देवोत्थान एकादशी : क्या-क्या करें चार माह की योग निद्रा से श्रीहरि विष्णु को जगाने के लिए, दिशा के अनुरूप...
...देवउठनी एकादशी को बनाएं रंगोली
- श्रीहरि की पूजा कर विष्णु सहस्त्रनाम का करें पाठ
देवउठनी एकादशी मंत्र-
उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुणध्वज।
उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।।
अर्थात, देव उठो, देव उठो ! कुंआरे बियहे (विवाह हो) जाएं; बीहउती (विवाहित) के गोद भरै।
उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुणध्वज।
उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।।
अर्थात, देव उठो, देव उठो ! कुंआरे बियहे (विवाह हो) जाएं; बीहउती (विवाहित) के गोद भरै।
धर्म नगरी / DN News
(न्यूज़, कवरेज, शुभकामना व फ्री कॉपी मंगवाने हेतु वाट्सएप- 8109107075)
संगमलाल त्रिपाठी 'आजाद'
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है, जिसे देवोत्थान एकादशी या देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी अथवा हरिप्रबोधिनी एकादशी एकादशी भी कहते है। इस वर्ष एक नवंबर (शनिवार) को है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा से निवृत हो जाते हैं और स्वयं को लोक कल्याण लिए समर्पित करते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है। इसके साथ देवशयनी एकादशी से रुके हुए समस्त मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं। इस दिन सभी देवता योग निद्रा से जग जाते हैं।
इस दिन देवी वृंदा को भगवान विष्णु ने अपने शालिग्राम स्वरूप में तुलसी से विवाह किया था। इसी कारण इस तिथि को माता तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का विधान है। "तुलसी विवाहोत्सव" मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उनके वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही पति-पत्नी के बीच उत्पन्न होने वाली समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
✔ देवोत्थान एकादशी का दिन सुखी दांपत्य के लिए अत्यंत शुभ है। यदि पति-पत्नी के बीच बहुत कलह रहती है, किसी प्रकार का मनमुटाव रहता हो, तो इस समस्या को दूर करने आप इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए तुलसी के तने पर सात बार मौली या हल्दी में लपेट कर सूत का धागा लपेटें और इसके बाद घी का दीपक प्रज्वलित कर सुखी दांपत्य के लिए माता तुलसी से प्रार्थना करें।
✔ देवउठनी एकादशी के दिन अन्न और धन के अलावा लोगों को ऋतुफल, धान, मक्का, गेहूं, बाजरा, गुड़, उड़द और वस्त्र का दान अवश्य करना चाहिए। इसके साथ ही अगर इस दिन सिंघाड़ा, शकरकंदी और गन्ने का दान किया जाए तो काफी श्रेष्ठ माना जाता है। इससे घर में सुख-शांति का वास होता है, ग्रह दोष ठीक होते हैं।
देवउठनी एकादशी की पूजा-विधि
प्रातःकाल उठकर सबसे पहले स्नान आदि करके शुद्ध हो जाएं,
फिर भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें,
घर के आंगन में भगवान के चरणों की आकृति बनाएं,
मान्यता है कि भगवान इसी रास्ते आएंगे,
फल, फूल, मिठाई इत्यादि को एक डलिया में रखें,
रात्रि में पूरे परिवार के साथ भगवान विष्णु का पूजन करें,
सायंकाल श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ कर शंख बाजाकर भगवान को आमंत्रण दें,
पूरी रात्रि श्रद्धानुसार भगवान के विभिन्न नामों का जप करें,
भगवान का संकीर्तन करें।
➯ देवोत्थान एकादशी पर भगवान शालिग्राम अथवा लड्डू गोपाल की मूर्ति को फूलों से जगाएं। फिर पंचामृत से अभिषेक करके पूजन करें। उन्हें मिष्ठान, सिंघाड़ा, गन्ना रस अर्पित करके शंख, घंटा-घड़ियाल, थाली बजाकर आनंद मनाना चाहिए,
➯ भगवान शालिग्राम से तुलसी विवाह कराना शुभ होता है। तुलसी का शालिग्राम से विवाह कराने वाले भगवान विष्णु की कृपा के पात्र बनते हैं। जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं हैं, वह तुलसी को कन्यादान करके पुण्य अर्जित कर सकते हैं। उक्त तिथि पर भगवान विष्णु के नाम का कीर्तन व निर्धन एवं गाय को भोजन कराना चाहिए,
