जाने लक्षण पितृ-दोष के...
पितृपक्ष एवं पितृ दोष...
धर्म नगरी / DN News (W.app-6261868110, M.+91- 9752404020)
पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष भादो की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृ मोक्ष अमावस्या तक यह मनाते है। पूर्णिमा व प्रथमा तिथि एक दिन (एक सितंबर) होने से अधिकांश लोग दो सितंबर से 17 सितंबर तक पितृपक्ष लगेगा। प्रायः लोग वाद-विवाद करते हैं, क्या आवश्यकता है पितृपक्ष बनाने की। अधिकांश नई पीढ़ी के लोग, जिनको पूजा-पाठ, धर्म-कर्म, पितरों के प्रति अपना कर्तव्य तर्पण दान किसी को भोजन कराना, यह बहुत ज्यादा अखरता है। इन नई पीढ़ी के लोग इस तरह के कर्म करना व्यर्थ मानते हैं। पर वे भूल जाते हैं, कि आज वे जो कुछ भी है, वह केवल और केवल अपने माता-पिता और अपने पूर्वजों के कारण है। इसलिए उनका कर्तव्य बनता है, कि वे उनके जीते-जी उनकी सेवा करें। उनकी यथासम्भव हर इच्छा को पूरी करें।
बड़े-बुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्य को ना भूलें। उन्हें अपमानित न करें मंदिर में मिठाई चढ़ाने से उतना फल नहीं मिलेगा, जितना आपके घर में बैठे हुए आपके माता-पिता आपके दादा-दादी आपके नाना नानी और भी जो गुजर गए हैं, उनको खिलाने में जितना फल आपको मिलेगा। उसका वर्णन करना संभव नहीं है। आप अपने माता-पिता की उनके जीते जी सेवा-सम्मान करें। और उनकी वह सभी इच्छाएं पूरी करें, जो उन्होंने आपके बचपन में आपके लिए की थी जब आप उठे थे तो उन्होंने बनाया था उंगली पकड़ के चलना उन्हीं ने सिखाया था, तो आप उनका निरादर ना करें उनकी सेवा ही आपकी सच्ची सेवा है आप क्रोधित ना हो अगर वह बीमार हैं तो जिस प्रकार जब आप बीमार रहते थे तो कितने प्रेम से उन्हें समझाकर आपको दवाइयां खिलाते थे आपका कर्तव्य और दायित्व बनता है कि आप उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करें और उनकी सेवा करें। बुजुर्ग अवस्था में आपका एक एक वाक्य आपके वृद्धजनों के लिए भाले जैसा प्रतीत ना हो आप भले कष्ट से ले बातें सुन ले पर उन्हें कोई उत्तर ना दें यही आप की सबसे बड़ी पूजा होगी इससे बड़ी कोई पूजा नहीं हो सकती और आने वाले समय मैं यही आपके लिए वरदान साबित होगा आपकी जो काम नहीं बनते होंगे उनके एक आशीर्वाद से वह सब काम देवताओं को भी विवश होकर करना होंगे और अगर यह नहीं करते हैं तो स्वयं की भावी संतान और आने वाला समय अत्यंत दुखदाई हो सकता है।
पुराण अनुसार एवं हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार पितृपक्ष में वे पितर अपने बच्चों के यहां अपने संबंधियों के यहां इन 16 दिनो के लिए पितृलोक से आते हैं। जो जन अपने पितृ के लिए जल, भोजन, अन्न, वस्त्र अर्पित करते हैं, वह उन पितरों को प्राप्त होता है। वे इस आशा को लेकर अपने संबंधियों के घर में आते हैं, यदि वे उनके संबंधियों के द्वारा किए हुए जल-तर्पण श्राद्ध से संतुष्ट होते हैं, तो आशीर्वाद देकर जाते हैं। वहीं, जो लोग (वंशज) अपने पितरों के लिए कुछ नहीं करते, जल, भोजन, दान, तर्पण, श्राद्ध नहीं करते, पितर रुष्ट होकर उस घर से जाते समय दु:खी होकर (जाने के पहले श्राप देकर) जाते हैं। पितरों की यही असंतुष्टि उस घर में भविष्य में पितृ दोष का कारण बनता है।
