वेदांत सोसायटी ऑफ न्यूयॉर्क के मंत्री एवं प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु...
स्वामी सर्वप्रियानंद का "वसुधैव कुटुंबकम् : एकात्मकता की व्यावहारिक दृष्टि विषय पर व्याख्यान"
भोपाल (धर्म नगरी / DN News W.app- 6261868110)
वेदांत को आध्यात्मिक ज्ञान के भंडार रूप में जाना गया है, जो वास्तव में उपनिषद् ही है। वर्तमान समय में हमें भारतीय संस्कृति के मूल विचार को जानने का प्रयास करना चाहिए। हमें भारतीय संस्कृति के मूल विचार को दार्शनिक रूप से अद्वैत वेदांत की सहायता से जानना चाहिए। स्वामी विवेकानन्द ने अद्वैत वेदांत के दो मुख्य विचार व्यक्ति का देवत्त्व और समस्त अस्तित्व की एकता को बताया है।
जब हम आत्मा और ब्रह्म की बात करते हैं तो लोग इसका मतलब स्वतंत्र अस्तित्व से लगाते हैं लेकिन अभी मेरे हिसाब से मै खुद आत्मा हूं, ब्रह्म हूं और मै ही सारे प्रश्नों का उत्तर दूंगा...
ये विचार वेदांत सोसायटी ऑफ न्यूयॉर्क के मंत्री एवं प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु स्वामी सर्वप्रियानंद ने "वसुधैव कुटुंबकम् : एकात्मकता की व्यावहारिक दृष्टि विषय पर व्याख्यान" में कही। व्याख्यान का आयोजन संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश द्वारा "शंकर व्याख्यानमाला श्रृंखला" के अंतर्गत आज (30 अगस्त) को किया गया।
☛ संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश : शंकर व्याख्यानमाला श्रृंखला
अपने उद्बोधन का आरम्भ स्वामीजी ने बृहदारण्यक उपनिषद के श्लोक- 'अस्तो मा सद् गमय...' से किया। उन्होंने जेफ्री मोसेस की पुस्तक "वननेस" का उल्लेख करते हुए बताया, लेखक ने इस पुस्तक में विभिन्न धर्मों की एकात्मकता से जुड़ी अच्छी बातों का उल्लेख किया है। इसका प्रथम वाक्य है- विभिन्न युगों, अवधियों के सभी धर्मों ने यह दावा किया है, कि मानवता एक महान परिवार है। बाद में इसको और स्पष्ट करते हुए बताया, वास्तव के यह हिन्दू धर्म से जुड़ा है, जिसका स्पष्ट उल्लेख 6,000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन वैदिक ग्रंथ महाउपनिषद् में लिखे वाक्य 'यह विश्व मेरा परिवार है' के माध्यम से प्राप्त होता है। इस संदर्भ में उन्होंने कहा-
'अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ -महोपनिषद्, अध्याय ४, श्लोक ७१
अर्थात- यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है, श्लोक के माध्यम से उदाहरण दिया। वेदांत के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, वास्तव में वेदांत, उपनिषद का ही एक रूप है।
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ये भी पढ़ें-
"शास्त्रार्थ परम्परा" भारतीय संस्कृति का विलक्षण तत्व : राज्यपाल
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http://www.dharmnagari.com/2020/01/ShastrathSabhaGovernorHouseBhopal.html
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रोबोट और मनुष्य की तुलना करते हुए बताया, एक रोबोट के पास सबकुछ है, सिवाय चेतना के। कोई भी महानतम इंजीनियर यह दावा नहीं कर सकता कि उसके रोबोट के पास चेतना है और यही कारण है, मनुष्य मशीनों से उत्कृष्ट है। इसी चेतना का उल्लेख ऋषियों ने उपनिषद् में किया है। चैतन्यता मस्तिष्क द्वारा उत्पादित नहीं की जाती वरन् यह मस्तिष्क में उपस्थित रहती है।
अन्नमया, प्राणमया, मनोमया, विज्ञानमया, आनंदमया मानव व्यक्तित्व के पांच मुख्य अवयव हैं, जिसके कारण हम ये सोचते हैं कि हम इस संसार में हैं, लेकिन वेदांत कहता है, कि तुम नहीं हो... वेदांत का मत यहां भिन्न है।
विवेकानंद के शब्दों में- एक अकेले का अस्तित्व होता है। अर्थात चैतन्यता अकेले ही अस्तित्व में उपस्थित होती है। यह विषय और वस्तु में परिलक्षित होती है।