➯ माह के लंबे समय के बाद भगवान विष्णु योग निद्रा से बाहर आते हैं ऐसे में हमे दोपहर में नहीं सोना चहिए और प्रभु का कीर्तन भजन करना चहिए इससे माता लक्ष्मी प्रसन्ना होती हैं और धन लाभ होता है. और सोना अशुभ और भगवान का अनादर माना जाता है,
➯ आज एकादशी के दिन भूल कर तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ें। तुलसी भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है ऐसे में भूलकर भी इस दिन तुलसी की पत्ती नहीं तोड़ें, अन्यथा भगवान विष्णु रूष्ट हो जाते हैं,
➯ इस तिथि को गोभी, पालक, शलजम व चावल का सेवन न करें। किसी पेड़-पौधों की पत्तियों को न तोड़े। भूलकर भी किसी को कड़वे शब्द न बोलें। दूसरे से मिले भोजन को ग्रहण न करें,यह दिन इतना पवित्र होता है, कि इस दिन से (चतुर्मास में रुके हुए कार्य) सभी शुभ कार्य- परिणय-संस्कार (विवाह), गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, नामकरण संस्कार, नए प्रतिष्ठान का शुभारंभ जैसे आदि मांगलिक कार्यक्रम आरम्भ हो जाते हैं, चातुर्मास से लगे शुभ कार्यों पर रोक समाप्त हो जाती है।
सभी एकादशियों के व्रत में देवोत्थान एकादशी का विशेष महत्व है। मान्यता है, कि चातुर्मास में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। जिनका शयन-काल देवउठानी एकादशी के दिन समाप्त होता है। इस दिन नारायण (श्रीहरि विष्णु) निद्रा से जागते हैं। इसलिए उपासक इस दिन व्रत रखते हैं और रात्रि जागरण करते हैं। इस दिन की गई पूजा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है, जो भी भक्त श्रद्धा के साथ इस दिन व्रत रखते हुए भगवान की पूजा करते हैं, उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति होती है, सभी पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही चन्द्रमा के प्रतिकूल प्रभाव कम होते हैं।
संबधित लेख-
श्रीहरि विष्णु की सबसे बड़ी स्तुति श्रीविष्णु सहस्त्रनाम मानी जाती है, जिसमें भगवान के 1,000 नामों का वर्णन है। यह भगवान विष्णु के हजार नामों से युक्त एक प्रमुख स्तोत्र है। इसके अलग-अलग संस्करण महाभारत, पद्म पुराण व मत्स्य पुराण में उपलब्ध हैं।
महाभारत में अनुशासन पर्व के 149 वें अध्याय के अनुसार, कुरुक्षेत्र मे बाणों की शय्या पर लेटे हुए पितामह भीष्म ने उस समय जब युधिष्ठिर ने उनसे पूछा कि, कौन ऐसा है, जो सर्व व्याप्त है और सर्व शक्तिमान है ? तब उन्होंने बताया कि ऐसे महापुरुष भगवान विष्णु हैं और उनके एक हजार नामों की जानकारी दी। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया, कि हर युग में इन नामों को पढ़ने या सुनने से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
यदि प्रतिदिन इन एक हजार नामों का जाप करने से सभी मुश्किलें हल हो सकती हैं। वैसे वैदिक परंपरा में मंत्रोच्चारण का विशेष महत्व माना गया है, और सही रूप से मंत्रों का उच्चारण जीवन की दिशा ही बदल सकते हैं। विष्णु सहस्रनाम को अन्य नामों से जाना जाता है जैसे, शम्भु, शिव, ईशान और रुद्र, इससे ये भी प्रमाणित होता है कि शिव और विष्णु में कोई अंतर नहीं है ये एक समान हैं।
स्तोत्र में दिया गया प्रत्येक नाम श्री विष्णु के अनगिनत गुणों में से कुछ को सूचित करता है। विष्णु जी के भक्त प्रात: पूजन में इसका पठन करते है। मान्यता है कि इसके सुनने या पाठ करने से मनुष्य की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
शास्त्रानुसार, उनकी उपासना से जीवन का निर्वाह सहज हो जाता है, वृहस्पति ग्रह प्रबल (मजबूत) होता हैं एवं इसके श्लोक से प्रत्येक ग्रह एवं नक्षत्र को नियंत्रित किया जा सकता है। ज्योतिर्विदों के अनुसार, वृहस्पति दुर्बल (कमजोर) होने से पेट से संबंधित समस्या होती है। संतान उत्पत्ति में बाधा आ रही हो, तो इसका पाठ करना शुभ होता है। वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए भी इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। प्रत्येक गुरुवार को पाठ आरंभ में (यदि आप प्रतिदिन करते हों तो भी) एवं पाठ के पूर्ण होने पर भगवान विष्णु का ध्यान करें। मंत्र सभी को पता है-
