#शारदीय_नवरात्र : चतुर्थी : माँ कूष्मांडा की पूजा, भोग, पूजा-विधि, मंत्र, कथा, आरती



चतुर्थी कूष्मांडा (पेठा)- इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है.इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं, जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है। "मानसिक" रोगों में यह अमृत समान है। आज कल सैक्रीन से बनने वाला पेठा नहीं खाये घर में बनाये। 

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नवरात्र की चतुर्थी (चौथे दिन) माँ कूष्मांडा की पूजा का विधान है, जिन्हें परमेश्वरी का रूप माना जाता है। मान्यता है, श्रद्धापूर्वक इनकी आराधना से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। विद्यार्थियों के लिए यह पूजा विशेष फलदायी है, जिससे बुद्धि का विकास होता है।

माता कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। माँ कुष्मांडा को परमेश्वरी का रुप माना जाता है। माँ दुर्गा के इस स्वरुप माँ कुष्मांडा की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, काम में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं। देवी पुराण के अनुसार, विद्यार्थियों के लिए मां कुष्मांडा की पूजा करने से उनकी बुद्धि का विकास होता है और ज्ञान की प्राप्ति होती है।  

माता का स्वरुप  
देवी कूष्मांडा दुर्गा मां का चौथा स्वरुप है। देवी भागवत पुराण में उनकी महिला का वर्णन है। माना जाता है कि कूष्मांडा देवी की हंसी से ही सृष्टि के आरंभ में अंधकार था, जिसे मां ने अपनी हंसी से दूर किया था। उनमें सूर्य की गर्मी सहने से शक्ति है।

माँ कूष्मांडा शेर की सवारी करती हैं। उनकी आठ भुजाएं हैं। उनकी आठ भुजाओं में अस्त्र हैं। उनकी भुजाओं में कमल, कलश, कमंडल, और सुदर्शन चक्र पकड़ा हुआ है। मां का यह स्वरुर उन्हें जीवन दान देती हैं। मां कुष्मांडा का रुप बहुत ही आलौकिक और दिव्य है।


माँ कूष्मांडा के पूजा मंत्र
ॐ कुष्माण्डायै नम:

मां कूष्‍मांडा का बीज मंत्र: कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:


माँ कुष्‍मांडा का ध्यान मंत्र
या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो  नमः॥

माँ कूष्मांडा का भोग
पीले रंग के मीठाइयों का 
माँ कूष्मांडा को भोग लगाया जाता है। जैसे केसर वाला पेठा और मां कुष्मांडा को बताशे का भोग भी लगाया जााता है। इसके साथ माता कूष्मांडा को मालपुए का भोग भी लगा सकते हैं। साथ ही इस सफेद पेठे की बलि भी देते हैं।

माँ कूष्मांडा की पूजा विधि
- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और इसके बाद पूजा की तैयारी करें।
- माता का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। फिर गंगाजल से पूजा स्थल को अच्छे से पवित्र कर लें।
- लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं। फिर मां कूष्मांडा की प्रतिमा स्थापित करें या मां दुर्गा की मूर्ति को गंगाजल से स्थान कराका फिर से स्थापित करें।
- माता को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। उन्हें पीले फूल, पीली मिठाई, अर्पित करें।
- माता को सारी सामग्री अर्पित करने के बाद मां की आरती करें और अंत में पूजा की भूल चुक के लिए क्षमा याचना करें।


माँ कूष्मांडा की आरती

कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी  माँ  भोली भाली॥

लाखों  नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा  पर्वत पर  है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुंचती हो मां अंबे॥

तेरे  दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

माँ  के  मन  में  ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

नवरात्र में आरती और चालीसा का पाठ की केवल परंपरा नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और मानसिक संतुलन प्राप्त करने का एक माध्यम है। देवी दुर्गा को समर्पण भाव से आरती के माध्यम से हम आमंत्रित करते हैं, जिससे वातावरण में सकारात्मकता और ऊर्जा का प्रवाह होता है। 

माँ दुर्गा चालीसा का पाठ स्मरण कराता है, कि देवी शक्ति, साहस और करुणा का स्वरूप हैं। नकारात्मक विचारों को दूर कर मन को स्थिर करता है। जीवन में आत्मविश्वास बढ़ाता है। नवरात्र में आरती और चालीसा से भक्ति के साथ-साथ जीवन में शक्ति और शुभता का आशीर्वाद मिलता है।

दुर्गा जी की आरती : ॐ जय अम्बे गौरी…

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी .
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै,
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी,
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती,
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती .
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे,
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी,
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों,
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता . सुख संपति करता॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी .
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती,
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे,
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।।
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दुर्गा चालीसा  
॥ दोहा ॥
नित्यानन्द करुणा अम्बे, करुणामयी  जय दुर्गे,
जय जगदम्बे दयामयी, जय जय माता भवानी॥


॥ चौपाई ॥
नमो  नमो  दुर्गे  सुख करनी,
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥

निराकार है ज्योति तुम्हारी,
तिहुँ लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महा विशाल,
नेत्र  लाल   भृकुटि  विकराल॥

रूप  मातु  को अधिक  सुहावे,
दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना,
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला,
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलय काल सब नाशन हारी,
तुम गौरी शिव-शंकर प्यारी॥

शिव योगी तुमरे गुण गावैं,
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं॥

रूप सरस्वती को तुम धारा,
दे सबको ज्ञान प्रकाश हमारा॥

रूप लक्ष्मी का तुमको माना,
धन-वैभव संपत्ति नित आना॥

रूप तुम्हारा सभी जग जाने,
करो कृपा सबके दुःख टालें॥

ध्यान धरे जो नर मन लाई,
पार  पावै  संकट से भाई॥

जो यह पढ़े दुर्गा चालीसा,
होवे सिद्धि साखी गौरीसा॥

॥ दोहा ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावे,
सकल मनोरथ सिद्धि पावे॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी,
तुम सम हित कोई नहीं दान

नवरात्रि में-
- नवरात्रि के दिनों माँ दुर्गा स्वर्गलोक से पृथ्वी पर आती हैं,
- नवरात्रि में भक्ति के अनुरूप प्रतिफल अवश्य प्राप्त होता है,
- जप-पाठ, हवन-पूजन, कन्या पूजन का विशेष महत्व है,
- भक्त-श्रद्धालु अपने मन के अनुकूल पूजा करें, मंत्र नहीं आता तो मन से जुड़े,
- नौ-दिन में हर प्रकार शुभ व नए कार्य किए जाते हैं,
नवरात्रि में श्रद्धालु-भक्तों हेतु सबसे छोटा मंत्र हैं- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै (महालक्ष्मी, महाकाली, महा सरस्वती) का प्रतिदिन न्यूनतम 108 बार या क्षमतानुसार जाप करें।

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