हनुमान जयंती : पूजन विधि, विशेष योग, विभिन्न समस्याओं से मुक्ति हेतु करें उपाय, और जाने...
पूजा, व्रत से पूर्व क्या करें ? शनि दोष से मुक्ति हेतु करें उपाय
श्रीराम की पूजा, शनि पीड़ा से मुक्ति के विशेष उपाय
श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक का प्रभाव
पंचमुखी हनुमानजी का रहस्य, घर दुकान ऑफिस में क्यों लगाएं चित्र
धर्म नगरी / DN News (W.app- 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, विज्ञापन व सदस्यता हेतु)
-राजेश पाठक (अवै.संपादक)
कलयुग के प्रत्यक्ष देव, अष्ट-सिद्धि व नौ-निधि के दाता, भगवान श्रीराम के परम-भक्त हनुमानजी का जन्मोत्सव चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाएगा। श्रीराम भक्त हनुमान का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र एवं मेष लग्न के योग में हुआ था। मान्यता है इस दिन बजरंगबली की पूजा- अर्चना करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
हनुमान जी सदैव से संकट मोचन रहे हैं, मनुष्य रूप में अवतार लेने वाले देवों को भी कष्टों से मुक्ति प्रदान की है। शनिवार और मंगलवार के दिन हनुमान जी की विधि-विधान से पूजा करने से जीवन से संकट एवं कष्ट दूर होते हैं, भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस वर्ष हनुमान जयंती शनिवार (16 अप्रैल) को पड़ने से विशेष संयोग भी बन रहा है।
हनुमान जी का प्राकट्य (जन्म)-
पूजन विधि (हनुमान जयंती )-
भगवान श्रीराम के परम भक्त व भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार केसरी नंदन हनुमान के प्राकट्योत्सव के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। घर की सफाई करते हुए गंगाजल या गौमूत्र के छिड़काव से घर को पवित्र करें, फिर नहाएं। स्नान करके हनुमान मंदिर में जाकर उनका पूजन करें। यह पूजा आप घर पर भी कर सकते हैं।
पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके लाल आसान पर बैठें। लाल धोती, ऊपर कोई वस्त्र चादर, दुपट्टा आदि डालें। अपने सामने छोटी चौकी पर लाल वस्त्र बिछा दें। तांबे की प्लेट पर लाल पुष्पों का आसन हनुमानजी की मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति पर सिंदूर से टीका कर लाल पुष्प अर्पित करें, मूर्ति पर सिंदूर लगाने के पश्चात धूप-दीप, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य आदि से साविधि षोडशोपचार-पूजन ॐ हनुमते नमः। मंत्र से करें।नैवेद्य में गुड़, भीगा चना आदि रखें। सरसों या तिल के तेल का दीपक एवं धूप जला दें।
इसके पश्चात हनुमान जी को फूल, मिठाई अर्पित करने के अलावा जनेऊ भी चढ़ाएं। पूजा करते वक्त ज्यादा से ज्यादा लाल रंग की चीजों का प्रयोग करें। पूजा में जल और पंचामृत से देवी देवताओं को स्नान कराएं। फिर अबीर, गुलाल, चंदन, अक्षत, मौली, फूल, धूप-दीप, वस्त्र, फल, पान और अन्य चीजें चढ़ाएं। इसके बाद सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें और आरती के बाद प्रसाद बांटें।
श्रीराम की पूजा (हनुमान जनमोत्सव के दिन)-
पवन पुत्र हनुमान जी की पूजा व उपासना में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है मूल मंत्र हैं 'राम'। ऐसे में हनुमान जी का जप-तप, पूजा-पाठ, ध्यान-धारणा, समाधि, मनन-चिंतन, पठन-पाठन कुछ भी अगर सीधे हनुमान जी के नाम से किया जाए, तो वे कभी स्वीकार नहीं करते। स्वयं हनुमान जी कहते हैं- मैं नहीं हूं, मेरे रोम-रोम में श्रीराम हैं। अत: हनुमान जी की उपासना करने वालों को चाहिए कि लक्ष्य भले ही हनुमान जी हों, सर्वप्रथम राम का मंत्र हो, चाहे राम का नाम हो। साधक-सिद्धों को इसलिए भी राम जी का भजन, पूजा-पाठ जरूरी है, इसलिए पहले राम का नाम लें फिर हनुमान जी की पूजा करें।
श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक-
बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।।
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो।
