महिलाओं से शुरू, पुरुषों की दाढ़ी पर खत्म, ऐसा फिर होगा तालीबानी शासन ?
भारत का बड़ी बिन्दी वाला गैंग, जो महिलाओं बेटियों को लेकर भारत सरकार के खिलाफ आए दिन प्रदर्शन, धरना देती है, उनको समझ है क्या ?
पहले रूस, अब अमेरिका के हाथ का खिलौना रहा अफगानिस्तान आज कट्टरपंथी तालीबान के कब्जे के बाद जार-जार रो रहा है। अफगानिस्तान में तालीबान के आने के आहट के साथ ही महिलाएं, लड़कियां सबसे ज्यादा संकट में हैं। पूरी दुनिया में महिला सुरक्षा, महिला आजादी, महिला संरक्षण और बच्ची बचाओ अभियानों को चलाने वाली सरकारें अफगानिस्तान की महिलाओं, बेटियों की सुरक्षा और संरक्षण को नजरअंदाज किए बैठी हैं। यहां तक कि भारत का बड़ी बिन्दी वाला गैंग, जो महिलाओं और बेटियों को लेकर भारत सरकार के खिलाफ आए दिन प्रदर्शन करने, धरना देने, नारेबाजी लगाने वाले गिरोह को शायद ये समझ नहीं है, कि स्त्री सिर्फ स्त्री होती है, चाहे वो किसी भी धर्म, किसी भी देश की हो। जहां भी उनके अधिकार कुचले जाएं, उनकी सुरक्षा को ताक पर रखा जाए, हर हाल में निन्दनीय है।
भारत के महिला संगठनों की तरफ से अफगानी महिला और बेटियों के हितों के लिए आवाज न उठना, मुझे हैरत में डालता है। ईश्वर के बाद सृष्टि सृजन में सिर्फ महिला ही है। ईश्वर संसार रचता है और महिला इस संसार को संतान देती है। पृथ्वी के किसी भी कोने में, किसी भी महिला के साथ, कभी भी कुछ भी गलत हो, महिला होने के नाते मुझे कतई स्वीकार नहीं है और अफगानिस्तान तो महिलाओं और बच्चियों के लिए जीता-जागता दोजख बन गया है।
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अमेरिका और तालीबान के बीच हुए ‘दोहा समझौते’ के बाद अफगानिस्तान ने कब्जा जमा लिया। तालीबान ने अफगानिस्तान की सेना को उखाडक़र फेक दिया। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति सहित तमाम वरिष्ठ सरकारी अफसर, नागरिक, महिलाएं और बच्चे अफगानिस्तान छोडक़र भाग रहे हैं। इसके पूर्व जब अफगानिस्तान में तालिबान शासन कर रहा था, तब बामियान के बुद्ध की मूर्तियों से लेकर पाक-परस्त आतंकवादियों द्वारा भारतीय विमान का अपहरण कर कंधार ले जाने तक के मामले भारत के सामने आए थे, जिसमें तालीबानी शासकों ने अपहृत विमान के यात्रियों के खाने का बिल करोड़ों रुपए में भारत से वसूला था। पाकिस्तान और तालीबान की मिलीभगत से ये अपहरण हुआ था।
भारत के लिए पुन: तालीबानियों का शासन आना नि:संदेह चिन्ता का विषय है और दूसरे, सबसे बड़ी चिन्ता का विषय है, कि तालीबान दूसरे देशों से लगने वाले सीमाई इलाकों पर कब्जा कर रहा है। आज जम्मू-कश्मीर में लाइन ऑफ कंट्रोल से तालीबान 400 किमी. दूर है। अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद वह आसानी से जम्मू-कश्मीर में अपने आतंकी भेजकर पाकिस्तान को मदद करेगा। शायद यही वजह है, कि पाकिस्तान का प्रधानमंत्री इमरान खान तालीबान के मजबूत होने पर बहुत खुश है।
भारत ही नहीं, चीन के लिए भी तालीबान चुनौती है। इस समय अफगानिस्तान में चीन के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं और तालीबान जानता है, कि अगर उसे अपनी स्थिति को मजबूत रखना है, तो उसे चीन के पैसे की बहुत जरूरत पड़ेगी। इसलिए तालीबान चीनी प्रोजेक्टों को बिल्कुल नहीं छेड़ रहा है, जबकि भारत के निवेश को तालीबान ने अफगानिस्तान में नुकसान पहुंचा रहा है। भारत इस बात से भी चिन्तित है, कि उसके 500 प्रोजेक्ट्स जो अफगानिस्तान में चल रहे और उन प्रोजेक्ट्स पर खर्च हुए 2200 करोड़ रु मिट्टी में मिल जाएंगे।
पश्चिमी देशों के जो थिंक टैंक और संयुक्त राष्ट्र हैं, जो मानवाधिकारों की लंबी-चौड़ी दुहाई दुनिया को, खासतौर पर भारत को देते हैं, उनको अफगानिस्तान में न तो मानव दिख रहे हैं, न मानव अधिकार। सारी दुनिया अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति को लेकर ये जानते हुए भी, कि तालीबानी शासन में मानव के सारे अधिकार कुचल कर रख दिए जाएंगे, मौन है।
