्लिमों के ना तो कोई फ़तवे आए ना तो किसी मुसलमान ने कोई ऐसी टिप्पणी की जिससे हिंदू एकजुट होकर वोट करे… उल्टा मुसलमान मोदी योगी की तारीफ़ में मीठी बातें कर रहे हैं ताकी हिंदू वोट ध्रुवीकरण ना हो… और अखिलेश की जीत हो जाए…. मुस्लिमों की इस चालाकी को समझकर एकतरफ़ा योगी को जी को जिताने के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दें
-अपने बच्चों के चेहरे को देखें… वो तभी सुरक्षित रहेंगे जब मुसलमानों भी शांति से रहने को बाध्य होंगे, जैसे गोरक्षपीठ गोरखपुर के आसपास रहने वाले हजारों मुस्लिमन शांति से रहते हैं, किसी मजहबी उन्मादियों के बहकावे में नहीं आते... और ये क्षमता सिर्फ योगीजी में ही है, इसे आप सभी यूपी के वोटर्स बहुत अच्छी तरह से बीते 5 साल में जान गए हैं... ऐसा तब होगा जब योगी जी को 300+ विधायक मिले, ताकि स्पष्ट बहुमत के साथ सबका विकास हो, उनका भी जो BJP को वोट नहीं देते...
-अहम बात ये कि मायावती का कोर जाटव वोट अब कानून व्यवस्था के नाम पर योगी जी की तरफ शिफ्ट हो रहा है… आप लोग उनको और प्रेरित करेंगे तो योगी जी की मदद होगी #साभार सोशल_मीडिया
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मतदान के दिन छुट्टी न मनाना, हिन्दुओं पहले वोट देने जाना
बंगाल ओपनियन पोल में भाजपा जीत रही थी, पर हार गई... क्योंकि भाजपा वोटर, घर से यह सोचकर वोट देने नहीं निकले, कि भाजपा तो जीत ही रही है, उनके एक वोट से क्या होगा ?पश्चिम बंगाल के चुनावों में हिन्दुओं की वोटिंग 64% थी, जबकि मुस्लिम की वोटिंग 95% थी...
31% घर बैठने वाले या वोटिंग के दिन छुट्टियाँ मनाने वाले हिन्दुओं ने सब चौपट कर दिया...
ये लिखने का तात्पर्य इतना ही है कि, योगीजी को वापस जिताना है तो वोट देने जाना भी है और दूसरों को प्रेरित भी करना है... घर बैठे रहने से सरकारें नहीं बनती...
बंगाल में 50 भाजपा प्रत्याशी लगभग 500-500 वोटों से हारे... और लगभग 40 प्रत्याशी ऐसे थे जो 2000 वोटों के अन्तर से हारे...
इसलिए एक एक वोट की कीमत समझिए और देशहित में, अपने धर्म समाज को अगले 5 साल सुरक्षा देने के लिए अपने voting day के दिन (केवल एक दिन) अवश्य निकलें... क्योंकि दूसरी सरकार बनते ही सबसे पहले राममंदिर निर्माण कार्य में कोई पेंच फंसाकर रोका जा सकता है
मित्रों चुनाव बीजेपी, योगी मोदी या किसी व्यक्तिगत विधायक का नहीं है... चुनाव है आपका... एक बार पूरी ताकत से हिन्दू स्वाभिमान के लिए वोट करो... चुनाव नहीं धर्म-युद्ध भी है ये....
अधिक से अधिक वोट करना और करवाना...
