नवरात्रि : माँ कालरात्रि की कृपा से शत्रुओं का नाश, बाधा से मुक्ति, सुख-शांति व मोक्ष की प्राप्ति

 #Shardiya_Navratri  नवरात्रि : सातवां दिन 

माँ कालरात्रि- माता कालरात्रि शत्रुओं का नाश, बाधा दूर कर सुख-शांति प्रदान कर मोक्ष देने वाली मानी जाती हैं. इनका मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:


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माता कालरात्रि स्वरूप, पौरिणीक महात्म्य-
श्री माँ दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। संसार में कालो का नाश करने वाली देवी कालरात्री ही है।
भक्तों द्वारा इनकी पूजा के उपरांत उसके सभी दु:ख, संताप भगवती हर लेती है। दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती हैं। 

दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की भाँति काला है, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भाँति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। इनका वाहन ‘गर्दभ’ (गधा) है। 

दाहिने ऊपर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड्ग है। माँ का यह स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है किन्तु सदैव शुभ फलदायक है। अतः भक्तों को इनसे भयभीत नहीं होना चाहिए । 

दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रारचक्र  में अवस्थित होता है। साधक के लिए सभी सिध्दैयों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत: मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है, उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह अधिकारी होता है, उसकी समस्त विघ्न बाधाओं
और पापों का नाश हो जाता है और उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है।
मधु कैटभ नामक महापराक्रमी असुर से जीवन की रक्षा हेतु भगवान विष्णु को निंद्रा से जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने इसी मंत्र से मां की स्तुति की थी। यह देवी काल रात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा हैं। इन्होंने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड़ रखा है।

देवी काल-रात्रि का वर्ण काजल के समान काले रंग का है जो अमावस की रात्रि से भी अधिक काला है। मां कालरात्रि के तीन बड़े बड़े उभरे हुए नेत्र हैं जिनसे मां अपने भक्तों पर अनुकम्पा की दृष्टि रखती हैं। देवी की चार भुजाएं हैं दायीं ओर की उपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। बायीं
भुजा में क्रमश: तलवार और खड्ग धारण किया है। देवी कालरात्रि के बाल खुले हुए हैं और हवाओं में लहरा रहे हैं। देवी काल रात्रि गर्दभ पर सवार हैं। मां का वर्ण काला होने पर भी कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है।
देवी कालरात्रि का यह विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है अत: देवी को शुभंकरी भी कहा गया है।

श्री दुर्गा सप्तशती के प्रधानिक रहस्य में बताया गया है कि जब देवी ने इस सृष्टि का निर्माण शुरू किया और ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का प्रकटीकरण हुआ उससे पहले देवी ने अपने स्वरूप से तीन महादेवीयों को उत्पन्न किया। सर्वेश्वरी महालक्ष्मी ने ब्रह्माण्ड को अंधकारमय और तामसी गुणों से भरा हुआ देखकर सबसे पहले तमसी रूप में जिस देवी को उत्पन्न
किया वह देवी ही कालरात्रि हैं। देवी कालरात्रि ही अपने गुण और कर्मों द्वारा महामाया, महामारी, महाकाली, क्षुधा, तृषा, निद्रा, तृष्णा, एकवीरा एवं दुरत्यया कहलाती हैं।

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देखें माँ कालरात्रि की स्तुति-
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https://youtu.be/Pve-7Z5RJzw

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माँ कालरात्रि पूजा विधि--

महाशक्ति मां दुर्गा का सातवां स्वरूप है कालरात्रि। मां कालरात्रि काल का नाश करने वाली हैं, इस कारण से इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। नवरात्र की सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। इनकी पूजन विधि इस प्रकार है- 
पूजन विधि सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर माता कालरात्रि की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। 
इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता कालरात्रि सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।  

ध्यान मंत्र-
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥ 
अर्थात, मां दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र गोल हैं। इनकी नाक से अग्रि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गधा है। 
महत्व मां कालरात्रि की आराधना के समय भक्त को अपने मन को भानु चक्र जो ललाट अर्थात सिर के मध्य स्थित करना चाहिए। इस आराधना के फलस्वरूप भानुचक्र की शक्तियां जागृत होती हैं। मां कालरात्रि की भक्ति से हमारे मन का हर प्रकार का भय नष्ट होता है। जीवन की हर समस्या को पलभर में हल करने की शक्ति प्राप्त होती है। शत्रुओं का नाश करने वाली मां कालरात्रि अपने भक्तों को हर परिस्थिति में विजय दिलाती है।

भोग एवं प्रसाद- 
 
माँ कालरात्रि शप्तशती मंत्र-
1- ॐ जयंती मंगला काली  भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।।

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तु ते।।

2- धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी  वां वीं वूं वागधीश्वरी क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि  शां शीं शूं मे शुभं कुरु।।

बीज मंत्र-
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। 
(तीन, सात या ग्यारह माला करें)

3- एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।

वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।

4- देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्तया,
निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां,
भक्त नता: स्म विदाधातु शुभानि सा न:
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माँ कालरात्रि का ध्यान मंत्र-
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥

