वट सावित्री व्रत : व्रत की दो तिथि, वट का धार्मिक, वैज्ञानिक महत्व, इस दिन अवश्य पढ़ें...
...व्रत कथा, जाने पूजन सामग्री

वट सावित्री व्रत में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं और वट वृक्ष/बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। इसके साथ वट सावित्री के दिन बरगद पेड़ के नीचे सावित्री माता और सत्यवान की कथा भी सुनी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यम देव ने सावित्री माता के पति सत्यवान के प्राणों को वट वृक्ष के नीचे ही लौटाया था। साथ ही देवी सावित्री को पुत्र का आशीर्वाद भी दिया। इसलिए वट सावित्री के दिन बरगद पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है।
वट सावित्री का व्रत करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन वट वृक्ष यानी बरगद पेड़ की पूजा का विधान है। हिन्दू मान्यता के अनुसार वट सावित्री का व्रत साल में दो बार मनाया जाता है और इसके पीछे मुख्य कारण भारत में प्रचलित विभिन्न पंचांग/ कैलेंडर प्रणालियां हैं। भारत में मुख्य रूप से दो प्रमुख पंचांग प्रणालियां प्रचलित हैं, जिनके अनुसार-
पूर्णिमांत पंचांग- इस पंचांग में माह का अंत पूर्णिमा पर होता है। उत्तरी भारत के अधिकांश राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा आदि में इसी पंचांग का अनुसरण किया जाता है। इस प्रणाली के अनुसार, वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। इसे 'वट सावित्री अमावस्या' कहते हैं।, जो कि इस बार 26 मई 2025, दिन सोमवार को मनाया जाएगा।
अमांत पंचांग- इस पंचांग में माह का अंत अमावस्या पर होता है। महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में इस पंचांग का अनुसरण किया जाता है। इस प्रणाली के अनुसार, वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे 'वट पूर्णिमा व्रत' कहते हैं। और यह वट पूर्णिमा व्रत पश्चिमी और दक्षिणी भारत में मंगलवार, 10 जून 2025 को मनाया जाएगा।
- उत्तरी भारत (पूर्णिमांत पंचांग) के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को मनाया जाता है, जबकि पश्चिमी और दक्षिणी भारत (अमांत पंचांग) के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है। इन दोनों ही व्रतों में पूजा की विधि, सत्यवान-सावित्री की कथा और महत्व समान होता है, केवल तिथियों का अंतर होता है।
वट सावित्री व्रत (2025) की तिथियां

धर्म नगरी / DN News
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वट सावित्री का व्रत करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन वट वृक्ष यानी बरगद पेड़ की पूजा का विधान है। हिन्दू मान्यता के अनुसार वट सावित्री का व्रत साल में दो बार मनाया जाता है और इसके पीछे मुख्य कारण भारत में प्रचलित विभिन्न पंचांग/ कैलेंडर प्रणालियां हैं। भारत में मुख्य रूप से दो प्रमुख पंचांग प्रणालियां प्रचलित हैं, जिनके अनुसार-
पूर्णिमांत पंचांग- इस पंचांग में माह का अंत पूर्णिमा पर होता है। उत्तरी भारत के अधिकांश राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा आदि में इसी पंचांग का अनुसरण किया जाता है। इस प्रणाली के अनुसार, वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। इसे 'वट सावित्री अमावस्या' कहते हैं।, जो कि इस बार 26 मई 2025, दिन सोमवार को मनाया जाएगा।
अमांत पंचांग- इस पंचांग में माह का अंत अमावस्या पर होता है। महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में इस पंचांग का अनुसरण किया जाता है। इस प्रणाली के अनुसार, वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे 'वट पूर्णिमा व्रत' कहते हैं। और यह वट पूर्णिमा व्रत पश्चिमी और दक्षिणी भारत में मंगलवार, 10 जून 2025 को मनाया जाएगा।
- उत्तरी भारत (पूर्णिमांत पंचांग) के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को मनाया जाता है, जबकि पश्चिमी और दक्षिणी भारत (अमांत पंचांग) के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है। इन दोनों ही व्रतों में पूजा की विधि, सत्यवान-सावित्री की कथा और महत्व समान होता है, केवल तिथियों का अंतर होता है।
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• वट सावित्री अमावस्या (उत्तरी भारत)- सोमवार 26 मई 2025
- वट पूर्णिमा व्रत (पश्चिमी और दक्षिणी भारत)- मंगलवार, 10 जून 2025