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ये कैसा प्रेम है समाजवादीयों का ब्राह्मण के प्रति ! सच्ची घटना
शिव कुमार बाजपेई की पत्नी उर्मिला बाजपेई अपने घर में बैठी हैं। एकाएक 20 -25 आदमी घर में प्रवेश करते हैं और उर्मिला बाजपेई को लातों से मारना शुरू कर देते हैं। वह गिर जाती हैं , उनका बाल और पैर पकड़कर खींचते हुए बाहर लाते हैं। उनके मुख पर कालिख पोतते हैं, उनके गले में जूतों और चप्पलों की माला पहनाते हैं और उन्हें गांव में घुमाते हैं और जब वे दर्द और अपमान से रोते हुए अपना मुंह हथेलियों से छुपाना चाहती हैं तो उनका हाथ पीछे बांध देते हैं। (यह घटना अविश्वसनीय लगती होगी लेकिन इसमें एक-एक शब्द अखबारों का है। तारीख 20 मार्च 2013)
उर्मिला बाजपेई का दोष क्या था ? कोई दोष नहीं। घटना कुछ इस तरह थी कि उनके पति शिव कुमार बाजपेई के पड़ोसी प्रदीप त्रिपाठी के बेटे के साथ राज बहादुर यादव की बेटी फरार हो गई।
प्रदेश में यादव शासन था और यादवों की लड़की भागी थी तो पुलिस को तो सक्रिय होना ही था। बेटा न मिला तो बाप ही सही। पुलिस ने प्रदीप त्रिपाठी को पकड़ मंगाया और कुछ दिन तो थाने में उन्हें बैठाकर, प्रताड़ित करके लड़के का पता पूछती रही और जब वह नहीं बता पाए तो उन्हें जेल भेज दिया। उर्मिला बाजपेई के पति शिवकुमार का दोष बस इतना था कि वह प्रदीप त्रिपाठी की जमानत के लिए भागदौड़ कर रहे थे।
प्रदेश में यादव शासन था और यादवों की लड़की भागी थी तो पुलिस को तो सक्रिय होना ही था। बेटा न मिला तो बाप ही सही। पुलिस ने प्रदीप त्रिपाठी को पकड़ मंगाया और कुछ दिन तो थाने में उन्हें बैठाकर, प्रताड़ित करके लड़के का पता पूछती रही और जब वह नहीं बता पाए तो उन्हें जेल भेज दिया। उर्मिला बाजपेई के पति शिवकुमार का दोष बस इतना था कि वह प्रदीप त्रिपाठी की जमानत के लिए भागदौड़ कर रहे थे।
शिव कुमार बाजपेई के सिर्फ इस गुनाह के कारण ही उनकी पत्नी उर्मिला बाजपेई के मुंह पर कालिख पोत कर, चप्पलों की माला पहनाकर और हाथ पीछे बांधकर पूरे गांव में घुमाया गया और उसके बाद यादवों का झुंड पूरे गांव में घूमा। जो भी सामने मिलता, उसे पीट-पीटकर गिरा देते और बेहद फूहड़ गालियां बकते हुए तथा औरतों को घर से निकाल कर पूरे गांव में नंगी घुमाने की धमकी देते हुए। गांव के प्राय: सभी ब्राह्मण परिवार घर के अंदर बंद , भय से कांप रहे थे और बाहर यादवों का चीख- चीख कर गालियां देने का क्रम चालू था । गांव के कुछ युवक हिम्मत करके पुलिस स्टेशन पहुंचे लेकिन वहां कोई सुनवाई नहीं हुई। यह सूचना कुछ ही देर में पूरे जिले में फैल गई और करीब 7 घंटे बाद आई. जी.के आदेश पर गांव में पी.ए.सी तैनात हुई और यादवी अत्याचार रुका।
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लेकिन अभी सपा छाप पुलिस का परिचय बाकी है। इतने शर्मनाक कांड के बाद और ग्राम प्रधान सुशील यादव सहित कई पर नाम सहित की गई रिपोर्ट पर भी पुलिस ने एक भी गिरफ्तारी नहीं की। लेकिन पीड़ित परिवारों को सांत्वना देने गए लोगों में जिसमें ब्राह्मण सभा और परशुराम सेना के पदाधिकारी भी शामिल थे, उनमें से एक दर्जन से अधिक लोगों को जेल भेज दिया गया कि इनसे शांति भंग का अंदेशा है।फिर, शासन स्तर पर क्या हुआ ? पीड़ितों का एक दल जीप में लदकर इटावा से लखनऊ पहुंचा और ब्राम्हण प्रतिनिधि तथा मुख्यमंत्री का विश्वासपात्र समझकर राज्य सरकार के मंत्री अभिषेक मिश्र से मिला। उस दिन (20 मार्च 2013) प्रायः सभी अखबारों में यह घटना बहुत विस्तार से छपी थी । अतः अभिषेक मिश्र जी भी इससे पूरी तरह अवगत थे, लेकिन उन्होंने यह कह कर प्रतिनिधिमंडल को लौटा दिया कि यह मुख्यमंत्री के जिले का मामला है, मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता। सुना है अभिषेक मिश्र लखनऊ के सरोजनी नगर से सपा उम्मीदवार हैं और अखिलेश यादव को विश्वास दिलाया है कि क्षेत्र के सारे ब्राम्हण वोट उन्हें ही मिलेंगे।
यह एक बानगी है उस जंगलराज की जब एक यादव सिपाही अपने अधिकारी दरोगा को बिल्ला उतरवा लेने की धमकी देता था। बहुतों को याद होगा हजरतगंज (लखनऊ )के सी.ओ अतर सिंह यादव की जिसने अपने एस.एस.पी. को कभी सैल्यूट नहीं किया बल्कि हमेशा उनसे हाथ मिलाया। एस.एस .पी .की भी बर्दाश्त करने की मजबूरी थी क्योंकि अतर सिंह के नाम के साथ 'यादव' जुड़ा था।
वैसे तो तत्कालीन जंगलराज पर कई खंडों में पुस्तक लिखी जा सकती है लेकिन उदाहरण के लिए
एक घटना और...
