#शारदीय_नवरात्र षष्ठी : माँ कात्यायिनी कन्याओं के विवाह में बाधा हेतु करें माता के मंत्र उपासना
कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी।
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।
माता के छठें स्वरुप- भगवती कात्यायनी वृहस्पति का तथा व्यक्ति की कुण्डली में नवम और द्वादश भाव का प्रतिनिधित्व करती हैं।
धर्म नगरी / DN News
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विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेषु वाद्येषु वाक्येषु च का त्वदन्या।
ममत्वगर्तेSतिमहान्धकारे, विभ्रामत्येतदतीव विश्वम्।। नवरात्र की षष्ठी तिथि (छठवा दिन) समर्पित है कात्यायनी देवी की उपासना के निमित्त। देवी के इस रूप में भी इनके चार हाथ माने जाते हैं और इस रूप में भी ये सिंह पर सवार हैं। इनके तीन हाथों में तलवार, ढाल और कमल पुष्प हैं तथा स्कन्दमाता की ही भाँति एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में दिखाई देता है। इनके चार हाथों को चतुर्विध पुरुषार्थ के रूप में भी देखा जाता है। अतः ऐसा माना जाता है, कि इनकी उपासना से चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की सिद्धि होती है।
यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में सर्प्रथम उनका उल्लेख उपलब्ध होता है। देवासुर संग्राम में देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये, महिषासुर जैसे दानवों का संहार करने के लिए देवी कत ऋषि के पुत्र महर्षि कात्यायन के आश्रम पर प्रकट हुईं। महर्षि ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। अतः “कात्यायनी” नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई। इस प्रकार देवी का यह रूप पुत्री रूप है।
माँ दुर्गा के नौ रूपों को नवग्रहों से संबंध माना जाता है। मान्यता है, भगवती का यह रूप वृहस्पति का तथा व्यक्ति की कुण्डली में नवम और द्वादश भाव का प्रतिनिधित्व करता है। देवगुरु बृहस्पति को सौभाग्य कारक तथा विद्या, ज्ञान-विज्ञान और धार्मिक आस्थाओं का कारक भी माना जाता है। नवम भाव धर्म तथा सौभाग्य का भाव तथा द्वादश भाव मोक्ष तथा व्यय आदि का भाव भी माना जाता है। अतः नवम और द्वादश भावों से सम्बन्धित दोष दूर करने के लिए तथा बृहस्पति को प्रसन्न करने के लिए कात्यायनी देवी की पूजा अर्चना का सुझाव ज्योतिषी देते हैं।
कात्यायनी देवी के रूप में माँ भगवती सभी की रक्षा करें और सभी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करें…
मूल मंत्र
चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।|
ध्यान
वन्दे वांछितमनोरथार्थ चन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्।|
स्वर्णाज्ञाचक्रस्थितां षष्टाम् दुर्गां त्रिनेत्राम्।
वराभीतकरां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि।
पट्टाम्बरपरिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीरहारकेयूर किंकिणिरत्न कुण्डलमण्डिताम्।
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कांतकपोला तुंगकुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषितनिम्ननाभिम।
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलाम्।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोSस्तुते।
नवरात्रि में इन मंत्रों का करें जाप
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में सर्प्रथम उनका उल्लेख उपलब्ध होता है। देवासुर संग्राम में देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये, महिषासुर जैसे दानवों का संहार करने के लिए देवी कत ऋषि के पुत्र महर्षि कात्यायन के आश्रम पर प्रकट हुईं। महर्षि ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। अतः “कात्यायनी” नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई। इस प्रकार देवी का यह रूप पुत्री रूप है।
यह रूप निश्छल पवित्र प्रेम का प्रतीक है। किन्तु साथ ही यदि कहीं कुछ भी अनुचित होता दिखाई देगा तो ये कभी भी भयंकर क्रोध में भी आ सकती हैं। स्कन्द पुराण में उल्लेख है, कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं। बाद में पार्वती द्वारा प्रदत्त सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया था। पाणिनि पर पतंजलि के भाष्य में इन्हें शक्ति का आदि रूप बताया गया है। देवी भागवत और मार्कण्डेय पुराणों में इनका माहात्म्य विस्तार से उपलब्ध होता है।
“एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रय भूषितं,
“एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रय भूषितं,
पातु नः सर्वभीतेभ्यः कात्यायनी नमोSस्तु ते।” मंत्र के जाप द्वारा देवी कात्यायनी की उपासना की जाती है। इसके अतिरिक्त
“चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।” मंत्र के द्वारा भी इनकी उपासना की जाती है।
जिन कन्याओं के विवाह में बाधा आती है, वे यदि-
ॐ कात्यायिनी महामाये, सर्वयोगिन्यधीश्वरी।
नन्दगोपसुतं देवी पतिं में कुरु, ते नमः।।
मंत्र से कात्यायनी देवी की उपासना करें, तो उन्हें उत्तम वर की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त “ऐं क्लीं श्रीं त्रिनेत्रायै नमः” माँ कात्यायनी का यह बीज मंत्र है। इनकी उपासना के लिए इस बीज मंत्र का जाप भी किया जा सकता है। नवार्ण मंत्र के द्वारा भी कात्यायनी देवी की उपासना की जाती है। भगवती का यह रूप आज्ञा चक्र का प्रतीक है तथा साधक को अज्ञात भय से मुक्ति दिलाकर उसमें क्षमा शीलता का विकास करता है।
माँ दुर्गा के नौ रूपों को नवग्रहों से संबंध माना जाता है। मान्यता है, भगवती का यह रूप वृहस्पति का तथा व्यक्ति की कुण्डली में नवम और द्वादश भाव का प्रतिनिधित्व करता है। देवगुरु बृहस्पति को सौभाग्य कारक तथा विद्या, ज्ञान-विज्ञान और धार्मिक आस्थाओं का कारक भी माना जाता है। नवम भाव धर्म तथा सौभाग्य का भाव तथा द्वादश भाव मोक्ष तथा व्यय आदि का भाव भी माना जाता है। अतः नवम और द्वादश भावों से सम्बन्धित दोष दूर करने के लिए तथा बृहस्पति को प्रसन्न करने के लिए कात्यायनी देवी की पूजा अर्चना का सुझाव ज्योतिषी देते हैं।
माँ कात्यायनी की सवारी शेर है। इनके सिर पर मुकुट सुशोभित है। माता की चार भुजाएं हैं। माना जाता है कि मां के इस स्वरूप की पूजा अर्चना से विवाह में आ रही परेशानी दूर हो जाती है।
माँ कात्यायनी का भोग
मां कात्यायनी को शहद और पीले रंग का भोग प्रिय है। इसलिए माता को शहद से तैयार हलवे का भोग लगाया जाता है।
माँ कात्यायनी की पूजा विधि
✔ सुबह की पूजा में प्रतिदिन की भाँती साफ वस्त्र पहनकर पीले फूल चढ़ाएं, माता को पीले रंग का भोग लगाएं।
✔ अक्षत कुमकुम, रोली, पीला पुष्प, पीला भोग चढ़ाएं।
✔ माता के साथ दूसरे देवी देवताओं की भी पूजा करें।
✔ माता की आरती करें और मंत्रों का जाप करें।
✔ इसके बाद गोधूलि वेला के समय पीले या लाल वस्त्र पहनकर इनकी पूजा करनी चाहिए।
✔ इस माता को पीले, लाल फूल और पीला भोग अर्पित करें, इन्हें चांदी या मिट्टी के पात्र में शहद अर्पित करें।
✔ माँ के सामने दीप जलाएं, सुगंधित पुष्प अर्पित करें, इससे प्रेम संबंधी बाधाएं भी दूर होंगी।
✔ इसके बाद 3 गांठ हल्दी की भी चढ़ाएं।
✔ अब माता के सामने 51 माला अथवा मंत्रों का जाप करें।
मंत्र
ॐ ह्रीं नम:।।
चन्द्रहासोज्जवलकराशाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
मूल मंत्र
चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।|
ध्यान
वन्दे वांछितमनोरथार्थ चन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्।|
स्वर्णाज्ञाचक्रस्थितां षष्टाम् दुर्गां त्रिनेत्राम्।
वराभीतकरां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि।
पट्टाम्बरपरिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीरहारकेयूर किंकिणिरत्न कुण्डलमण्डिताम्।
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कांतकपोला तुंगकुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषितनिम्ननाभिम।
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलाम्।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोSस्तुते।
पट्टाम्बरपरिधानां नानालंकारभूषिताम्।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोSस्तुते।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोSस्तुते।
परमानन्दमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति परमभक्ति कात्यायनसुते नमोSस्तुते।
परमशक्ति परमभक्ति कात्यायनसुते नमोSस्तुते।
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चमत्कारी है "सिद्ध कुंजिका स्तोत्र", इसके पाठ से दूर होती हैं समस्याएं, श्रीरुद्रयामल के...