शांताकारं भुजग शयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिध्र्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैकनाथम्।।- यथासंभव पीले वस्त्र पहनकर या पीली चादर ओढ़कर श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- भोग में गुड़ एवं चने या पीली मिठाई का प्रयोग करें। वैसे श्री विष्णु सस्त्रनाम का पाठ वृहस्पतिवार को शुभ है एवं सायंकाल नमक का सेवर नहीं करना चाहिए।
संगमलाल त्रिपाठी 'आजाद'
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है, जिसे देवोत्थान एकादशी या देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी अथवा हरिप्रबोधिनी एकादशी एकादशी भी कहते है। इस वर्ष एक नवंबर (शनिवार) को है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा से निवृत हो जाते हैं और स्वयं को लोक कल्याण लिए समर्पित करते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है। इसके साथ देवशयनी एकादशी से रुके हुए समस्त मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं। इस दिन सभी देवता योग निद्रा से जग जाते हैं।
इस दिन देवी वृंदा को भगवान विष्णु ने अपने शालिग्राम स्वरूप में तुलसी से विवाह किया था। इसी कारण इस तिथि को माता तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का विधान है। "तुलसी विवाहोत्सव" मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उनके वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही पति-पत्नी के बीच उत्पन्न होने वाली समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
भोग, पूजा-विधि-
चार माह की योग निद्रा के पश्चात भगवान श्रीहरि विष्णु को जगाने के लिए घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के साथ श्लोकों का उच्चारण करते हैं। तभी पृथ्वी पर विवाह, नया व्यापार आदि आरंभ करते हैं। इस दिन आंवला, सिंघाड़े, गन्ने और मौसमी फलों का भोग लगाते हैं।
नारद पुराण के अनुसार, ब्रह्म मुहूर्त में स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान श्रीहरि विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए। फिर घी का दीपक जलाकर, धूप करके, घट-स्थापना करना चाहिए। अब भगवान पर गंगाजल के छींटें दें, रोली एवं अक्षत लगाएं। अब भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। आरती उतारें एवं मंत्रों का जप करें। फिर भगवान को भोग लगाकर ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें। इस दिन दान का भी विशेष महत्व है।
देवउठानी एकादशी का महत्व
सनातन धर्म में देवउठानी एकादशी को सभी एकादशी तिथियों में विशेष माना गया है। एकादशी व्रत के बारे में स्कंद पुराण और महाभारत में भी वर्णन है। इसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया था। मान्यता है, ये व्रत पापों से मुक्ति दिलाने वाला और सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला व्रत है। इस दिन या इस दिन से कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है।
✔ देवोत्थान एकादशी तिथि को वृहस्पतिवार भी हैं। इसलिए भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए पानी में एक चुटकी हल्दी डालें और उससे स्नान करें। साथ ही इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनें, क्योंकि पीला रंग भगवान विष्णु का प्रिय माना गया है।
