दशहरा : अयोध्या में बहुचर्चित 240 फुट का रावण तैयार, दहन से 3 दिन पहले लगा बैन...


...तैयार रावण का दहन ना होना अशुभ : आयोजन समिति 
राम कथा पार्क में एक माह से पुतलों का निर्माण हो रहा था
- क्या दिल्ली, जयपुर में इस बार रावण जलकर नहीं, डूबकर मरेगा !
- पढ़ें- रावण : भाई, बहन, पत्नियां और उसे मिले श्राप 
रावण का पुतला (फाइल फोटो)

धर्म नगरी / DN News

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श्रीराम की नगरी अयोध्या में मध्य प्रदेश, राजस्थान और अन्य राज्यों के कलाकारों ने 240 फुट के रावण और मेघनाद-कुंभकर्ण के पुतलों का निर्माण पूरा कर लिया है, परन्तु उनके दहन से तीन दिन पहले प्रतिबंध लगा दिया गया। अयोध्या में उत्तर प्रदेश पुलिस ने सुरक्षा कारणों से 240 फुट ऊंचे रावण और 190 फुट ऊंचे मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतले जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया। अधिकारियों ने बताया, प्रशासन ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए अयोध्या में दशहरे के दिन इतनी ऊंचाई वाले पुतलों के दहन पर प्रतिबंध लगा दिया।

दिल्ली के सबसे बड़े रावण मार्केट टैगोर गार्डन के ततारपुर में बिक्री के लिए बनकर तैयार। परन्तु रावण बरसात और तेज हवाओं के कारण सड़क पर गिरे।  

देखें-
दिल्ली में पुतले-



जयपुर में-

तैयार रावण का दहन न होना अशुभ
फिल्म कलाकार रामलीला समिति के संस्थापक अध्यक्ष सुभाष मलिक ने बताया, कि अयोध्या में मध्य प्रदेश, राजस्थान और अन्य राज्यों के कारीगरों ने 240 फुट के रावण व अन्य पुतलों का निर्माण पूरा कर लिया है, जिनपर दहन से तीन दिन पहले प्रतिबंध लगा दिया गया। ऐसे में हजारों रुपये खर्च से तैयार तीनों पुतले बेकार चले जाएंगे। दशहरा में तैयार किए गए रावण का दहन ना होना अशुभ माना जाता है।

उन्होंने पीएम मोदी और सीएम योगी से अयोध्या में कहीं भी 240 फीट के बने रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के दहन करने की मांग की है। उन्होंने कहा- मैं बीजेपी का छोटा कार्यकर्ता हूं और अयोध्या में भव्य राम लीला के मंचन में सात साल से लगा हूं।

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उल्लेखनीय है, एक महीने से पुतलों का निर्माण कार्य चल रहा था। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के सबसे ऊंचे पुतलों के दहन का कार्यक्रम अयोध्या की फिल्म कलाकार रामलीला समिति द्वारा आयोजित किया गया था। अयोध्या के राम कथा पार्क में एक महीने से पुतलों का निर्माण कार्य जारी था। अयोध्या के पुलिस क्षेत्राधिकारी देवेश चतुर्वेदी ने बताया, कि सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखते हुए यह रोक लगाई गई है।  आयोजक रामलीला समिति ने अब तक इसकी अनुमति नहीं ली थी। गश्त के दौरान जब इन पुतलों का निर्माण होता देखा गया तो कार्रवाई की गई।

पढ़ें / देखें-  
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क्या रावण के दस सिर थे !
रावण के दस सिर थे। क्या सचमुच यह सही है? कुछ विद्वान मानते हैं कि रावण के दस सिर नहीं थे, किंतु वह दस सिर होने का भ्रम पैदा कर देता था। इसी कारण लोग उसे दशानन कहते थे। कुछ विद्वानों अनुसार, रावण छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था, इसीलिए उसे दसकंठी भी कहा जाता था। दसकंठी कहे जाने के कारण प्रचलन में उसके दस सिर मान लिए गए।

