इज़रायल-ईरान में लंबे समय से चल रहा संघर्ष युद्ध में बदला, भारत सहित...
...पूरी दुनिया पर पड़ेगा प्रभाव, बिगड़ सकता है वैश्विक संतुलन !
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इजरायल और ईरान दोनों ने एक-दूसरे पर भीषण हमले किए हैं। इजरायल ने ऑपरेशन "राइजिंग लायन" के अंतर्गत ईरान के कई न्यूक्लियर ठिकानों, मिसाइल लॉन्च सिस्टम्स और एयर डिफेंस को नष्ट कर दिया, तो ईरान ने भी इजरायल के तेल अवीव समेत कई बड़े शहरों पर मिसाइल से हमला किया है।
वैश्विक व्यापार व आपूर्ति पर प्रभावित
दोनों देशों में टकराव बड़े स्तर पर जारी रहने पर खाड़ी क्षेत्र के समुद्री मार्ग प्रभावित होने की संभावना है। वैश्विक व्यापर और आपूर्ति की निरंतरता ठप होने, शिपिंग नेटवर्क में बाधा आने की संभावना है, क्योंकि भारत की खाड़ी देशों के साथ अरबों डॉलर की व्यापार साझेदारी है, जिसमें पेट्रोकेमिकल्स, टेक्सटाइल, मशीनरी आदि हैं। बंदरगाहों पर युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होने पर व्यापार पर प्रभाव पड़ेगा। चाबहार बंदरगाह परियोजना, जिसमें भारत का रणनीतिक निवेश है, वह भी अस्थिर हो सकती है।
कच्चे तेल की कीमतों में उछाल
दोनों देश (ईरान और इजरायल) मध्य-पूर्व में स्थित हैं और यह क्षेत्र वैश्विक तेल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है। ऐसे में यदि युद्ध जारी रहता है, तो होरमुज जलडमरू मध्य जैसी अहम तेल आपूर्ति मार्गों को खतरा हो सकता है। इसके चलते कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें तेजी से बढ़ सकती हैं। इसका असर भारत समेत दुनिया के तमाम देशों पर हो सकता है। बता दें कि भारत अपनी जरूरत का लगभग 85% तेल खाड़ी देशों से आयात करता है। तेल कीमतों में तेज़ बढ़ोतरी से भारत की मुद्रास्फीति, करंट अकाउंट डेफिसिट और सब्सिडी बिल पर बुरा असर पड़ेगा। इससे आम नागरिकों के लिए पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस समेत आवश्यक वस्तुएं महंगी हो सकती हैं।
मध्य-पूर्व क्षेत्र में अस्थिरता 80 लाख भारतीय पर प्रभाव
निःसंदेह दोनों ही देश मध्य-पूर्व के शक्तिशाली देश हैं। इसलिए पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र में अस्थिरता और महंगाई के साथ असुरक्षा की स्थिति बन सकती है। उल्लेखनीय है, मध्य-पूर्व में लगभग 80 लाख भारतीय काम करते हैं। ईरान में सैकड़ों भारतीय छात्र भी मेडिकल और तकनीकी शिक्षा ले रहे हैं। संघर्ष बढ़ने पर इन लोगों की सुरक्षा की चिंता बढ़ गई है। भारत को बड़े पैमाने पर निकासी अभियान चलाना पड़ सकता है, जैसा यूक्रेन युद्ध और अफगानिस्तान संकट के समय हुआ। इससे भारत पर मानवीय और आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा।
सैन्य अस्थिरता से तृतीय विश्व-युद्ध का खतरा
इजरायल-ईरान संघर्ष में अमेरिका और अन्य पश्चिमी शक्तियां भी कूद सकती हैं, जबकि ईरान के साथ रूस और चीन की निकटता पहले से स्पष्ट है। ऐसे में यह टकराव नया शीत युद्ध या क्षेत्रीय महायुद्ध का रूप ले सकता है। इसके दुष्परिणाम वैश्विक बाजार, निवेश, खाद्य सुरक्षा और स्थिरता पर भी दिखेंगे। अफ्रीका और दक्षिण एशिया में विकासशील देशों को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
भारत की विदेश नीति पर प्रभाव
