गुरु रविदास जयंती : "मुख में राम, हाथ में काम" का दिया संदेश, और कहा-
छोट बड़े सब संग बसें, रविदास रहें प्रसन्न
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धर्म नगरी / DN News
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संत रविदास की जयंती आज श्रद्धा और भक्तिभाव से मनाई जा रही है। 14वीं शताब्दी के संत रविदास उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के संस्थापक थे। वाराणसी (काशी) में श्री गुरू रविदास जन्म स्थान मंदिर में लाखों लोग जयंती समारोहों को लेकर एकत्र हुए हैं।
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने इस अवसर पर बधाई दी है। राष्ट्रपति ने कहा कि गुरू रविदास एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे जिन्होंने जीवन पर्यंत सामाजिक कुप्रथाओं को दूर करने और समाज में एकता लाने का प्रयास किया। उन्होंने लोगों से समानता और एकता पर आधारित समाज के निर्माण का संकल्प लेने को कहा।
देखें / सुनें- PM मोदी श्री गुरु रविदास आश्रम धाम दिल्ली में कीर्तन करते / झांझ बजाते हुए-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (16 फरवरी) रविदास जयंती पर दिल्ली के करोल बाग स्थित गुरु रविदास विश्राम धाम मंदिर पहुंचे। इससे पूर्व ट्वीट में उन्होंने लिखा, कि वे वहां जन कल्याण के लिए प्रार्थना करेंगे। उन्होंने कहा, जिस तरह गुरु रविदास ने समाज से जात पात और छुआछूत जैसी कुरीतियों को खत्म करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, वह सभी के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने यह भी कहा, कि काशी में गुरु रविदास की स्मृति में मंदिर का निर्माण कार्य पूरी भव्यता के साथ चल रहा है।
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुरू रविदास जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। एक ट्वीट में उन्होंने कहा कि गुरू रविदास ने अपने विचारों और कृतियों से समाज में आध्यात्मिक चेतना जगायी और मानव कल्याण की राह दिखाई।
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने इस अवसर पर बधाई दी है। राष्ट्रपति ने कहा कि गुरू रविदास एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे जिन्होंने जीवन पर्यंत सामाजिक कुप्रथाओं को दूर करने और समाज में एकता लाने का प्रयास किया। उन्होंने लोगों से समानता और एकता पर आधारित समाज के निर्माण का संकल्प लेने को कहा।
देखें / सुनें- PM मोदी श्री गुरु रविदास आश्रम धाम दिल्ली में कीर्तन करते / झांझ बजाते हुए-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (16 फरवरी) रविदास जयंती पर दिल्ली के करोल बाग स्थित गुरु रविदास विश्राम धाम मंदिर पहुंचे। इससे पूर्व ट्वीट में उन्होंने लिखा, कि वे वहां जन कल्याण के लिए प्रार्थना करेंगे। उन्होंने कहा, जिस तरह गुरु रविदास ने समाज से जात पात और छुआछूत जैसी कुरीतियों को खत्म करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, वह सभी के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने यह भी कहा, कि काशी में गुरु रविदास की स्मृति में मंदिर का निर्माण कार्य पूरी भव्यता के साथ चल रहा है।
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुरू रविदास जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। एक ट्वीट में उन्होंने कहा कि गुरू रविदास ने अपने विचारों और कृतियों से समाज में आध्यात्मिक चेतना जगायी और मानव कल्याण की राह दिखाई।
दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने गुरु रविदास जयंती के अवसर पर दिल्ली में अवकाश की घोषणा की है। दिल्ली सरकार के अंतर्गत सभी सरकारी कार्यालयों में बुधवार (16 फरवरी) को अवकाश घोषित किया है।
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जब देश रियासतों में बंटा था, अनेक कुप्रथाओं का शिकार...
