श्रीहरिकोटा और बालासोर से ही क्यों होती हैं ISRO की लॉन्चिंग ?



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भारत का पहला रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन थुम्बा है, जो कि केरल में है, लेकिन अधिकांश स्पेस मिशन श्रीहरिकोटा (श्रीशैलम रेंज, आंध्र प्रदेश) से ही लॉन्च किए जाते हैं। चंद्रयान से लेकर मंगलयान तक और सूर्ययान तक श्रीहरिकोटा से ही लॉन्च किए गए। सारे सैटेलाइट भी श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से लॉन्च किए जाते हैं। ऐसा क्यों है, कि इसरो श्रीहरिकोटा को ही मिशन के लिए क्यों चुनता है, थुम्बा को नहीं ? इसके पीछे अनेक तकनीकी एवं भौगोलिक कारण हैं। थुम्बा का उपयोग आरंभिक प्रयोगों के लिए किया गया, लेकिन वह एक बहुत छोटा स्टेशन था, जो केवल साउंडिंग रॉकेट्स के लिए उपयुक्त था। थुम्बा का भौगोलिक स्थान और सीमित इन्फ्रास्ट्रक्चर बड़े उपग्रह लॉन्च मिशनों के लिए उपयुक्त नहीं था।

इसरो की रॉकेट लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा और बालासोर से इसलिए होती है, क्योंकि ये स्थान भूमध्य रेखा के निकट, लगभग 13.7° उत्तर अक्षांश पर समुद्र किनारे और पूर्व दिशा में हैं, जिससे लॉन्चिंग सुरक्षित और प्रभावी होती है। भूमध्य रेखा के पास लॉन्चिंग से लाभ होता है, क्योंकि धरती की घूर्णन गति यहां अधिक होती है, जिससे रॉकेट को शुरुआती गति मिलती है। इससे ईंधन की बचत होती है और भारी उपग्रहों को आसानी से कक्षा में पहुंचाया जा सकता है। इसलिए श्रीहरिकोटा बड़े मिशनों, जबकि बालासोर छोटे रॉकेट्स की लॉन्चिंग के लिए उपयुक्त है।

ISRO Day : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन अर्थात ISRO की अंतरिक्ष यात्रा में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं। उन्हीं उपलब्धियों को स्मरण करने के लिए 22 अगस्त को 'ISRO Day' के रूप में मनाया जाता है। ISRO की उपलब्धियों का एक एक बड़ा हिस्सा श्रीहरिकोटा और बालासोर जैसे चुनिंदा स्थानों से रॉकेट लॉन्चिंग के कारण संभव हो पाया है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर ISRO अपनी सारी लॉन्चिंग इन्हीं दो जगहों से क्यों करता है ?


श्रीहरिकोटा से लॉन्च हुए चंद्रयान और मंगलयान

श्रीहरिकोटा आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले में स्थित है और ISRO का पहला लॉन्च सेंटर है। इसे दुनिया सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC-SHAR) के नाम से जानती है। यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण स्पेसपोर्ट यानी कि अंतरिक्ष प्रक्षेपण स्थल है, जहां से चंद्रयान, मंगलयान, और आदित्य-एल1 जैसे ऐतिहासिक मिशन लॉन्च किए गए। श्रीहरिकोटा को इस अहम रोल के लिए 1969 में चुना गया जहाँ से पहला रॉकेट 1971 में लॉन्च हुआ, जब रोहिणी-125 साउंडिंग रॉकेट को छोड़ा गया।

भूमध्य रेखा से निकटता  
श्रीहरिकोटा की भौगोलिक स्थिति इसे लॉन्चिंग के लिए आदर्श बनाती है। यह जगह भूमध्य रेखा यानी  Equator के करीब है, जो रॉकेट लॉन्चिंग में एक बड़ा फायदा देती है। पृथ्वी की 'रोटेशनल स्पीड' भूमध्य रेखा के पास सबसे ज्यादा होती है, जिसके कारण रॉकेट को अतिरिक्त गति (लगभग 450 मीटर/सेकंड) मिलती है। इससे फ्यूल की बचत होती है और पेलोड (payload) की क्षमता बढ़ जाती है। जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स, जो भूमध्य रेखा के समतल में रहते हैं, के लिए यह जगह बहुत काम की होती है।