✔ माँ लक्ष्मी का ही दूसरा स्वरूप तुलसी जी हैं। कार्तिक माह में तुलसी पूजा, विशेषकर देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी पूजा करने से भगवान विष्णु के साथ माँ लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है। यदि आपने पूरे महीने तुलसी की सेवा नहीं की, तो एकादशी से पूर्णिमा तक घी का दीपक जलाकर मां तुलसी को प्रसन्न करना चाहिए। ऐसा करने घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती।
✔ पुराणों के अनुसार, जिस स्थान पर शालिग्राम और तुलसी होते हैं, वहां भगवान श्रीहरि विराजते हैं और वहीं सम्पूर्ण तीर्थों को साथ लेकर भगवती लक्ष्मी भी निवास करती हैं। पदमपुराण के अनुसार जहां शालिग्राम शिलारूपी भगवान केशव विराजमान हैं, वहां सम्पूर्ण देवता,असुर, यक्ष और चौदह भुवन उपस्थित हैं, जो शालिग्राम शिला के जल से अपना अभिषेक करता है, उसे सम्पूर्ण तीर्थों में स्न्नान के बराबर और समस्त यज्ञों को करने समान ही फल प्राप्त होता है।
✔ एकादशी के दिन पीपल वृक्ष को छूकर प्रणाम करें और उसकी मिट्टी को माथे पर लगाएं और अपना कार्य पूर्ण होने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना करें, इससे कार्य में सफलता मिलेगी और आपके मनोरथ पूर्ण होंगे।
चार माह की योग निद्रा के पश्चात भगवान श्रीहरि विष्णु को जगाने के लिए घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के साथ श्लोकों का उच्चारण करते हैं। तभी पृथ्वी पर विवाह, नया व्यापार आदि आरंभ करते हैं। इस दिन आंवला, सिंघाड़े, गन्ने और मौसमी फलों का भोग लगाते हैं।
नारद पुराण के अनुसार, ब्रह्म मुहूर्त में स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान श्रीहरि विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए। फिर घी का दीपक जलाकर, धूप करके, घट-स्थापना करना चाहिए। अब भगवान पर गंगाजल के छींटें दें, रोली एवं अक्षत लगाएं। अब भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। आरती उतारें एवं मंत्रों का जप करें। फिर भगवान को भोग लगाकर ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें। इस दिन दान का भी विशेष महत्व है।
सनातन धर्म में देवउठानी एकादशी को सभी एकादशी तिथियों में विशेष माना गया है। एकादशी व्रत के बारे में स्कंद पुराण और महाभारत में भी वर्णन है। इसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया था। मान्यता है, ये व्रत पापों से मुक्ति दिलाने वाला और सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला व्रत है। इस दिन या इस दिन से कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है।
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विशेष उपाय- ✔ देवोत्थान एकादशी तिथि को वृहस्पतिवार भी हैं। इसलिए भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए पानी में एक चुटकी हल्दी डालें और उससे स्नान करें। साथ ही इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनें, क्योंकि पीला रंग भगवान विष्णु का प्रिय माना गया है।
✔ माँ लक्ष्मी का ही दूसरा स्वरूप तुलसी जी हैं। कार्तिक माह में तुलसी पूजा, विशेषकर देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी पूजा करने से भगवान विष्णु के साथ माँ लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है। यदि आपने पूरे महीने तुलसी की सेवा नहीं की, तो एकादशी से पूर्णिमा तक घी का दीपक जलाकर मां तुलसी को प्रसन्न करना चाहिए। ऐसा करने घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती।
✔ पुराणों के अनुसार, जिस स्थान पर शालिग्राम और तुलसी होते हैं, वहां भगवान श्रीहरि विराजते हैं और वहीं सम्पूर्ण तीर्थों को साथ लेकर भगवती लक्ष्मी भी निवास करती हैं। पदमपुराण के अनुसार जहां शालिग्राम शिलारूपी भगवान केशव विराजमान हैं, वहां सम्पूर्ण देवता,असुर, यक्ष और चौदह भुवन उपस्थित हैं, जो शालिग्राम शिला के जल से अपना अभिषेक करता है, उसे सम्पूर्ण तीर्थों में स्न्नान के बराबर और समस्त यज्ञों को करने समान ही फल प्राप्त होता है।
