#भाई_दूज : यम के आशीर्वाद से जुड़ा है भाई को भोजन कराना, जाने तिलक का शुभ मुहूर्त, महत्व, विधि और...
इस दिन क्या करें, क्या नहीं...!
नारद पुराण के अनुसार-
ऊर्ज्जशुक्लद्वितीयायां यमो यमुनया पुरा।।
भोजितः स्वगृहे तेन द्वितीयैषा यमाह्वया।।
पुष्टि प्रवर्द्धनं चात्र भगिन्या भोजनं गृहे ।।
वस्त्रालंकार पूर्वं तु तस्मै देयमतः परम् ।।
यस्यां तिथौ यमुनया यमराजदेवः संभोजितो निजकरात्स्वसृसौहृदेन ।।
तस्यां स्वसुः करतलादिह यो भुनक्ति प्राप्नोति रत्नधनधान्यमनुत्तमं सः ।।
अर्थात, कार्तिक शुक्ल द्वितीया को पूर्वकाल में यमुनाजी ने यमराज को अपने घर भोजन कराया था, इसलिए यह ‘यमद्वितीया’ कहलाती है। इसमें बहिन के घर भोजन करना पुष्टिवर्धक बताया गया है। अतः बहिन को उस दिन वस्त्र और आभूषण देने चाहिए। उस तिथि को जो बहिन के हाथ से इस लोक में भोजन करता है, वह सर्वोत्तम रत्न, धन और धान्य पाता है।
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-राजेशपाठक
पाँच पर्वों के महापर्व दीपावली (पृथ्वी का सबसे प्राचीन पर्व, जिसे त्रेता युव से मनाया जाता है) का अंतिम एवं पांचवा पर्व कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भाईदूज या भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। भाईदूज के दिन भाई, बहन के घर का ही खाना खाए। ऐसा करने से भाई की आयु में वृद्धि होती है।भोजन का पहला कौर बहन के हाथ से खाएं। स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन जो बहन के हाथ से भोजन करता है, वह धन एवं उत्तम सम्पदा को प्राप्त होता है। अगर बहन न हो, तो मुँहबोली बहन या मौसी/मामा की पुत्री को बहिन मान ले। अगर वह भी न हो तो किसी गाय अथवा नदी को ही बहन बना ले और उसके पास भोजन करे। कहने का आश्रय है, यम-द्वितीया को कभी भी अपने घर भोजन न करें।
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भाई दूज का महत्व
भाई दूज के दिन भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहने अपने भाई को तिलक लगाकर और नारियल देकर सभी देवी-देवताओं से भाई की सुख-समृद्धि और दिर्घायु की कामना करती है। उसके बाद भाई अपनी बहन की रक्षा का वादा करते हैं।
भाई दूज की व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान सूर्य की पत्नी संध्या देवी थी। भगवान सूर्य और संज्ञा देवी की 2 संतान थी, पुत्र यम और पुत्री यमुना। संज्ञा देवी अपने पति भगवान सूर्य की किरणों का तेज सह न सकीं, इस कारण वे उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर निवास करने लगी। छाया से ताप्ती नदी, शनिश्चर और देवताओं के वैद्य माने जाने वाले अश्विनी कुमारों का भी जन्म बताया जाता है। कुछ समय बाद छाया अपने पुत्र यम और पुत्री यमुना से खराब व्यवहार करने लगी। माता के व्यवहार से दुखी होकर पुत्र यम ने अपनी एक अलग नई नगरी यमपुरी बसाई। भाई की यमपुरी में पापियों को दंड देने का काम करते देखकर यमुनाजी गौ लोक चली गईं।
यमुना जी को अपने भाई यम से बड़ा लगाव था। वे अपने भाई यम से बार बार निवेदन करती रहती थी कि वे अपने इष्ट मित्रों के साथ उनके घर आकर भोजन करें, लेकिन अपने काम में अधिक व्यस्त होने के कारण यमराज जी बहन यमुना की बात को टालते रहते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल पक्ष का दिन था। यमुना जी ने अपने भाई को भोजन के लिए अपने घर आने का निमंत्रण दिया। इस बार यमुना जी ने भाई यम से वचन ले लिया, कि वे उनके घर आकर भोजन करेंगे।
यमराज ने सोचा कि मैं तो मृत्यु का देवता और प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। लेकिन बहन ने जिस सद्भावना और प्रेम से मुझे बुलाया है, उसका पालन करना अब मेरा धर्म है। बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। भाई यम को अपने घर आया देखकर यमुना की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। यमुना ने स्नान कर पूजा करके तरह तरह के व्यंजन परोसकर भाई यम को भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज अति प्रसन्न हुए और उन्होंने बहन यमुना से वर मांगने को कहा।
