#धनतेरस : धन्वंतरि का प्राकट्य-दिवस, मंत्र, मुहूर्त, पौराणिक कथा, धन त्रयोदशी को...


...क्या करें, क्या नहीं 

धनतेरस या धन्वंतरि-त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य दिवस (जयन्ती) होती है, अर्थात आयुर्वेद के देवता का प्राकट्य-दिवस मनाते हैं। भगवान धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक है एवं भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माने जाते हैं।

धर्म नगरी / DN News
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आचार्य नित्यानंद गिरी (9216745145) 

धनतेरस (धनत्रयोदशी) कार्तिक माह के कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी और दिवाली यह तीनों पर्व रात में मनाए जाने वाले पर्व हैं इसलिए जिस समय त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि प्रदोष काल में हो उस दिन यह त्योहार मनाया जाता है। अभ्यंग स्नान, अन्नकूट, गोवर्धन पूजा और भाई दूज दिन में मनाए जाने वाले पर्व है इसलिए इन पर्वों में उदयातिथि को ले सकते हैं।

अमावस्या का प्रवेश प्रदोष-काल में हो जाता है और प्रदोष आते ही दीपावली की रात्रि आरंभ हो जाती है। वृष लग्न आ जाता है. ब्रह्म पुराण के अनुसार, राजा बलि के कारागार से मुक्त होकर माता लक्ष्मी स्वच्छंद होकर आधी रात में घर-घर जाती हैं। अमावस्या की आधी रात जिसका भी घर खुला हुआ है, उस घर में लक्ष्मी निवास करती हैं।     

भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के प्रमाणिक देवता हैं, जिनके निमित्त मंत्र चरक-संहिता में प्राप्त होता है-
ॐ आयुर्दाय  नमस्तुभ्यम अमृत  पद्माधिपाय च।
भगवन धन्वंतरि प्रसादेन आयु: आरोग्य संपद:।।

दूसरा मंत्र-
धन्वंतरि  नमस्तुभ्यम  आयु: आरोग्य स्थिर: कुरु।
रुपम देहि यशो देहि, भाग्यम आरोग्य ददस्व में।।

त्रयोदशी (धनतेरस) तिथि
तिथि प्रारम्भ- 18 अक्टूबर दोपहर 12:18 बजे से।
तिथि समाप्त- 19 अक्टूबर 2025 दोपहर 1:51 बजे तक।
विशेष- उपरोक्त तिथि के प्रारंभ और अंत के अनुसार 18 अक्टूबर को ही त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल व्यापिनी है इसलिए धनतेरस का पर्व 18 अक्टूबर को ही मनाया जाता उचित है। इस दिन पूजा व खरीदारी के लिए शुभ मुहूर्त- 

धनतेरस : शुभ मुहूर्त (18 अक्टूबर 2025 शनिवार)
धनतेरस पूजा का समय- शाम 7:15 बजे से रात्रि 8:19 बजे तक।
प्रदोष काल : शाम 5:48 बजे से रात्रि 08:19 बजे तक।
वृषभ काल : शाम 7:15 बजे से रात्रि 09:11 बजे तक।
यम दीपम (दीपदान) का समय : 18 अक्टूबर 2025 प्रदोष काल में।

पूजा के लिए चौघड़िया (जो मानते हैं)
लाभ का चौघड़िया- शाम 5:48 से 7:23 तक।
शुभ का चौघड़िया- रात्रि 8:57 से 10:32 तक।

धनतेरस खरीदारी का शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त- दिन में 11:43 से दोपहर 12:29 तक।
लाभ का चौघड़िया- अपराह्न 01:32 से 02:57 तक।
अमृत का चौघड़िया- अपराह्न 02:57 से 04:23 तक।
लाभ का चौघड़िया- शाम 05:48 से 07:23 तक।
(विशेष : पंचांग चौघड़िया व मुहूर्त आपके स्थानीय समय और स्थान के आधार पर थोड़े भिन्न हो सकते हैं।)

धनतेरस पर कब, कितने दिए जलाए ?
धनतेरस पर आप कितने भी दिए जला सकते हैं। 5, 7, 11 या 51 परन्तु 13 दिए जलाने का विशेष महत्व है। इस दिन 13 दीए जरूर जलाने चाहिए। ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का वास होता है और परिवार में सुख समृद्धि आती है। धनतेरस पर दीपक जलाने के लिए दो शुभ मुहूर्त है।
लाभ चौघड़िया शाम में 5 बजकर 48 मिनट से शाम में 7 बजकर 23 मिनट तक
शुभ चौघड़िया रात में 8 बजकर 58 मिनट से 10 बजकर 33 मिनट तक।