✔ एकादशी के दिन पीपल वृक्ष को छूकर प्रणाम करें और उसकी मिट्टी को माथे पर लगाएं और अपना कार्य पूर्ण होने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना करें, इससे कार्य में सफलता मिलेगी और आपके मनोरथ पूर्ण होंगे।
✔ देवउठनी एकादशी के दिन अन्न और धन के अलावा लोगों को ऋतुफल, धान, मक्का, गेहूं, बाजरा, गुड़, उड़द और वस्त्र का दान अवश्य करना चाहिए। इसके साथ ही अगर इस दिन सिंघाड़ा, शकरकंदी और गन्ने का दान किया जाए तो काफी श्रेष्ठ माना जाता है। इससे घर में सुख-शांति का वास होता है, ग्रह दोष ठीक होते हैं।
देवउठनी एकादशी की पूजा-विधि
प्रातःकाल उठकर सबसे पहले स्नान आदि करके शुद्ध हो जाएं,
फिर भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें,
घर के आंगन में भगवान के चरणों की आकृति बनाएं,
मान्यता है कि भगवान इसी रास्ते आएंगे,
फल, फूल, मिठाई इत्यादि को एक डलिया में रखें,
रात्रि में पूरे परिवार के साथ भगवान विष्णु का पूजन करें,
सायंकाल श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ कर शंख बाजाकर भगवान को आमंत्रण दें,
पूरी रात्रि श्रद्धानुसार भगवान के विभिन्न नामों का जप करें,
भगवान का संकीर्तन करें।
➯ देवोत्थान एकादशी पर भगवान शालिग्राम अथवा लड्डू गोपाल की मूर्ति को फूलों से जगाएं। फिर पंचामृत से अभिषेक करके पूजन करें। उन्हें मिष्ठान, सिंघाड़ा, गन्ना रस अर्पित करके शंख, घंटा-घड़ियाल, थाली बजाकर आनंद मनाना चाहिए,
➯ भगवान शालिग्राम से तुलसी विवाह कराना शुभ होता है। तुलसी का शालिग्राम से विवाह कराने वाले भगवान विष्णु की कृपा के पात्र बनते हैं। जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं हैं, वह तुलसी को कन्यादान करके पुण्य अर्जित कर सकते हैं। उक्त तिथि पर भगवान विष्णु के नाम का कीर्तन व निर्धन एवं गाय को भोजन कराना चाहिए,
➯ माह के लंबे समय के बाद भगवान विष्णु योग निद्रा से बाहर आते हैं ऐसे में हमे दोपहर में नहीं सोना चहिए और प्रभु का कीर्तन भजन करना चहिए इससे माता लक्ष्मी प्रसन्ना होती हैं और धन लाभ होता है. और सोना अशुभ और भगवान का अनादर माना जाता है,
➯ आज एकादशी के दिन भूल कर तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ें। तुलसी भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है ऐसे में भूलकर भी इस दिन तुलसी की पत्ती नहीं तोड़ें, अन्यथा भगवान विष्णु रूष्ट हो जाते हैं,
➯ इस तिथि को गोभी, पालक, शलजम व चावल का सेवन न करें। किसी पेड़-पौधों की पत्तियों को न तोड़े। भूलकर भी किसी को कड़वे शब्द न बोलें। दूसरे से मिले भोजन को ग्रहण न करें,
सुनें-
सभी एकादशियों के व्रत में देवोत्थान एकादशी का विशेष महत्व है। मान्यता है, कि चातुर्मास में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। जिनका शयन-काल देवउठानी एकादशी के दिन समाप्त होता है। इस दिन नारायण (श्रीहरि विष्णु) निद्रा से जागते हैं। इसलिए उपासक इस दिन व्रत रखते हैं और रात्रि जागरण करते हैं। इस दिन की गई पूजा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है, जो भी भक्त श्रद्धा के साथ इस दिन व्रत रखते हुए भगवान की पूजा करते हैं, उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति होती है, सभी पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही चन्द्रमा के प्रतिकूल प्रभाव कम होते हैं।
सूर्य के कर्क राशि में गमन काल में आषाढ़ी शुक्ला एकादशी हो और कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी न आ जाये, तब तक प्रतिवर्ष चार मास तक भगवान निद्रित रहते हैं। हरि के आराधनार्थ यह चार मास अत्युत्तम पुण्यप्रद हैं। आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी तथा कार्तिक मास की एकादशी को देवोत्थान एकादशी कहते हैं। इस समय तेल मालिश, दिन में सोना तथा झूठ बोलना वर्जित है। - स्कन्द महापुराण
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कार्तिक माह में क्या करें, क्या नहीं ?