पश्चिमी देशों के जो थिंक टैंक और संयुक्त राष्ट्र हैं, जो मानवाधिकारों की लंबी-चौड़ी दुहाई दुनिया को, खासतौर पर भारत को देते हैं, उनको अफगानिस्तान में न तो मानव दिख रहे हैं, न मानव अधिकार। सारी दुनिया अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति को लेकर ये जानते हुए भी, कि तालीबानी शासन में मानव के सारे अधिकार कुचल कर रख दिए जाएंगे, मौन है।
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अफगानिस्तान की महिलाएं तालीबान के खिलाफ हथियार लेकर सडक़ों पर (फाइल फोटो) |
शरिया कानून के पैरोकार तालीबान का इस्लाम महिलाओं से शुरू होकर पुरुषों की दाढ़ी पर जाकर समाप्त हो जाता है। संगीत की दुनिया से लेकर मनोरंजन के हर जरिए पर तालीबानी हुकूमत अपना इस्लामिक कानून थोपने को प्रतिबद्ध है। ये पहला मौका था, जब अफगानिस्तान की महिलाएं तालीबान के खिलाफ हथियार लेकर सडक़ों पर प्रदर्शन के लिए उतर रही थीं। तालीबान के खिलाफ नारेबाजी कर रही थीं और सोशल मीडिया पर तस्वीरें लोड कर रही थीं। उधर, तालीबान 15 साल की उम्र की बेटी को 70 साल के तालीबानी से ब्याहने के लिए उठा रहा था। 40 साल की विधवा को अपने आतंकियों से ब्याहने तालीबान फतवे जारी कर रहा था।
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लगातार (1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में पिछले तालिबानी शासन में) मानव अधिकार, शिक्षा, रोजगार से वंचित रही वहां की महिलाएं व लड़कियाँ (फाइल फोटो) |
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पिछले शासनकाल में काबुल में लड़कियों के सबसे बड़े अनाथालय ‘तस्किया मिस्कान’ में करीब 400 बच्चियां पूरे एक साल तालीबानी शासन में कैद रहीं। वहां पर काम करने वाली महिलाओं के स्टाफ को हटा दिया था। बच्चियां पूरी तरह इस्लामिक तालीबान के कैद में रहीं, उनके रहमों-करम पर रहीं। इस बात का जिक्र बच्चों के अधिकारों पर काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था- टेरे देस होम्स ने किया था। अफगानिस्तान में रहने वाली महिलाएं पिछले तालीबानी शासन में सबसे ज्यादा डिप्रेशन की मरीज बनीं। वो किसी से अपनी परेशानी तक नहीं बांट सकती थीं। हर तरह से महिलाओं की आजादी के दुश्मन तालीबान महिलाओं की शिक्षा के सख्त खिलाफ है। जिस समाज की महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं होंगी, उनकी आने वाली पीढ़ी देश को कैसी नस्ल देगी, ये सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। दुनियाभर के मानव अधिकार संस्थाएं महिलाओं और बच्चियों के अधिकार को लेकर तालीबान के सामने विवश नजर आती हैं।
कोई भी मजहब या धर्म अपनी आधी इकाई के साथ, किसी भी अन्याय के लिए कैसे स्वीकृति दे सकता है। ये मजहब नहीं हो सकता। ये तो अपने से कमजोर को दबाने वाली मानसिकता है और किसी भी अत्याचार के लिए सबसे ज्यादा सॉफ्ट, कोमल और नरम टारगेट केवल महिला और बच्चियां हैं। इनपर शक्ति प्रदर्शन करके पुरुष स्वयं को शक्तिशाली प्रशासक के तौर पर देखता है, जबकि वह यह नहीं जानता कि उसको पैदा करने वाली भी एक महिला ही थी। मैं सारी दुनिया के महिला अधिकारों की रक्षा करने की बात करने वाली संस्थाओं, संगठनों, सरकारी एजेंसियों से अपील करुंगी कि अफगानिस्तान में महिलाओं और बेटियों को बचाइये। उनकी सुरक्षा, शिक्षा, चिकित्सा सुनिश्चित करिये। आज रूस और अमेरिका दोनों मौन हैं, फिर वो भारत जैसे देश को ज्ञान बांटने का धंधा क्यों करते हैं ? ब्रिटेन, जहां की महारानी खुद एक महिला हैं वो अफगानिस्तान की महिलाओं को लेकर चुप कैसे रह सकती हैं ?