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो।।
चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो।
बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सूत रावन मारो।।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।।
रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो।
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।।
काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो।।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
दोहा
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।
- अगर आपका कोई कार्य लंबे समय से अटका हुआ है तो हनुमान जयंती के दिन सुबह स्नान करके हनुमान मंदिर में सुंदरकांड का पाठ करें, और अपने मन में कार्य को पूर्ण होने की कामना हनुमान जी से करें, ऐसा करने से आपका कार्य शीघ्र ही संपन्न होगा। शनि दोष से मुक्ति के उपाय (हनुमान जयंती के दिन)- हनुमान जी की पूजा करने से शनि का दोष दूर होता है। जीवन में साढ़ेसाती और ढैय्या के कारण होने वाली समस्याएं दूर होती हैं। शात्रों के अनुसार, एक बार हनुमान जी ने शनि महाराज को कष्टों से मुक्त कराकर उनकी रक्षा की थी। इसलिए शनि देवता ने उन्हें यह वचन दिया था, कि हनुमान जी की उपासना करने वालों को वह कभी कष्ट नहीं देंगे, उनके सारे कष्टों को हर लेंगे। इसलिए शनि दोष से पीड़ित व्यक्ति हनुमान जयंती पर हनुमान जी का पूजन कर दांपत्य-जीवन में कलह, व्यापार में हानि, नाैकरी आदि से जुड़ी समस्याओं जैसी अन्य प्रकार की समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं....
नारियल फोड़ें-
हनुमान जयंती के दिन नारियल लेकर हनुमान मंदिर में जाएं और उसे अपने ऊपर से सात बार वारते हुए हनुमान जी के सामने फोड़ दें। ऐसा करने से आपकी सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी
पीपल के पत्ते से करें उपाय-
हनुमान जयंती के दिन हनुमान जी को गुलाब की माला अर्पित करें। साथ ही 11 पीपल के पत्तों पर श्रीराम का नाम लिखकर इनकी माला बनाएं और हनुमान जी को अर्पित कर दें। इससे हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और शनि देव कभी परेशान नहीं करते।
हनुमान जी की जन्म कथा-
भगवान शिव के 11वें रूद्र अवतार हनुमान जी के जन्म के बारे में पुराणों में उल्लेख है। अमरत्व की प्राप्ति के लिए जब देवताओं व असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया को उससे निकले अमृत को असुरों ने छीन लिया और आपस में ही लड़ने लगे। तब भगवान विष्णु मोहिनी के भेष अवतरित हुए। मोहनी रूप देख देवता व असुर तो क्या स्वयं शिवजी कामातुर हो गए। इस समय भगवान शिव ने जो वीर्य त्याग किया उसे पवनदेव ने वानरराज केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ में प्रविष्ट करा दिया। जिसके फलस्वरूप माता अंजना ने केसरी नंदन मारुती संकट मोचन रामभक्त श्री हनुमान को जन्म दिया।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार हनुमान जी का (प्राकट्य) जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 114 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6:03 बजे हुआ था। महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण (मतान्तर से) के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि (छोटी दीपावली) मंगलवार के दिन हनुमान का जन्म हुआ था।
हनुमान जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है। पहली हिन्दू पंचांग (Calendar) के अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को अर्थात ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च या अप्रैल के मध्य और दूसरी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (नरक चतुर्दशी) अर्थात सितंबर-अक्टूबर के मध्य। इसके अलावा तमिलनाडु और केरल में हनुमान जयंती मार्गशीर्ष माह की अमावस्या को तथा उड़ीसा में वैशाख महीने के पहले दिन मनाई जाती है। आखिर सही क्या है?
