...मस्जिद में लहराया लाल झंडा, अब क्या होगा ? इजराइल के धरोहर मंत्री बोले-
-अनुराधा त्रिवेदी*
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इस्माइल हानिया वही सख्श है, जिन्होंने पिछले साल अक्टूबर में इजराइल में हमला करके, लोगों का अपहरण करके, इजराइल को परास्त करने की कोशिश की थी। मध्य-पूर्व में एक ओर इरान और दूसरी ओर इजराइल इस्माइल हानिया के मारे जाने के बाद तृतीय विश्व युद्ध की बुनियाद रखने की पहल कर सकते हैं। चूंकि, गाजा को इजराइल पर हमला करने की पहल करने के कारण इजराइल ने फिलिस्तीन को एक तरह से कब्रिस्तान में बदल कर रख दिया। इससे अरब देशों में तो असंतोष है ही, हूती, लेबनान, हिजबुल्ला, ईरान और कुछ अरब देश इजराइल के खिलाफ एक झंडे के नीचे आ गये हैं।
ऐसा लगता है, दुनिया दो हिस्से में बंट गई हो। एक ओर इजराइल, अमेरिका सहित कुछ पश्चिमी देश, ईरान और उसके समर्थक देश, जिसे चीन, रूस और उत्तर कोरिया भी शामिल हैं। मध्य-पूर्व में इजराइल के बहाने ईरान को निपटाने की अमेरिकी योजना भी है। आखिर तीसरे विश्व-युद्ध की ओर दुनिया क्यों बढ़ रही है? इस समय पूरा मिडल-ईस्ट और यूरोप का अशांत होना, मतलब संयुक्त राष्ट्र संघ का पूरी तरह फेल होना है और युद्ध में पूरी तरह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बड़े देशों का शामिल होना। इस्माइल हानिये की हत्या के बाद दुनियाभर के इस्लामी देशों में भूचाल आ गया है।
रूस और यूके्रन में पिछले दो सालों से अधिक समय से युद्ध चल ही रहा है, जो कि भीषणतम लड़ाई से घिरा हुआ है। ईरान हमेशा संदेह के घेरे में रहा, अपनी परमाणु गतिविधियों के चलते। वहीं, इजराइल और अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रमों के सख्त विरोध में खड़े रहे। अंत में अमेरिका द्वारा भारी-भरकम प्रतिबंध ईरान पर लगा दिया गया।
ईरान की महत्वाकांक्षा है, कि वह इस्लामी जगत का खलीफा बने, तब जबकि अरब के तमाम इस्लामिक देश सुन्नी हैं। उनके आपसी शिया-सुन्नी वाले आपसी क्लेश हैं, लेकिन इजराइल के मामले में ईरान अपने विरोधी इस्लामिक देशों का समर्थन पाने में सफल रहा है। दूसरा, ईरान तमाम मुस्लिम देशों का खलीफा (सर्वोच्च नेता) बनना चाहता है, जिसको लेकर उनके अंदर आपस में कलह है। वहीं, हानिया के मारे जाने के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामनेई ने बहत्तर घंटों के अंदर ईरान को आदेश दिया, कि बदला लो। दूसरी तरफ अमेरिका का बयान आ गया, कि यदि इजराइल पर हमला हुआ तो हम इजराइल का साथ देंगे।
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इस समय एक सवाल हर तरफ गूंज रहा है, वह यह, कि क्या दुनिया में विश्व-युद्ध की दस्तक एकबार फिर तेज हो सकती है! इसका कारण है, इजराइल ने जिस तरह से हमास के चीफ को ईरान के सबसे सुरक्षित इलाके में घुसकर मार गिराया, उसके बाद दुनिया सहमी हुई है। अयातुल्ला अली खामनेई ने इस्माइल हानिया की हत्या के बाद इजराइल को कड़ी सजा देने की कसम खाई है। वहीं, इजराइल ने कह दिया, कि वह हाल में, हर हालात के लिए तैयार है। इजराइल ने अभी तक इस्माइल हानिया की हत्या की जिम्मेदारी नहीं ली है।
ऐसा माना जाता है, अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने नेतन्याहू पर भरोसा किया है। कभी भी अरब धधक सकता है। इजराइल अपने देश की संप्रभुता बचाकर रखने के लिए संकल्पित है। इजराइल ने अपने देश के बार्डर सील करके डिफेंस सिस्टम तैनात कर दिए हैं। अमेरिका ने भी इजराइल के सुरक्षा चक्र को तैयार किया है। यदि ईरान ने इजराइल पर हमला किया, तो नाटो इजराइल की मदद के लिए उतर सकता है। इसका सीधा मतलब है, कि अरब से विनाशक युद्ध की शुरुआत होगी, जिसकी आग में न केवल अरब जल सकता है, बल्कि रूस और चीन इस युद्ध में कूदे, तो यह सीधे तौर पर विश्व-युद्ध का बवंडर ला सकता है।
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सेना के तेहरान में मोस्ट सिक्योर्ड गेस्ट-हाउस में मारा गया इस्माइल हानिया |
