त्रेता युग में श्रीराम ने इस मुहूर्त में की थी माँ दुर्गा पूजा-आराधना

शारदीय नवरात्रि की अष्टमी-महानवमी की "संधि वेला" है अत्यंत प्रभावी 

"संधि-कॉल" 24 अक्टूबर शनिवार प्रातःकाल 6:34 से 7:22 बजे के मध्य है 

(धर्म नगरी / DN News वा.एप-6261868110)
 राजेश पाठक* 
शारदीय नवरात्रि में अष्टमी तिथि और नवमी तिथि के मध्य संधि-पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता है, कि इसी काल में मां दुर्गा की "शक्ति की पूजा" की श्रीराम ने श्रीलंका विजय से पूर्व युद्ध में विजय की कामना से की थी। वर्तमान में संधि-पूजा के दिन कुछ लोग कददू और ककड़ी की बलि भी देते हैं

संधि-काल में "शक्ति की पूजा" की कथा-
त्रेता युग में श्रीराम का रावण से भीषण युद्ध हुआ। युद्ध के आरंभ में राम संपूर्ण पराक्रम से लड़ते है, फिर भी रावण का पलड़ा भारी रहता है। राम को यह देखकर बड़ा ही आश्चर्य होता है, कि स्वयं दुर्गा जो शक्ति की प्रतीक है, वह रावण के पक्ष में खड़ी हुई है। रणभूमि में राम दिव्य बाणों का उपयोग करते हैं तो देवी दुर्गा रावण के पक्ष में विशाल रूप ग्रहण करके उसे अपने कवच से सुरक्षित कर देती हैं।

राम के समस्त अस्त्र बुझ-बुझकर क्षीर्ण होने लगते हैं। मां की शक्ति से अब यह युद्ध 'नर-वानर' का युद्ध नहीं रह गया था। भगवान राम भी यह सोचकर निस्तब्ध हो जाते हैं की मां दुर्गा अन्याय के साथ में क्यों खड़ी है, तब राम जामवंत को समझाते है की अब इस युद्ध में विजय के कोई आशा नहीं है।
रावण मां की शक्तियां तपस्या से प्राप्त करता है। जामवंतजी भगवान राम को भी तपस्या करने का सुझाव देते हैं। जामवंत जी भगवान राम से कहते हैं कि रावण तो अहंकारी है और यदि अहंकारी होकर वह शक्ति का पक्ष पा सकता है, तो आप तो उससे भी कम समय में 'शक्ति' को 'सिद्ध' कर सकते हो, आपको मां का पूजन करना चाहिए। 

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श्रीराम की शक्ति पूजा में शक्ति की यह कल्पना मौलिक है। युद्ध का अंतिम लक्ष्य विजय ही होता है। सत्ता की निरंतरता बनाए रखने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। स्वयं राम शक्तियों से परिपूर्ण हैं। यह सब एक दैवीय विधान है। शक्ति का यह खेल समझ से परे है, जिसमें नियति, न्याय के पक्ष को ही कमजोर बनाकर उसकी परीक्षा ले रही है। जब देवी दुर्गा ने राम की परीक्षा लेने के लिए यज्ञ के पूर्ण होने से पहले ही एक पुष्प को गायब कर दिया था तो भगवान राम पुष्प के स्थान पर अपने नयन का अर्पण करने लगे थे तभी मां दुर्गा प्रकट हुई और भगवान राम को विजय का आशीर्वाद दिया। 

संधि पूजा-2020 तिथि-
अष्टमी-महानवमी 24 अक्टूबर (शनिवार)-
पूजा मुहूर्त- 24 अक्टूबर 
प्रातःकाल 6:34 बजे से प्रातःकाल 7:22 बजे तक 
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अष्टमी और नवमी तिथि- 
शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि शुक्रवार (23 अक्टूबर) 
प्रातःकाल 6:57 मिनट से प्रारम्भ होगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, अष्टमी और नवमी एक ही दिन होने के पश्चात भी देवी मां की अराधना के लिए भक्तों को पूरे नौ दिन मिलेंगे। इस शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि 23 अक्टूबर (शुक्रवार) प्रातःकाल 6:57 मिनट से लग रही है,  जो 24 अक्टूबर (शनिवार) को प्रातःकाल 6:58 बजे तक रहेगी। श्रद्धालु जो पहले और अंतिम दिन नवरात्रि व्रत रखते हैं, उन्हें अष्टमी व्रत 24 अक्टूबर को रखना चाहिए। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, 24 अक्टूबर को अष्टमी व्रत रखना उत्तम है। इस दिन महागौरी की पूजा का विधान है।
 
महानवमी : हवन, पूजा-मुहूर्त और मंत्र-
अष्टमी और नवमी के दिन हवन पूजन और कन्या पूजन का विशेष महत्व है। साथ ही लोग अपने व्रत का पारण भी करते हैं। 
शनिवार (24 अक्टूबर) को सुबह 6:58 से 25 अक्टूबर सुबह 7:42 तक नवमी की तिथि है। इसलिए महानवमी का हवन भी 25 अक्टूबर को होगा। नवमी के दिन सुबह हवन के लिए 1 घंटा 13 मिनट का समय है। इसे सुबह 6:28 से 7:41 तक किया जा सकता है। अष्टमी या दुर्गा अष्टमी के दिन हवन करने वाले लोग शनिवार (24 अक्टूबर) को हवन कर सकते हैं। सुबह 6:58 से शाम 5:42 तक हवन का मुहूर्त है।

हवन सामग्री और विधि-
आम की लकडियां, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पापल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन का लकड़ी, तिल, कपूर, लौंग, चावल, ब्राह्मी, मुलैठी, अश्वगंधा की जड़, बहेड़ा का फल, हर्रे तथा घी, शक्कर, जौ, गुगल, लोभान, इलायची एवं अन्य वनस्पतियों का भूरा। गाय के गोबर से बने उपले घी में डुबाकर डाले जाते हैं। 
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हवन के मंत्र-
ॐ गणेशाय नम: स्वाहा
ॐ गौरियाय नम: स्वाहा
ॐ नवग्रहाय नम: स्वाहा
ॐ दुर्गाय नम: स्वाहा
ॐ महाकालिकाय नम: स्वाहा
ॐ हनुमते नम: स्वाहा
ॐ भैरवाय नम: स्वाहा
ॐ कुल देवताय नम: स्वाहा
ॐ स्थान देवताय नम: स्वाहा
ॐ ब्रह्माय नम: स्वाहा
ॐ विष्णुवे नम: स्वाहा
ॐ शिवाय नम: स्वाहा
ॐ जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमस्तुते स्वाहा।
ॐ ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा
ॐ गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
ॐ शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।
इसके बाद नारियल के गोले में लाल कपड़ा या कलावा लपेट दें। फिर सुपारी, पान, बताशा, पूरी, खीर और अन्य प्रसाद को हवन कुंड के बीच में स्थापित कर दें। साथ ही पूर्ण आहुति मंत्र का उच्चारण करें- 
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।
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