यह सच्ची घटना झांसी की है और अखिलेश यादव के ही कार्यकाल की है। 20 जनवरी 2014 को क्षेत्र के जाने-माने भाजपा नेता बृजेश तिवारी अपनी पत्नी, बेटे और भतीजे के साथ जा रहे थे। एक स्थानीय स.पा. नेता तेजपाल यादव के नेतृत्व में करीब एक दर्जन सपाइयों ने उन्हें घेर लिया और बृजेश तिवारी सहित उनके पूरे परिवार को भून डाला। पूरे शहर में जैसे मातम छा गया।
हत्या की रिपोर्ट लिखी गई। तत्कालीन पुलिस एस.पी. अपर्णा गांगुली के नेतृत्व में पुलिस ने तेज कार्यवाही की और पुलिस ने शीघ्र ही हत्या में प्रयुक्त हथियार सहित मुख्य अभियुक्त तेजपाल यादव को गिरफ्तार कर लिया।
हत्या की रिपोर्ट लिखी गई। तत्कालीन पुलिस एस.पी. अपर्णा गांगुली के नेतृत्व में पुलिस ने तेज कार्यवाही की और पुलिस ने शीघ्र ही हत्या में प्रयुक्त हथियार सहित मुख्य अभियुक्त तेजपाल यादव को गिरफ्तार कर लिया।
एस.पी. अपर्णा गांगुली ने प्रेस को बताया कि साक्ष्य तो यही मिल रहे हैं कि हत्या राजनीतिक कारणों से की गई है। 11 हमलावरों में से 8 को पहचान लिया गया है और एक- तेजपाल को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन अभी तो सरकार का जातिवादी रूप आना शेष था। पुलिस डी.जी.पी. को ऊपर से निर्देश दिया गया और लखनऊ में डी.जी.पी. रिजवान ने बयान दिया, "बृजेश तिवारी और उनके परिवार की हत्या में समाजवादी पार्टी के किसी भी नेता या कार्यकर्ता का हाथ नहीं था।"
इस बयान पर हालांकि अनेक अखबार और राजनैतिक दल डी.जी.पी. रिजवान पर टूट पड़े। तमाम अखबारों ने लिखा कि झांसी की पुलिस अधीक्षक ने जब जांच कर सपा नेता और मुख्य अपराधी तेजपाल को हथियार सहित गिरफ्तार कर लिया है और 11 में से 8 सपा कार्यकर्ताओं की पहचान भी कर ली है तो लखनऊ में बैठकर डीजीपी कैसे कह सकते हैं कि वारदात में समाजवादी पार्टी के लोग शामिल नहीं हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने तो यहां तक लिखा था, कि श्री रिजवान एक पुलिस अधिकारी की तरह नहीं बल्कि राजनीतिक निष्ठा के अनुसार कार्य कर रहे हैं। लेकिन डी.जी.पी. का बयान ही उनका एक तरह से आदेश था और बृजेश तिवारी और उनके पूरे परिवार की हत्या के आरोपी छोड़ दिए गए। और समाजवादी पार्टी को इसका नतीजा भी मिला।
याद होगा कि कुछ महीने पहले स.पा. ज़िलों- जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन करवा रही थी। ऐसा ही एक सम्मेलन झांसी में भी आयोजित किया गया लेकिन बृजेश तिवारी हत्याकांड और उसमें हुए जातीय पक्षपात से आहत झांसी के ब्राह्मणों ने स.पा. के उस आयोजन के बहिष्कार का निर्णय लिया और उस आयोजन में जिले का एक भी ब्राह्मण नहीं पहुंचा इसलिए उन्हें यह आयोजन रद्द करना पड़ा।
कहीं भी, कोई भी मुख्यमंत्री होगा, उसकी कोई जाति भी होगी । क्या उस जाति के लोगों द्वारा इटावा के संतोषपुर जैसी घटना का कोई दूसरा उदाहरण देश में मिलेगा? जहां एक निर्दोष, सम्भ्रांत महिला को बिना किसी दोष के, मुंह काला करके, जूतों की माला पहना कर गांव में घुमाया गया हो और पुलिस ने कोई कार्यवाही न की हो -यह अखिलेश यादव के राज में ही संभव है ।
( इस आलेख का संपूर्ण विवरण अखबारों से लिया गया है। वे अखबार हैं-
अमर उजाला -20 मार्च 2013 ; जागरण -21 मार्च 2013; जागरण - 31 मार्च 2013 ; टाइम्स आफ इंडिया - 21 जनवरी 2014; नवभारत टाइम्स -25 जनवरी 2014।)
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इस्लाम में प्रेम मतलब धर्म परिवर्तन !