तब यमुना ने अपने भाई यम से कहा कि भैया, मैं आपसे ये वरदान मांगना चाहती हूं कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी कभी भी आपकी नगरी यमपुरी में न जाएं। यमराज जी के लिए बहन को ये वरदान देना बड़ा कठिन था, क्योंकि इस वरदान को देने से यमराज की यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता और पृथ्वी पर अत्याचार फैलने लगता। भाई को दुविधा में पड़ा देखकर यमुना जी बोली- आप चिंता न करें, आप मुझे यह वरदान दें कि जो भी भाई हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि के दिन बहन के घर आकर भोजन किया करें, और इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर बहन के साथ स्नान करें वह तुम्हारे लोक न जाएं।
तब यमराज जी ने तथास्तु कहकर बहन को वरदान दिया और कहा- इस तिथि को जो भी भाई अपनी बहन के घर भोजन नहीं करेंगे उन्हें मैं बांधकर यमपुरी को ले जाऊंगा और तुम्हारे जल में स्नान करने वाले भाई बहन को स्वर्ग की प्राप्ति होगी। बहन यमुना को ऐसा वरदान देकर और अनेक अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमराज ने अपनी नगरी यमपुरी की ओर प्रस्थान किया। मान्यता है, तभी से भाई-बहन के पावन रिश्ते का त्योहार, भाई दूज मनाने की परंपरा चली आ रही है।
प्राचीन मान्यतानुसार, कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाई दूज) के दिन यमुना ने अपने भाई यम को घर पर आमंत्रित किया था और स्वागत सत्कार के साथ टीका लगाया था, तभी से यह त्योहार मनाया जाता है। इस पर्व को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भाई को टीका लगाने का सबसे अधिक महत्व होता है।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला पर्व- भैया दूज या यम द्वितीया का पर्व पर्व भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है। इस पर्व का संबंध या सनातन पौराणिक मान्यता भाई के दीर्घायु व सुखी जीवन को लेकर यमराज एवं उनकी बहन यमुनाजी से भी जुड़ा है। इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाती हैं और बदले में भाई उन्हें उपहार देते हैं। इस पर्व को देशभर में भाई फोटा, भाऊ बीज, भाई बिज, भाऊ बीज, भ्रातृ द्वितीय, भतृ दित्य, भाई तिहार और भाई टिक्का के नाम से भी जाना जाता है।
तिलक का शुभ मुहूर्त एवं विधि
सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार, भाई दूज की तिथि का आरंभ शनिवार 2 नवंबर शाम 8:21 बजे होकर 3 नवंबर (रविवार) रात 10:05 बजे होगी। इसलिए उदया तिथि के अनुसार, भाई दूज का पर्व रविवार 3 नवंबर को मनाया जाएगा।
वहीं, ई दूज के दिन तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त का शुभारंभ दोपहर 1:19 बजे से 3:22 बजे तक रहेगी। इस प्रकार भाई को तिलक लगाने के लिए कुल 2 घंटे 12 मिनट तक का समय मिलेगा।
भाई को तिलक करने भाई दूज के दिन सर्वप्रथम स्नान कर स्वच्छ या नया वस्त्र पहनें। उसके बाद बहन भाई को तिलक करने के लिए थाली तैयार कर लें। फिर बहनें उत्तर- पूर्व दिशा की ओर मुंह करके भाईयों को तिलक लगाएं। उसके बाद भाई को मिठाई खिलाने के बाद नारियल और चावल दें। इसके बाद भाई की आरती उतारें और उनके भाग्योदय और दीर्घायु की कामना करें। भाइयों को भी अपनी बहनों को उपहार देना चाहिए। पौराणिक मान्यता है कि इससे भाई-बहन का स्नेह हमेशा बना रहता है।
पूजा थाली
भाई को तिलक करने के लिए भैया दूज के दिन पूजा की थाली में रोली, अक्षत यानी साबूत चावल, फूल, सुपारी, रान का पत्ता, चांदी का सिक्का, सूखा नारियल, कलावा, फल, मिठाई, और दीपक रखना चाहिए।
तिलक करने का नियम
· भाई दूज के दिन भाई को तिलक शुभ मुहूर्त में ही करें। भूलकर भी राहु काल के दौरान भाई तो तिलक नहीं करना चाहिए।
· भाई दूज के दिन भाई को तिलक करते समय दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। तिलक से समय भाई का मुख उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। वहीं, बहन का मुख उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
· भाई को तिलक करते समय भाई को लकड़ी को चौकी पर ही बिठाएं, खड़े होकय या किसी कुर्सी पर बैठकर तिलक न करें।
· भाई को तिलक करने के बाद कलाई पर मौली धागा जरूर बांधें और आरती करें।
· तिलक करने के बाद भाई अपनी बहन को उपहार अवश्य दें।
· भाई-बहन लड़ाई-झगड़ा करने से बचें और सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
भाई दूज को लेकर प्राचीन मान्यता है, कि इस दिन पूजा के बाद आरती अवश्य पढ़नी चाहिए। ऐसा करने से यम की बहन माँ यमुना प्रसन्न होती हैं...