धनतेरस पर कहां जलाए दिया (दीपक) ?
पहला दीया तुलसी के पास जलाएं
दूसरा दीया घर की छत पर रखें
तीसरा घर के बाहर दक्षिण दिशा की ओर यमराज के नाम से जलाए
चौथा दीया घर के मुख्य द्वार पर रखें
पांचवां माता लक्ष्मी के सामने पूजा स्थल पर देवी देवताओं के लिए
छठा दीया कूड़े के पास
सातवा बेल वृक्ष के नीचे जलाए
आठवां दीया अपने घर के वॉशरुम में
नौवां अपने घर के पास किसी भी मंदिर में जलाएं
दसवां दीया पीपल के पेड़ के पास रखें
ग्यारहवां अपने घर ब्रह्म-स्थान पर रखें
बारहवां दीया रसोई घर में रखें
तेरहवां दीया अपने घर की खिड़की पर

धनतेरस पर दीपक जलाने का मंत्र
धनतेरस की रात दीपक जलाते समय इस मंत्र का जप करें
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥ 
इस मंत्र के जप करने से घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है, जीवन में सफलता एवं आनंद हेतु मार्ग प्रशस्त होते हैं तथा नकारात्मकता दूर होती है।

गणपति ने जब कुबेर का तोड़ा अहंकार
शिव पुराण के अनुसार, कुबेर ने अपने धन और वैभव के घमंड में देवताओं को भोज के लिए आमंत्रित किया, ताकि वह अपनी संपन्नता दिखा सके। उसने शिव पुत्र गणेशजी को भी निमंत्रित किया। कुबेर का घमंड तोड़ने के लिए गणेश जी उसके भोज में पहुंचे और सारा भोजन चट कर गए। उसके बाद उनकी भूख बढ़ती गई और कुबेर के लिए मुश्किल खड़ी हो गई। वह गणेशजी की क्षुधा को शांत नहीं करा पा रहा था। गणेशजी ने उसके अन्न और धन के भंडार, हीरे-जवाहरात और धन अपने उदर में समा लिया और अंत में वे कुबेर को ही निगलने के लिए दौड़ पड़े। इस पर डरकर कुबेर गणेशजी के सामने शरणागत हो गए और इस तरह उनका घमंड टूट गया।

उक्त कथा के क्रम में उनके जन्‍म की भी कहानी है। एकबार, कुबेर के यहां भोज से लौटने के बाद गणेश जी के उदर में जलन होने लगी। उनको मधुमेह हो गया। दिन प्रति दिन उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा। माता पार्वती काफी चिंतित थीं, उन्होंने भगवान शिव को ध्यान मुद्रा से जगाया। उसी समय त्रिकालदर्शी भगवान शिव के तीसरे नेत्र से भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ। उन्होंने गणेश जी को दूर्वा का रस पिलाया, तब जाकर गणेशजी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ। इसीलिए गणपति के पूजन में दूर्वा अर्पित किया जाता है।
इससे गणेश जी जल्द प्रसन्न होते हैं।
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धनतेरस की पौराणिक कथा
पौराण‍िक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु द्वारा शाप दिए जाने के कारण देवी लक्ष्मी को तेरह वर्षों तक एक किसान के घर पर रहना था। मां लक्ष्मी के उस किसान के रहने से उसका घर धन-समाप्ति से भरपूर हो गया। तेरह वर्षों के बाद जब भगवान विष्णु मां लक्ष्मी को लेने आए तो किसान ने मां लक्ष्मी से वहीं रुकने का आग्रह किया। इस पर देवी लक्ष्मी ने किसान से कहा कि कल त्रयोदशी है और अगर वह साफ-सफाई करके दीप प्रज्वलित करके उनका आह्वान करेगा, तो किसान को धन-वैभव की प्राप्ति होगी। इसके बाद मां लक्ष्मी ने जैसा कहा था क‍िसान ने वैसा ही क‍िया। तब मां की कृपा से उसे धन-वैभव की प्राप्ति होती है। मान्‍यता है, त‍ब से ही धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी के पूजन की परंपरा आरंभ हुई।

भगवान धनवंतर‍ि को स्वास्थ्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन के समय भगवान धनवंतर‍ि अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे इसीलिए इस दिन बर्तन खरीदने की प्रथा प्रचलित हुई।