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🕉 अद्य श्रुति स्मृति पुराणोक्ता सर्व सांसारिक सुख समृद्धि प्राप्ति च वंश वृद्धि हेतव देव ऋषि मनुष्य पितृ तर्पणम च अहं करिष्ये।
ये न करें पितृ पक्ष में-
इन 16 दिनों में तामसी भोजन नशीले पदार्थ का सेवन कदापि न करें। किसी का निरादर, झूठ कपट, क्रोध कदापि ना करें आप यह मानकर चलें कि आपके घर में सभी वृद्धजन पितर के रूप में आए हुए हैं और आपके यह कृत्य उनके लिए वर्जित है। जिस घर पूर्वज जिनकी मृत्यु हो चुकी है, अपमानित होकर, बेइज्जत होकर, अन्न-जल से वंचित होकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अकाल मृत्यु होने पर उनके कोई क्रिया-कर्म नहीं किए जाते, तब वे उस घर में पितृ-दोष के रूप में रहते हैं।
कुंडली से जाने पितृ दोष-
पितृ दोष उत्पन्न हो जाता है इसकी पहचान आप बिना कुंडली देखे भी कर सकते हैं जिस घर में वृद्धजन की रहस्य में मृत्यु चोरी डकैती वृद्धजन की हत्या घर के पालतू पशु का समय मरना, लड़ाई होना, पढ़ाई में बाधा, आजीविका की परेशानियां, सदस्यों की आपस में लड़ाई, संतान का ना होना और यदि होती भी है तो उनकी मृत्यु होना।
इन लक्षण, संकेत को समझें-
धन हानि, विवाह में विलंब होना, कन्या की शादी में देरी होना, घर के बच्चों का बिगड़ना, नशे की आदत का होना, परिवार का एक सदस्य हमेशा बीमार रहना घर में कोर्ट कचहरी का चक्कर लगना। अमावस्या पूर्णिमा को पितरों का दिखना, सफेद कपड़े पहने हुए लोगों का दिखना। घर में माता-पिता का अपमान करना, उनको सताना, उनकी बातें न सुनना, गलत काम किया जाना, यह सभी पाप को बढ़ाने के अंतर्गत आते हैं। पाप-पुण्य का कर्म तो सभी को भोगना होता है। मनुष्य रूप में ईश्वर तक आए हैं उन्हें भी कर्म का फल सहन करना पड़ा है।
कुंडली से पितृ दोष-
में पंचम भाव से पता चलता है। सप्तम भाव से पता चलता है। नवम भाव को को भी देखा जाता है नीच ग्रह, पाप ग्रह, क्रूर ग्रह, की युति और खासकर राहु -शनि के श्रापित दोष। गुरु, राहु का दोष यह पीछा करते रहते हैं और परेशानियां बढ़ती चली जाती है पर कारण समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा है ।
पितृपक्ष अवसर है-
बहुत अच्छा समय है 16 दिन का। अपने पूर्वजों द्वारा, आपके द्वारा जो बड़े-बुजुर्गों के प्रति बुरा व्यवहार किया हो उसके लिए क्षमा मांग सकते हैं। उनके निमित्त अपनी सामर्थ्य के अनुसार तर्पण, श्राद्ध, दान, दक्षिणा करके पितृ दोष को बहुत कुछ कम कर सकते हैं। साथ ही प्रण ले कि बड़े-बुजुर्गों की सेवा अवश्य करेंगे। घर में अगर बड़े-बुजुर्ग नहीं है, तो आस-पड़ोस में उनकी हर इच्छा, विशेषकर भोजन संबंधी को पूर्ण करेंगे और हर अमावस्या को पितरों के प्रति एक उत्सव, जिसमें उनके निमित्त जो वस्तुएं उन्हे प्रिय है या थी, उसे दान करेंगे। साथ ही पशुओं को हरा चारा खिलाएं।
ये करें-