यमुना जी की आरती
ॐ जय यमुना माता, हरि ॐ जय यमुना माता,
जो नहावे फल पावे सुख सुख की दाता
ॐ पावन श्रीयमुना जल शीतल अगम बहै धारा,
जो जन शरण से कर दिया निस्तारा
ॐ जो जन प्रातः ही उठकर नित्य स्नान करे,
यम के त्रास न पावे जो नित्य ध्यान करे
ॐ कलिकाल में महिमा तुम्हारी अटल रही,
तुम्हारा बड़ा महातम चारों वेद कही
ॐ आन तुम्हारे माता प्रभु अवतार लियो,
नित्य निर्मल जल पीकर कंस को मार दियो
ॐ नमो मात भय हरणी शुभ मंगल करणी,
मन ‘बेचैन’ भय है तुम बिन वैतरणी
ॐ ॐ जय यमुना माता, हरि ॐ जय यमुना माता।
सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार, भाई दूज की तिथि का आरंभ शनिवार 2 नवंबर शाम 8:21 बजे होकर 3 नवंबर (रविवार) रात 10:05 बजे होगी। इसलिए उदया तिथि के अनुसार, भाई दूज का पर्व रविवार 3 नवंबर को मनाया जाएगा।
वहीं, ई दूज के दिन तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त का शुभारंभ दोपहर 1:19 बजे से 3:22 बजे तक रहेगी। इस प्रकार भाई को तिलक लगाने के लिए कुल 2 घंटे 12 मिनट तक का समय मिलेगा।
भाई को तिलक करने भाई दूज के दिन सर्वप्रथम स्नान कर स्वच्छ या नया वस्त्र पहनें। उसके बाद बहन भाई को तिलक करने के लिए थाली तैयार कर लें। फिर बहनें उत्तर- पूर्व दिशा की ओर मुंह करके भाईयों को तिलक लगाएं। उसके बाद भाई को मिठाई खिलाने के बाद नारियल और चावल दें। इसके बाद भाई की आरती उतारें और उनके भाग्योदय और दीर्घायु की कामना करें। भाइयों को भी अपनी बहनों को उपहार देना चाहिए। पौराणिक मान्यता है कि इससे भाई-बहन का स्नेह हमेशा बना रहता है।
पूजा थाली
भाई को तिलक करने के लिए भैया दूज के दिन पूजा की थाली में रोली, अक्षत यानी साबूत चावल, फूल, सुपारी, रान का पत्ता, चांदी का सिक्का, सूखा नारियल, कलावा, फल, मिठाई, और दीपक रखना चाहिए।
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संरक्षक चाहिए-
➯ प्रयागराज महाकुंभ-2025 में "सूचना केंद्र हेल्प-लाइन सेवा" शिविर के संचालन
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➯ महाकुंभ मेला क्षत्र में शिविर लगाने वाले एवं विभिन्न आयोजन करने वाले धर्मनिष्ठ साधु-संतों धर्माचार्यं आदि को मीडिया-पीआर से जुडी सेवा देने हेतु
उक्त मुख्य सेवा कार्यों के अलावा अन्य कार्य हैं, जिसमें हमें शीघ्र ऐसे संरक्षकों को जरूरत है, जो हमारे कार्यों को पहले विस्तार से जानकर उसकी उपयोगिता को समझने के बाद संरक्षक बनकर आगे आएं। कृपया वास्तव में इच्छुक व्यक्ति संपर्क करें- 9752404020, 6261868110 -मो. /वा.एप मेला हेल्पलाइन-8109107075 ट्वीटर / Koo- @DharmNagari
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· भाई दूज के दिन भाई को तिलक शुभ मुहूर्त में ही करें। भूलकर भी राहु काल के दौरान भाई तो तिलक नहीं करना चाहिए।
· भाई दूज के दिन भाई को तिलक करते समय दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। तिलक से समय भाई का मुख उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। वहीं, बहन का मुख उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
· भाई को तिलक करते समय भाई को लकड़ी को चौकी पर ही बिठाएं, खड़े होकय या किसी कुर्सी पर बैठकर तिलक न करें।
· भाई को तिलक करने के बाद कलाई पर मौली धागा जरूर बांधें और आरती करें।
· तिलक करने के बाद भाई अपनी बहन को उपहार अवश्य दें।
· भाई-बहन लड़ाई-झगड़ा करने से बचें और सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
भाई दूज को लेकर प्राचीन मान्यता है, कि इस दिन पूजा के बाद आरती अवश्य पढ़नी चाहिए। ऐसा करने से यम की बहन माँ यमुना प्रसन्न होती हैं...