द्वीप पर सेंटर होने से अनेक 
विशेषतायें   
श्रीहरिकोटा एक द्वीप पर स्थित है, जो पुलिकट झील और बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। द्वीप के पूर्व में बंगाल की खाड़ी होने से रॉकेट के उड़ान मार्ग में कहीं भी जनसंख्या या अन्य संपत्तियों पर खतरा नहीं रहता। जबकि, थुम्बा के निकट पश्चिम में अरब सागर है, लेकिन वहां से लॉन्च करने पर रॉकेट का मार्ग अधिकतर जमीन के ऊपर से गुजरता है, जिससे खतरा बढ़ जाता है। श्रीहरिकोटा 
यह सुनिश्चित करता है, कि रॉकेट का उड़ान पथ (flight path) समुद्र के ऊपर हो, जिससे किसी दुर्घटना की स्थिति में जनसंख्या वाले क्षेत्र को हानि न हो। 

श्रीहरिकोटा की मिट्टी और चट्टानी ढांचा भी मजबूत है, जो लॉन्च के समय होने वाले तीव्र कंपन या वाइब्रेशंस को सहन कर सकता है। द्वीप का मौसम अपेक्षाकृत स्थिर और अनुकूल रहता है, जो स्पेस मिशन लॉन्चिंग के लिए बहुत आवश्यक है। श्रीहरिकोटा में पहले से पूरी लॉन्चिंग सुविधा, परीक्षण लैब, कंट्रोल सेंटर और वैज्ञानिक केंद्र स्थापित हैं। यह पूरे सेटअप बहुत बड़ा एवं जटिल होता है, इसलिए एक ही जगह पर इसे संचालित करना सुविधाजनक होता है।

श्रीहरिकोटा के दो लॉन्च पैड्स  

श्रीहरिकोटा में 2 लॉन्च पैड्स हैं- फर्स्ट लॉन्च पैड (FLP) एवं सेकेंड लॉन्च पैड (SLP)। पहला पैड मुख्य रूप से PSLV और SSLV मिशनों के लिए उपयोग होता है, जबकि दूसरा GSLV और LVM3 जैसे भारी रॉकेट्स के लिए। हाल ही में, तीसरे लॉन्च पैड की योजना को स्वीकृति दी गई है, जो 30,000 टन तक के अंतरिक्ष यान को लॉन्च करने में सक्षम होगा। यह भारत के गगनयान और चंद्रयान-4 जैसे महत्वाकांक्षी मिशनों के लिए महत्वपूर्ण होगा।

ओडिशा में स्थित बालासोर रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन ISRO के छोटे और साउंडिंग रॉकेट्स के लिए उपयोग होता है। यह श्रीहरिकोटा के साथ मिलकर ISRO रेंज कॉम्प्लेक्स (IREX) का हिस्सा है, जिसका मुख्यालय श्रीहरिकोटा में है। बालासोर मुख्य रूप से साउंडिंग रॉकेट्स की टेस्टिंग और छोटे वैज्ञानिक मिशनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। साउंडिंग रॉकेट्स छोटे रॉकेट होते हैं, जो वायुमंडल की स्टडी और वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।

छोटे रॉकेट्स की लॉन्चिंग हेतु बालासोर
बालासोर की स्थिति भी श्रीहरिकोटा की तरह काफी रणनीतिक जगह पर स्थित है। यह पूर्वी तट पर स्थित है, जो समुद्र के ऊपर सुरक्षित उड़ान पथ (flight path) प्रदान करता है। बालासोर का इस्तेमाल छोटे रॉकेट्स के लिए इसलिए भी होता है, क्योंकि यह श्रीहरिकोटा की तुलना में कम व्यस्त है, और छोटे मिशनों के लिए स्पेशल सुविधाएं प्रदान करता है। यह स्थान ISRO को विभिन्न प्रकार के रॉकेट्स और मिशनों के लिए लचीलापन देता है।

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श्रीहरिकोटा और बालासोर 
उपग्रहों और रॉकेट्स की लॉन्चिंग हेतु इसलिए है महत्वपूर्ण-
श्रीहरिकोटा और बालासोर दोनों ही पूर्वी तट पर हैं, जो पूर्व दिशा में लॉन्चिंग के लिए आदर्श है। पूर्व दिशा में लॉन्च करने से पृथ्वी की रोटेशनल स्पीड का अधिकतम लाभ मिलता है। दोनों स्थान समुद्र के करीब हैं, जिससे रॉकेट के अवशेष आबादी वाले इलाकों से दूर समुद्र में गिरते हैं। यह सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है।

श्रीहरिकोटा में साल भर अधिकतर समय मौसम लॉन्चिंग के लिए अनुकूल रहता है, और वहां का बुनियादी ढांचा (जैसे टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कंट्रोल सेंटर) वर्ल्ड क्लास है। बालासोर में भी छोटे मिशनों के लिए आवश्यक सुविधाएं हैं।