वट सावित्री व्रत का सबसे बड़ा उद्देश्य है अपने पतियों के सुख, शांति, समृद्धि और दीर्घायु की कामना करना। इस दिन विशेष रूप से वट वृक्ष अर्थात बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है, क्योंकि यह पेड़ शाश्वत जीवन का प्रतीक माना जाता है।
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- वट पूर्णिमा व्रत (पश्चिमी और दक्षिणी भारत)- मंगलवार, 10 जून 2025
वट सावित्री व्रत का सबसे बड़ा उद्देश्य है अपने पतियों के सुख, शांति, समृद्धि और दीर्घायु की कामना करना। इस दिन विशेष रूप से वट वृक्ष अर्थात बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है, क्योंकि यह पेड़ शाश्वत जीवन का प्रतीक माना जाता है।
वट सावित्री व्रत : पूजा सामग्री-
कलावा, कच्चा सूत, बांस का पंखा, रक्षासूत्र, पान का पत्ता
श्रृंगार का सामान (लाल चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, काजल, आलता, कंघी, मेहंदी, लाल रंग की साड़ी)
काला चना भिगोया हुआ
नारियल, बताशा, फल
वट सावित्री व्रत कथा की पुस्तक
सावित्री और सत्यवान का चित्र
धूप, मिट्टी का दीपक, अगरबत्ती, पूजा की थाली या टोकरी, सवा मीटर लाल या पीला कपड़ा
सिंदूर, रोली, अक्षत, कुमकुम, चंदन, सुपारी, फूल
पानी का कलश
मिठाई
सात प्रकार का अनाज
वट वृक्ष नहीं है आसपास तो वट वृक्ष की शाखा
कलावा, कच्चा सूत, बांस का पंखा, रक्षासूत्र, पान का पत्ता
श्रृंगार का सामान (लाल चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, काजल, आलता, कंघी, मेहंदी, लाल रंग की साड़ी)
काला चना भिगोया हुआ
नारियल, बताशा, फल
वट सावित्री व्रत कथा की पुस्तक
सावित्री और सत्यवान का चित्र
धूप, मिट्टी का दीपक, अगरबत्ती, पूजा की थाली या टोकरी, सवा मीटर लाल या पीला कपड़ा
सिंदूर, रोली, अक्षत, कुमकुम, चंदन, सुपारी, फूल
पानी का कलश
मिठाई
सात प्रकार का अनाज
वट वृक्ष नहीं है आसपास तो वट वृक्ष की शाखा
वट सावित्री व्रत मुहूर्त (2025)-
वट सावित्री का व्रत 26 मई 2025 को रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि का प्रारंभ 26 मई को दोपहर 12:11 बजे होगा। अमावस्या तिथि का समापन 27 मई सुबह 8:31 बजे पर होगा।
वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा
वट सावित्री व्रत की शुरुआत एक अद्भुत कहानी से होती है। सावित्री और सत्यवान की कथा के अनुसार, सावित्री ने तप, व्रत और अडिग संकल्प से अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस पा लिया था। यह व्रत नारी शक्ति, सच्चे प्रेम और निष्ठा का प्रतीक है। महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की पूजा कर, उसके चारों ओर धागा लपेटती हैं और पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। इस पूजा का महत्व केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि मानसिक शक्ति और आत्मबल की भी मिसाल है।
वट वृक्ष का धार्मिक महत्व
वट यानी बरगद का वृक्ष भारतीय धार्मिक ग्रंथों में अत्यंत पवित्र माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश, त्रिदेवों का वास होता है। यह वृक्ष अक्षय वट कहलाता है, जिसका अर्थ होता है- 'कभी न नष्ट होने वाला' । यही कारण है कि महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर अपने दांपत्य जीवन की स्थायित्व की कामना करती हैं। बरगद का पेड़ दीर्घायु, मजबूती और निरंतरता का प्रतीक भी माना जाता है। इसकी शाखाएं जितनी विस्तृत होती हैं, उसे उतना ही मजबूत और जीवनदायी माना जाता है। यही संदेश यह पर्व देता है कि पति-पत्नी का संबंध भी बरगद की तरह गहराई और मजबूती जुड़ा हो।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
अगर हम वट सावित्री पूजा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो इसके पीछे कई स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े लाभ छिपे हुए हैं। बरगद का पेड़ केवल छांव नहीं देता, बल्कि यह 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है, जो वातावरण को शुद्ध करता है। इसके पत्ते, फल और छाल आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोगी होते हैं। बरगद की जड़ें और छाल डायबिटीज, दस्त और त्वचा रोगों में लाभकारी मानी जाती हैं। इसकी छांव में ध्यान करने से मानसिक शांति मिलती है और यह तनाव को कम करता है। महिलाओं का व्रत करके वट वृक्ष के नीचे पूजा करना एक तरह की नेचुरल थेरेपी है, जो शरीर और मन दोनों को सशक्त करती है।
वट सावित्री पूजा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज में नारी की भूमिका और उसकी शक्ति का सम्मान भी है। यह व्रत उस संकल्प का प्रतीक है, जिसमें एक स्त्री अपने परिवार, पति और रिश्तों के लिए पूरी श्रद्धा और शक्ति से जुड़ी रहती है। आज के आधुनिक युग में जब रिश्ते अस्थायी और व्यस्तताओं में खो जाते हैं, ऐसे में यह पर्व पारंपरिक मूल्यों की याद दिलाता है।