चैत्र पूर्णिमा को मेष लग्न और चित्रा नक्षत्र में प्रातः 6:03 बजे हनुमानजी का जन्म एक गुफा में हुआ था। अर्थात चैत्र माह में उनका जन्म हुआ था। फिर चतुर्दशी क्यों मनाते हैं ? महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार हनुमानजी का जन्म कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था।
हनुमान जी के प्राकट्य में मतांतर-
हनुमान जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है। पहली हिन्दू पंचांग (Calendar) के अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को अर्थात ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च या अप्रैल के मध्य और दूसरी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (नरक चतुर्दशी) अर्थात सितंबर-अक्टूबर के मध्य। इसके अलावा तमिलनाडु और केरल में हनुमान जयंती मार्गशीर्ष माह की अमावस्या को तथा उड़ीसा में वैशाख महीने के पहले दिन मनाई जाती है। आखिर सही क्या है?
चैत्र पूर्णिमा को मेष लग्न और चित्रा नक्षत्र में प्रातः 6:03 बजे हनुमानजी का जन्म एक गुफा में हुआ था। अर्थात चैत्र माह में उनका जन्म हुआ था। फिर चतुर्दशी क्यों मनाते हैं ? महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार हनुमानजी का जन्म कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था।
हनुमान जी के प्राकट्य में मतांतर-
श्रीराम भक्त के जन्मोत्सव की एक तिथि को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में, जबकि दूसरी तिथि को जन्मदिवस के रूप में मनाई जाता है। पहली तिथि के अनुसार इस दिन हनुमान जी सूर्य को फल समझकर खाने के लिए दौड़े थे, उसी दिन राहु भी सूर्य को अपना ग्रास बनाने के लिए आया हुआ था, लेकिन हनुमानजी को देखकर सूर्यदेव ने उन्हें दूसरा राहु समझ लिया। इस दिन चैत्र माह की पूर्णिमा थी। जबकि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को उनका जन्म हुआ था। एक अन्य मान्यता के अनुसार, माता सीता ने हनुमानजी की भक्ति और समर्पण को देखकर उनको अमरता का वरदान दिया था। यह दिन नरक चतुर्दशी का दिन था। यद्यपि महर्षि वाल्मीकि ने जो लिखा है, उसे सही माना जा सकता है।
हनुमान जी के भक्त इस दिन व्रत रहकर विधि-विधान से पूजा आराधना करते हैं। श्रद्धालु, भक्त उपवास रखेंगे। पूरे देश सहित विदेशों में मंदिरों में धार्मिक आयोजन होंगे। पवन पुत्र, अंजनी नंदन का आशीर्वाद प्राप्त करने हनुमान प्रकटोत्सव (जयन्ती) को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है।
हनुमान जयंती व्रत की पूर्व रात्रि को जमीन पर सोना चाहिए, लेकिन जमीन पर सोने से पहले भगवान राम और माता सीता के साथ-साथ हनुमान जी का स्मरण करें और फिर प्रात:काल जल्दी उठकर दोबारा राम-सीता एवं हनुमान जी को याद करके हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प करें। इसके बाद पूर्व की ओर भगवान हनुमान जी की प्रतिमा को स्थापित करें और विनम्र भाव से बजरंगबली से प्रार्थना करें। इसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ हनुमान जी का मंत्र उच्चारण करते हुए हनुमान जी को याद करें। ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
विशेष योग (हनुमान जयंती)-
हनुमान जयंती 16 अप्रैल दोपहर 2.25 बजे से प्रारंभ होगी और 17 अप्रैल दोपहर 12.24 बजे समाप्त होगी। इस दिन रवि और हर्षना योग के साथ हस्त और चित्रा नक्षत्र का संयोग बन रहा है। सुबह 5.55 से 8.40 बजे तक रवि-योग बन रहा है। इस योग में हनुमानजी की पूजा करने से कई गुना फल मिलता है, कोई नया कार्य आरंभ करने पर उस कार्य में सफलता मिलेगी।
