#शारदीय_नवरात्र पंचमी : माँ स्कंदमाता की पूजा, जानें विधि, मंत्र, भोग विधान और आरती



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देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। इसलिए इस दिन पूजा करने से व्यक्ति के बुध ग्रह के बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है। माता का मंत्र है- ॐ  

माँ स्कंदमाता- देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है। इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होने से इसे सभी को भोजन के पश्चात काले नमक से भूनकर प्रतिदिन सुबह शाम लेना चाहिए। यह रक्त भी साफ करता है। 

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नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। मां दुर्गा के इस रूप की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और संतान की दीर्घायु का आशीर्वाद भी प्राप्त हो सकता है। मां के मुख पर सूर्य के समान तेज होता है और पीले रंग के वस्त्र में उनके दर्शन करने से मन को शांति प्राप्त होती है।

पांचवें दिन पर स्कंदमाता की पूजा करने का विधान होता है। मान्यता है कि दुर्गा मां के पांचवें स्वरूप की विधि-विधान से पूजा करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण हो सकती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही, साधक को ज्ञान और शुभ फल प्राप्त होते हैं। भोलेनाथ की अर्द्धांगिनी के रूप में देवी ने कार्तिकेयजी को जन्म दिया था, जिनका दूसरा नाम स्कंद भी है। यही कारण है की मां को स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है।  

माता स्कंदमाता का स्वरूप
माँ दुर्गा का पांचवां स्वरूप स्कंदमाता चारा भुजाओं वाली हैं। स्वामी कार्तिकेय को अपनी गोद में लेकर शेर पर सवार हैं। देवी को प्रेम और ममता की मूर्ति माना जाता है। वह ज्ञान, कर्म और इच्छाशक्ति का मिश्रण हैं। स्कंदमाता के दोनों हाथों में कमल शोभायमान है। देवी समस्त ज्ञान, धर्म, कर्म, विज्ञान, कृषि अद्योग सहित पंच आवरणों से समाहित विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहलाई जाती हैं। इनकी पूजा में धनुष बाण अर्पित करने का खास महत्व होता है और मां के मुख पर सूर्य के समान तेज नजर आता है। देवी ने शिवजी की अर्द्धांगिनी के रूप में कार्तिकेयजी को जन्म दिया था। उनका दूसरा नाम स्कंद होने से माँ का नाम स्कंदमाता पड़ा।

पूजा की विधि
प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करें और साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद, पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर लें और लकड़ी की चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं।

अब चौकी पर देवी स्कंदमाता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करके उन्हें पीले रंग के फूल और श्रृंगार का सामान अर्पित करें। साथ ही, माता को इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनाने चाहिए।

माता स्कंदमाता का ध्यान करते हुए उनके मंत्र का 108 बार जाप करें और फिर, देवी को इलायची, लौंग, पान का पत्ता, माला आदि अर्पित करें। अब विधिपूर्वक दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

व्रत कथा का पाठ करने के पश्चात माता स्कंदमाता की आरती करें। उन्हें प्रणाम करते हुए अपनी मनोकामना उनके सामने बोलें। अंत में चढ़ाया हुआ प्रसाद सभी को बांट दें।

माँ स्कंदमाता का भोग
माता को पीले रंग की वस्तुएं अर्पित करना शुभ माना जाता है, क्योंकि स्कंदमाता को पीला रंग बेहद प्रिय है। ऐसे में उनकी पूजा में पीले फल, फूल, मिठाई आदि अर्पित करनी चाहिए। साथ ही, आप देवी को केसर की खीर का भोग लगा सकते हैं। वहीं, मां को 5 हरी इलायची और लौंग का एक जोड़ा चढ़ाना भी बहुत लाभदायक सिद्ध होता है।

नवरात्र की पंचमी (5वें दिन) देवी को पीले रंग के वस्त्र पहनाने के साथ-साथ स्वयं भी पीले या सुनहरे रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। यह रंग सुख-शांति का प्रतीक होता है। ऐसे में इस रूप में मां स्कंदमाता की पूजा और दर्शन करने से मन को शांति मिलती है। इसीलिए देवी का श्रृंगार भी इसी रंग के साथ करना चाहिए।

देवी स्कंदमाता का मंत्र
सिंहासना  गता  नित्यं  पद्माश्रि  तकरद्वया,
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो  नम:।

माँ स्कंदमाता की आरती
जय तेरी हो स्कंद माता, पांचवा नाम तुम्हारा आता।
सब के मन की जानन हारी, जग जननी सब की महतारी।

तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं, हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।
कई नामों से तुझे पुकारा, मुझे एक है तेरा सहारा।

कही पहाड़ो पर हैं डेरा, कई शहरों में तेरा बसेरा।
हर मंदिर में तेरे नजारे, गुण गाये तेरे भगत प्यारे।

भगति अपनी मुझे दिला दो, शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।
इंद्र आदी देवता मिल सारे, करे पुकार तुम्हारे द्वारे।

दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आएं, तुम ही खंडा हाथ उठाएं।
दासो को सदा बचाने आई, ‘चमन’ की आस पुजाने आई।

अंत में क्षमा प्रार्थना पढ़ें
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया,
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।


पढ़ें / देखें-
  
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नवरात्रि में इन मंत्रों का करें जाप
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।

दारिद्रदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता।।

सर्वमङ्गल  माङ्गल्ये  शिवे  सर्वार्थ  साधिके।
शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।।

शरणागत   दीनार्तपरित्राण   परायणे
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।

दुर्गा चालीसा  
॥ दोहा ॥
नित्यानन्द करुणा अम्बे, करुणामयी  जय दुर्गे,
जय जगदम्बे दयामयी, जय जय माता भवानी॥

॥ चौपाई ॥
नमो  नमो  दुर्गे  सुख करनी,
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥

निराकार है ज्योति तुम्हारी,
तिहुँ लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महा विशाल,
नेत्र  लाल   भृकुटि  विकराल॥

रूप  मातु  को अधिक  सुहावे,
दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना,
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला,
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलय काल सब नाशन हारी,
तुम गौरी शिव-शंकर प्यारी॥

शिव योगी तुमरे गुण गावैं,
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं॥

रूप सरस्वती को तुम धारा,
दे सबको ज्ञान प्रकाश हमारा॥

रूप लक्ष्मी का तुमको माना,
धन-वैभव संपत्ति नित आना॥

रूप तुम्हारा सभी जग जाने,
करो कृपा सबके दुःख टालें॥

ध्यान धरे जो नर मन लाई,
पार  पावै  संकट से भाई॥

जो यह पढ़े दुर्गा चालीसा,
होवे सिद्धि साखी गौरीसा॥

॥ दोहा ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावे,
सकल मनोरथ सिद्धि पावे॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी,
तुम सम हित कोई नहीं दान

नवरात्रि में-
✔ नवरात्रि के दिनों माँ दुर्गा स्वर्गलोक से पृथ्वी पर आती हैं,
✔ नवरात्रि में भक्ति के अनुरूप प्रतिफल अवश्य प्राप्त होता है,
✔ जप-पाठ, हवन-पूजन, कन्या पूजन का विशेष महत्व है,
✔ श्रद्धालु अपने मन के अनुकूल पूजा करें, मंत्र नहीं आता तो मन से जुड़े,
✔ नौ-दिन में हर प्रकार शुभ व नए कार्य किए जाते हैं,

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