Pitra Paksha : न भूले अपने पितरों को, परिवार में...


 
...पुत्र प्राप्ति की बाधा, निरंतर समस्या, व्यापार में लगातार हानि, घर में अकाल मृत्यु आदि हो तो, पितृदोष निवारण की विधिवत पूजा करवाना चाहिए
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-राजेश पाठक- अवैतनिक संपादक 9752404020
 
सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन (क्वार) मास का कृष्ण पक्ष हमारे पितरों या पुरखों को समर्पित है। पितरों को स्मरण करने का यह पखवारा अर्थात् पितृ-पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से प्रतिवर्ष आरंभ होगा। इस वर्ष पितृ-पक्ष भाद्र शुक्ल पूर्णिमा 10 सितंबर, 2022 को तर्पण के साथ आरंभ होगा। इसके साथ तिथि के अनुसार पुरखों के श्राद्ध का क्रम भी प्रारंभ होगा, जो पितृ-मोक्ष अमावस्या अर्थात् आश्विन कृष्ण अमावस्या (25 सितंबर) तक चलेगा। 

पितृ-पक्ष के इन 16 दिनों और पूर्णिमा को लोग अपने पुरखों का प्रतिदिन स्मरण करेंगें। तर्पण-अर्पण देंगे। पितृपक्ष के एक दिन पहले पूर्णिमा तिथि (10 सितंबर) को ऐसे लोग, जिन्हें अपने पूर्वजों की तिथि या तिथियाँ स्मरण नहीं है, तर्पण देंगे। नदी, तालाब, जलाशय के घाटों पहुँचकर सूर्योदय के साथ तर्पण-अर्पण करेंगे। घरों में कौवा, कुत्ता, गाय एवं द्वार पर आए एक व्यक्ति ‘अभ्यागत’ के लिए ग्रास निकाला जाएगा। यह क्रम पूरे पितृ-पक्ष तक चलेगा। श्राद्ध, संकल्प के बाद विधि-विधान से श्रद्धा भाव के साथ ही करना चाहिए। इसीलिए श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है। विधि-विधान से श्राद्ध कर्म करने से घर-परिवार के व्यक्ति की मनोकामना उनके ही पुरखों के आशीर्वाद से पूरी होती है, जिससे भौतिक और आध्यात्मिक सुखों की स्व: ही प्राप्ति होती है। पौराणिक उल्लेख है, कि भगवान श्रीराम ने वन में भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था। माता सीता ने श्राद्ध के समय साक्षात दशरथ को भोजन करते भी देखा था। 

गुणवान होगी संतान-
ज्योतिर्विदों एवं साधकों के अनुसार, पितृ-पक्ष में हमारे पूर्वज किसी न किसी रूप में आते हैं। अपने परिवार के लोगों को देखकर उन्हें भी दु:ख होता है। ज्योतिषाचार्य पं. विनोद गौतम भोपाल, डॉ. भगवत शरण शुक्ल (बीएचयू वाराणसी) पंचांगकर्ता पं. आनंद शंकर व्यास एवं डॉ. विनायक पाण्डेय (उज्जैन) पं. बृजेन्द्र मिश्र इलाहाबाद के मतानुसार, जो व्यक्ति अपने पूर्वजों को तिलांजलि या तर्पण करते हैं, पितृ उनके कष्टों का निवारण करते हैं। व्यक्ति पितृ-दोष व पितृ-ऋण के भार से मुक्त होता है। पितरों के निमित्त भोजन का ग्रास निकालकर दान-पुण्य करने वाले व्यक्ति के घर गुणवान संतान होती है।  

नहीं करते विधिवत श्राद्ध-
पितरों के श्राद्ध की बात होते ही सर्वप्रथम हमें गया का स्मरण होता है। स्वर्गीय मार्कण्डेय ऋषि आचार्य जिनके सानिध्य में लगभग चार दशक तक भोपाल के तालाब में श्रद्धालुओं ने सामूहिक रूप से अपने-अपने पुरखों का अर्पण-तर्पण किया, उनका स्पष्ट कहना था- गया (बिहार) में श्राद्ध करने में 48 वेदियों की पूजा होती है, जिसमें 7-8 दिन लगते हैं। इससे पहले प्रयाग एवं वाराणसी में श्राद्ध कर्म करने होते हैं, जिसे अब प्राय: नहीं किया जाता।  पितरों के अतृप्त या असंतुष्ट होने पर इसका असर घर-परिवार में निश्चित रूप से दिखता है। वैसे तर्पण की विधि 12 महीने है, लेकिन शास्त्रों में पितरों हेतु विशेष रूप से पितृपक्ष का विधान है। कुछ ज्योतिषाचार्यों का मानना है, कि मनुष्य को आजीवन पितरों का स्मरण करना चाहिए। 