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ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता।।
सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।।
शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।
सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।।
शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।
दुर्गा चालीसा
॥ दोहा ॥
नित्यानन्द करुणा अम्बे, करुणामयी जय दुर्गे,
जय जगदम्बे दयामयी, जय जय माता भवानी॥
॥ चौपाई ॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी,
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी,
तिहुँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महा विशाल,
नेत्र लाल भृकुटि विकराल॥
रूप मातु को अधिक सुहावे,
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना,
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला,
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलय काल सब नाशन हारी,
तुम गौरी शिव-शंकर प्यारी॥
शिव योगी तुमरे गुण गावैं,
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं॥
रूप सरस्वती को तुम धारा,
दे सबको ज्ञान प्रकाश हमारा॥
रूप लक्ष्मी का तुमको माना,
धन-वैभव संपत्ति नित आना॥
रूप तुम्हारा सभी जग जाने,
करो कृपा सबके दुःख टालें॥
ध्यान धरे जो नर मन लाई,
पार पावै संकट से भाई॥
जो यह पढ़े दुर्गा चालीसा,
होवे सिद्धि साखी गौरीसा॥
॥ दोहा ॥
नित्यानन्द करुणा अम्बे, करुणामयी जय दुर्गे,
जय जगदम्बे दयामयी, जय जय माता भवानी॥
॥ चौपाई ॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी,
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी,
तिहुँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महा विशाल,
नेत्र लाल भृकुटि विकराल॥
रूप मातु को अधिक सुहावे,
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना,
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला,
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलय काल सब नाशन हारी,
तुम गौरी शिव-शंकर प्यारी॥
शिव योगी तुमरे गुण गावैं,
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं॥
रूप सरस्वती को तुम धारा,
दे सबको ज्ञान प्रकाश हमारा॥
रूप लक्ष्मी का तुमको माना,
धन-वैभव संपत्ति नित आना॥
रूप तुम्हारा सभी जग जाने,
करो कृपा सबके दुःख टालें॥
ध्यान धरे जो नर मन लाई,
पार पावै संकट से भाई॥
जो यह पढ़े दुर्गा चालीसा,
होवे सिद्धि साखी गौरीसा॥
॥ दोहा ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावे,
सकल मनोरथ सिद्धि पावे॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी,
तुम सम हित कोई नहीं दान॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावे,
सकल मनोरथ सिद्धि पावे॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी,
तुम सम हित कोई नहीं दान॥
नवरात्रि में-
- नवरात्रि के दिनों माँ दुर्गा स्वर्गलोक से पृथ्वी पर आती हैं,
- नवरात्रि में भक्ति के अनुरूप प्रतिफल अवश्य प्राप्त होता है,
- जप-पाठ, हवन-पूजन, कन्या पूजन का विशेष महत्व है,
- भक्त-श्रद्धालु अपने मन के अनुकूल पूजा करें, मंत्र नहीं आता तो मन से जुड़े,
- नौ-दिन में हर प्रकार शुभ व नए कार्य किए जाते हैं,
नवरात्रि में श्रद्धालु-भक्तों हेतु सबसे छोटा मंत्र हैं- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै (महालक्ष्मी, महाकाली, महा सरस्वती) का प्रतिदिन न्यूनतम 108 बार या क्षमतानुसार जाप करें।
- नवरात्रि के दिनों माँ दुर्गा स्वर्गलोक से पृथ्वी पर आती हैं,
- नवरात्रि में भक्ति के अनुरूप प्रतिफल अवश्य प्राप्त होता है,
- जप-पाठ, हवन-पूजन, कन्या पूजन का विशेष महत्व है,
- भक्त-श्रद्धालु अपने मन के अनुकूल पूजा करें, मंत्र नहीं आता तो मन से जुड़े,
- नौ-दिन में हर प्रकार शुभ व नए कार्य किए जाते हैं,
नवरात्रि में श्रद्धालु-भक्तों हेतु सबसे छोटा मंत्र हैं- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै (महालक्ष्मी, महाकाली, महा सरस्वती) का प्रतिदिन न्यूनतम 108 बार या क्षमतानुसार जाप करें।
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