मंसूर अली खान पटौदी से शादी करने से पहले शर्मिला टैगोर ने इस्लाम कबूल किया था, जिसके बाद शर्मिला का नाम रखा गया आएशा बेगम! प्यार सच्चा था तो इस्लाम कबूल करवाने की जिद किस लिए ? और अगर इस्लाम कुबूल कर ही लिया है तो खुद को शर्मिला टैगोर कहने की जिद किसलिए ?
अक्सर हिन्दुओं और बाकी विश्व को मूर्ख बनाने के लिये मुस्लिम और सेकुलर विद्वान(?) यह प्रचार करते हैं कि कम पढ़े-लिखे तबके में ही इस प्रकार की तलाक की घटनाएं होती हैं, जबकि हकीकत कुछ और ही है। क्या इमरान खान या नवाब पटौदी कम पढ़े-लिखे हैं? तो फ़िर नवाब पटौदी, रविन्द्रनाथ टैगोर के परिवार से रिश्ता रखने वाली शर्मिला से शादी करने के लिये इस्लाम छोड़कर हिन्दू क्यों नहीं बन गये? सैफ़ अली खान को अमृता सिंह से इतना ही प्यार था तो सैफ़ हिन्दू क्यों नहीं बन गया? अब अमृता सिंह को बेसहारा छोड़कर करीना कपूर से विवाह किया और बेटे का नाम रखा तैमूर. इससे अनुमान लगा ले इनका आदर्श वही खुनी तैमूर लंग है जिसने भारत में कत्लेआम मचाया था.
आँख बंद कर लेने से रात नहीं होती-
प्रेम अन्धा होता है. सभी धर्म समान हैं. शादी ब्याह में धर्म नहीं दिल देखा जाता है, मुसलमान भी तो इंसान हैं. यह कहने वाली एक बार विचार करें. जो हिन्दू लड़कियां सोचती हैं कि लव जेहाद जैसा कुछ नहीं होता तो उन्हें सोचना चाहिए. क्या कोई मुस्लिम लड़की लव मैरिज करके हिन्दू लड़के की पत्नी बन सकती है :? इस्लाम के तथाकथित विद्वान ज़ाकिर नाइक खुद फ़रमा चुके हैं कि इस्लाम “वन-वे ट्रेफ़िक” है, कोई इसमें आ तो सकता है, लेकिन इसमें से जा नहीं सकता… क्या दोनो एक ही घर में अपने-अपने धर्म का पालन नहीं कर सकते? मुस्लिम बनना क्यों जरूरी है? और यही बात उनकी नीयत पर शक पैदा करती है
अंकित सक्सेना का सडक पर उसे माँ बाप के सामने क़त्ल कर दिया गया. क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़की से शादी करने वाला था. उस लड़की के माँ बाप और चाचा ने सडक पर अंकित सक्सेना का गला काट कर हत्या कर दी.
जेमिमा मार्सेल गोल्डस्मिथ और इमरान खान – ब्रिटेन के अरबपति सर जेम्स गोल्डस्मिथ की पुत्री (21), पाकिस्तानी क्रिकेटर इमरान खान (42) के प्रेमजाल में फ़ँसी, उससे 1995 में शादी की, इस्लाम अपनाया (नाम हाइका खान), उर्दू सीखी, पाकिस्तान गई, वहाँ की तहज़ीब के अनुसार ढलने की कोशिश की, दो बच्चे (सुलेमान और कासिम) पैदा किये… नतीजा क्या रहा… तलाक-तलाक-तलाक। वापस ब्रिटेन। फ़िर वही सवाल – क्या इमरान खान कम पढ़े-लिखे थे? या आधुनिक(?) नहीं थे ?