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भगवान श्रीराम के परम भक्त व भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार केसरी नंदन हनुमान के प्राकट्योत्सव के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। घर की सफाई करते हुए गंगाजल या गौमूत्र के छिड़काव से घर को पवित्र करें, फिर नहाएं। स्नान करके हनुमान मंदिर में जाकर उनका पूजन करें। यह पूजा आप घर पर भी कर सकते हैं।
अब यथा शक्ति अनुसार मंत्रों का जाप करें। इस दिन जीवन मे अभावों, कष्टों के निवारणार्थ हनुमानजी के निम्न द्वादश नामों का स्मरण 51 बार करें- हनुमान, अंजनीसुत, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट, फाल्गुन सखा, पिंगलाक्ष, अमित विक्रम, उदधिक्रमण, सीताशोक विनाशन, लक्ष्मण प्राण दाता और दशग्रीव दर्पहा।
इसके पश्चात हनुमान जी को फूल, मिठाई अर्पित करने के अलावा जनेऊ भी चढ़ाएं। पूजा करते वक्त ज्यादा से ज्यादा लाल रंग की चीजों का प्रयोग करें। पूजा में जल और पंचामृत से देवी देवताओं को स्नान कराएं। फिर अबीर, गुलाल, चंदन, अक्षत, मौली, फूल, धूप-दीप, वस्त्र, फल, पान और अन्य चीजें चढ़ाएं। इसके बाद सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें और आरती के बाद प्रसाद बांटें।
पवन पुत्र हनुमान जी की पूजा व उपासना में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है मूल मंत्र हैं 'राम'। ऐसे में हनुमान जी का जप-तप, पूजा-पाठ, ध्यान-धारणा, समाधि, मनन-चिंतन, पठन-पाठन कुछ भी अगर सीधे हनुमान जी के नाम से किया जाए, तो वे कभी स्वीकार नहीं करते। स्वयं हनुमान जी कहते हैं- मैं नहीं हूं, मेरे रोम-रोम में श्रीराम हैं। अत: हनुमान जी की उपासना करने वालों को चाहिए कि लक्ष्य भले ही हनुमान जी हों, सर्वप्रथम राम का मंत्र हो, चाहे राम का नाम हो। साधक-सिद्धों को इसलिए भी राम जी का भजन, पूजा-पाठ जरूरी है, इसलिए पहले राम का नाम लें फिर हनुमान जी की पूजा करें।
हनुमान जी की आरती-
आरती कीजै हनुमान लला की,
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
जाके बल से गिरिवर कांपे,
रोग दोष जाके निकट न झांके।
अंजनिपुत्र महा बलदायी,
संतन के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरा रघुनाथ पठाये,
लंका जारि सिया सुधि लाये।
लंका-सो कोट समुद्र-सी खाई,
जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे,
सियारामजी के काज संवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित परे सकारे,
आनि संजीवन प्रान उबारे॥
पैठि पताल तोरि जम-कारे,
अहिरावन की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे,
दहिने भुजा सन्तजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारे,
जय जय जय हनुमान उचारे॥
कंचन थार कपूर लौ छाई,
आरति करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरति गावै,
बसि बैकुण्ठ परम पद पावै॥
आरती कीजै हनुमान लला की,
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
जाके बल से गिरिवर कांपे,
रोग दोष जाके निकट न झांके।
अंजनिपुत्र महा बलदायी,
संतन के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरा रघुनाथ पठाये,
लंका जारि सिया सुधि लाये।
लंका-सो कोट समुद्र-सी खाई,
जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे,
सियारामजी के काज संवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित परे सकारे,
आनि संजीवन प्रान उबारे॥
पैठि पताल तोरि जम-कारे,
अहिरावन की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे,
