मध्य प्रदेश के गृहमंत्री के बेबाक जवाब से बरखा गई ‘सूख’
खार-ए-हसरत बयान से निकला
दिल का कांटा जबान से निकला
-अनुराधा त्रिवेदी*
धर्म नगरी / DN News
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मध्य प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता एवं गृहमंत्री हैं डॉ. नरोत्तम मिश्र। अपने बेबाक बयानों के लिए लोगों में ही नहीं, बल्कि देशभर में जाने जाते हैं। बिना लाग-लपेट के बयान देने वाले नरोत्तम अपनी वाक्पटुता और क्लासिक शैली में बयान देने के लिए मशहूर हैं। यदि कोई विवादास्पद बयान दिया भी है, तो उनमें दम भी है उसे स्वीकार करने का। यह गुण नेताओं में प्राय: विलुप्त है। नरोत्तम मिश्र मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता और गृहमंत्री हैं। बहुत ज्यादा अध्ययन करने के शौकीन, बल्कि कहें पढ़ाकू, नरोत्तम मिश्र की बेबाक शैली या कहें आईक्यू विपक्षियों के हौसले को परास्त कर देती है।
ऐसे-ऐसे शब्द दबंगई से बोल जाते हैं, कि सामने वाला तिलमिलाकर रह जाता है। न उसके पास जवाब होता है, न पलटवार। इसी कड़ी में ‘तुष्टीकरण गैंग’ हिमायती पत्रकार बरखा दत्त खरगोन दंगों को लेकर नरोत्तम मिश्र से इंटरव्यू करने की हिमाकत कर बैठीं। शायद वो नरोत्तम जी के व्यक्तित्व से पूरी तरह वाकिफ नहीं हैं। हर सवाल का जवाब बरखा दत्त को धराशायी करता चला गया। ऐसा लग रहा था, कि एक वर्ग के पक्ष को लेकर बरखा दत्त की आत्मा किलपी हुई थी। वो दूसरे पीड़ित पक्ष के बारे में बात ही नहीं कर रही थीं।
जिस दबंगई के साथ नरोत्तमजी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में जवाब देना शुरू किया, नि:संदेह बरखा दत्त को अपना कद और अपनी हैसियत बहुत छोटी लगी होगी। जिस तरीके से नरोत्तम जी ने कहा, कि मेरा बयान हमेशा दंगाइयों के लिए वैसा ही होगा, जैसा खरगोन दंगे में था, तब बरखा दत्त की बोलती बंद हो गई। पत्रकार पूरे समाज का आईना होता है। वो किसी राजनीतिक दल या समुदाय का प्रवक्ता नहीं होता। अल्पसंख्यक समुदाय के प्रवक्ता के तौर पर वह गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र से इंटरव्यू कर रही थीं, लेकिन मुझे लगता है, इस इंटरव्यू के बाद वो कभी भी, कम से कम नरोत्तम जी के साथ इंटरव्यू नहीं करेगी। बहुसं यकों के हितों को एक तरफ रखकर आरोपी पक्ष की पैरवी करना, बरखा दत्त जैसे कई पत्रकारों का एजेंडा है। इनके इसी एजेंडे की धूल झाड़कर रख दी नरोत्तम जी ने।
श्रीराम नवमी पर मध्य प्रदेश में हिन्दुओं द्वारा निकाली जा रही शोभा-यात्रा पर हुई हिंसा को लेकर जिस प्रकार ‘अपनी मानसिकता के अनुरूप पूर्वाग्रही होकर’ पत्रकार बरखा ने गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा से कुछ प्रश्न पूछें, इंटरव्यू में उसने अपने शब्द भी ठूंसने चाहे, झूठा और एकतरफा पक्ष लेना चाहा मुसलमानों का। इसके लिए उसने ‘एक वर्जन’ और ‘कहा जाता है’ शब्द का सहारा लिया। जैसे- बरखा ने कहा, दो वर्जन्स आ रही है। एक वर्जन आ रही है, कि जो डीजे चला रहे थे, वो अजान से क्लैश हो रहे थे...।
बरखा ने मजहबी उन्मादियों द्वारा हत्या किए कभी किसी भी निर्दोष हिन्दू के बारे में स भवत: नहीं बोला। सोशल मीडिया में समय-समय पर तमाम फोटो और बाइट्स की प्रतिक्रिया में भारतीय नागरिक जिस प्रकार बरखा दत्ता का विरोध करते रहते हैं। कारण, उसने हमेशा आतंकियों, देशद्रोहियों, हिन्दू-विरोधियों, मुस्लिमपरस्तों, वामपंथियों, फर्जी सेक्यूलरवादियों का भरसक पक्ष लिया। इसके लिए उसने पत्रकारिता में उपयोग होने वाले ‘बचाव वाले शब्द’ का दुरुपयोग किया, जैसे- सूत्र बताते हैं, कहा जाता है, लोगों का कहना है, स्थानीय लोगों का मानना है, चर्चा और दबी जुबान लोग कह रहे हैं, आदि आदि। बरखा जब अपने ‘फ्रेम’ किए हुए बेबुनियाद सवाल पूंछ रही थी, उस समय गृहमंत्री खाने के कौर बनाते, उसे मुँह में डालते, चबाते दिख रहे है, लेकिन साथ ही साथ, बरखा के प्रश्नों को गंभीरता से सुन रहे हैं।
प्रश्न पूछने में अपनी स्वभावतन या मजबूरन (जो भी हो वही जानती हैं) ‘डीजे यूजिक से अजान का क्लैश होना’ भी बोल दिया। यही कारण है, कि प्रश्न पूरा होने के बाद डॉ. मिश्र बहुत सटीक, स्पष्ट उत्तर (व्यंग्यात्मक भाव के साथ) देते जा रहे हैं। आज तक मेरी संज्ञान में इस बरखा नाम की तथाकथित पत्रकार ने जम्मू-कश्मीर सहित देश में कहीं भी हुए मजहबी उन्मादियों या साजिश के तहत दंगे (19 जनवरी 1990-कश्मीरी पंडितों, कैराना, शाहीनबाग से लेकर करोली आदि) और उसमें मारे गए निर्दोष हिन्दुओं की चर्चा नहीं की या हिन्दुओं के पक्ष को निष्पक्षता से नहीं उठाया या बोली।
कुबूल कैसे करुं उनका फैसला- कि ये लोग
मेरे खिलाफ ही मेरा बयान मांगते हैं...
*वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रबंध संपादक "धर्म नगरी"।
कुबूल कैसे करुं उनका फैसला- कि ये लोग
मेरे खिलाफ ही मेरा बयान मांगते हैं...
*वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रबंध संपादक "धर्म नगरी"।
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