अपरा एकादशी व्रत से ब्रह्म हत्या, भूत योनि व सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति


ज्येष्ठ माह (13 मई-11 जून 2025) में क्या करें, क्या नहीं !  

धर्म नगरी / DN News
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हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर अपरा एकादशी का व्रत रखते है, जो 23 मई 2025 को है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती हैं। मान्यता है, इस एकादशी पर उपवास रखने से साधक को ब्रह्म हत्या, भूत योनि और सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति प्राप्त होती हैं। इसके अवाला विष्णु जी के प्रभाव से कार्यों में अपार सफलता व धन लाभ भी होता है। 

इस बार अपरा एकादशी पर उत्तराभाद्रपद नक्षत्र बन रहा है, जो शाम 4 बजकर 2 मिनट तक है। वहीं, प्रीति योग शाम 6:36 मिनट तक बना रहेगा। इस योग में अपरा एकादशी व्रत कथा का पाठ अवश्य करें। इससे पूजा का संपूर्ण फल मिलता है। आइए इसके बारे में जानते हैं।

अपरा एकादशी व्रत कथा
भगवान विष्णु को समर्पित अपरा एकादशी को लेकर ऐसी मान्यता है कि एक बार की बात है जब युधिष्ठिर के भगवान कृष्ण से अपरा एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा था। युधिष्ठिर के इस प्रश्न पर कृष्ण जी कहते हैं कि अपरा एकादशी का उपवास रखने पर हत्या और पाप से मुक्ति प्राप्त होती हैं। भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि प्राचीन समय की बात है जब महीध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा हुआ करता था। वह प्रायः धार्मिक कार्यों में लीन रहता था। उन्होंने बताया, कि उस राजा का एक छोटा भाई भी था।


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राजा के छोटे भाई को वज्रध्वज के नाम से जाना जाता था। हालांकि वह राजा महीध्वज के बिल्कुल विपरीत था। वह अधर्मी था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन रात का समय था, जब वज्रध्वज ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी। राजा को मारने के बाद किसी को इस घटना का पता न चले, इसलिए उसने अपने भाई के शव को जंगल में पीपल के नीचे गाड़ दिया। चूंकि राजा की मृत्यु अकाल मृत्यु थी, इसलिए राजा महीध्वज प्रेतात्मा बनकर उसी पेड़ पर रहने लगा।

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वह इस पेड़ पर वास करने के साथ-साथ आसपास के लोगों को परेशान भी किया करते थे। एक दिन एक ऋषि उस पेड़ के पास से गुजर रहे थे। फिर प्रेतात्मा ने उन्हें भी परेशान किया। हालांकि ऋषि ने अपने तपोबल से प्रेतात्मा पर काबू पा लिया और उससे उत्पात मचाने का कारण पूछा। जब ऋषि को राजा की मौत का कारण पता चला, तो वह उन्हें यह एहसास हुआ कि जो भी हुआ या गलत था। ऋृषि ने उस आत्मा को पीपल के पेड़ से उतारा। इसके बाद उन्होंने परलोक विद्या के बारे में बताया।
राजा महीध्वज की आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए धौम्य ऋषि ने अपरा एकादशी का व्रत रखा। इस दिन महाराज ने घोर जप करते हुए राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाई। राजा को मुक्ति मिलने के बाद उन्होंने ऋषि को धन्यवाद कहा। तभी से ऐसी मान्यता है कि अपरा एकादशी पर व्रत और पूजा-पाठ करने से साधक को सभी नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा मिलता है।

एकादशी के दिन व्रत रखते हुए पूजा के समय भगवान विष्णु और माता एकादशी की आरती गाने से व्रती की पूजा पूरी मानी जाती है। मान्यता है, ऐसा करने वाले को कभी भी धन की तंगी नहीं होती है-

।।भगवान विष्णु की आरती।।
ॐ जय जगदीश हरे, 
स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥

ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥

ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।

श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।

॥ एकादशी माता की आरती ॥
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी,जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी…॥

तेरे नाम गिनाऊं देवी,भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता,शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥

मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना,विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा,मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी…॥

पौष के कृष्ण पक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा,आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी…॥

नाम षटतिला माघ मास में,कृष्ण पक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै,विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥

विजया फागुन कृष्णपक्ष मेंशुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में,चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी…॥

चैत्र शुक्ल में नाम कामदा,धन देने वाली।
नाम वरूथिनी कृष्णपक्ष में,वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी…॥

शुक्ल पक्ष में होयमोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी,शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी…॥

योगिनी नाम आषाढ में जानों,कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो,शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥

कामिका श्रावण मास में आवै,कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होयपवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी…॥

अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की,परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में,व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी…॥

पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै,सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी…॥

देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूंविनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी…॥

परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होयपद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥

जो कोई आरती एकादशी की,भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा,निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥

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