दहिने भुजा सन्तजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारे,
जय जय जय हनुमान उचारे॥
कंचन थार कपूर लौ छाई,
आरति करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरति गावै,
बसि बैकुण्ठ परम पद पावै॥
हनुमान जी के प्रभावी मंत्र-
ॐ रूवीर्य समुद्भवाय नम:।
ॐ शान्ताय नम:।
ॐ तेजसे नम:।
ॐ प्रसन्नात्मने नम:।
ॐ शूराय नम:।
करें ये उपाय (हनुमान जयंती के दिन शनिवार, 16 अप्रैल, 2022)-
हनुमान जयंती पर कुछ उपाय भी हैं, जिन्हें श्रद्धा-विश्वास से करने का प्रभाव अवश्य होता है। उपाय- – हनुमान जयंती के दिन बजरंगबली की मूर्ति पर गुलाब के फूल की माला चढ़ाएं, भोग में बूंदी या बेसन के लड्डू अर्पित करें। हनुमान जी की कृपा पाने श्री हनुमान जयंती के दिन एक सरल उपाय है-
- रोग से मुक्ति हेतु इस दिन हनुमान मंदिर में घी में सिंदूर मिलाकर श्रद्धापूर्वक हनुमान जी को लेप लगाएं।
- प्रातःकाल स्नान के बाद लाल वस्त्र पहनें। फिर हनुमान जी की पूजा करें। उसके बाद पूर्ण श्रद्धा-विश्वास के साथ संकटमोचन "हनुमानाष्टक" का पाठ करें। इस पाठ के प्रभाव से हर संकट दूर होते हैं, दुख, भय, दोष, रोग, भूत, प्रेत सबका नाश होता है।बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।।
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो।
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो।।
चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो।
बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सूत रावन मारो।।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।।
रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो।
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।।
काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो।।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।।
दोहा
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।
- आर्थिक समस्या से ग्रसित/पीड़ित हैं तो इस दिन श्वेत कागज पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसे हनुमान जी को अर्पित करें। फिर उसे घर की तिजोरी में रख दें। ऐसा करने से हनुमानजी की कृपा से घर धन की कमी नहीं होगी।
- किसी कन्या के विवाह में बार-बार बाधा आ रही हो या विवाह नहीं हो रहा है, तो हनुमान जयंती के दिन मंदिर में हनुमान जी के पैरों में सिंदूर चढ़ाए, उसके बाद उस सिंदूर का टीका अपने मांग में लगाए। फिर श्रद्धा-विश्वास के साथ हाथ जोड़कर शीघ्र विवाह की प्रार्थना करें। परिणाम शीघ्र मिलेगा।
- पारिवारिक कलह से बनी रहती है या घर के कलह से मुक्ति नहीं मिल रही हो, तो हनुमान जयंती को शुभ-मुहूर्त में सरसों के तेल में सिंदूर मिलाकर घर के प्रत्येक कमरे के दरवाजे पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाए। इससे घर की नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं कर पाती और घर में शांति बनी रहती है।
– कष्टों से मुक्ति पाने इस दिन पारे से निर्मित हनुमान जी की पूजा करें और ”ॐ रामदूताय नमः” मंत्र का 108 बार रुद्राक्ष की माला से ही जाप करें।
– किसी प्रकार की पीड़ा या समस्या होने पर पीपल के 11 पत्ते लें। उन्हें साफ पानी से धोकर उनके ऊपर चंदन या कुमकुम से श्री राम का नाम लिखें और इसकी माला बनाकर हनुमानजी को पहना दें।इसका प्रभाव आपको दिखेगा।