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http://www.dharmnagari.com/2021/10/Kartik-Maah-me-Kya-kare-Kya-nahi-Maah-ke-Vrat-Tyohar-Kartik-month-begins-from-today-21-October-2021.html
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श्री विष्णुसहस्त्रनाम
सनातन हिन्दू धर्म की अलौकिक खोज मंत्र विद्या है, जो दुनिया को सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों को अलौकिक देन है। पंच तत्व का सबसे सूक्ष्म तत्व आकाश है, जो परम शक्तिशाली तत्व है। हमारे मंत्रों का संबंध भी आकाश तत्व से होता है। मंत्र आकाश तत्व से निकट का संबंध रखते हैं और शरीर में स्थित शक्ति केन्द्रों को जागृत करते हैं।
सनातन हिन्दू धर्म की अलौकिक खोज मंत्र विद्या है, जो दुनिया को सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों को अलौकिक देन है। पंच तत्व का सबसे सूक्ष्म तत्व आकाश है, जो परम शक्तिशाली तत्व है। हमारे मंत्रों का संबंध भी आकाश तत्व से होता है। मंत्र आकाश तत्व से निकट का संबंध रखते हैं और शरीर में स्थित शक्ति केन्द्रों को जागृत करते हैं।
श्रीहरि विष्णु की सबसे बड़ी स्तुति श्रीविष्णु सहस्त्रनाम मानी जाती है, जिसमें भगवान के 1,000 नामों का वर्णन है। यह भगवान विष्णु के हजार नामों से युक्त एक प्रमुख स्तोत्र है। इसके अलग-अलग संस्करण महाभारत, पद्म पुराण व मत्स्य पुराण में उपलब्ध हैं।
महाभारत में अनुशासन पर्व के 149 वें अध्याय के अनुसार, कुरुक्षेत्र मे बाणों की शय्या पर लेटे हुए पितामह भीष्म ने उस समय जब युधिष्ठिर ने उनसे पूछा कि, कौन ऐसा है, जो सर्व व्याप्त है और सर्व शक्तिमान है ? तब उन्होंने बताया कि ऐसे महापुरुष भगवान विष्णु हैं और उनके एक हजार नामों की जानकारी दी। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया, कि हर युग में इन नामों को पढ़ने या सुनने से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
यदि प्रतिदिन इन एक हजार नामों का जाप करने से सभी मुश्किलें हल हो सकती हैं। वैसे वैदिक परंपरा में मंत्रोच्चारण का विशेष महत्व माना गया है, और सही रूप से मंत्रों का उच्चारण जीवन की दिशा ही बदल सकते हैं। विष्णु सहस्रनाम को अन्य नामों से जाना जाता है जैसे, शम्भु, शिव, ईशान और रुद्र, इससे ये भी प्रमाणित होता है कि शिव और विष्णु में कोई अंतर नहीं है ये एक समान हैं।
स्तोत्र में दिया गया प्रत्येक नाम श्री विष्णु के अनगिनत गुणों में से कुछ को सूचित करता है। विष्णु जी के भक्त प्रात: पूजन में इसका पठन करते है। मान्यता है कि इसके सुनने या पाठ करने से मनुष्य की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
शास्त्रानुसार, उनकी उपासना से जीवन का निर्वाह सहज हो जाता है, वृहस्पति ग्रह प्रबल (मजबूत) होता हैं एवं इसके श्लोक से प्रत्येक ग्रह एवं नक्षत्र को नियंत्रित किया जा सकता है। ज्योतिर्विदों के अनुसार, वृहस्पति दुर्बल (कमजोर) होने से पेट से संबंधित समस्या होती है। संतान उत्पत्ति में बाधा आ रही हो, तो इसका पाठ करना शुभ होता है। वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए भी इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। प्रत्येक गुरुवार को पाठ आरंभ में (यदि आप प्रतिदिन करते हों तो भी) एवं पाठ के पूर्ण होने पर भगवान विष्णु का ध्यान करें। मंत्र सभी को पता है-
शांताकारं भुजग शयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिध्र्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैकनाथम्।।
- भोग में गुड़ एवं चने या पीली मिठाई का प्रयोग करें। वैसे श्री विष्णु सस्त्रनाम का पाठ वृहस्पतिवार को शुभ है एवं सायंकाल नमक का सेवर नहीं करना चाहिए।
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कथा हेतु- व्यासपीठ की गरिमा एवं मर्यादा के अनुसार श्रीराम कथा, वाल्मीकि रामायण, श्रीमद भागवत कथा, शिव महापुराण या अन्य पौराणिक कथा करवाने हेतु संपर्क करें। कथा आप अपने बजट या आर्थिक क्षमता के अनुसार शहरी या ग्रामीण क्षेत्र में अथवा विदेश में करवाएं, हमारा कथा के आयोजन की योजना, मीडिया-प्रचार आदि में सहयोग रहेगा। -प्रसार प्रबंधक "धर्म नगरी / DN News" मो.9752404020, 8109107075-वाट्सएप ट्वीटर- @DharmNagari ईमेल- dharm.nagari@gmail.com