दिव्यं लौहवज्र खड्गवामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥

महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥

सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं  सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

माँ कालरात्रि स्तोत्र पाठ-
हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥

कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥

क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

माँ कालरात्रि  कवच पाठ-
ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥

रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥

वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥

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भगवती कालरात्रि का ध्यान, कवच-
स्तोत्र का जाप करने से ‘भानुचक्र’ जागृत होता है। इनकी कृपा से अग्नि भय, आकाश भय, भूत पिशाच स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं। कालरात्रि माता भक्तों को अभय प्रदान करती है।
माँ कालरात्रि पार्वती काल अर्थात् हर तरह के संकट का नाश करने वाली है इसीलिए कालरात्रि कहलाती है। देवी की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए।

दुर्भाग्य नाशक उपाय-
1- मृत्यु भय से मुक्ति के लिए मां कालरात्रि पर काले चने का भोग लगाएं। 

2- सप्तम नवरात्रि के दिन नया सूती लाल वस्त्र लेकर उसमे जटा वाला नारियल बांधकर माता का हृदय में स्मरण कर उस नारियल अपनी मनोकामना सात (7)  बार कहकर बहते जल में प्रवाहित कर दें इस उपाय से
कार्यो में सफलता मिलती है इस उपाय को एकांत में चुपचाप करें। 

3- दुर्गा सप्तशती का सातवें और दसवें अध्याय का पाठ कर माँ को गुड़ का भोग अर्पण करने से मुकदमे में विजय मिलती है।

4- पाशुपतास्त्र स्त्रोत प्रयोग को सप्तमी के दिन कम से कम 21 या अधिक बार अवश्य पढ़ें। इसके प्रभाव से शत्रुदमन, घर के विघ्न बाधा दूर होते है, कार्य मे सफलता मिलती है, वास्तु दोष व समस्त उत्पात नष्ट होते
है, आने वाली बीमारियां दूर होती है।

5- प्रयासों के बाद भी सुख और सौभाग्य में वृद्घि नहीं हो रही है। इसके लिए यह उपाय करें।

यह प्रयोग चैत्र नवरात्र की सप्तमी प्रात:काल 4  से 6 दोपहर 11:30 से 12:30 के मध्य और रात्रि 10:00 बजे से 11:00 के मध्य आरम्भ करना लाभकारी होगा। चौकी पर लाल वस्त्र बिछा कर माँ कालरात्रि की तस्वीर और दक्षिणी काली यंत्र व शनि यंत्र स्थापित करें। 
उसके बाद अलग-अलग आठ मुट्ठी उड़द की चार ढेरीयां बना दें। प्रत्येक उड़द की ढेरी पर तेल से भरा दीपक रखें। प्रत्येक दीपक में चार बत्ती रहनी चाहिए। दीपक प्रज्वलित करने के बाद धूप-नैवेद्य पुष्प अक्षत अर्पित करें। 
शुद्ध कम्बल का आसन बिछा कर एक पाठ शनि चालीसा, एक पाठ माँ दुर्गा चालीसा, एक माला- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ कालरात्रि देव्यै नम: और एक माला  ॐ शं शनैश्चराय नम: की जाप करें। संपूर्ण मनोकामनाएं पूरी होगी।

विनियोग- 
ऊँ अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छंदः, पशुपतास्त्ररूप पशुपति देवता, सर्वत्र यशोविजय लाभर्थे जपे विनियोगः
पाशुपतास्त्र स्त्रोतम-
मंत्र पाठ-
ऊँ नमो भगवते महापाशुपतायातुलबलवीर्यपराक्रमाय
त्रिपञ्चनयनाय नानारूपाय
नानाप्रहरणोद्यताय सर्वांगरंक्ताय
भिन्नाञ्जनचयप्रख्याय श्मशान
वेतालप्रियाय सर्वविघ्ननिकृन्तन-रताय
सर्वसिद्धिप्रप्रदाय भक्तानुकम्पिने
असंख्यवक्त्रभुजपादय तस्मिन्
सिद्धाय वेतालवित्रासिने शाकिनीक्षोभ
जनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे
पापभंजनाय सूर्यसोमाग्निनेत्राय
विष्णु-कवचाय खंगवज्रहस्ताय
यमदंडवरुणपाशाय रुद्रशूलाय
ज्वलज्जिह्वाय सर्वरोगविद्रावणाय
ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षय-कारिणे।