24 परगना (पश्चिम बंगाल) के निवासी नागेश्वर दास की पुत्री सरस्वती (21) ने 1997 में अपने से उम्र में काफ़ी बड़े मोहम्मद मेराजुद्दीन से निकाह किया, इस्लाम अपनाया (नाम साबरा बेगम)। सिर्फ़ 6 साल का वैवाहिक जीवन और चार बच्चों के बाद मेराजुद्दीन ने उसे मौखिक तलाक दे दिया और अगले ही दिन कोलकाता हाइकोर्ट के तलाकनामे (No. 786/475/2003 दिनांक 2.12.03) को तलाक भी हो गया। अब पाठक खुद ही अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि चार बच्चों के साथ घर से निकाली गई सरस्वती उर्फ़ साबरा बेगम का क्या हुआ होगा, न तो वह अपने पिता के घर जा सकती थी, न ही आत्महत्या कर सकती थी…
प्रख्यात बंगाली कवि नज़रुल इस्लाम, हुमायूं कबीर (पूर्व केन्द्रीय मंत्री) ने भी हिन्दू लड़कियों से शादी की, क्या इनमें से कोई भी हिन्दू बना? अज़हरुद्दीन भी अपनी मुस्लिम बीबी नौरीन को चार बच्चे पैदा करके छोड़ चुके . बाद संगीता बिजलानी से निकाह कर लिया, कुछ साल बाद उसे भी तलाक दे दिया.उन्हें कोई अफ़सोस नहीं, कोई शिकन नहीं। ऊपर दिये गये उदाहरणों में अपनी बीवियों और बच्चों को छोड़कर दूसरी शादियाँ करने वालों में से कितने लोग अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे हैं? तब इसमें शिक्षा-दीक्षा का कोई रोल कहाँ रहा ? यह तो विशुद्ध लव-जेहाद है।
वहीदा रहमान ने कमलजीत से शादी की, वह मुस्लिम बने, अरुण गोविल के भाई ने तबस्सुम से शादी की, मुस्लिम बने, डॉ ज़ाकिर हुसैन (पूर्व राष्ट्रपति) की लड़की ने एक हिन्दू से शादी की, वह भी मुस्लिम बना, एक अल्पख्यात अभिनेत्री किरण वैराले ने दिलीपकुमार के एक रिश्तेदार से शादी की और गायब हो गई।
इस कड़ी में सबसे आश्चर्यजनक नाम है भाकपा के वरिष्ठ नेता इन्द्रजीत गुप्त का। मेदिनीपुर से 37 वर्षों तक सांसद रहने वाले कम्युनिस्ट (जो धर्म को अफ़ीम मानते हैं), जिनकी शिक्षा-दीक्षा सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज दिल्ली तथा किंग्स कॉलेज केम्ब्रिज में हुई, 62 वर्ष की आयु में एक मुस्लिम महिला सुरैया से शादी करने के लिये मुसलमान (इफ़्तियार गनी) बन गये। सुरैया से इन्द्रजीत गुप्त काफ़ी लम्बे समय से प्रेम करते थे, और उन्होंने उसके पति अहमद अली (सामाजिक कार्यकर्ता नफ़ीसा अली के पिता) से उसके तलाक होने तक उसका इन्तज़ार किया। लेकिन इस समर्पणयुक्त प्यार का नतीजा वही रहा जो हमेशा होता है, जी हाँ, “वन-वे-ट्रेफ़िक”। सुरैया तो हिन्दू नहीं बनीं, उलटे धर्म को सतत कोसने वाले एक कम्युनिस्ट इन्द्रजीत गुप्त “इफ़्तियार गनी” जरूर बन गये।
इसी प्रकार अच्छे खासे पढ़े-लिखे अहमद खान (एडवोकेट) ने अपने निकाह के 50 साल बाद अपनी पत्नी “शाहबानो” को 62 वर्ष की उम्र में तलाक दिया, जो 5 बच्चों की माँ थी… यहाँ भी वजह थी उनसे आयु में काफ़ी छोटी 20 वर्षीय लड़की (शायद कम आयु की लड़कियाँ भी एक कमजोरी हैं?)। इस केस ने समूचे भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ पर अच्छी-खासी बहस छेड़ी थी। शाहबानो को गुज़ारा भत्ता देने के लिये सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को राजीव गाँधी ने अपने असाधारण बहुमत के जरिये “वोटबैंक राजनीति” के चलते पलट दिया, मुल्लाओं को वरीयता तथा आरिफ़ मोहम्मद खान जैसे उदारवादी मुस्लिम को दरकिनार किया गया… तात्पर्य यही कि शिक्षा-दीक्षा या अधिक पढ़े-लिखे होने से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता, शरीयत और कुर-आन इनके लिये सर्वोपरि है, देश-समाज आदि सब बाद में…।