इससे पहले जब सभी इस्लामी देशों ने मिलकर इजराइल पर हमला किया था, तब इजराइल ने सभी देशों को धूल चटा दिया था, लेकिन दुनिया को भूलना नहीं चाहिए कि इस बार ईरान के पैसे और हथियार के साथ हूती और हिजबुल्ला भी ईरान के साथ है।
इजराइल पांच ओर से इस्लामिक देशों से घिरा हुआ है, जिसमें लेबनान, जार्डन, अरब और ईरान शामिल है। काला सागर में हूती का आतंक है। जिहाद को छेडऩा इन तमाम संगठनों का उद्देश्य है। यह समझने वाली बात है कि इस्लाम में सह-अस्तित्व के लिए कोई जगह नहीं है। या तो आप इस्लाम को मानो या मर जाओ। ये जो सोच है, यही फसाद की जड़ है। अपने साथ किसी दूसरे धर्म का सम्मान न करना, किसी और धर्म के अस्तित्व को नकारना और उन्हें मजबूर या बाध्य करना कि इस्लाम स्वीकार करो, यही इस्लामी जिहाद और हिजबुल्ला दुनिया को तीसरे वल्र्ड वार की तरफ ढकेल सकती है। इजराइल और हमास के बीच हो रही भीषण जंग में तमाम आतंकवादी संगठनों को इजराइल के खिलाफ एकजुट कर दिया है। अगर इजराइल हमास के बीच हिजबुल्ला और इस्लामिक जिहाद की इंस्ट्री होती है, तो यह न केवल इजराइल, बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरे का अलार्म होगा।
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साल 2006 में फिलस्तीन के आम चुनावों में हमास की जीत के बाद से ही संगठन में हानिया का दबदबा बढ़ने लगा था। उसे गाजा पट्टी में फिलस्तीनी प्राधिकरण का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। इस दौरान मिस्र से गाजा पट्टी में आयातित वस्तुओं पर भारी कर लगाकर हानिया ने अपनी संपत्ति कई गुना बढ़ा ली। 2014 में हमास द्वारा सभी व्यापार पर 20% कर लगाए जाने की घोषणा की गई। एक रिपोर्ट में दावा किया गया, इन करों की वजह से हमास के 1,700 टॉप कमांडर करोड़पति बन गए।
हमास को कतर और तुर्की जैसे देशों का समर्थन भी है। कुछ रिपोर्ट्स में हमास के लड़ाकों की संख्या 50 हजार बताई गई है। हमास राकेट्स से लेकर मोर्टार और ड्रोन अटैक की क्षमता से लैस है। अकेले कतर से हमास को 1.8 अरब डॉलर से ज्यादा की मदद मिल चुकी है। हमास के समर्थक दुनियाभर में हैं। पिछले साल भारत के केरल में ऑनलाइन फिलीस्तीन समर्थन का एक कार्यक्रम हुआ था, जिसमें खालिद मसाल ऑनलाइन शामिल हुआ था। इसे लेकर भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने सतर्कता बरतते हुए लंबी कार्यवाही की आयोजकों पर की थी। फिलीस्तीन इस्लामिक जिहाद एक इस्लामिक फिलिस्तीनी राष्ट्रवादी संगठन है, जिसे फिलीस्तीनी इस्लामिक जिहाद (पीआईजे) के नाम से भी जाना जाता है। ये इजराइल के अस्तित्व का हिन्सक विरोध करता है।
पीआईजे को 1997 में अमेरिका के विदेश विभाग ने आतंकवादी संगठन घोषित किया था। पीआईजे किसी भी राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेता है। इस्लामिक जिहाद को ईरान और लेबनान का चरमपंथी संगठन- हिजबुल्ला मदद करता है। पीआईजे का संस्थापक फतेही शाकाकी और अब्द-अल-अजीज आब्दा, ये दोनों मिस्र में स्टूडेंट थे और 1970 के दशक में मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्य थे। इनको लगा, कि मुस्लिम ब्रदरहुड ज्यादा उदार है, इसलिए इन्होंने पीआईजे का गठन किया। पीआईजे का मकसद है, पूरे फिलीस्तीन को इस्लामिक फिलिस्तीनी राज्य के तौर पर बनाना चाहता है और इजराइल को मध्य-पूर्व के नक्शे हटाना चाहता है। पीआईजे इजराइल और फिलिस्तीन के सह-अस्तित्व वाले किसी भी दो-राष्ट्र वाले व्यवस्था को अस्वीकार करता है। पीआईजे आत्मघाती हमलों के लिए जाना जाता है, जिसमें महिलायें भी शामिल हैं।
हिजबुल्ला सुन्नी, शिया और ईसाइयों के बीच 1943 में हुए समझौता हुआ, जिसमें सुन्नी मुसलमानों को प्रधानमंत्री, ईसाइयों को राष्ट्रपति और शियाओं को संसद स्पीकर का पद दिया गया। ये समझौता करीब 25 साल तक चला, लेकिन फिलीस्तीन में सुन्नी मुसलमानों की आबादी बढ़ने से धार्मिक समीकरण गड़बड़ाने लगे। इससे शिया मुसलमानो में लेबनान की सत्ता से दखल खत्म होने का डर सताने लगा। यही मतांतरण इन आतंकवादियों के पैदाइश का भी कारण है।
*वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल।
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