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संरक्षक / NRI चाहिए- "धर्म नगरी" के विस्तार, डिजिटल DN News के प्रसार के साथ तथ्य व उपयोगी सूचना से पूर्ण व रोचक (factual & informative & interesting), राष्ट्रवादी समसामयिक मैगजीन हेतु "संरक्षक" या इंवेस्टर चाहिए। उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों में स्थानीय रिपोर्टर या स्थानीय प्रतिनिधि (जहाँ रिपोर्टर/प्रतिनिधि नहीं हैं) तुरंत चाहिए। -प्रबंध संपादक
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– यदि कुंडली में कोई दोष है, तो उसे दूर करने इस दिन हनुमान मंदिर जाकर उड़द के 11 दाने, सिंदूर, चमेली का तेल, फूल, प्रसाद आदि चढ़ाने के पश्चात हनुमान चालीसा का पाठ करें।
– हनुमानजी की कृपा पाने / हमपर बनी रहे, इसके लिए इस दिन विशेष 'पान का बीड़ा" बनवा कर हनुमानजी को अर्पित करें। उनके समक्ष एक सरसों और एक घी का दीपक जलाएं और वहीं बैठकर हनुमान जी का ध्यान करते श्रद्धापूर्वक हुए बजरंग बाण का पाठ करें।
- आप नौकरी को लेकर संघर्षरत हैं, तो इस दिन हनुमान जी के चरणों में सिंदूर चढ़ाकर विधि-पूर्वक पूजा करें। फिर अर्पित किए (चढ़ाए) सिंदूर से सफेद कागज पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसे अपने पास सुरक्षित रख लें। नौकरी की समस्या के समाधान का मार्ग आपको मिलेगा।
- ऋण को लेकर चिंतिंत रहते हैं, तो हनुमान जयंती के दिन चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर हनुमान जी की मूर्ति पर लेप करें, अपनी आयु के अनुसार पीपल के पत्ते पर राम राम लिखकर इसे हनुमान जी को चढ़ाए, ऐसा करने से शीघ्र ही ऋण (कर्ज) से मुक्ति मिल जाती है।
– अपने जीवन की विभिन्न समस्याओं, उलझनों से मुक्ति पाने हनुमान जयंती के दिन हनुमान मंदिर जाकर घी या तेल का दीपक जलाएं। वहीं बैठकर भक्तिपूर्वक 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। हनुमान जी प्रसन्न होंगे एवं आपके कृपा मिलेगी।
- अगर आपका कोई कार्य लंबे समय से अटका हुआ है तो हनुमान जयंती के दिन सुबह स्नान करके हनुमान मंदिर में सुंदरकांड का पाठ करें, और अपने मन में कार्य को पूर्ण होने की कामना हनुमान जी से करें, ऐसा करने से आपका कार्य शीघ्र ही संपन्न होगा।
हनुमान जी के आगे जलाएं दीपक-
हनुमान जयंती के दिन सायंकाल हनुमान मंदिर जाएं और हनुमानजी को केवड़े का इत्र और गुलाब की माला चढ़ाएं। इसके साथ सरसों के तेल का दीपक जलाकर 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें।ऐसा करने से शनि देव से मुक्ति मिलने के साथ हनुमान जी का आशीर्वाद भी मिलेगा, ऐसा तंत्र के जानकारों का कहना हैं।
हनुमान जयंती के दिन सायंकाल हनुमान मंदिर जाएं और हनुमानजी को केवड़े का इत्र और गुलाब की माला चढ़ाएं। इसके साथ सरसों के तेल का दीपक जलाकर 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें।ऐसा करने से शनि देव से मुक्ति मिलने के साथ हनुमान जी का आशीर्वाद भी मिलेगा, ऐसा तंत्र के जानकारों का कहना हैं।
श्री राम रक्षा स्त्रोत का पाठ-
हनुमान जयंती के दिन हनुमान मंदिर में श्री राम, माता सीता और हनुमान जी की प्रतिमा के दर्शन करते हुए राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से बजरंगबली की कृपा प्राप्त होती है. साथ ही शनि देव का आशीर्वाद भी मिलता है. साधक के सभी काम स्वंय बनने लगते हैं.
सिंदूर का चोला चढ़ाएं-
हनुमान जयंती के दिन हनुमान मंदिर में श्री राम, माता सीता और हनुमान जी की प्रतिमा के दर्शन करते हुए राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से बजरंगबली की कृपा प्राप्त होती है. साथ ही शनि देव का आशीर्वाद भी मिलता है. साधक के सभी काम स्वंय बनने लगते हैं.