साथ ही यह व्रत मानसिक शक्ति और ध्यान का अभ्यास भी है। एक दिन का उपवास, पूजा, नियम और ध्यान, ये सभी एक स्त्री को आत्मबल और मानसिक संतुलन देते हैं, जो आज के तनावपूर्ण जीवन में बेहद जरूरी है।
वट सावित्री पूजा हमें पर्यावरणीय चेतना की ओर भी इशारा करता है। बरगद जैसे पेड़ न केवल धार्मिक रूप से पूज्य हैं, बल्कि पृथ्वी के फेफड़े भी हैं। जब महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की पूजा करती हैं और उसकी रक्षा का संकल्प लेती हैं, तो यह अपने आप में एक ग्रीन मैसेज है। आज के समय में जब पेड़ कट रहे हैं और पर्यावरण संकट में है, तो ऐसे में भारतीय संस्कृति में सदियों से पुष्पित और पल्ल्वित होते ये त्यौहार निश्चित रूप पर सभी के लिए प्रेरणा बनते हैं।
वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा
वट सावित्री व्रत की शुरुआत एक अद्भुत कहानी से होती है। सावित्री और सत्यवान की कथा के अनुसार, सावित्री ने तप, व्रत और अडिग संकल्प से अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस पा लिया था। यह व्रत नारी शक्ति, सच्चे प्रेम और निष्ठा का प्रतीक है। महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की पूजा कर, उसके चारों ओर धागा लपेटती हैं और पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। इस पूजा का महत्व केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि मानसिक शक्ति और आत्मबल की भी मिसाल है।
वट वृक्ष का धार्मिक महत्व
वट यानी बरगद का वृक्ष भारतीय धार्मिक ग्रंथों में अत्यंत पवित्र माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश, त्रिदेवों का वास होता है। यह वृक्ष अक्षय वट कहलाता है, जिसका अर्थ होता है- 'कभी न नष्ट होने वाला' । यही कारण है कि महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर अपने दांपत्य जीवन की स्थायित्व की कामना करती हैं। बरगद का पेड़ दीर्घायु, मजबूती और निरंतरता का प्रतीक भी माना जाता है। इसकी शाखाएं जितनी विस्तृत होती हैं, उसे उतना ही मजबूत और जीवनदायी माना जाता है। यही संदेश यह पर्व देता है कि पति-पत्नी का संबंध भी बरगद की तरह गहराई और मजबूती जुड़ा हो।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
अगर हम वट सावित्री पूजा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो इसके पीछे कई स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े लाभ छिपे हुए हैं। बरगद का पेड़ केवल छांव नहीं देता, बल्कि यह 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है, जो वातावरण को शुद्ध करता है। इसके पत्ते, फल और छाल आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोगी होते हैं। बरगद की जड़ें और छाल डायबिटीज, दस्त और त्वचा रोगों में लाभकारी मानी जाती हैं। इसकी छांव में ध्यान करने से मानसिक शांति मिलती है और यह तनाव को कम करता है। महिलाओं का व्रत करके वट वृक्ष के नीचे पूजा करना एक तरह की नेचुरल थेरेपी है, जो शरीर और मन दोनों को सशक्त करती है।
वट सावित्री पूजा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज में नारी की भूमिका और उसकी शक्ति का सम्मान भी है। यह व्रत उस संकल्प का प्रतीक है, जिसमें एक स्त्री अपने परिवार, पति और रिश्तों के लिए पूरी श्रद्धा और शक्ति से जुड़ी रहती है। आज के आधुनिक युग में जब रिश्ते अस्थायी और व्यस्तताओं में खो जाते हैं, ऐसे में यह पर्व पारंपरिक मूल्यों की याद दिलाता है।
साथ ही यह व्रत मानसिक शक्ति और ध्यान का अभ्यास भी है। एक दिन का उपवास, पूजा, नियम और ध्यान, ये सभी एक स्त्री को आत्मबल और मानसिक संतुलन देते हैं, जो आज के तनावपूर्ण जीवन में बेहद जरूरी है।
वट सावित्री पूजा हमें पर्यावरणीय चेतना की ओर भी इशारा करता है। बरगद जैसे पेड़ न केवल धार्मिक रूप से पूज्य हैं, बल्कि पृथ्वी के फेफड़े भी हैं। जब महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की पूजा करती हैं और उसकी रक्षा का संकल्प लेती हैं, तो यह अपने आप में एक ग्रीन मैसेज है। आज के समय में जब पेड़ कट रहे हैं और पर्यावरण संकट में है, तो ऐसे में भारतीय संस्कृति में सदियों से पुष्पित और पल्ल्वित होते ये त्यौहार निश्चित रूप पर सभी के लिए प्रेरणा बनते हैं।
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