सूर्य की आराधना एवं प्रार्थना करें। तांबे के लोटे में जल लेकर पितरों के निमित्त रोज अर्पित करें। गाय को, कुत्तों को, चीटियों को रोज उनके निमित्त भोजन देवें। बहते जल में एक लीटर 2 लीटर 3 लीटर दूध पितरों को समर्पित करे। रसोई घर में पितरों के नाम एक दिया। दक्षिण दिशा में एक दिया शाम के समय जरूर जलाएं। बरगद पीपल गौशाला के नीचे अपने घर में ही श्राद्ध का भोजन तैयार करके जरूरतमंद को देवें जाने अनजाने में कोई गलती हुई होगी। उसके लिए रोज इन 16 दिनों में प्रार्थना करें, कि वे उन्हें क्षमा करें, उनका प्रेम और आशीर्वाद परिवार को मिलता रहे। कपूर, गुग्गुल जलाकर सभी कमरों में धूप करें।
...तो भाग्य बदलते देर नहीं लगेगी-
प्रतिदिन शाम को गाय के कंडे में भी गुड़, गूगल जाय-पत्री ,केसर को मिलाकर 🕉 पितृभ्यो नमः की आहुति दें। 16 दिन तक एक दीपक एक लोटा जल एवं भोजन दक्षिण दिशा तरफ रखें। चाहे उसे गाय को खिला दे या जरूरतमंद को दे दें। प्रतिपक्ष में प्रतिदिन आपको केवल पितृ से प्रार्थना करना है, कि उनके परिवार में जो पितृ दोष लगा है, उसको वे समाप्त करें और अपना आशीर्वाद और अपनी कृपा-दृष्टि बनाए रखें। इन 16 दिनों में आपके द्वारा की हुई पूजा से रुष्ट से रुष्ट पितृ भी प्रसन्न होंगे, किंतु आपकी क्षमा मांगना सच्चे मन से होना चाहिए। है तो वे आपके अपने ही। तो आपके भाग्य बदलते देर नहीं लगेगी। आपके सभी काम सफल होंगे। आपको सफलता मिलेगी, पर यह निर्भर करता है कि आपकी निष्ठा पितरों के प्रति किस प्रकार की है।
-सरिता अग्निहोत्री, ज्योतिर्विद, मध्य प्रदेश।
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धर्म नगरी / DN News (W.app-6261868110, M.+91- 9752404020)
पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष भादो की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृ मोक्ष अमावस्या तक यह मनाते है। पूर्णिमा व प्रथमा तिथि एक दिन (एक सितंबर) होने से अधिकांश लोग दो सितंबर से 17 सितंबर तक पितृपक्ष लगेगा। प्रायः लोग वाद-विवाद करते हैं, क्या आवश्यकता है पितृपक्ष बनाने की। अधिकांश नई पीढ़ी के लोग, जिनको पूजा-पाठ, धर्म-कर्म, पितरों के प्रति अपना कर्तव्य तर्पण दान किसी को भोजन कराना, यह बहुत ज्यादा अखरता है। इन नई पीढ़ी के लोग इस तरह के कर्म करना व्यर्थ मानते हैं। पर वे भूल जाते हैं, कि आज वे जो कुछ भी है, वह केवल और केवल अपने माता-पिता और अपने पूर्वजों के कारण है। इसलिए उनका कर्तव्य बनता है, कि वे उनके जीते-जी उनकी सेवा करें। उनकी यथासम्भव हर इच्छा को पूरी करें।
बड़े-बुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्य को ना भूलें। उन्हें अपमानित न करें मंदिर में मिठाई चढ़ाने से उतना फल नहीं मिलेगा, जितना आपके घर में बैठे हुए आपके माता-पिता आपके दादा-दादी आपके नाना नानी और भी जो गुजर गए हैं, उनको खिलाने में जितना फल आपको मिलेगा। उसका वर्णन करना संभव नहीं है। आप अपने माता-पिता की उनके जीते जी सेवा-सम्मान करें। और उनकी वह सभी इच्छाएं पूरी करें, जो उन्होंने आपके बचपन में आपके लिए की थी जब आप उठे थे तो उन्होंने बनाया था उंगली पकड़ के चलना उन्हीं ने सिखाया था, तो आप उनका निरादर ना करें उनकी सेवा ही आपकी सच्ची सेवा है आप क्रोधित ना हो अगर वह बीमार हैं तो जिस प्रकार जब आप बीमार रहते थे तो कितने प्रेम से उन्हें समझाकर आपको दवाइयां खिलाते थे आपका कर्तव्य और दायित्व बनता है कि आप उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करें और उनकी सेवा करें। बुजुर्ग अवस्था में आपका एक एक वाक्य आपके वृद्धजनों के लिए भाले जैसा प्रतीत ना हो आप भले कष्ट से ले बातें सुन ले पर उन्हें कोई उत्तर ना दें यही आप की सबसे बड़ी पूजा होगी इससे बड़ी कोई पूजा नहीं हो सकती और आने वाले समय मैं यही आपके लिए वरदान साबित होगा आपकी जो काम नहीं बनते होंगे उनके एक आशीर्वाद से वह सब काम देवताओं को भी विवश होकर करना होंगे और अगर यह नहीं करते हैं तो स्वयं की भावी संतान और आने वाला समय अत्यंत दुखदाई हो सकता है।
पुराण अनुसार एवं हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार पितृपक्ष में वे पितर अपने बच्चों के यहां अपने संबंधियों के यहां इन 16 दिनो के लिए पितृलोक से आते हैं। जो जन अपने पितृ के लिए जल, भोजन, अन्न, वस्त्र अर्पित करते हैं, वह उन पितरों को प्राप्त होता है। वे इस आशा को लेकर अपने संबंधियों के घर में आते हैं, यदि वे उनके संबंधियों के द्वारा किए हुए जल-तर्पण श्राद्ध से संतुष्ट होते हैं, तो आशीर्वाद देकर जाते हैं। वहीं, जो लोग (वंशज) अपने पितरों के लिए कुछ नहीं करते, जल, भोजन, दान, तर्पण, श्राद्ध नहीं करते, पितर रुष्ट होकर उस घर से जाते समय दु:खी होकर (जाने के पहले श्राप देकर) जाते हैं। पितरों की यही असंतुष्टि उस घर में भविष्य में पितृ दोष का कारण बनता है।
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ये भी पढ़ें-
#अनंत_चतुर्दशी को विशेष संयोग
अनन्त चतुर्दशी पर पूजा का मिलेगा पांच गुना फल
ये न करें पितृ पक्ष में-
इन 16 दिनों में तामसी भोजन नशीले पदार्थ का सेवन कदापि न करें। किसी का निरादर, झूठ कपट, क्रोध कदापि ना करें आप यह मानकर चलें कि आपके घर में सभी वृद्धजन पितर के रूप में आए हुए हैं और आपके यह कृत्य उनके लिए वर्जित है। जिस घर पूर्वज जिनकी मृत्यु हो चुकी है, अपमानित होकर, बेइज्जत होकर, अन्न-जल से वंचित होकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अकाल मृत्यु होने पर उनके कोई क्रिया-कर्म नहीं किए जाते, तब वे उस घर में पितृ-दोष के रूप में रहते हैं।
कुंडली से जाने पितृ दोष-
पितृ दोष उत्पन्न हो जाता है इसकी पहचान आप बिना कुंडली देखे भी कर सकते हैं जिस घर में वृद्धजन की रहस्य में मृत्यु चोरी डकैती वृद्धजन की हत्या घर के पालतू पशु का समय मरना, लड़ाई होना, पढ़ाई में बाधा, आजीविका की परेशानियां, सदस्यों की आपस में लड़ाई, संतान का ना होना और यदि होती भी है तो उनकी मृत्यु होना।
इन लक्षण, संकेत को समझें-