परिवार में पुत्र प्राप्ति की बाधा, निरंतर परेशानी, व्यापार में लगातार हानि या घर में अकाल मृत्यु आदि हो, तो व्यक्ति को त्रयंबकेश्वर, गया या उज्जैन में कालभैरव के निकट सिद्धवट (भैरवगढ़) में पितृदोष निवारण विधिवत पूजा करवाएं या इस स्थान पर श्रद्धा के साथ दूध चढ़ाकर अभिषेक-पूजन कर सकते हैं। गया में श्राद्ध करने के बाद भी पुरखों का पुरखों का स्मरण व श्राद्ध करना चाहिए। आज अधिकांश लोग श्राद्ध को औपचारिकता मान करते हैं। जबकि पहले इसे लोग श्रद्धा एवं विश्वास से करते थे। पितृपक्ष में पूर्वज अवश्य ही अपने वंशज की सुध लेते हैं। 

पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है, सनातन हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इसका समापन 25 सितंबर को होगा। पितृ पक्ष भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से आश्विन महीने की अमावस्या तिथि तक रहता है। मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कार्य किए जाते हैं। श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान जैसे कार्यों से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है तथा कुंडली में पितृ-दोष से मुक्ति मिलती है। श्राद्ध के दिन दान का विशेष महत्व है।  
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पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध-
हिंदू धर्म में पितृ-ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध मनाया जाता है। सनातन शास्त्रों में पिता के ऋण को सबसे बड़ा और अहम माना गया है। पितृ-ऋण के अतिरिक्त हिन्दू धर्म में देव-ऋण और ऋषि-ऋण भी होते हैं, लेकिन पितृ-ऋण ही सबसे बड़ा ऋण है। इस ऋण को चुकाने में कोई त्रुटि या गलती न, हो इसीलिए इस पक्ष में विशेष नियम-संयम का पालन किया जाता है।

 
क्या करें, क्या नहीं-
सरल रूप में श्राद्ध करने हेतु पितरों की तिथि के दिन पितरों का नाम लेकर जल से तर्पण करें। शास्त्रानुसार पितर की तिथि ज्ञात न होने पर पितृपक्ष के अंतिम दिन- सर्वपितृ अमावस्या (4 अक्टूबर, 13) को श्राद्ध करें। सामथ्र्य के अनुसार पितर को प्रिय वस्तुएं बनवाएं। इसमें से कौवा, गाय, कुत्ते का ग्रास निकालें। श्रद्धापूर्वक ब्राह्मण को भोज कराएं। पितृपक्ष के दौरान नए कपड़े सिलना एवं शुभ कार्य में प्रयोग हेतु वस्तुएं नहीं खरीदते। इस दौरान नया काम शुरू नहीं करते।

दान, तर्पण, चिंतन-
पितृपक्ष में पुरखों के निमित्त दान-तर्पण इत्यादि करना, उनका चिंतन करना चाहिए। विवाह इत्यादि शुभ कार्य इसलिए नहीं करते, क्योंकि पितृपक्ष के अवधि ग्रह नक्षत्रों की स्थिति अनुकूल नहीं होती। पितृ पक्ष में उसी प्रकार कर्म करते हैं, जिस तरह ‘सूतक’ आदि की स्थिति में। 
जो पितरों को प्रिय हो-
श्राद्ध में वही भोजन, वस्तुएं आदि दान करनी चाहिए जो पितरों को प्रिय है। कर्मकांडी विद्वानों के अनुसार श्राद्ध कर्म से जहां सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है, वहीं इसको करने से व्यक्ति को भौतिक और आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति होती है। 

पितृ दोष निवारण के अन्य उपाय-
पौराणिक एवं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दौरान गाय, चींटी, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए। लोग गाय, कुत्तों और कौवों को भोजन खिलाते हैं। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और सुख-शांति और खुशहाली का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
- पीपल के वृक्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है। इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है। या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है।
- प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है।
- सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है।
- सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कूंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है।   

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संबंधित लेख-
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ऐसे करें पूर्वजों के श्राद्ध-
पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय का अंश निकालें।
ऊं पितृदेवताभ्यो नम:’ का जाप करते हुए किसी पात्र में दूध, जल, तिल और पुष्प लें। कुश और काले तिलों के साथ तीन बार तर्पण करें।
बाएं हाथ में जल का पात्र लें और दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की तरफ करते हुए उस पर जल डालते हुए तर्पण करते रहें।
वस्त्रादि जो भी आप चाहें पितरों के निमित निकाल कर दान कर सकते हैं।

पितरों की शांति के लिए- 
एक माला प्रतिदिन ‘ऊं पितृ देवताभ्यो नम:’ की करें।
ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:’ का जाप करते रहें।
भगवत गीता या भागवत का पाठ भी कर सकते हैं।