शेख अब्दुल्ला और उनके बेटे फ़ारुख अब्दुल्ला दोनों ने अंग्रेज लड़कियों से शादी की, ज़ाहिर है कि उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करने के बाद, यदि वाकई ये लोग सेकुलर होते तो खुद ईसाई धर्म अपना लेते और अंग्रेज बन जाते…? और तो और आधुनिक जमाने में पैदा हुए इनके पोते यानी कि जम्मू-कश्मीर के वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी एक हिन्दू लड़की “पायल” से शादी की, लेकिन खुद हिन्दू नहीं बने, उसे मुसलमान बनाया, तात्पर्य यह कि “सेकुलरिज़्म” और “इस्लाम” का दूर-दूर तक आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है और जो हमें दिखाया जाता है वह सिर्फ़ ढोंग-ढकोसला है।
एक बात और है कि धर्म परिवर्तन के लिये आसान निशाना हमेशा होते हैं “हिन्दू”, जबकि ईसाईयों के मामले में ऐसा नहीं होता, एक उदाहरण और देखिये –
पश्चिम बंगाल के एक गवर्नर थे ए एल डायस (अगस्त 1971 से नवम्बर 1979), उनकी लड़की लैला डायस, एक लव जेहादी ज़ाहिद अली के प्रेमपाश में फ़ँस गई, लैला डायस ने जाहिद से शादी करने की इच्छा जताई। गवर्नर साहब डायस ने लव जेहादी को राजभवन बुलाकर 16 मई 1974 को उसे इस्लाम छोड़कर ईसाई बनने को राजी कर लिया। यह सारी कार्रवाई तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय की देखरेख में हुई। ईसाई बनने के तीन सप्ताह बाद लैला डायस की शादी कोलकाता के मिडलटन स्थित सेंट थॉमस चर्च में ईसाई बन चुके जाहिद अली के साथ सम्पन्न हुई।
इस उदाहरण का तात्पर्य यह है कि पश्चिमी माहौल में पढ़े-लिखे और उच्च वर्ग से सम्बन्ध रखने वाले डायस साहब भी, एक मुस्लिम लव जेहादी की “नीयत” समझकर उसे ईसाई बनाने पर तुल गये। लेकिन हिन्दू माँ-बाप अब भी “सहिष्णुता” और “सेकुलरिज़्म” का राग अलापते रहते हैं, और यदि कोई इस “नीयत” की पोल खोलना चाहता है तो उसे “साम्प्रदायिक” कहते हैं। यहाँ तक कि कई लड़कियाँ भी अपनी धोखा खाई हुई सहेलियों से सीखने को तैयार नहीं, हिन्दू लड़के की सौ कमियाँ निकाल लेंगी, लेकिन दो कौड़ी की औकात रखने वाले मुस्लिम जेहादी के बारे में पूछताछ करना उन्हें “साम्प्रदायिकता” लगती है…
ऐसी हज़ारों दास्तानों में से एक है सिरोंज के महेश्वरी समाज की दास्तान। सिरोंज यह स्थान विदिशा से 50 मील की दूरी पर एक तहसील है। 200 साल पहले सिरोंज टोंक के एक नवाब के आधिपत्य में था। एक बार नवाब ने इस क्षेत्र का दौरा किया। उसी रात की यहाँ के माहेश्वरी सेठ की पुत्री का विवाह था। संयोग से रास्ते में डोली में से पुत्री की कीमती चप्पल गिर गई। किसी व्यक्ति ने उसे नवाब के खेमे तक पहुँचा दिया। नवाब को यह भी कहा गया कि चप्पल से भी अधिक सुंदर इसको पहनने वाली है। यह जानने के बाद नवाब द्वारा सेठ की पुत्री की माँग की गई। यह समाचार सुनते ही माहेश्वरी समाज में खलबली मच गई। बेटी देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। अब किया क्या जाये ?