श्रीहरिकोटा से 'पोलर ऑर्बिट' में लॉन्च करने के लिए रॉकेट को श्रीलंका के ऊपर से उड़ान भरने से बचाने के लिए 'डॉग-लेग मैन्यूवर' करना पड़ता है, जो फ्यूल की खपत बढ़ाता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए ISRO ने तमिलनाडु के कुलासेकरपट्टिनम में दूसरा स्पेसपोर्ट विकसित करने का प्लान बनाया है।

इस तरह श्रीहरिकोटा और बालासोर ISRO के लिए इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये स्थान भौगोलिक, वैज्ञानिक और सुरक्षा के लिहाज से आदर्श हैं। श्रीहरिकोटा का सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र भारत के बड़े और महत्वाकांक्षी मिशनों का की लॉन्चिंग के लिए इस्तेमाल होता है, जबकि बालासोर छोटे वैज्ञानिक मिशनों के लिए सही है। इन दोनों केंद्रों ने भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक मजबूत पहचान दिलाई है।
 
सतीश धवन स्पेस सेंटर (SHARश्रीहरिकोटा-
➤ श्रीहरिकोटा एक स्पिंडल शेप आइलैंड आंध्र प्रदेश में स्थित है, जहाँ सतीश धवन स्पेस सेंटर स्थित है। इक्वेटर से इसकी निकटता (पूर्व दिशा की ओर लॉन्चिंग में बहुत अनुकूल) यहां से लॉन्चिंग होने की एक बड़ा कारण है। 

➤ सन 1969 में सैटलाइट लॉन्चिंग स्टेशन के रूप में श्रीहरिकोटा आइलैंड को चुना गया। 1971 में RH-125 साउंडिंग रॉकेट की लॉन्चिंग के साथ सेंटर ऑपरेशनल हुआ। पहला ऑर्बिट सैटलाइट रोहिणी-1A 10 अगस्त 1979 को लॉन्च किया गया लेकिन एक खामी की वजह से 19 अगस्त को यह नष्ट हो गया।

➤ श्रीहरिकोटा की लोकेशन सबसे महत्वपूर्ण है। इक्वेटर से इसकी निकटता इसे जियोस्टेशनरी सैटलाइट के लिए उत्तम लॉन्च साइट बनाती है। यह पूर्व दिशा की तरफ होने वाली लॉन्चिंग के लिए बहुत अनुकूल है। पूर्वी तट पर स्थित होने से इसे अतिरिक्त 0.4 km/s की वेलोसिटी मिलती है। अधिकाँश सैटलाइट को पूर्व की तरफ ही लॉन्च किया जाता है।

➤ यहां तक पहुंचने वाले उपकरण बहुत भारी होते हैं, जिन्हें दुनिया के कोने-कोने से यहां लाया जाता है। जमीन, हवा और पानी हर तरह से यहां पहुंचना बेहतर है। श्रीहरिकोटा नेशनल हाइवे (NH-5) पर स्थित है। निकट के रेलवे स्टेशन से 20 किलोमीटर और चेन्नई के इंटरनेशनल पोर्ट से 70 किलोमीटर दूर है।

➤ रॉकेट लॉन्चिंग जैसे कार्यों के लिए आपको आबादी से दूर रहने की आवश्यकता होती है, क्योंकि नागरिकों की सुरक्षा और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा भी होना चाहिए। यहां की बहुत कम है और यहां रहने वाले अधिकांश लोग या तो इसरो से जुड़े हैं या स्थानीय मछुआरे हैं। इसीलिए दुनिया के अधिकांश लॉन्चिंग पैड वाटर बॉडीज के पास हैं। बैकोनुर एक अपवाद है। भारत में दो लॉन्चिंग पैड हैं- एक श्रीहरिकोटा, दूसरा थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन, तिरुवनंतपुरम में।

➤ पृथ्वी की परिक्रमा को हर मिशन अपने लिए इस्तेमाल कर लेना चाहता है। पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की तरफ परिक्रमा करती है, इसलिए परिक्रमा को एक बूस्ट के रूप में उपयोग किया जाता है और ईंधन की भी बचत होती है।
 
➤ इसरो की इजाजत से ऐसा संभव है कि आप लॉन्चिंग पैड को देख सकें। हर बुधवार को विजिटर्स को लिमिटेड एक्सेस के साथ यहां ले जाया जाता है। इसरो की इजाजत से ऐसा संभव है कि आप लॉन्चिंग पैड को देख सकें। हर बुधवार को विजिटर्स को लिमिटेड एक्सेस के साथ यहां ले जाया जाता है।

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