यमुना जी की आरती
ॐ जय यमुना माता, हरि ॐ जय यमुना माता,
जो नहावे फल पावे सुख सुख की दाता
ॐ पावन श्रीयमुना जल शीतल अगम बहै धारा,
जो जन शरण से कर दिया निस्तारा
ॐ जो जन प्रातः ही उठकर नित्य स्नान करे,
यम के त्रास न पावे जो नित्य ध्यान करे
ॐ कलिकाल में महिमा तुम्हारी अटल रही,
तुम्हारा बड़ा महातम चारों वेद कही
ॐ आन तुम्हारे माता प्रभु अवतार लियो,
नित्य निर्मल जल पीकर कंस को मार दियो
ॐ नमो मात भय हरणी शुभ मंगल करणी,
मन ‘बेचैन’ भय है तुम बिन वैतरणी
ॐ ॐ जय यमुना माता, हरि ॐ जय यमुना माता।
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भाई दूज के दिन भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहने अपने भाई को तिलक लगाकर और नारियल देकर सभी देवी-देवताओं से भाई की सुख-समृद्धि और दिर्घायु की कामना करती है। उसके बाद भाई अपनी बहन की रक्षा का वादा करते हैं।
भाई दूज की व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान सूर्य की पत्नी संध्या देवी थी। भगवान सूर्य और संज्ञा देवी की 2 संतान थी, पुत्र यम और पुत्री यमुना। संज्ञा देवी अपने पति भगवान सूर्य की किरणों का तेज सह न सकीं, इस कारण वे उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर निवास करने लगी। छाया से ताप्ती नदी, शनिश्चर और देवताओं के वैद्य माने जाने वाले अश्विनी कुमारों का भी जन्म बताया जाता है। कुछ समय बाद छाया अपने पुत्र यम और पुत्री यमुना से खराब व्यवहार करने लगी। माता के व्यवहार से दुखी होकर पुत्र यम ने अपनी एक अलग नई नगरी यमपुरी बसाई। भाई की यमपुरी में पापियों को दंड देने का काम करते देखकर यमुनाजी गौ लोक चली गईं।
यमुना जी को अपने भाई यम से बड़ा लगाव था। वे अपने भाई यम से बार बार निवेदन करती रहती थी कि वे अपने इष्ट मित्रों के साथ उनके घर आकर भोजन करें, लेकिन अपने काम में अधिक व्यस्त होने के कारण यमराज जी बहन यमुना की बात को टालते रहते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल पक्ष का दिन था। यमुना जी ने अपने भाई को भोजन के लिए अपने घर आने का निमंत्रण दिया। इस बार यमुना जी ने भाई यम से वचन ले लिया, कि वे उनके घर आकर भोजन करेंगे।
यमराज ने सोचा कि मैं तो मृत्यु का देवता और प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। लेकिन बहन ने जिस सद्भावना और प्रेम से मुझे बुलाया है, उसका पालन करना अब मेरा धर्म है। बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। भाई यम को अपने घर आया देखकर यमुना की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। यमुना ने स्नान कर पूजा करके तरह तरह के व्यंजन परोसकर भाई यम को भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज अति प्रसन्न हुए और उन्होंने बहन यमुना से वर मांगने को कहा।
तब यमुना ने अपने भाई यम से कहा कि भैया, मैं आपसे ये वरदान मांगना चाहती हूं कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी कभी भी आपकी नगरी यमपुरी में न जाएं। यमराज जी के लिए बहन को ये वरदान देना बड़ा कठिन था, क्योंकि इस वरदान को देने से यमराज की यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता और पृथ्वी पर अत्याचार फैलने लगता। भाई को दुविधा में पड़ा देखकर यमुना जी बोली- आप चिंता न करें, आप मुझे यह वरदान दें कि जो भी भाई हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि के दिन बहन के घर आकर भोजन किया करें, और इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर बहन के साथ स्नान करें वह तुम्हारे लोक न जाएं।
तब यमराज जी ने तथास्तु कहकर बहन को वरदान दिया और कहा- इस तिथि को जो भी भाई अपनी बहन के घर भोजन नहीं करेंगे उन्हें मैं बांधकर यमपुरी को ले जाऊंगा और तुम्हारे जल में स्नान करने वाले भाई बहन को स्वर्ग की प्राप्ति होगी। बहन यमुना को ऐसा वरदान देकर और अनेक अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमराज ने अपनी नगरी यमपुरी की ओर प्रस्थान किया। मान्यता है, तभी से भाई-बहन के पावन रिश्ते का त्योहार, भाई दूज मनाने की परंपरा चली आ रही है।
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