सिंदूर का चोला चढ़ाएं-
संकटों से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जंयती के दिन हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढ़ाएं. इससे बजरंगबली प्रसन्न होकर आरोग्य, सुख- समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं, क्योकि हनुमान जी को सिंदूर बहुत प्रिय है। जिस उपाय से शनि देव के प्रकोप में भी कमी आती है।
नारियल फोड़ें-
हनुमान जयंती के दिन नारियल लेकर हनुमान मंदिर में जाएं और उसे अपने ऊपर से सात बार वारते हुए हनुमान जी के सामने फोड़ दें। ऐसा करने से आपकी सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी
पीपल के पत्ते से करें उपाय-
हनुमान जयंती के दिन हनुमान जी को गुलाब की माला अर्पित करें। साथ ही 11 पीपल के पत्तों पर श्रीराम का नाम लिखकर इनकी माला बनाएं और हनुमान जी को अर्पित कर दें। इससे हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और शनि देव कभी परेशान नहीं करते।
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भगवान शिव के 11वें रूद्र अवतार हनुमान जी के जन्म के बारे में पुराणों में उल्लेख है। अमरत्व की प्राप्ति के लिए जब देवताओं व असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया को उससे निकले अमृत को असुरों ने छीन लिया और आपस में ही लड़ने लगे। तब भगवान विष्णु मोहिनी के भेष अवतरित हुए। मोहनी रूप देख देवता व असुर तो क्या स्वयं शिवजी कामातुर हो गए। इस समय भगवान शिव ने जो वीर्य त्याग किया उसे पवनदेव ने वानरराज केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ में प्रविष्ट करा दिया। जिसके फलस्वरूप माता अंजना ने केसरी नंदन मारुती संकट मोचन रामभक्त श्री हनुमान को जन्म दिया।
अन्य कथा के अनुसार, अयोध्या नरेश राजा दशरथ जी ने जब पुत्रेष्टि हवन कराया था, तब उन्होंने प्रसाद स्वरूप खीर अपनी तीनों रानियों को खिलाया था। उस खीर का एक अंश एक कौआ लेकर उड़ गया और वहां पर पहुंचा, जहां माता अंजना शिव तपस्या में लीन थीं।
मां अंजना को जब वह खीर प्राप्त हुई तो उन्होंने उसे शिवजी के प्रसाद स्वरुप ग्रहण कर लिया। इस घटना में भगवान शिव और पवन देव का योगदान था। उस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद हनुमान जी का जन्म हुआ। हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रुद्रवतार माने जाते हैं। माता अंजना के कारण हनुमान जी को आंजनेय, पिता वानरराज केसरी के कारण केसरीनंदन और पवन देव के सहयोग के कारण पवनपुत्र, बजरंगबली, हनुमान आदि नामों से भी जाना जाता है।
मां अंजना को जब वह खीर प्राप्त हुई तो उन्होंने उसे शिवजी के प्रसाद स्वरुप ग्रहण कर लिया। इस घटना में भगवान शिव और पवन देव का योगदान था। उस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद हनुमान जी का जन्म हुआ। हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रुद्रवतार माने जाते हैं। माता अंजना के कारण हनुमान जी को आंजनेय, पिता वानरराज केसरी के कारण केसरीनंदन और पवन देव के सहयोग के कारण पवनपुत्र, बजरंगबली, हनुमान आदि नामों से भी जाना जाता है।
ब्रह्मदेव ने हनुमान जी को वरदान दिया था- ब्रह्म के दंड हनुमान जी से सदैव दूर रहेंगे। जैसा रूप धारण हनुमान जी करना चाहेंगे, वह कर सकेंगे और इस पर हनुमान जी का अपनी इच्छा से नियंत्रण होगा।
भगवान शंकर ने हनुमान जी को आशीर्वाद देते हुए कहा था- उनपर उनके अस्त्र या शस्त्रों का भी प्रभाव नहीं होगा।
देवराज इंद्र ने हनुमान जी को अपने वज्र के असर से मुक्त रहने का आशीर्वाद दिया था।
हनुमान जी के गुरु सूर्य देव ने बजरंगबली को उनअपने तेज का 100वां भाग हनुमान जी को वरदान में दिया। हनुमानजी को सूर्यदेव से ही उन्हें शस्त्रों का ज्ञान भी मिला। हनुमान जी ने सूर्यदेव से ही शिक्षा प्राप्त की थी। सूर्य देव ने वरदान देते हुए कहा- किसी को भी शास्त्रों का ज्ञान हनुमान जी के समान नहीं होगा।
यमराज ने बजरंगबली को वरदान देते हुए कहा था- वह उनके दंड से सदैव बचे रहेंगे।
शनि देव ने उन्हें यह वचन दिया था- कि हनुमान जी की उपासना करने वालों को वह कभी कष्ट नहीं देंगे