ऊँ कृष्णपिंगलाय फट्। हुंकारास्त्राय
फट्। वज्रह-स्ताय फट्। शक्तये फट्। 
दंडाय फट्। यमाय फट्। खड्गाय
फट्। नैर्ऋताय फट्। वरुणाय फट्।
वज्राय फट्। ध्वजाय फट्। अंकुशाय
फट्। गदायै फट्। कुबेराय फट्।
त्रिशुलाय फट्। मुद्गराय फट्। चक्राय
फट्। शिवास्त्राय फट्। पद्माय फट्।
नागास्त्राय फट्। ईशानाय फट्।
खेटकास्त्राय फट्। मुण्डाय फट्।
मुंण्डास्त्राय फट्। कंकालास्त्राय फट्।
पिच्छिकास्त्राय फट्। क्षुरिकास्त्राय
फट्। ब्रह्मास्त्राय फट्। शक्त्यस्त्राय
फट्। गणास्त्राय फट्। सिद्धास्त्राय
फट्। पिलिपिच्छास्त्राय फट्।
गंधर्वास्त्राय फट्। पूर्वास्त्राय फट्।
दक्षिणास्त्राय फट्। वामास्त्राय फट्।
पश्चिमास्त्राय फट्। मंत्रास्त्राय फट्।
शाकिन्यास्त्राय फट्। योगिन्यस्त्राय
फट्। दंडास्त्राय फट्। महादंडास्त्राय
फट्। नमोअस्त्राय फट्।
सद्योजातास्त्राय फट्। ह्रदयास्त्राय
फट्। महास्त्राय फट्। गरुडास्त्राय फट्
राक्षसास्त्राय फट्। दानवास्त्राय फट्।
अघोरास्त्राय फट्। क्षौ नरसिंहास्त्राय
फट्। त्वष्ट्रस्त्राय फट्। पुरुषास्त्राय फट्।
सद्योजातास्त्राय फट्। सर्वास्त्राय फट्।
नः फट्। वः फट्। पः फट्। फः फट्।
मः फट्। श्रीः फट्। पेः फट्। भुः फट्।
भुवः फट्। स्वः फट्। महः फट्। जनः
फट्। तपः फट्। सत्यं फट्। सर्वलोक
फट्। सर्वपाताल फट्। सर्वतत्व फट्।
सर्वप्राण फट्। सर्वनाड़ी फट्।
सर्वकारण फट्। सर्वदेव फट्। ह्रीं फट्।
श्रीं फट्। डूं फट्। स्भुं फट्। स्वां फट्।
लां फट्। वैराग्य फट्। मायास्त्राय फट्।
कामास्त्राय फट्। क्षेत्रपालास्त्राय फट्।
हुंकरास्त्राय फट्। भास्करास्त्राय फट्।
चंद्रास्त्राय फट्। विध्नेश्वरास्त्राय फट्।
गौः गां फट्। स्त्रों स्त्रों फट्। हौं हों फट्।
भ्रामय भ्रामय फट्। संतापय संतापय
फट्। छादय छादय फट्। उन्मूलय
उन्मूलय फट्। त्रासय त्रासय फट्।
संजीवय संजीवय फट्। विद्रावय विद्रावय फट्। 
सर्वदुरितं नाशय नाशय फट्।

माँ कालरात्रि की आरती-
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय॥

माँ दुर्गा की आरती-

जय अंबे गौरी, 
मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…

मांग सिंदूर विराजत,
टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना,
चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…

कनक समान कलेवर,
रक्तांबर राजै।
रक्तपुष्प गल माला,
कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…

केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी।
सुर-नर-मुनिजन सेवत,
तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…

कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर,
राजत सम ज्योती॥ ॐ जय…

शुंभ-निशुंभ बिदारे,
महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना,
निशदिन मदमाती॥ ॐ जय…

चण्ड-मुण्ड संहारे,
शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे,
सुर भय दूर करे॥ ॐ जय…

ब्रह्माणी, रूद्राणी,
तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी,
तुम शिव पटरानी॥ ॐ जय…

चौंसठ योगिनी गावत,
नृत्य करत भैंरू।
बाजत ताल मृदंगा,
अरू बाजत डमरू॥ ॐ जय…

तुम ही जग की माता,
तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता,
सुख संपति करता॥ ॐ जय…

भुजा चार अति शोभित,
वरमुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत,
सेवत नर नारी॥ ॐ जय…

कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत,
कोटि रतन ज्योती॥ ॐ जय…

श्री अंबेजी की आरति,
जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी,
सुख-संपति पावे॥ ॐ जय…
-(परमानंद पांडेय, अध्यक्ष-अंतर्राष्ट्रीय भोजपुरी सेवा न्यास)

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आपसे निवेदन है (Disclaimer)- उक्त लेख जानकारियां, ज्योतिर्विदों, विद्वानों एवं प्रामाणिक पुस्तकों से साभार ली गई हैं फिर भी इनको करने से पूर्व कर्मकांडी ब्राह्मण या विद्वान से संपर्क करें। 

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"धर्म नगरी" का विस्तार हर जिले में हो रहा है... शहरी (वार्ड, कालोनी तक) व ग्रामीण (पंचायत, ब्लॉक स्तर तक) क्षेत्रों में स्थानीय प्रतिनिधि, अंशकालीन रिपोर्टर की तुरंत आवश्यकता है. प्रमुख जिलों, तीर्थ नगरी एवं राज्य की राजधानी में पार्टनर एवं ब्यूरो चीफ नियुक्त करना है. योग्यता राष्ट्रवादी विचारधारा एवं सक्रियता। वेतन अनुभवानुसार एवं कमीशन योग्यतानुसार होगा। 
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