एक राजकुमार की कुंडली में लिखा हुआ था, कि उसके विवाह के चौथे दिन सांप के डसने से उसकी माैत हो जाएगी। ऐसे में उसके विवाह के बाद उसकी पत्नी ने निर्धारित दिन पर अपने सोने चांदी के बने आभूषण एक ढेर में एकत्र कर शयनकक्ष के दरवाजे पर रख दिए और चारो तरफ दिए जला दिए। वहीं अपने अपने पति को जगाए रखने के लिए वह उन्हें कहानियां व गीत सुनाती रही। इस बीच यमराज सांप के रूप में जब आए तो सोने-चांदी के आभूषणों की चमक से उनकी आंखें चकाचौंध हो उठीं। इसके चलते वह राजकुमार के कक्ष में प्रवेश नहीं कर सके, तो वह सोने-चांदी के ढेर पर ही बैठ गए और कहानियां व गीत सुनते रहे। सुबह होते ही वह वहां से चले गए। इस तरह से राजकुमार की पत्नी ने अपने पति की जान बचाई।
धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है। उनकी चार भुजाएं हैं। एक हाथ में चक्र, दूसरे में शंख, तीसरे में जलूका और औषधि तथा चौथे हाथ में अमृत कलश होता है।

गणेशजी को दूर्वा का रस देने के बाद वे भगवान शिव से आशीर्वाद लेकर संसार के कल्याण के लिए अमृत कलश लेकर कैलास से प्रस्थान कर गए। कहा जाता है, कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन करने से परिवार में आरोग्य आता है। सभी सदस्य स्वस्थ रहते हैं। इसलिए धनतेरस को धन्वंतरी जयंती भी कहा जाता है। इस दिन वैद्य, हकीम और ब्राह्मण समाज धन्वंतरी भगवान का पूजन करता है।

भगवान धन्वतरि जब प्रकट हुए, तब उनके हाथों में अमृत से भरा पीतल का घड़ा था। मान्यतानुसार, तभी से इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा प्रारम्भ हुई। पीतल के बर्तन धनतेरस के दिन इसलिए खरीदते हैं, क्योंकि पीतल भगवान धन्वंतरी की धातु है। पीतल खरीदने से घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य की दृष्टि से शुभता आती है। पीतल गुरु या वृहस्पति की धातु होने से बहुत ही शुभ है। वृहस्पति ग्रह की शांति हेतु पीतल का उपयोग उत्तम फलदायी है। 

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धनतेरस के दिन क्या करें  
शुभ मुहूर्त में भगवान धन्वंतरि की पूजा करें.
सोने-चांदी अथवा मिट्टी की माँ लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमा लाएं.
नई वस्तुओं (कुछ को छोड़कर) खरीदना शुभ माना जाता है.
धनतेरस के दिन गरीब लोगों में दान करें.
धनतेरस के दिन से भाई दूज तक शाम में दीपक जलाएं.
इस दिन झाड़ू, सूखा धनिया और पीतल के बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है.
धनतेरस के दिन घर की सफाई करें और लाइट आदि से घर को सजाएं.

धनतेरस के दिन क्या न करें  
इस दिन घर को गंदा न रखें. मान्यता है कि मां लक्ष्मी का वास साफ-सफाई वाली जगह पर ही होता है.
धनतेरस के दिन किसी के लिए मन में गलत विचार न रखें.
इस दिन बातचीत के दौरान किसी को गलत न बोलें.
धनतेरस के दिन बड़े-बुर्जुग और महिलाओं का अपमान न करें.
इस दिन अशुभ चीजों को खरीदना नहीं खरदीना चाहिए.
धनतेरस के दिन कांच के बर्तन नहीं खरीदने चाहिए.
धनतेरस के दिन मांस-मदिरा और तामसिक चीजें न खाएं

धनतेरस के दिन खरीदना चाहिए
धनतेरस के दिन चांदी, लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, कांसे या पीतल के बर्तन , झाड़ू, सूखा धनिया समेत आदि चीजें खरीदनी चाहिए। धार्मिक मान्यता है, धनतेरस के दिन इन चीजों को घर लाने से व्यक्ति पर भगवान धन्वतंरि और मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। साथ ही, कभी धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है। अल्युमिनियम और लोहा धनतेरस को कदापि न खरीदें। 

ढैय्या और साढ़े साती से प्रभावित 5 राशियों के जातक धनतेरस को करें ये उपाय
धनतेरस के पावन अवसर पर शनि की साढ़े साती और ढैय्या के दुष्प्रभावों को आप दूर कर सकते हैं। इसके लिए आप कुछ आसान से उपाय कर सकते हैं। चूँकि, इस बार धनतेरस शनिवार के ही दिन है, ऐसे में धनतेरस के उपाय आपके जीवन की कई समस्याओं को कम कर सकते हैं।  

