शरद पूर्णिमा : चन्द्रमा की किरणों संग आकाश से होगी अमृत वर्षा, जाने वैज्ञानिक आधार
ध्रुव योग में मनेगी शरद पूर्णिमा, महत्व और पूजा- विधि
अपनी विलक्षण छटा से ओतप्रोत,
सोलह कलाओं से सराबोर,
ढूंढने निकलेगा आज चन्द्रमा भी सब ओर,
कहां राधाजी संग रास रचाएगा सबका नंदकिशोर,
अपनी छटा और अमृत की बारिश में,
आज हम सबको भिगाएगा,
आज तो चन्द्रमा भी रास रचाएगा।।
शरद पूर्णिमा की सबको असीम शुभकामनाये - धर्म नगरी
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी के निकट रहता है। साथ ही इस पूर्णिमा की रात्रि चंद्रमा पूरी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस ऋतु में सर्वत्र आकाश निर्मेश हो जाता है, शीतल मंद हवा बहने लगती है। चंद्रमा की चांदनी में अमृत का निवास हो जाता है। इसलिए उसकी किरणों से अमृत्व और आरोग्य की प्राप्ति होती है। इसलिए चन्द्रमा की किरणों संग आकाश से अमृत वर्षा होती है।
शरद पूर्णिमा, जिसे पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं, रविवार (9 अक्टूबर) को है। इस पूर्णिमा का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। इस बार पूर्णिमा धुव्र योग में मनेगा। शरद पूर्णिमा को लेकर विभिन्न मंदिरों में तैयारी होती है। इस बार पूर्णिमा धुव्र योग में मनेगा। इसके साथ उत्तराभाद्र और रेवती नक्षत्र का संयोग भी रहेगा।
शरद पूर्णिमा की खीर-
शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा के प्रकाश (चांदनी) में रखी हुई खीर का सेवन पित्तविकारोंका शमन करती है। रात को देशी गाय के दूध से बनी खीर चंद्रमा की चांदनी में 2 घंटे रखें, बाद में उसे खाएं तो अत्यंत लाभकारी होती है। शरद पूर्णिमा के दिन दूध से बने पदार्थ का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए, इससे विषाणु दूर होते हैं व रोग प्रतिरोधक शक्ति में वृद्धि होती है। यह वर्षभर आरोग्य और प्रसन्नता देने वाली है। इस किरणों से पेड़ पौधै औषधी गुणों से पुष्ट होती है। शरद पूर्णिमा की किरणों का लाभ लें।
सोलह कलाओं से सराबोर,
ढूंढने निकलेगा आज चन्द्रमा भी सब ओर,
कहां राधाजी संग रास रचाएगा सबका नंदकिशोर,
अपनी छटा और अमृत की बारिश में,
आज हम सबको भिगाएगा,
आज तो चन्द्रमा भी रास रचाएगा।।
शरद पूर्णिमा की सबको असीम शुभकामनाये - धर्म नगरी
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शरद पूर्णिमा, जिसे पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं, रविवार (9 अक्टूबर) को है। इस पूर्णिमा का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। इस बार पूर्णिमा धुव्र योग में मनेगा। शरद पूर्णिमा को लेकर विभिन्न मंदिरों में तैयारी होती है। इस बार पूर्णिमा धुव्र योग में मनेगा। इसके साथ उत्तराभाद्र और रेवती नक्षत्र का संयोग भी रहेगा।
शरद पूर्णिमा की खीर-
शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा के प्रकाश (चांदनी) में रखी हुई खीर का सेवन पित्तविकारोंका शमन करती है। रात को देशी गाय के दूध से बनी खीर चंद्रमा की चांदनी में 2 घंटे रखें, बाद में उसे खाएं तो अत्यंत लाभकारी होती है। शरद पूर्णिमा के दिन दूध से बने पदार्थ का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए, इससे विषाणु दूर होते हैं व रोग प्रतिरोधक शक्ति में वृद्धि होती है। यह वर्षभर आरोग्य और प्रसन्नता देने वाली है। इस किरणों से पेड़ पौधै औषधी गुणों से पुष्ट होती है। शरद पूर्णिमा की किरणों का लाभ लें।
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संबंधित लेख (2019) पढ़ें-शरद पूर्णिमा : कहाँ, क्यों, कैसे ? वैज्ञानिक आधार