माहेश्वरी समाज के प्रतिनिधियों ने कुटनीति से काम किया। नवाब को यह सूचना दे दिया गया कि प्रातः होते ही डोला दे दिया जाएगा। इससे नवाब प्रसन्न हो गया। इधर माहेश्वरियों ने रातों- रात पुत्री सहित शहर से पलायन कर दिया तथा। उनके पूरे समाज में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी माहेश्वरी समाज में न तो इस स्थान का पानी पिएगा, न ही निवास करेगा। एक रात में अपने स्थान को उजाड़ कर महेश्वरी समाज के लोग दूसरे राज्य चले गए। मगर अपनी इज्जत, अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया। आज भी एक परम्परा माहेश्वरी समाज में अविरल चल रही है। आज भी माहेश्वरी समाज का कोई भी व्यक्ति सिरोंज जाता है। तो वहाँ का पानी पीता है और न ही रात को कभी रुकता हैं। यह त्याग वह अपने पूर्वजों द्वारा लिए गए संकल्प को निभाने एवं मुसलमानों के अत्याचार के विरोध को प्रदर्शित करने के लिए करता हैं।
दरअसल मुस्लिम शासकों में हिंदुओं की लड़कियों को उठाने, उन्हें अपनी हवस बनाने, अपने हरम में भरने की होड़ थी। उनके इस व्यसन के चलते हिन्दू प्रजा सदा आशंकित और भयभीत रहती थी। ध्यान दीजिये किस प्रकार हिन्दू समाज ने अपना देश, धन, सम्पति आदि सब त्याग कर दर दर की ठोकरे खाना स्वीकार किया। मगर अपने धर्म से कोई समझौता नहीं किया। अगर ऐसी शिक्षा, ऐसे त्याग और ऐसे प्रेरणादायक इतिहास को हिन्दू समाज आज अपनी लड़कियों को दूध में घुटी के रूप में दे। तो कोई हिन्दू लड़को कभी लव जिहाद का शिकार न बने।
सवाल उठना स्वाभाविक है कि ये कैसा प्रेम है? यदि वाकई “प्रेम” ही है तो यह वन-वे ट्रैफ़िक क्यों है? इसीलिये सभी सेकुलरों, प्यार-मुहब्बत-भाईचारे, धर्म की दीवारों से ऊपर उठने आदि की हवाई-किताबी बातें करने वालों से मेरा सिर्फ़ एक ही सवाल है, “कितनी मुस्लिम लड़कियों (अथवा लड़कों) ने “प्रेम”(?) की खातिर हिन्दू बनना स्वीकार किया है ?”
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इसे भी पढ़ें, सुनें, देखें-
आज 7 फरवरी सोमवार : प्रमुख समाचार पत्रों की "हेड लाइन्स" व महत्वपूर्ण संक्षिप्त समाचार
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http://www.dharmnagari.com/2022/01/Todays-7-February-Monday-Newspapers-Head-Lines-and-Informative-News.html
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आम नागरिक की बात छोड़ें, तत्कालीन CM अखिलेश के चरणों में IG जैसे वरिष्ठ IPS अधिकारीयों को बैठना पड़ता था. फोटो सैफई का : सोशल मीडिया |
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ये वीडियो देखें, इसे लेकर सोशल मीडिया में कहा, लिखा जा रहा है, कि इसका उपयोग योगी आदित्यनाथ के दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर किया जाएगा...!
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‘कश्मीर की स्वतंत्रता के लिए खड़ा है Pizza-Hut’
KFC के बाद पिज्जा हट, Hyundai, Kia का भी हो रहा बहिष्कार
यह पहली बार नहीं पिछले साल भी KFC ने ऐसे ही भारत विरोधी एजेंडा चलाया था। तब रिलीज पोस्टर पर लिखा है, "कश्मीर सॉलिडेरिटी डे पर हम आपके साथ खड़े हैं, आपको यह एहसास दिलाने के लिए स्वतंत्रता आपका अधिकार है।"
पाकिस्तान में अंतरराष्ट्रीय ऑउटलेट राजनीतिक प्रोपेगेंडा के टूल बने हुए हैं। इसी कड़ी में अब एक और नाम आया है पिज्जा हट का, जिसने ‘Hyundai’, ‘Kia’, KFC के बाद भारत विरोधी पाकिस्तानी नैरेटिव को आगे बढ़ाया है। अभी हुंडई, ‘Kia’, KFC मामला शांत भी नहीं हुआ, कि पिज्जा हट के ‘कश्मीर की आजादी के समर्थन’ का पोस्ट सामने आने बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। लोग सोशल मीडिया पर इस अंतरराष्ट्रीय ऑउटलेट पर भड़के हुए हैं जो पाकिस्तान में भारत विरोधी एजेंडा चला रहा है।
पिज्जा हट पाकिस्तान ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर पोस्ट किया, “कश्मीर सॉलिडेरिटी डे पर हम सभी कश्मीरी भाई-बहनों की स्वतंत्रता के लिए साथ खड़े हैं।” फिर क्या, भारतीय इन कंपनियों के मुखर विरोध में उतर आए हैं। एक ट्वीटर यूजर गुज्जु गिरी ने ट्वीट कर कहा, “कंपनियों से व्यापार करने की अपेक्षा की जाती है, राजनीति में नहीं उलझने की। लेकिन अगर वे ऐसा करते हैं, तो अब समय आ गया है कि नागरिक भी उन्हें उनका स्थान दिखाएँ।”
वहीं आज KFC का भी भारत विरोधी पोस्ट सामने आया। अपने पाकिस्तानी फेसबुक पेज से 5 फरवरी कश्मीर डे पर एक तस्वीर शेयर किया जिसपर लिखा था, “कश्मीर कश्मीरियों का है!”