कौन बदन से आगे देखे औरत को
सबकी आंखें गिरवी है इस नगरी में
कोई भी मजहब या धर्म अपनी आधी इकाई के साथ, किसी भी अन्याय के लिए कैसे स्वीकृति दे सकता है। ये मजहब नहीं हो सकता। ये तो अपने से कमजोर को दबाने वाली मानसिकता है और किसी भी अत्याचार के लिए सबसे ज्यादा सॉफ्ट, कोमल और नरम टारगेट केवल महिला और बच्चियां हैं। इनपर शक्ति प्रदर्शन करके पुरुष स्वयं को शक्तिशाली प्रशासक के तौर पर देखता है, जबकि वह यह नहीं जानता कि उसको पैदा करने वाली भी एक महिला ही थी। मैं सारी दुनिया के महिला अधिकारों की रक्षा करने की बात करने वाली संस्थाओं, संगठनों, सरकारी एजेंसियों से अपील करुंगी कि अफगानिस्तान में महिलाओं और बेटियों को बचाइये। उनकी सुरक्षा, शिक्षा, चिकित्सा सुनिश्चित करिये। आज रूस और अमेरिका दोनों मौन हैं, फिर वो भारत जैसे देश को ज्ञान बांटने का धंधा क्यों करते हैं ? ब्रिटेन, जहां की महारानी खुद एक महिला हैं वो अफगानिस्तान की महिलाओं को लेकर चुप कैसे रह सकती हैं ?
कौन बदन से आगे देखे औरत को
सबकी आंखें गिरवी है इस नगरी में
अफगानिस्तान में तालीबानी हुकूमत के स्थापित होने पर महिलाओं और बच्चियों में भारी दहशत है। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है, कि उनका भविष्य क्या है ?
आग ही बर्क वफा सब्र तमन्ना एहसास
मेरे ही सीने में उतारे हैं ये खंजर सारे।
-वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रबंध सम्पादक "धर्म नगरी" / DNNews भोपाल।**
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#सोशल_मीडिया से... अफगानिस्तान, तालिबान
Afghans crowded #Kabul airport Sunday night hoping to board international flights. #Afghanistan Video : TOLOnews
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Shocking! In Kabul, three people have placed themselves in the tires of a military plane, after taking off, they fell from the sky. It was confirmed by the people on the ground. -@TajudenSoroush-
How a country can change with a blink of and eye #Afganistan #afganistanwoman #WomensRight -@tosnorway
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When women lived free in Afghanistan before the Taliban enslaved them #biologyclass #afganistanwoman #university -@uppingtheanti
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@TatianaPalaciosI Request all mullah/maulana to go to #Afganistan to live under the #Sharia law
I'm also dumbfounded that not a single 5 star activists criticize #Taliban the way they criticized #Israel.
#Muslims attacking #Muslims in the name of religion.
It's irony isn't. ☺ #अफगानिस्तान -@MoFaiza85658814
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अफगानिस्तान के काबुल एयरपोर्ट का (17 अगस्त) एक दृश्य। काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद भी एयरपोर्ट अमेरिकी सैनिकों के कब्जे में हैं.
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...To be updated later
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