काशी में जिस समय गुरु रविदास महाराज का पुण्य प्रकाश हुआ, उस समय हमारा देश कई रियासतों में बंटा हुआ और अनेक कुप्रथाओं का शिकार था। क्रांतिकारी, कर्मयोगी और युग महापुरुष गुरु जी के जीवन का आदर्श मध्यकालीन भारत के उस काल में तत्कालीन समाज में व्याप्त सांस्कृतिक, आर्थिक असमानता, सामाजिक कुरीतियों अर्थात मानवीय भेदभाव, धार्मिक आडम्बर, ऊंच-नीच की भावना, कटुता को दूर करना था। इसके साथ मधुर और नम्र वाणी से अपनी शिक्षाओं द्वारा भटके हुए समाज को सही मार्ग पर लाना एवं उन्हें अपने अधिकारों की अनुभूति कराना था।
गुरु रविदास जी उन्होंने अनेक कष्ट सहकर भी मानव मात्र को सत्य, पवित्र, सुचारू और प्रगतिशील जीवन जीने की उत्तम सेध दी। गुरु रविदास जी अपनी सारी कमाई संगत और लंगर की सेवा में लगा देते थे। इसलिए उनके पिताजी ने गुरु जी को पारिवारिक जिम्मेदारियों की अनुभूति कराने उनका विवाह करके उन्हें घर के पिछवाड़े में छोटी-सी कुटिया बना दी, जो बाद में प्रसिद्ध और बड़ा आश्रम बन गया। उनकी धर्म पत्नी का नाम भागवंती लोना था जो मिरजापुर से थीं। वह रविदास जी के हर कामकाज में सब्र-संतोष और कर्मशीलता के साथ हाथ बंटाती थीं।
काशी में जिस समय गुरु रविदास महाराज का पुण्य प्रकाश हुआ, उस समय हमारा देश कई रियासतों में बंटा हुआ और अनेक कुप्रथाओं का शिकार था। क्रांतिकारी, कर्मयोगी और युग महापुरुष गुरु जी के जीवन का आदर्श मध्यकालीन भारत के उस काल में तत्कालीन समाज में व्याप्त सांस्कृतिक, आर्थिक असमानता, सामाजिक कुरीतियों अर्थात मानवीय भेदभाव, धार्मिक आडम्बर, ऊंच-नीच की भावना, कटुता को दूर करना था। इसके साथ मधुर और नम्र वाणी से अपनी शिक्षाओं द्वारा भटके हुए समाज को सही मार्ग पर लाना एवं उन्हें अपने अधिकारों की अनुभूति कराना था।
गुरु रविदास जी उन्होंने अनेक कष्ट सहकर भी मानव मात्र को सत्य, पवित्र, सुचारू और प्रगतिशील जीवन जीने की उत्तम सेध दी। गुरु रविदास जी अपनी सारी कमाई संगत और लंगर की सेवा में लगा देते थे। इसलिए उनके पिताजी ने गुरु जी को पारिवारिक जिम्मेदारियों की अनुभूति कराने उनका विवाह करके उन्हें घर के पिछवाड़े में छोटी-सी कुटिया बना दी, जो बाद में प्रसिद्ध और बड़ा आश्रम बन गया। उनकी धर्म पत्नी का नाम भागवंती लोना था जो मिरजापुर से थीं। वह रविदास जी के हर कामकाज में सब्र-संतोष और कर्मशीलता के साथ हाथ बंटाती थीं।
गुरु रविदास जी उच्च कोटि के सदाचारक, यथार्थक, तर्कशीलता के तराजू में तोलने वाले निर्गुण ब्रह्म के साधक थे। उनकी यह स्पष्ट धारणा थी कि इस धरती पर जन्मा हर प्राणी सदाचार की बुनियाद पर भगवत भजन संग, आनन्दमय अवस्था में रत होकर पुनीत हो सकता है। किसी भी कुल या जाति में जन्म लेने से या ऊंचा नाम रखने से कोई गुणवान या गुणहीन नहीं होता। परमात्मा किसी जाति, धर्म, कौम की निजी सम्पत्ति नहीं, ईश्वर का द्वार प्रत्येक मनुष्य के लिए खुला है। गुरु रविदास जी ने कर्म मार्ग, ज्ञान मार्ग और प्रेम भक्ति मार्ग को पहल दी है। उन्होंने कर्मकांडी मायाजाल का खंडन किया है।