धन हानि, विवाह में विलंब होना, कन्या की शादी में देरी होना, घर के बच्चों का बिगड़ना, नशे की आदत का होना, परिवार का एक सदस्य हमेशा बीमार रहना घर में कोर्ट कचहरी का चक्कर लगना। अमावस्या पूर्णिमा को पितरों का दिखना, सफेद कपड़े पहने हुए लोगों का दिखना। घर में माता-पिता का अपमान करना, उनको सताना, उनकी बातें न सुनना, गलत काम किया जाना, यह सभी पाप को बढ़ाने के अंतर्गत आते हैं। पाप-पुण्य का कर्म तो सभी को भोगना होता है। मनुष्य रूप में ईश्वर तक आए हैं उन्हें भी कर्म का फल सहन करना पड़ा है।
कुंडली से पितृ दोष-
में पंचम भाव से पता चलता है। सप्तम भाव से पता चलता है। नवम भाव को को भी देखा जाता है नीच ग्रह, पाप ग्रह, क्रूर ग्रह, की युति और खासकर राहु -शनि के श्रापित दोष। गुरु, राहु का दोष यह पीछा करते रहते हैं और परेशानियां बढ़ती चली जाती है पर कारण समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा है ।
पितृपक्ष अवसर है-
बहुत अच्छा समय है 16 दिन का। अपने पूर्वजों द्वारा, आपके द्वारा जो बड़े-बुजुर्गों के प्रति बुरा व्यवहार किया हो उसके लिए क्षमा मांग सकते हैं। उनके निमित्त अपनी सामर्थ्य के अनुसार तर्पण, श्राद्ध, दान, दक्षिणा करके पितृ दोष को बहुत कुछ कम कर सकते हैं। साथ ही प्रण ले कि बड़े-बुजुर्गों की सेवा अवश्य करेंगे। घर में अगर बड़े-बुजुर्ग नहीं है, तो आस-पड़ोस में उनकी हर इच्छा, विशेषकर भोजन संबंधी को पूर्ण करेंगे और हर अमावस्या को पितरों के प्रति एक उत्सव, जिसमें उनके निमित्त जो वस्तुएं उन्हे प्रिय है या थी, उसे दान करेंगे। साथ ही पशुओं को हरा चारा खिलाएं।
ये करें-
सूर्य की आराधना एवं प्रार्थना करें। तांबे के लोटे में जल लेकर पितरों के निमित्त रोज अर्पित करें। गाय को, कुत्तों को, चीटियों को रोज उनके निमित्त भोजन देवें। बहते जल में एक लीटर 2 लीटर 3 लीटर दूध पितरों को समर्पित करे। रसोई घर में पितरों के नाम एक दिया। दक्षिण दिशा में एक दिया शाम के समय जरूर जलाएं। बरगद पीपल गौशाला के नीचे अपने घर में ही श्राद्ध का भोजन तैयार करके जरूरतमंद को देवें जाने अनजाने में कोई गलती हुई होगी। उसके लिए रोज इन 16 दिनों में प्रार्थना करें, कि वे उन्हें क्षमा करें, उनका प्रेम और आशीर्वाद परिवार को मिलता रहे। कपूर, गुग्गुल जलाकर सभी कमरों में धूप करें।
...तो भाग्य बदलते देर नहीं लगेगी-
प्रतिदिन शाम को गाय के कंडे में भी गुड़, गूगल जाय-पत्री ,केसर को मिलाकर 🕉 पितृभ्यो नमः की आहुति दें। 16 दिन तक एक दीपक एक लोटा जल एवं भोजन दक्षिण दिशा तरफ रखें। चाहे उसे गाय को खिला दे या जरूरतमंद को दे दें। प्रतिपक्ष में प्रतिदिन आपको केवल पितृ से प्रार्थना करना है, कि उनके परिवार में जो पितृ दोष लगा है, उसको वे समाप्त करें और अपना आशीर्वाद और अपनी कृपा-दृष्टि बनाए रखें। इन 16 दिनों में आपके द्वारा की हुई पूजा से रुष्ट से रुष्ट पितृ भी प्रसन्न होंगे, किंतु आपकी क्षमा मांगना सच्चे मन से होना चाहिए। है तो वे आपके अपने ही। तो आपके भाग्य बदलते देर नहीं लगेगी। आपके सभी काम सफल होंगे। आपको सफलता मिलेगी, पर यह निर्भर करता है कि आपकी निष्ठा पितरों के प्रति किस प्रकार की है।
-सरिता अग्निहोत्री, ज्योतिर्विद, मध्य प्रदेश।
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