#Prayagraj : सूर्य-चंद्रमा की 14 कलाएं, आध्यात्मिक ऊर्जा और नक्षत्रीय गणित का अद्भुत समन्वय, पहली बार जारी हुआ लोगो...
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सूर्य-चंद्रमा की 14 कलाओं की उपस्थिति ज्योतिषीय गणना दर्शाता प्रयागराज माघ मेला का लोगो जारी हो गया। अब तक महाकुंभ या अर्द्धकुंभ के ही लोगो जारी हुए, लेकिन पहली बार सदियों से आयोजित हो रहे प्रयागराज के वार्षिक माघ मेला का लोगो जारी हुआ।
लोगो तीर्थराज प्रयाग, संगम की तपोभूमि और ज्योतिषीय गणना के अनुसार माघ मास के महत्व को दर्शाता है। लोगो में सूर्य-चंद्रमा की 14 कलाएं, अक्षयवट, महात्मा का चित्र और लेटे हुए हनुमान जी की उपस्थिति है। लोगो में "माघे निमज्जनं यत्र पापं परिहरेत् तत" श्लोक माघ मास में स्नान के महत्व को बताता है। अर्थात माघ मास में विश्व के सबसे बड़े व प्राचीन धार्मिक माघ मेले का संगम की रेती पर अनुष्ठान करने की महत्व को समग्र रूप से लोगो में दर्शाया गया है।
सूर्य व चंद्रमा की 14 कला एवं "माघ"
लोगो में सूर्य एवं चंद्रमा की 14 कलाओं की उपस्थिति ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य, चंद्रमा एवं नक्षत्रों की स्थितियों को प्रतिबिंबित करता है, जो प्रयागराज में माघ मेले का कारक बनता है। भारतीय ज्योतिषीय गणना के अनुसार, चंद्रमा 27 नक्षत्रों की परिक्रमा लगभग 27.3 दिनों में पूर्ण करता है। माघ मेला इन्हीं नक्षत्रीय गतियों के अत्यंत सूक्ष्म गणित पर आधारित है। जब सूर्य मकर राशि में होता है और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा माघी या अश्लेषा-पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रों के समीप होता है, तब माघ मास बनता है और उसी काल में माघ मेला आयोजित होता है।
चंद्रमा की 14 कलाओं का संबंध मानव जीवन, मनोवैज्ञानिक ऊर्जा और आध्यात्मिक साधना से माना गया है। माघ मेला चंद्र-ऊर्जा की इन कलाओं के सक्रिय होने का विशेष काल भी है। अमावस्या से पूर्णिमा की ओर चंद्रमा की वृद्धि (शुक्ल पक्ष) साधना की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।
सूर्य-चंद्रमा की 14 कलाओं की उपस्थिति ज्योतिषीय गणना दर्शाता प्रयागराज माघ मेला का लोगो जारी हो गया। अब तक महाकुंभ या अर्द्धकुंभ के ही लोगो जारी हुए, लेकिन पहली बार सदियों से आयोजित हो रहे प्रयागराज के वार्षिक माघ मेला का लोगो जारी हुआ।
लोगो तीर्थराज प्रयाग, संगम की तपोभूमि और ज्योतिषीय गणना के अनुसार माघ मास के महत्व को दर्शाता है। लोगो में सूर्य-चंद्रमा की 14 कलाएं, अक्षयवट, महात्मा का चित्र और लेटे हुए हनुमान जी की उपस्थिति है। लोगो में "माघे निमज्जनं यत्र पापं परिहरेत् तत" श्लोक माघ मास में स्नान के महत्व को बताता है। अर्थात माघ मास में विश्व के सबसे बड़े व प्राचीन धार्मिक माघ मेले का संगम की रेती पर अनुष्ठान करने की महत्व को समग्र रूप से लोगो में दर्शाया गया है।
लोगो के अन्तर्गत मेले के दर्शन दार्शनिक तत्त्व को दर्शाया गया है। अक्षय पुण्य के संचय साक्षी अक्षयवट, सूर्य देव और चंद्र देव की 27 नक्षत्रों के साथ की ब्रह्मांडीय यात्रा, लेटे हुए हनुमान (बंधवा वाले हनुमानजी) का दर्शन बोध कराता- बड़े हनुमानजी का मंदिर, सनातन के विस्तार का प्रतीक- सनातन पताका और संगम पर साइबेरियन पक्षियों की कलरव को ध्वनित करने वाला- पर्यावरण बोध, सभी का इसमें समावेश है। लोगो पर श्लोक “माघे निमज्जनं यत्र पापं परिहरेत् तत:” माघ के महीने में स्नान करने से सभी पाप मुक्ति का शंखनाद कर रहा है।
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प्रयागराज माघ मेला-2026 के विशेषांको में आप भी संगम क्षेत्र के आयोजित अपने शिविर (कैम्प) की जानकारी, शिविर में होने वाले कार्यक्रम (यदि कोई हो), सारगर्भित लेख, अपने आश्रम मठ की गतिविधियां आदि प्रकाशित करवा सकते हैं। अथवा अपनी शुभकामना आदि के साथ अपने नाम से विशेषांक बटवा सकते हैं (देखें ऊपर बायीं कोने)। तो संपर्क करें +91 8109107075 वाट्सएप ईमेल- dharm.nagari@gmail.com
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लोगो में सूर्य एवं चंद्रमा की 14 कलाओं की उपस्थिति ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य, चंद्रमा एवं नक्षत्रों की स्थितियों को प्रतिबिंबित करता है, जो प्रयागराज में माघ मेले का कारक बनता है। भारतीय ज्योतिषीय गणना के अनुसार, चंद्रमा 27 नक्षत्रों की परिक्रमा लगभग 27.3 दिनों में पूर्ण करता है। माघ मेला इन्हीं नक्षत्रीय गतियों के अत्यंत सूक्ष्म गणित पर आधारित है। जब सूर्य मकर राशि में होता है और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा माघी या अश्लेषा-पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रों के समीप होता है, तब माघ मास बनता है और उसी काल में माघ मेला आयोजित होता है।
माघ मास में (प्रयागराज में) स्नान की तिथियाँ चंद्र कलाओं के अत्यंत सूक्ष्म संतुलन पर चुनी जाती हैं। माघ महीने की ऊर्जा (शक्ति) अनुशासन, भक्ति और गहन आध्यात्मिक कार्यों से जुड़ी होती है, क्योंकि यह माह पवित्र नदियों में स्नान, दान, तपस्या और कल्पवास जैसे कार्यों के लिए विशेष माना जाता है। इस (माघ) माह में किए गए कार्य व्यक्ति को निरोगी बनाते हैं, उसे दिव्य ऊर्जा से भर देते हैं।
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तीर्थराज प्रयाग में माघ मास में पूजन एवं कल्पवास का पूर्ण फल, संगम स्नान के उपरांत लेटे हुए हनुमानजी के दर्शन से प्राप्त होता है। अतः लोगो पर उनके मंदिर एवं पताका की उपस्थिति माघ मेले में किए गए तप की पूर्णता की व्याख्या करता है। वहीं संगम पर साइबेरियन पक्षियों की उपस्थिति यहां के पर्यावरण की विशेषता को दर्शाता है।
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