चूँकि इजरायल और ईरान दोनों ही भारत के मित्र देश हैं, इसलिए दोनों में युद्ध होने से भारत की पश्चिम एशिया नीति संतुलन पर आधारित रही है। वह इज़रायल और ईरान दोनों से रणनीतिक और व्यापारिक संबंध बनाए हुए है। इज़रायल से भारत रक्षा और तकनीक सहयोग करता है, वहीं ईरान से ऊर्जा और क्षेत्रीय संपर्क पर काम करता है। दोनों देशों के बीच तेज युद्ध छिड़ने की स्थिति में भारत के लिए तटस्थता बनाए रखना कठिन होगा। किसी एक पक्ष का समर्थन करने पर दूसरा नाराज हो सकता है। इससे भारत की “मल्टी-अलाइंमेंट” रणनीति की परीक्षा होगी।
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इजरायल और ईरान दोनों ने एक-दूसरे पर भीषण हमले किए हैं। इजरायल ने ऑपरेशन "राइजिंग लायन" के अंतर्गत ईरान के कई न्यूक्लियर ठिकानों, मिसाइल लॉन्च सिस्टम्स और एयर डिफेंस को नष्ट कर दिया, तो ईरान ने भी इजरायल के तेल अवीव समेत कई बड़े शहरों पर मिसाइल से हमला किया है।
बीते शुक्रवार से जारी युद्ध के बीच इजरायली (IDF) सेना ने सोमवार (16 जून) को बड़ा दावा करते हुए कहा- इजराइल ने ईरान की राजधानी तेहरान के ऊपर हवाई श्रेष्ठता (Aerial Superiority) हासिल कर ली है। इजरायली सेना ने कहा है कि उसने ईरान के एयर डिफेंस और मिसाइल सिस्टम्स को इस लेवल तक कमजोर कर दिया है कि इजरायली विमान बिना किसी बड़े खतरे का सामना किए तेहरान के ऊपर उड़ान भर सकते हैं। इजरायल का ये हमला 1980 के इराक़ युद्ध के बाद से ईरान पर अब तक का सबसे बड़ा हमला है। हमले में ईरान के सैकड़ों लोगों की मौत हो गई। ईरान के दर्जनों शीर्ष सैन्य अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए। अब तक ईरान ने 224 लोगों के मारे जाने एवं 1,277 लोग घायल बताए जा रहे हैं। हालांकि, ईरान ने ये नहीं बताया, कि इनमें कितने सैनिक हैं और कितने आम लोग। इजरायल के इस खतरनाक हमले ने ईरान के परमाणु कार्यक्रमों की कमर तोड़कर रख दी है जिससे उबरने में ईरान को अब काफी वक्त लग सकता है।
वास्तव में इजरायल-ईरान युद्ध केवल दो देशों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह वैश्विक संतुलन को हिला सकने वाली घटना बन रही है। ऊर्जा, व्यापार और मानव संसाधन के स्तर पर खाड़ी देशों के साथ से गहराई से जुड़े दुनिया के तमाम देशों पर गंभीर प्रभाव पड़ने की पूरी संभावना है, जिससे भारत जैसे देश प्र सीधा प्रभाव पड़ेगा।
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नए हमलों के बाद इजरायल और ईरान में चल रहा युद्ध बहुत भीषण हो गया है। दोनों देश एक-दूसरे के आर्मी बेस और परमाणु ठिकानों पर मिसाइल और ड्रोन हमले कर रहे हैं। इन दोनों देशों के बीच दशकों से तनाव रहा है, लेकिन हालिया समय में यह संघर्ष भयानक युद्ध की युद्ध की ओर उन्मुख हो चला है। इजरायल और ईरान एक दूसरे के शहरों में एयरस्ट्राइक कर आग लगा रहे हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि अगर यह संघर्ष लंबा चलता है तो क्या होगा? इजरायल-ईरान युद्ध का सिर्फ क्षेत्रीय राजनीति पर भारत सहित पूरी वैश्विक व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
वैश्विक व्यापार व आपूर्ति पर प्रभावित