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दिशा के अनुरूप देवउठनी एकादशी को बनाएं रंगोली"धर्म नगरी" के विस्तार, डिजिटल DN News के प्रसार एवं तथ्यात्मक सूचनात्मक व रोचक (factual & informative & interesting), राष्ट्रवादी समसामयिक मैगजीन हेतु "संरक्षक" या इंवेस्टर / NRI चाहिए। उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों में स्थानीय रिपोर्टर या स्थानीय प्रतिनिधि नियुक्त करना है -प्रबंध संपादक
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देवोत्थान एकादशी हर्षोल्लास का भी पर्व है, क्योंकि चतुर्मास में भगवान क्षीर सागर में योगनिद्रा में रहने के पश्चात इस तिथि को निद्रा से उठ जाते हैं और उनके उठने पर, विधि-विधानपूर्वक पूजन, तुलसी विवाह के साथ शुभ एवं मांगलिक कार्य का भी शुभारम्भ हो जाता है।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की अराधना की जाती है और दिनभर व्रत कर अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है। सनातन धर्म में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है और इस दिन दान करना बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। परम्परानुसार, देवउठनी एकादशी को रंगोली बनाने का विशेष महत्व है। इस दिन दिशा के अनुरूप अलग-अलग प्रकार की रंगोली बनाना चाहिए-
उत्तर
उत्तर दिशा में रंगोली बनाने के लिए पीले, हरे और नीले रंग का उपयोग करें। उत्तर दिशा को कुबेर का क्षेत्र माना गया है. इस दिशा में अगर आप लहरिया या लहरदार रंगोली बनाती है, तो इससे धन आपकी ओर आकर्षित होता है. इसके अलावा उन्नित के भी नए अवसर प्राप्त होते हैं।
दक्षिण
इस दिशा में आयताकार रंगोली का डिज़ाइन बनाएं और विशेषरूप से नीले रंग के उपयोग से बचें। इस दिशा में नीले रंग के अलावा आप किसी भी रंग का प्रयोग कर सकते हैं. इससे मान सम्मान और आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन में सुख समृद्धि का भी योग बनता है. दक्षिण दिशा में लहरिया रंगोली को बनाने से बचें।
पश्चिम
यहां पर रंगोली बनाने के निए आप सफेद ओर सुनहरे रंग का प्रयोग कर सकते हैं। इस दिशा में आप काले रंग का प्रयोग करने से बचें. इसके अलावा आप लाल, पीले और हर रंग को भी रंगोली बनाने में प्रयोग कर सकते हैं। यदि आप गोलाकार और आयातकार रंगोली इस दिशा में बनाते हैं, तो इससे आपके व्यवसाय में तरक्की के रास्ते खुल जाते हैं।
पूर्व
इस दिशा में अंडाकार रंगोली को बना दें, जिसमें आप नीला, गुलाबी, हरा और जामुनी रंग प्रयोग कर सकते है. जो घर में सुख शांति बनाता है और पारिवारिक एकता का संकेत देता है। इससे मान-सम्मान में भी बढ़ोतरी होती है।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की अराधना की जाती है और दिनभर व्रत कर अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है। सनातन धर्म में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है और इस दिन दान करना बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। परम्परानुसार, देवउठनी एकादशी को रंगोली बनाने का विशेष महत्व है। इस दिन दिशा के अनुरूप अलग-अलग प्रकार की रंगोली बनाना चाहिए-
उत्तर
उत्तर दिशा में रंगोली बनाने के लिए पीले, हरे और नीले रंग का उपयोग करें। उत्तर दिशा को कुबेर का क्षेत्र माना गया है. इस दिशा में अगर आप लहरिया या लहरदार रंगोली बनाती है, तो इससे धन आपकी ओर आकर्षित होता है. इसके अलावा उन्नित के भी नए अवसर प्राप्त होते हैं।
दक्षिण
इस दिशा में आयताकार रंगोली का डिज़ाइन बनाएं और विशेषरूप से नीले रंग के उपयोग से बचें। इस दिशा में नीले रंग के अलावा आप किसी भी रंग का प्रयोग कर सकते हैं. इससे मान सम्मान और आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन में सुख समृद्धि का भी योग बनता है. दक्षिण दिशा में लहरिया रंगोली को बनाने से बचें।
पश्चिम
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पूर्व
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