अधिकांश विद्वानों एवं पुराणों अनुसार,रावण एक मायावी व्यक्ति था, जो अपनी माया के द्वारा दस सिर के होने का भ्रम पैदा कर सकता था। उसकी मायावी शक्ति और जादू के चर्चे जग प्रसिद्ध थे। रावण के दस सिर होने की चर्चा श्रीरामचरित मानस में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिए चला तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते थे। इस तरह दसवें दिन अर्थात शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध हुआ। इसीलिए दशमी के दिन रावण दहन किया जाता है।

श्रीरामचरित मानस में वर्णन है- जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते थे, पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचारणीय बात यहाँ यह है, क्या एक अंग के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है ? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे- आसुरी माया से बने हुए।

मारीच का चांदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है, कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे, तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी मायावी या कृत्रिम माना जा सकता है।
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रावण : भाई, बहन, पत्नियां और श्राप 

ऋषि विश्वश्रवा ने ऋषि भारद्वाज की पुत्री से विवाह किया, जिनसे कुबेर का जन्म हुआ। विश्वश्रवा की दूसरी पत्नी कैकसी से रावण, कुंभकरण, विभीषण और सूर्पणखा का जन्म हुआ।  

रावण के छह भाई थे- कुबेर, विभीषण, कुम्भकरण, अहिरावण, खर और दूषण। 
रावण की दो बहने- एक सूर्पनखा और दूसरी कुम्भिनी थी, जो कि मथुरा के राजा मधु राक्षस की पत्नी और राक्षस लवणासुर की माँ थीं। खर, दूषण, कुम्भिनी, अहिरावण और कुबेर रावण के सगे भाई बहन नहीं थे। कुबेर को हटाने के पश्चात रावण के लंका में राज करने के बाद उसने अपनी बहन शूर्पणखा का विवाह कालका के पुत्र दानवराज विद्युविह्वा के साथ दिया।

रावण की पत्नियां
रावण की दो पत्नियां थीं, परन्तु कहीं-कहीं तीसरी पत्नी का उल्लेख है, लेकिन उसका नाम अज्ञात है। रावण की पहली पत्नी का नाम मंदोदरी राक्षसराज मयासुर की पुत्री थीं। दूसरी पत्नी धन्यमालिनी थी। तीसरी का नाम अज्ञात है। ऐसा भी कहा जाता है, कि रावण ने उसकी हत्या कर दी थी।

दिति के पुत्र मय की कन्या मंदोदरी उसकी मुख्‍य रानी थी, जो हेमा नामक अप्सरा के गर्भ से उत्पन्न हुई थीं। माना जाता है कि मंदोदरी राजस्थान के जोधपुर के निकट मन्डोर की थी। कुछ लोग उसे मध्यप्रदेश के मंदसोर से जोड़कर भी देखते हैं। मंदोदरी से रावण को जो पुत्र मिले उनके नाम हैं- इंद्रजीत, मेघनाद, महोदर, प्रहस्त, विरुपाक्ष भीकम वीर। कहते हैं कि धन्यमालिनी से अतिक्या और त्रिशिरार नामक दो पुत्र जन्में जबकि तीसरी पत्नी के प्रहस्था, नरांतका और देवताका नामक पुत्र थे।

रावण की पत्नी की बड़ी बहन 
रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया पर भी वासनायुक्त दृष्टि रखी। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। रावण ने माया को अपनी बातों में फंसाने का प्रयास किया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी, तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा, कि तुमने वासनायुक्त होकर मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया। इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।

रावण और अप्सरा रंभा
त्रिलोक विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा, तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। कामातुर होकर उसने रंभा को पकड़ लिया। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, तब अप्सरा रंभा ने कहा- आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं। इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं। लेकिन रावण ने उसकी बात नहीं मानी और रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली, तो उसने रावण को श्राप दिया, कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श नहीं कर पाएगा। यदि करेगा, तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।

रावण को वेदवती का श्राप   
एक बार रावण जब अपने पुष्पक विमान से किसी स्थान विशेष पर जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी। उसका नाम वेदवती था, जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। ऐसे में रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया, कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। कहते हैं, उसी युवती ने सीता के रूप में जन्म लिया।


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