उन्होंने नाम सिमरन करना, नेक कमाई करनी और बांट कर खाने का सत्मार्ग ही नहीं बताया बल्कि समस्त समाज को रूहानियत का मार्ग भी दिखाया। उनका पवित्र जीवन ही निर्गुण नाम रूपी भक्ति या सहज प्रेम भक्ति और नेक कमाई, शुद्ध व्यवहार का सर्वोत्तम संकल्प था। उनका दृष्टिकोण सर्वव्यापी और समूह कायनात के लिए था। वह पूरे समाज की भलाई के लिए, धर्म के ठेकेदारों की धार्मिक गुलामी से लोगों को मुक्त करवाना चाहते थे।
वह प्रत्येक मनुष्य को समानता का अधिकार देते थे। उनका संकल्प दयनीय जीवन को कर्मशील बनाना, विरासत में मिली जात-पात और वर्ण व्यवस्था से ऊपर उठ कर जीवन निर्वाह हेतु स्वाभिमान पैदा करने के लिए निरन्तर जोत जलाना था।
गुरु जी का सबके लिए मुख्य संदेश यही था कि मुख में राम, हाथ में काम। बहुत से खोजकर्ता विद्वानों के अनुसार गुरु जी ने दिल्ली, गुडग़ांव (हरियाणा), त्रिवेणी संगम, अयोध्या, गोदावरी, मथुरा, वृंदावन, भरतपुर, कोठा साहिब (जिला अमृतसर), खुरालगढ़ (जिला होशियारपुर) आदि स्थानों की यात्रा की, सत्संग किए और उपदेश दिए। भारत में श्री गुरु रविदास महाराज जी के कई यादगार स्थान हैं। बनारस से 10 किलोमीटर दूर काशी में छोटे से गांव सीर-गोवर्धन पुर में रविदास जी का बहुत ही सुंदर पांच मंजिला मन्दिर है। यहां हर वर्ष गुरु जी का जन्मदिन मनाया जाता है। देश और विदेश से बहुत से श्रद्धालु इस अवसर पर यहां नतमस्तक होने आते हैं।
उन्होंने नाम सिमरन करना, नेक कमाई करनी और बांट कर खाने का सत्मार्ग ही नहीं बताया बल्कि समस्त समाज को रूहानियत का मार्ग भी दिखाया। उनका पवित्र जीवन ही निर्गुण नाम रूपी भक्ति या सहज प्रेम भक्ति और नेक कमाई, शुद्ध व्यवहार का सर्वोत्तम संकल्प था। उनका दृष्टिकोण सर्वव्यापी और समूह कायनात के लिए था। वह पूरे समाज की भलाई के लिए, धर्म के ठेकेदारों की धार्मिक गुलामी से लोगों को मुक्त करवाना चाहते थे।
वह प्रत्येक मनुष्य को समानता का अधिकार देते थे। उनका संकल्प दयनीय जीवन को कर्मशील बनाना, विरासत में मिली जात-पात और वर्ण व्यवस्था से ऊपर उठ कर जीवन निर्वाह हेतु स्वाभिमान पैदा करने के लिए निरन्तर जोत जलाना था।
गुरु जी का सबके लिए मुख्य संदेश यही था कि मुख में राम, हाथ में काम। बहुत से खोजकर्ता विद्वानों के अनुसार गुरु जी ने दिल्ली, गुडग़ांव (हरियाणा), त्रिवेणी संगम, अयोध्या, गोदावरी, मथुरा, वृंदावन, भरतपुर, कोठा साहिब (जिला अमृतसर), खुरालगढ़ (जिला होशियारपुर) आदि स्थानों की यात्रा की, सत्संग किए और उपदेश दिए। भारत में श्री गुरु रविदास महाराज जी के कई यादगार स्थान हैं। बनारस से 10 किलोमीटर दूर काशी में छोटे से गांव सीर-गोवर्धन पुर में रविदास जी का बहुत ही सुंदर पांच मंजिला मन्दिर है। यहां हर वर्ष गुरु जी का जन्मदिन मनाया जाता है। देश और विदेश से बहुत से श्रद्धालु इस अवसर पर यहां नतमस्तक होने आते हैं।
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