हनुमान जी इस कलयुग में जाग्रत देव हैं और अपने भक्तों से हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और अपना आशीर्वाद देते हैं। अहिरावण ने जब माँ भवानी के लिए पाँच दीपक जलाए थे, उसे पांच दिशाओं मे पांच अलग-अलग जगहों पर रखा गया। इन पाँच दीपकों को एक साथ बुझाने पर ही अहिरावण का वध संभव था। अतः अहिरावण के वध हेतु हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धारण किया।
श्री पंचमुखी हनुमान के पाँच मुख इस प्रकार हैं, उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इनमे पहले वानर मुख से सारे दुश्मनों पर विजय मिलती है। दूसरे गरुड़ मुख से समस्याएं दूर होती हैं। तीसरे उत्तर दिशा के वराह मुख से प्रसिद्धि ,शक्ति और लंबी आयु मिलती है। चौथे नृसिंह मुख से मुश्किलें, तनाव और डर दूर होते हैं। प्रतिमा के पांचवें अश्व मुख से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।इस पंच-मुखी रूप को धारण कर हनुमानजी ने सभी पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया।
श्रीराम भक्त हनुमान अपने भक्तों को राहु-केतु और शनि जैसे ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचाते हैं। हनुमान जी से प्रेत, पिशाच बहुत डरते हैं और उनके भक्तों के निकट भी नहीं आते। हनुमान जी के अनेक रूप हैं, परन्तु पंचमुखी हनुमानजी के रूप का कुछ विशेष महत्व बताया गया है, जिसका विशेष प्रभाव होता है-
घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में भगवान हनुमान की पंच-मुखी (पंच स्वरूप वाली) मूर्ति या चित्र लगाएं। नियमित रूप से उनकी पूजा करें। इसके प्रभाव से आपको कभी आर्थिक संकट से नहीं जूझना पड़ेगा।
- वास्तुशास्त्र के अनुसार, हनुमान जी का चित्र आप अपने घर या दुकान में दक्षिण दिशा की ओर लगाएं। यह दिशा हनुमान जी के चित्र के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। इससे घर और दुकान दोनों में पॉजिटिव ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है।
- आप घर में सदैव पंचमुखी वाले हनुमानजी की चित्र अवश्य लगाएं। इससे आपके घर के सभी दोष, नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है। भगवान का आशिर्वाद सदैव आप पर बना रहता है।
- घर के मुख्य द्वार पर पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा लगाएं। इससे नकारात्मक शक्ति प्रवेश नहीं कर पाती।
घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में भगवान हनुमान की पंच-मुखी (पंच स्वरूप वाली) मूर्ति या चित्र लगाएं। नियमित रूप से उनकी पूजा करें। इसके प्रभाव से आपको कभी आर्थिक संकट से नहीं जूझना पड़ेगा।
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- आप घर में सदैव पंचमुखी वाले हनुमानजी की चित्र अवश्य लगाएं। इससे आपके घर के सभी दोष, नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है। भगवान का आशिर्वाद सदैव आप पर बना रहता है।
- घर के मुख्य द्वार पर पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा लगाएं। इससे नकारात्मक शक्ति प्रवेश नहीं कर पाती।
पंचमुखी हनुमान जी के उपाय-
एक नारियल लें उसके ऊपर कलावा लपेटकर चावल, सिंदूर और पीले फूल चढ़ाएं। फिर ये नारियल पंचमुखी हनुमान जी को अर्पित कर दें। मान्यता है, ऐसा करने से हर कार्य में सफलता प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। अगर परीक्षा या फिर इंटरव्यू में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो पंचमुखी हनुमानजी को अनार या लड्डू का भोग लगाने के साथ केसरिया रंग का झंडा भी मंदिर में दान करना चाहिए।
परिवार में सुख समृद्धि बनी रहे, इसके लिए पंचमुखी हनुमानजी प्रतिमा के सामने बैठकर श्रीराम रक्षा स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। अगर कोर्ट केस में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो पंचमुखी हनुमान जी के समक्ष घी का दीपक जलाना चाहिए और नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ भी करना चाहिए।
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