ज्योतिष में न्यायाधीश का दर्जा प्राप्त है और इन्हें क्रूर ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है। इसलिए जब भी 
शनि का प्रभाव किसी व्यक्ति पर होता है, जीवन में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषकर साढ़े साती और ढैय्या के दौरान शनि आपके जीवन में उथल-पुथल मचा सकते हैं। वर्तमान समय में शनि मीन राशि में हैं। ऐसे में कुंभ, मीन और मेष राशि के जातकों पर शनि की साढ़ेसाती चल रह ही है। जबकि, सिंह और धनु राशि वाले शनि की ढैय्या की चपेट में हैं। इन पांचों राशियों को धनतेरस के दिन कुछ उपाय करने से शुभ फल मिल सकते हैं और ढैय्या, साढ़ेसाती का बुरा प्रभाव कम हो सकता है। इस दिन शनि ग्रह के उपाय-  

शनि मंदिर में जलाएं दीपक
धनतेरस के दिन शनि मंदिर में जाकर सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। यह आसान सा उपाय धनतेरस के दिन करने से शनि का बुरा प्रभाव आपके जीवन से दूर हो सकता है।

प्रदोष काल में शनि स्तोत्र का पाठ
धनतेरस के दिन प्रदोष काल के समय (सूर्यास्त के बाद) आप शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। शनि स्तोत्र का पाठ करने से आपके जीवन में शनि के बुरे प्रभाव दूर होने लगते हैं। आपके जीवन में संतुलन आता है और पारिवारिक जीवन में आनंद एवं परिस्थितियां अनुकूल बनने लगती है।
जानवरों की करें सेवा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शनिदेव उस व्यक्ति से प्रसन्न रहते हैं, जो जानवरों की सेवा करता है उन्हें खाना खिलाता है। इसलिए इस दिन गाय, कौआ, कुत्ता आदि को रोटी आपको खिलानी चाहिए। ऐसा करने से भी साढ़े साती और ढैय्या के बुरे प्रभाव को कम कर सकते हैं।

इनकी करें पूजा
धनतेरस के दिन आप भगवान शिव और हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। इन दोनों देवताओं की पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। आप हनुमान चालीसा के पाठ के साथ ही शिवलिंग का जलाभिषेक भी इस दिन कर सकते हैं। ऐसा करने से आपको धन-धान्य और सुखों की प्राप्ति होती है।

इनका करें दान
धन तेरस के दिन सरसों के तेल, तिल, लोहा, उड़द दाल आदि का दान करने से शनि की कृपा आप पर बरसती है। साल 2025 में धनतेरस के दिन शनिवार भी है इसलिए इन चीजों का दान करना आपके लिए बेहद लाभदायक सिद्ध हो सकता है।

कुबेर का मंदिर, जहां गर्भगृह में कभी नहीं लगता ताला   
धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि, मां लक्ष्मी और कुबेर देव की भी पूजा का विधान है। भगवान कुबेर के एक ऐसे मंदिर के बारे में जानेंगे, जहां के गर्भगृह में कभी भी ताला नहीं लगाया जाता है। मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के खिलचीपुर के कुबेर मंदिर में कुबेर देव भगवान शिव परिवार के साथ एक ही मंदिर में विराजमान हैं। भगवान कुबेर का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पर उनकी शिव परिवार के साथ पूजा की जाती है। धनतेरस के दिन पर इस मंदिर में सुबह 4 बजे तंत्र पूजा का विधान है. इसके बाद भक्त कुबेर देव के दर्शन के लिए जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां पर पूजा करने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 

गर्भगृह में नहीं लगा कभी ताला
इतिहासकारों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है, कि यहां पर स्थापित मूर्तियां 1300 साल पुरानी है और ये खिलजी साम्राज्य से पहले की बताई जाती है। वहीं, धाम के पुजारियों का कहना है कि इस मंदिर के गर्भगृह में आज तक ताला नहीं लगाया गया. पहले तो दरवाजा तक नहीं था. इस मंदिर में भगवान कुबेर की चतुर्भुज मूर्ति है। उनके एक हाथ में धन की पोटली, दूसरे में शस्त्र और बाकी में एक प्याला है. साथ ही कुबेर जी नेवले पर सवार हैं। 

पूरी होती है मनचाही इच्छा
इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण मराठाकालीन युग में किया गया था। वहीं, इस मंदिर में विराजमान भगवान कुबेर की मूर्ति उत्तर गुप्त काल की 7वीं शताब्दी में बनाई गई थी। ऐसा कहा जाता है, कि कुबेर देव के इस धाम में एक बार दर्शन और पूजन करने से धन संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं। इसके साथ ही मनचाही इच्छा पूरी होती है।  ऐसे में अगर आप कुबेर देव की कृपा पाना चाहते हैं तो इस धनतेरस पर यहां दर्शन के लिए जा सकते हैं। 


आचार्य नित्यानंद गिरी 
मो. 9216745145 
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