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http://www.dharmnagari.com/2019/10/SharadPurnimaKyoKahaKaise.html
मान्यता है, इस दिन समुद्र मंथन के बाद लक्ष्मी जी प्रकट हुई थी। इस दिन माता लक्ष्मी की विधिवत पूजन करने से सुख-समृद्धि, धन वैभव की प्राप्ति होती है। वहीं दमा व अस्थमा के रोगियों के लिए चंद्ररात किरणों में ग्रहण की गई औषधियुक्त खीर लाभप्रद होती है।
इस दिन पूर्णिमा तिथि का मान संपूर्ण दिन और रात में 2.24 बजे तक है। उत्तराभाद्र नक्षत्र भी सायंकाल 5:17 बजे, पश्चात रेवती नक्षत्र है। ध्रुव योग शाम 8:32 बजे तक और सुस्थित नामक औदायिक योग भी है। अर्धरात्रि में पूर्णिमा तिथि विद्यमान रहने से शरद पूर्णिमा के लिए यह दिन प्रशस्त है।
ऐसे करें पूजन
रात्रि के प्रथम प्रहर में खुले आकाश में भगवान कृष्ण का आह्वान कर उनका षोडशोपचार पूजन करके गाय के दूध में मेवा आदि डालकर खीर बनाएं। उससे भगवान का भोग लगाएं। उस पात्र को किसी जालीदार कपड़े से ढककर खुले आकाश के नीचे रख दें।
रात्रि के दूसरे प्रहर के अंत तक भगवान विष्णु का कीर्तन और भजन करें। बाद में भगवान को विश्राम मुद्रा में रखकर स्वयं भी शयन करें। प्रात:काल सूर्योदय के पूर्व उस खीर रूपी प्रसाद को स्वयं ग्रहण करें और अपने इष्ट मित्रों को वितरण कर उन्हें भी अमृत रूपी प्रसाद से लाभान्वित करें।
http://www.dharmnagari.com/2019/10/SharadPurnimaKyoKahaKaise.html
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मान्यता है, इस दिन समुद्र मंथन के बाद लक्ष्मी जी प्रकट हुई थी। इस दिन माता लक्ष्मी की विधिवत पूजन करने से सुख-समृद्धि, धन वैभव की प्राप्ति होती है। वहीं दमा व अस्थमा के रोगियों के लिए चंद्ररात किरणों में ग्रहण की गई औषधियुक्त खीर लाभप्रद होती है।
इस दिन पूर्णिमा तिथि का मान संपूर्ण दिन और रात में 2.24 बजे तक है। उत्तराभाद्र नक्षत्र भी सायंकाल 5:17 बजे, पश्चात रेवती नक्षत्र है। ध्रुव योग शाम 8:32 बजे तक और सुस्थित नामक औदायिक योग भी है। अर्धरात्रि में पूर्णिमा तिथि विद्यमान रहने से शरद पूर्णिमा के लिए यह दिन प्रशस्त है।
ऐसे करें पूजन
रात्रि के प्रथम प्रहर में खुले आकाश में भगवान कृष्ण का आह्वान कर उनका षोडशोपचार पूजन करके गाय के दूध में मेवा आदि डालकर खीर बनाएं। उससे भगवान का भोग लगाएं। उस पात्र को किसी जालीदार कपड़े से ढककर खुले आकाश के नीचे रख दें।
रात्रि के दूसरे प्रहर के अंत तक भगवान विष्णु का कीर्तन और भजन करें। बाद में भगवान को विश्राम मुद्रा में रखकर स्वयं भी शयन करें। प्रात:काल सूर्योदय के पूर्व उस खीर रूपी प्रसाद को स्वयं ग्रहण करें और अपने इष्ट मित्रों को वितरण कर उन्हें भी अमृत रूपी प्रसाद से लाभान्वित करें।
- ब्रह्म पुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।
- शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है।
- शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं।
- कहते हैं, जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी।
- गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है, इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रातभर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
🌏 ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं।
🌏 शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।
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नवरात्रि, दुर्गा पूजा, संधि- पूजा, शस्त्र-पूजा, विजयादशमी
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