पितृ दोष के संकेत-
- घर में अकस्मात मृत्यु हो रही है, तो इसका कारण पित्तरों का श्राद्धवत तर्पण न होना होता है।
- वंशवृद्धि नहीं हो रही है, तो इसका कारण पित्तरों की विस्मृति होता है।
- भूमि की हानि हो रही है, तो इसका कारण पूर्वजों के द्वारा किये गए शुभ कामों की आपके द्वारा निंदा होती है।
- रोजगार में परेशानी आ रही है, तो यह धर्म विरुद्ध आचरण पितृ दोष की श्रेणी में आता है।
- मान-सम्मान में कमी हो रही है, तो यह गौ हत्या समरूप पितृदोष है।
- लगातार बीमार रहते हैं, तो यह नदी / कूप जल में मलमूत्र विसर्जन पितृदोष है।
- अपमान का सामना करना पड़ रहा है, तो यह अमावस्या संभोग पितृदोष का कारण है।
- घर में किसी भी प्रकार की वृद्धि नहीं होती है, तो यह भ्रूण हत्या पितृदोष का कारण है।

पितृ दोष निवारण के उपाय- 
किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रबल पितृ-दोष हो, तो उन्हें पितरों का तर्पण अवश्य करना चाहिए। तर्पण मात्र से ही हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं। वे हमारे घरों में आते हैं और हमको आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

कुंडली में यदि पितृ दोष हो, तो इन 16 दिनों में तीन बार एक उपाय करिए। सोलह बताशे लीजिए। उन पर दही रखिए और पीपल के वृक्ष पर रख आइये। इससे पितृ दोष में राहत मिलेगी। यह उपाय पितृ पक्ष में तीन बार करना है।

दूरदराज में रहने वाले, सामग्री उपलब्ध नहीं होने, तर्पण की व्यवस्था नहीं हो पाने पर एक सरल उपाय के माध्यम से पितरों को तृप्त किया जा सकता है। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खड़े हो जाइए। अपने दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की ओर करिए। 11 बार पढ़ें ‘ऊं पितृदेवताभ्यो नम:ऊं मातृ देवताभ्यो नम:।।’

पितृ पक्ष की तिथियां- किस दिन किनका करें श्राद्ध ?
प्रतिपदा श्राद्ध- 10 सितंबर- जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि को हुई, 
प्रतिपदा को नाना-नानी का श्राद्ध
किया जाता है।
द्वितीया श्राद्ध- 11 सितंबर- जिनकी मृत्यु द्वितीया तिथि पर हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
तृतीया श्राद्ध- 12 सितंबर- जिनकी मृत्यु तृतीया तिथि पर हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
चतुर्थी श्राद्ध- 13 सितंबर- जिनकी मृत्यु चतुर्थी तिथि पर हुई, इस दिन उनका श्राद्ध किया जाता है।
पंचमी श्राद्ध- 14 सितंबर- जिनकी मृत्यु पंचमी को हुई, जिनकी अविवाहित मृत्यु हुई हो
षष्ठी श्राद्ध- 15 सितंबर- जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि पर हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
सप्तमी श्राद्ध- 16 सितंबर- जिनकी मृत्यु सप्तमी तिथि पर हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
नोट- 17 सितंबर इस तिथि पर किसी का श्राद्ध नहीं किया जाएगा।
अष्टमी श्राद्ध- 18 सितंबर- जिनकी मृत्यु अष्टमी तिथि पर हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
नवमी श्राद्ध- 19 सितंबर- जिनकी मृत्यु नवमी को हुई हो. सौभाग्यवती स्त्री की, क्योंकि इस तिथि को अविधवा नवमी माना गया है। माता-पिता की मृत्यु हुई हो। जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो, उनका भी श्राद्ध नवमी को किया जाता है। इसे मातृ-नवमी श्राद्ध भी कहते हैं।
दशमी श्राद्ध- 20 सितंबर- जिनकी मृत्यु दशमी तिथि पर हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
एकादशी श्राद्ध- 21 सितंबर- जिनकी मृत्यु एकादशी को हुई, सन्यास लेने वाले की। द्वादशी तिथि भी संन्यासियों के श्राद्ध की तिथि मानी गई है। 
द्वादशी श्राद्ध- 22 सितंबर- जिनकी मृत्यु द्वादशी को हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
त्रयोदशी श्राद्ध- 23 सितंबर- जिनकी मृत्यु त्रयोदशी को हुई, बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।
चतुर्दशी श्राद्ध- 24 सितंबर- जिनकी मृत्यु चतुर्दशी को हुई हो, 
जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, जल में डूबने, किसी हथियार से, विष से हुई हो, उनका श्राद्ध किया जाता है।
अमावस्या (समापन) श्राद्ध- 25 सितंबर- इस तिथि पर सर्वपितृ श्राद्ध किया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या को सभी ज्ञान-अज्ञात पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है, इसीलिए इसे पितृ-विसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि कहते हैं। वहीं, जिनका निधन पूृर्णिमा को हुआ हो, उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या सर्वपितृ अमावस्या को करते हैं। 

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