साथ ही पाकिस्तान से KFC ने कश्मीरियों को सम्बोधित करते हुए लिखा, “आपने हमारे इस विचार को कभी नहीं छोड़ा और हम आशा करते हैं कि आने वाले वर्ष आपके लिए शांति लाए!”
हालाँकि यह पहली बार नहीं पिछले साल भी KFC ने ऐसे ही भारत विरोधी एजेंडा चलाया था। तब रिलीज पोस्टर पर लिखा है, “कश्मीर सॉलिडेरिटी डे पर हम आपके साथ खड़े हैं, आपको यह एहसास दिलाने के लिए स्वतंत्रता आपका अधिकार है।”
KFC पाकिस्तान की इन हरकतों पर उसे ट्विटर सही सोशल मीडिया पर लताड़ा जा रहा है। लोग भारत विरोधी एजेंडा चलाने वाले इन कंपनियों का भारत में बहिष्कार की अपील कर रहे हैं।
बता दें कि इससे पहले ‘Kia’ के पाकिस्तानी ट्विटर हैंडल ने लिखा, “हम सब कश्मीर की आज़ादी के लिए एक होकर खड़े हैं।” कंपनी ने इसके साथ ही ‘5 फरवरी’ और ‘कश्मीर दिवस’ का हैशटैग भी लगाया। पाकिस्तान भारत विरोधी प्रोपेगंडा के लिए 5 फरवरी को ‘कश्मीर डे’ मनाता है।
इन कंपनियों का भारत विरोधी एजेंडा देखकर लोग भड़के हुए हैं। लोगों ने कहा कि पाकिस्तान से कई गुना अधिक कारें भारत में बिकती हैं, लेकिन इसके बावजूद ‘Kia’ कश्मीर पर पाकिस्तानी झूठ फैलाने में लगा हुआ है। ‘Kia’ से लोगों ने सवाल किया कि क्या उसने अब आतंकवादियों को फंडिंग करनी भी शुरू कर दी है ? उस ट्वीट के साथ तस्वीर में पाकिस्तान का झंडा भी लगाया गया था। हालाँकि, विवाद होने के बाद ‘Kia’ के उस पाकिस्तानी हैंडल ने अपने ट्वीट को डिलीट कर दिया है। लेकिन, इसके लिए लोग माफ़ी की माँग कर रहे हैं।
वहीं हुंडई पाकिस्तान (Hyundai Pakistan) ने भी एक ट्वीट किया था जहाँ से इस विवाद की शुरुआत हुई। इस ट्वीट को लेकर भारत की ऑटोमोबाइल कंपनी हुंडई इंडिया (Hyundai Motor India) अब सवालों के घेरे में है। रविवार (6 फरवरी 2022) दोपहर से ही ट्विटर पर हैशटैग #BoycottHyundai के साथ ट्रेंड कर रही है। बता दें कि हुंडई पाकिस्तान ने शनिवार (5 फरवरी 2022) को ट्वीट किया था, “आइए हम अपने कश्मीरी भाइयों के बलिदान को याद करें और उनके समर्थन में खड़े हों, क्योंकि वे आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।”
हालाँकि, अब सोशल मीडिया के विस्तार के साथ ऐसे प्रोपेगेंडा आसानी से लोगों की पकड़ में आ रहा है और लोग मुखर होकर इन कंपनियों के विरोध के साथ ही भारत में इनके सामानों का विरोध के साथ ही, बहिष्कार की अपील भी कर रहे हैं।
Companies which have joined the “Free Kashmir” propaganda:
1. KFC
2. PizzaHut
3. Hyundai
4. Osaka Batteries
5. Isuzu
6. Bosch Pharmaceuticals
7. Atlas Honda Limited
8. Kia Motors
9. Dominos Pizza
Now it is time of consumer power to show them the door।।
Boycott them
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