अपने उद्बोधन अंत में स्वामीजी ने कहा, हजारों वर्षों से "वसुधैव कुटुंबकम्" ध्येय वाक्य ही हमारी भारतीय संस्कृति का स्थापक रहा है। श्रीरामकृष्ण कहते है, कि आज वर्तमान समय में जितने विचार/ विश्वास है उतने ही पथ है ईश्वर तक पहुंचने के। आज न केवल सहनशीलता है बल्कि स्वीकार्यता भी है। कुटुंब का भी यही तात्पर्य है, जहां लोग भिन्नता / विविधता के रहते हुए भी एकता के भाव को लिए हुए साथ रहते हैं। यह विविधता ही ब्रह्म की धनवता/ अतिशोभा है।
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भोपाल (धर्म नगरी / DN News W.app- 6261868110)
वेदांत को आध्यात्मिक ज्ञान के भंडार रूप में जाना गया है, जो वास्तव में उपनिषद् ही है। वर्तमान समय में हमें भारतीय संस्कृति के मूल विचार को जानने का प्रयास करना चाहिए। हमें भारतीय संस्कृति के मूल विचार को दार्शनिक रूप से अद्वैत वेदांत की सहायता से जानना चाहिए। स्वामी विवेकानन्द ने अद्वैत वेदांत के दो मुख्य विचार व्यक्ति का देवत्त्व और समस्त अस्तित्व की एकता को बताया है।
जब हम आत्मा और ब्रह्म की बात करते हैं तो लोग इसका मतलब स्वतंत्र अस्तित्व से लगाते हैं लेकिन अभी मेरे हिसाब से मै खुद आत्मा हूं, ब्रह्म हूं और मै ही सारे प्रश्नों का उत्तर दूंगा...
ये विचार वेदांत सोसायटी ऑफ न्यूयॉर्क के मंत्री एवं प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु स्वामी सर्वप्रियानंद ने "वसुधैव कुटुंबकम् : एकात्मकता की व्यावहारिक दृष्टि विषय पर व्याख्यान" में कही। व्याख्यान का आयोजन संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश द्वारा "शंकर व्याख्यानमाला श्रृंखला" के अंतर्गत आज (30 अगस्त) को किया गया।
☛ संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश : शंकर व्याख्यानमाला श्रृंखला
अपने उद्बोधन का आरम्भ स्वामीजी ने बृहदारण्यक उपनिषद के श्लोक- 'अस्तो मा सद् गमय...' से किया। उन्होंने जेफ्री मोसेस की पुस्तक "वननेस" का उल्लेख करते हुए बताया, लेखक ने इस पुस्तक में विभिन्न धर्मों की एकात्मकता से जुड़ी अच्छी बातों का उल्लेख किया है। इसका प्रथम वाक्य है- विभिन्न युगों, अवधियों के सभी धर्मों ने यह दावा किया है, कि मानवता एक महान परिवार है। बाद में इसको और स्पष्ट करते हुए बताया, वास्तव के यह हिन्दू धर्म से जुड़ा है, जिसका स्पष्ट उल्लेख 6,000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन वैदिक ग्रंथ महाउपनिषद् में लिखे वाक्य 'यह विश्व मेरा परिवार है' के माध्यम से प्राप्त होता है। इस संदर्भ में उन्होंने कहा-
'अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ -महोपनिषद्, अध्याय ४, श्लोक ७१
अर्थात- यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है, श्लोक के माध्यम से उदाहरण दिया। वेदांत के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, वास्तव में वेदांत, उपनिषद का ही एक रूप है।
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अन्नमया, प्राणमया, मनोमया, विज्ञानमया, आनंदमया मानव व्यक्तित्व के पांच मुख्य अवयव हैं, जिसके कारण हम ये सोचते हैं कि हम इस संसार में हैं, लेकिन वेदांत कहता है, कि तुम नहीं हो... वेदांत का मत यहां भिन्न है।
विवेकानंद के शब्दों में- एक अकेले का अस्तित्व होता है। अर्थात चैतन्यता अकेले ही अस्तित्व में उपस्थित होती है। यह विषय और वस्तु में परिलक्षित होती है।
अपने उद्बोधन अंत में स्वामीजी ने कहा, हजारों वर्षों से "वसुधैव कुटुंबकम्" ध्येय वाक्य ही हमारी भारतीय संस्कृति का स्थापक रहा है। श्रीरामकृष्ण कहते है, कि आज वर्तमान समय में जितने विचार/ विश्वास है उतने ही पथ है ईश्वर तक पहुंचने के। आज न केवल सहनशीलता है बल्कि स्वीकार्यता भी है। कुटुंब का भी यही तात्पर्य है, जहां लोग भिन्नता / विविधता के रहते हुए भी एकता के भाव को लिए हुए साथ रहते हैं। यह विविधता ही ब्रह्म की धनवता/ अतिशोभा है।
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