गणेशोत्सव : घरों में मूर्ति स्थापना के साथ आरंभ

कोरोना तनाव को भूले, गणपति उत्सव में डूबे  
"कलंक चतुर्थी" आज, चंद्रमा को देखना होता है वर्जित       

(धर्म नगरी / DN News M./W.app 6261868110)   
पर्व एवं त्यौहारों के देश भारत ऐसा प्रतिदिन कोई न कोई पर्व, उत्सव एवं त्यौहार होता है, जिससे आम जनमानस आनंद मिलता है। छ: दिवसीय "श्रीकृष्ण जन्मोत्सव" का पर्व धूमधाम से मनाने के पश्चात आज भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से पूरे देश में अनुपम श्रद्धा-विश्वास के साथ दस दिवसीय विघ्न विनाशक भगवान गणेश का जन्मोत्वस (गणेशोत्सव) गणेश चतुर्थी का पर्व प्रारम्भ हो गया। 

यद्यपि बीते वर्षों की भाँति कोरोना-संक्रमण के कारण देशभर में जगह-जगह पंडालों में भगवान गणेश की भव्य एवं सुंदर मूर्तियां नहीं स्थापित की गई, फिर भी घरों में सनातन धर्मावलम्बी एवं इसमें आस्था रखने वाले अन्य धर्म के लोग पूजा-आराधना कर रहे है। 

विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश का जन्मोत्सव जहां प्रसन्नता का विषय है वहीं दूसरी ओर मानव मात्र को कुछ सावधानियां भी बनाए रखनी चाहिए, क्योंकि आज के दिन श्रापित चंद्रमा का दर्शन करने से मनुष्य को कोई ना कोई कलंक अवश्य लग जाता है। 
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कलंक चतुर्थी की कथा-
भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी के चंद्रमा को देखना हमारे पुराणों में वर्जित किया गया है, क्योंकि गणेश पुराण के अनुसार भगवान गणेश को जब गज का शीश लगाया गया तो सभी देवताओं ने तो उनकी वन्दना की परन्तु चंद्रमा उनकी हंसी उड़ाने लगा। इसी बात पर कुपित होकर के भगवान गणेश ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि अपनी सुंदरता के अहंकार में चंद्रमा हम पर हंस रहा है तो आज के दिन जो भी इसको देख लेगा वह कलंकित हो जाएगा। 

तब से लेकर आज तक भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को चंद्र दर्शन वर्जित माना जाता है। इसीलिए आज की चतुर्थी को "कलंक चतुर्थी" भी कहा जाता है। यदि भूलवश किसी ने इसका दर्शन कर लिया हो, तो उसके दोष से बचने के लिए श्रीमददेवी भागवत महापुराण के माहात्म्य एवं श्रीमद्भीगवत के दशम स्कन्ध में वर्णित स्यमन्तमणि कथा प्रसंग का श्रवण या पाठ अवश्य करना चाहिए, नहीं तो मनुष्य को अपने जीवन काल में किसी ने किसी कलंक से कलंकित होना ही पड़ता है। इस कलंक से स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी नहीं बच पाए थे और उन्हें स्यमन्तकमणि की चोरी का कलंक लग गया था। 
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---- गणेशोत्सव की धूम-
आज एक और तो पूरे देश एवं विदेशों में भी "गणेशोत्सव" धूमधाम से मनाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर कुछ आधुनिक लोग (जो स्वयं को ज्यादा पढ़ा लिखा मानते हैं) यह कहते घूम रहे हैं कि "गणेश महोत्सव" आधुनिकता का प्रतीक है एवं इसका वर्णन प्राचीन ग्रंथों में कही नहीं है।

ऐसे सभी आधुनिक विद्वानों को जान लेना चाहिए, कि यह सनातन के प्राचीन ग्रंथों "शारदातिलकम्", "मंत्रमहोदधि" "महामंत्र महार्णव" तथा तंत्र शास्त्रों का अध्ययन करें, जहां उन्हें भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से चतुर्दशी तक भगवान गणेश के विग्रह को स्थापित करके उनकी पूजा उपासना का वर्णन प्राप्त हो जाएगा। भगवान गणेश सर्वव्यापी हैं बिना उनका पूजन किये किसी भी देवता की पूजा का भाग उस देवता को नहीं मिल पाता है। वैसे तो भगवान गणेश को जलतत्व का कारक माना जाता है परंतु इनका दर्शन सृष्टि के पांचों तत्वों में होता है। 

भगवान गणेश क्या है ? यदि जानना हो तो हमें उस प्रसंग पर ध्यानाकर्षित होना पड़ेगा जहां भगवान शिव-पार्वती ने अपने विवाह में भी भगवान गणेश का पूजन किया था। कुछ लोगों को यह प्रसंग सुनकर के भ्रम हो जाता है, परंतु सत्यता यह है कि जिस प्रकार भगवान श्री विष्णु ने अनेक अवतार धारण किए हैं उसी प्रकार भगवान गणेश ने भी अनेकों अवतार इस धराधाम पर लिए हैं। अतः किसी को भी इस विषय में भ्रम नहीं होना चाहिए। प्रेम से गणेश भगवान के जन्मोत्सव का आनंद लेते हुए जीवन को धन्य बनाना चाहिए। 

भगवान गणेश का जन्मोत्सव एवं उनका दर्शन करने से जीवन तो धन्य हो जाता है परंतु सावधान भी रहना चाहिए कि आज भूल से ही चंद्रमा को ना देखा जाए, जिससे कि किसी भी अघोषित कलंक से बचा जा सके। यही "कलंक चतुर्थी" का महत्व है।
-परमानंद पांडेय, अध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय भोजपुरी सेवा न्यास
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