बहुत अनूठी, सदियों पुरानी परंपरा है बरसाना की लड्डू होली

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श्रीराधा-कृष्ण के अनुराग प्रेम से भरी रंगीली होली का आनंद लेने को हर कोई लालायित रहताहै। गिरधर की होली लीला का रसास्वादन भला कौन न करना चाहेगा। बरसाना व नंदगांव की रंगीली गलियों में रंगो का पर्व मनाने की तैयारियां अपने चरम सीमा पर हैं। हुरियारे और हुरियारिनें उत्साह से लबरेज हैं। सबको इंतजार है बरसाना से नंदगांव जाने वाले होली के आधिकारिक निमंत्रण और वहां से आने वाली सहमति का। लठामार होली से एक दिन पहले यानी 22 मार्च को बरसाना में लड्डू होली का आयोजन होता है। जिसमें श्रद्धालुओं पर कई किवंटल लड्डू लुटाए जाते है।
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अंतर है बरसाना और नंदगांव की होली में-
ब्रज की विश्व प्रसिद्ध लठ्ठामार होली 23 और 24 मार्च को है। बरसाना में प्रेम से पगी लाठियों की बरसात 23 मार्च को होगी जबकि नंदगांव में हुरियारने 24 मार्च को लठ्ठ बरसाएंगी। एक रंग, उल्लास होने के बावजूद भी दोनों ही दिनों की होली में विशेष अंतर है।
कहा जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण फागुन सुदी नवमी को होली खेलने बरसाना गए और बिना फगुवा (नेग) दिए ही वापस लौट आए। बरसाना की गोपियों ने कन्हैया से होली का फगुवा लेने के लिए नंदगांव जाने की सोची। इसके लिए राधाजी ने बरसाना की सभी सखियों को एकत्रित किया और बताया कि कन्हैंया बिना फगुवा दिए ही लौट गए हैं। हमें नंदगांव चलकर उनसे फगुवा लेना है। अगले दिन ही (दशमीं) को बरसाना की ब्रजगोपियां
संबंधों को जीवंतता-
श्रीकृष्ण के द्वापर युग से आधुनिक युग के बीच सदियां बीत गईं। आधुनिकता की दौड़, समय के प्रभाव के कारण अनेक मान्यताएं भी बदल गईं, परन्तु ब्रज की मान्यता आज भी वही है। आज भी हर ग्वाल कृष्ण और हर ब्रजबाला राधा के रूप में देखी जाती है। द्वापर से नंदबाबा और बृषभान का जुड़ा संबंध आज भी दोनों गांवों को प्रगांणता प्रदान करता है। अपनत्व का यह भाव आज भी बरसाना और नंदगांव की होली में झलकता है। आठ किलोमीटर की ये दूरी अपनत्व से तय होती है। होली पर यहां उड़नेे वाला गुलाल हर बरसाने और नंदगांव वाले को भिगोता है। गुरुवार को दशमी के दिन बरसानावासी यशोदा कुंड पर एकत्रित होंगे और यहां से नंदभवन मंदिर के लिए निकलेंगे।
ब्रज की विश्व प्रसिद्ध लठ्ठामार होली 23 और 24 मार्च को है। बरसाना में प्रेम से पगी लाठियों की बरसात 23 मार्च को होगी जबकि नंदगांव में हुरियारने 24 मार्च को लठ्ठ बरसाएंगी। एक रंग, उल्लास होने के बावजूद भी दोनों ही दिनों की होली में विशेष अंतर है।
कहा जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण फागुन सुदी नवमी को होली खेलने बरसाना गए और बिना फगुवा (नेग) दिए ही वापस लौट आए। बरसाना की गोपियों ने कन्हैया से होली का फगुवा लेने के लिए नंदगांव जाने की सोची। इसके लिए राधाजी ने बरसाना की सभी सखियों को एकत्रित किया और बताया कि कन्हैंया बिना फगुवा दिए ही लौट गए हैं। हमें नंदगांव चलकर उनसे फगुवा लेना है। अगले दिन ही (दशमीं) को बरसाना की ब्रजगोपियां
संबंधों को जीवंतता-
श्रीकृष्ण के द्वापर युग से आधुनिक युग के बीच सदियां बीत गईं। आधुनिकता की दौड़, समय के प्रभाव के कारण अनेक मान्यताएं भी बदल गईं, परन्तु ब्रज की मान्यता आज भी वही है। आज भी हर ग्वाल कृष्ण और हर ब्रजबाला राधा के रूप में देखी जाती है। द्वापर से नंदबाबा और बृषभान का जुड़ा संबंध आज भी दोनों गांवों को प्रगांणता प्रदान करता है। अपनत्व का यह भाव आज भी बरसाना और नंदगांव की होली में झलकता है। आठ किलोमीटर की ये दूरी अपनत्व से तय होती है। होली पर यहां उड़नेे वाला गुलाल हर बरसाने और नंदगांव वाले को भिगोता है। गुरुवार को दशमी के दिन बरसानावासी यशोदा कुंड पर एकत्रित होंगे और यहां से नंदभवन मंदिर के लिए निकलेंगे।
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