दोनों देशों में टकराव बड़े स्तर पर जारी रहने पर खाड़ी क्षेत्र के समुद्री मार्ग प्रभावित होने की संभावना है। वैश्विक व्यापर और आपूर्ति की निरंतरता ठप होने, शिपिंग नेटवर्क में बाधा आने की संभावना है, क्योंकि भारत की खाड़ी देशों के साथ अरबों डॉलर की व्यापार साझेदारी है, जिसमें पेट्रोकेमिकल्स, टेक्सटाइल, मशीनरी आदि हैं। बंदरगाहों पर युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होने पर व्यापार पर प्रभाव पड़ेगा। चाबहार बंदरगाह परियोजना, जिसमें भारत का रणनीतिक निवेश है, वह भी अस्थिर हो सकती है।
कच्चे तेल की कीमतों में उछाल
दोनों देश (ईरान और इजरायल) मध्य-पूर्व में स्थित हैं और यह क्षेत्र वैश्विक तेल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है। ऐसे में यदि युद्ध जारी रहता है, तो होरमुज जलडमरू मध्य जैसी अहम तेल आपूर्ति मार्गों को खतरा हो सकता है। इसके चलते कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें तेजी से बढ़ सकती हैं। इसका असर भारत समेत दुनिया के तमाम देशों पर हो सकता है। बता दें कि भारत अपनी जरूरत का लगभग 85% तेल खाड़ी देशों से आयात करता है। तेल कीमतों में तेज़ बढ़ोतरी से भारत की मुद्रास्फीति, करंट अकाउंट डेफिसिट और सब्सिडी बिल पर बुरा असर पड़ेगा। इससे आम नागरिकों के लिए पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस समेत आवश्यक वस्तुएं महंगी हो सकती हैं।
मध्य-पूर्व क्षेत्र में अस्थिरता 80 लाख भारतीय पर प्रभाव
निःसंदेह दोनों ही देश मध्य-पूर्व के शक्तिशाली देश हैं। इसलिए पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र में अस्थिरता और महंगाई के साथ असुरक्षा की स्थिति बन सकती है। उल्लेखनीय है, मध्य-पूर्व में लगभग 80 लाख भारतीय काम करते हैं। ईरान में सैकड़ों भारतीय छात्र भी मेडिकल और तकनीकी शिक्षा ले रहे हैं। संघर्ष बढ़ने पर इन लोगों की सुरक्षा की चिंता बढ़ गई है। भारत को बड़े पैमाने पर निकासी अभियान चलाना पड़ सकता है, जैसा यूक्रेन युद्ध और अफगानिस्तान संकट के समय हुआ। इससे भारत पर मानवीय और आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा।
सैन्य अस्थिरता से तृतीय विश्व-युद्ध का खतरा
इजरायल-ईरान संघर्ष में अमेरिका और अन्य पश्चिमी शक्तियां भी कूद सकती हैं, जबकि ईरान के साथ रूस और चीन की निकटता पहले से स्पष्ट है। ऐसे में यह टकराव नया शीत युद्ध या क्षेत्रीय महायुद्ध का रूप ले सकता है। इसके दुष्परिणाम वैश्विक बाजार, निवेश, खाद्य सुरक्षा और स्थिरता पर भी दिखेंगे। अफ्रीका और दक्षिण एशिया में विकासशील देशों को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
भारत की विदेश नीति पर प्रभाव
चूँकि इजरायल और ईरान दोनों ही भारत के मित्र देश हैं, इसलिए दोनों में युद्ध होने से भारत की पश्चिम एशिया नीति संतुलन पर आधारित रही है। वह इज़रायल और ईरान दोनों से रणनीतिक और व्यापारिक संबंध बनाए हुए है। इज़रायल से भारत रक्षा और तकनीक सहयोग करता है, वहीं ईरान से ऊर्जा और क्षेत्रीय संपर्क पर काम करता है। दोनों देशों के बीच तेज युद्ध छिड़ने की स्थिति में भारत के लिए तटस्थता बनाए रखना कठिन होगा। किसी एक पक्ष का समर्थन करने पर दूसरा नाराज हो सकता है। इससे भारत की “मल्टी-अलाइंमेंट” रणनीति की परीक्षा होगी।
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