गणेशोत्सव : गणपति लाने से पहले घर से इन्हे हटा दें, क्यों हुए गणपति के दो विवाह, करें...

   
...विशेष उपाय, बनाएं ऐसे लड्डू
  
श्री गणेश चालीसा, आरती : जय गणेश जय गणेश... सुखकर्ता दुखहर्ता... 

               भगवान गणपति का पूरा परिवार #Dharm_Nagari_   

धर्म नगरी / DN News  
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किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले गणपति की आराधना करना अनिवार्य माना गया है।भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को बुद्धि और समृद्धि के देवता भगवान गणेश का जन्म हुआ था। अतः हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। 
सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष भाद्रपद की चतुर्थी तिथि 26 अगस्त को दोपहर 1:54 बजे लगेगी। वहीं, इसका समापन 27 अगस्त (बुधवार) दोपहर 3:44 बजे होगा। इसलिए गणेश चतुर्थी के पर्व का शुभारंभ 27 अगस्त को होगा और इसी दिन गणेश स्थापना की जाएगी। मान्यता है, बुधवार को गणपति पूजन करने से व्यापार, व्यवसाय में सफलता मिलती है। विद्यार्थी, व्यापारी और नया कार्य प्रारंभ करने वालों के लिए बहुत फलदाई होता है। गणपतिजी को बुध ग्रह का स्वामी माना गया है, इसलिए चतुर्थी पर उनका पूजन करने से बुध दोष भी शांत होगा।

बुधवार को गणेश चतुर्थी होने से यह तिथि और अधिक मंगलकारी हो गई है। इस दिन कई शुभ योग में रवि, स्वार्थ सिद्धि और लक्ष्मी नारायण जैसे शुभ योग बन रहे है। इस दिन पूजन करने से बुध दोष दूर होने के साथ व्यक्ति को निर्णय लेने की क्षमता व व्यापारिक सफलता मिलती है। इस दिन व्रत रखने और पूजन करने से छात्रों को पढ़ाई लिखाई में लाभ मिलेगा। व्यापारियों को स्थिरता प्राप्त होगी। 21 दूर्वा और मोदक चढ़ाने से भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होगी। पर्व काल में पूरे 10 दिन सूर्य और केतु की युति बनेगी, जो तुला एवं कुंभ राशि वालों जातकों के लिए अत्यंत अनुकूल रहेगी। इस दौरान चंद्रमा और मंगल की युति से लक्ष्मी योग भी रहेगा।    

गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे भारत में, विशेषकर महाराष्ट्र में बड़े ही उत्साह और धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन पर लोग अपने घरों में गणपति जी की स्थापना करते हैं और पूरे 10 दिनों श्रद्धाभाव से तक उनकी पूजा-अर्चना व सेवा करते हैं। इससे पूरे परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। गणेश महोत्सव के दौरान गणपति बप्पा की पूजा की जाती है।  

गणपति स्थापना से पहले 
इन्हें घर से हटा दें 
भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देव के रूप में पूजा जाता है। ऐसे में बप्पा की स्थापना से पहले आपको घर से कुछ वस्तुओं को बाहर कर देना चाहिए, जिससे सकारात्मकता बनी रहे। मान्यता है, यदि गणपति स्थापना से पहले निम्न वस्तुएं हटा दी जाएं, तो घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और बप्पा का आशीर्वाद निरंतर मिलता है।

टूटी-फूटी मूर्तियां
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में खंडित या बहुत पुरानी मूर्तियां रखना अशुभ माना जाता है। इससे जीवन में बाधाएं और परेशानियां आ सकती हैं। ऐसी मूर्तियों को श्रद्धापूर्वक बहते जल में प्रवाहित करना ही उचित है।

बेकार सामान बढ़ाता है नकारात्मकता
गणेश चतुर्थी से पहले घर से बेकार और अनुपयोगी वस्तुओं को बाहर कर दें। वास्तु शास्त्र कहता है कि जमी हुई बेकार चीजें घर में नकारात्मक ऊर्जा का कारण बनती हैं। साफ-सुथरा और सुसज्जित घर ही बप्पा की कृपा आकर्षित करता है।

खराब घड़ी, वाहन न रखें घर में
घर में बंद या खराब घड़ी रखना अशुभ फल देता है। यह रुकावट और दुर्भाग्य का प्रतीक माना जाता है। इसलिए ऐसी घड़ी या तो ठीक करवा लें या तुरंत हटा दें।

पूजा-स्थल पर रखें पवित्रता
गणपति स्थापना से पहले और बाद में पूजा-स्थल की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। वहां कभी भी गंदगी, पुराने फूल-माला या जूते-चप्पल न रखें। मंदिर को पवित्र और सुव्यवस्थित रखने से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।

गणेश चतुर्थी पर करें ये उपाय
गणेश चतुर्थी लकप श्रद्धालु अपने घरों में गणपति की स्थापना कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करेंगे। पौराणिक मान्यतानुसार, इस दिन पूर्ण श्रद्धा-विश्वास से गणपति आराधना करने से विशेष कृपा प्राप्त होती है। वहीं, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुछ विशेष उपाय करने से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है, संकट दूर होते हैं। गणेश चतुर्थी पर करें ये उपाय-
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धन-संपत्ति के लिए उपाय- अगर आप आर्थिक संकट से पीड़ित हैं, तो गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा कर हाथी और गौ माता को हरा चारा खिलाएं। इससे धन संबंधी रुकावटें दूर होती हैं।

गृह क्लेश दूर करने के लिए- घर में झगड़े या तनाव समाप्त करने इस दिन भगवान गणेश को गुड़ का भोग लगाएं और गाय की सेवा करें। इससे शांति और सौहार्द बढ़ता है।

नए कार्य में आने वाली बाधा दूर करने- अगर किसी नए कार्य में बार-बार बाधा आ रही है, तो गणपति को 21 गुड़ की गोलियां और दूर्वा चढ़ाएं तथा मंत्र जाप करें। इससे सभी इच्छाएं पूरी होने लगती हैं।

पापों से मुक्ति के लिए- गणेश चतुर्थी पर व्रत रखकर निर्धन और अभावग्रस्त लोगों की सहायता करें। धार्मिक मान्यता है, कि ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सकारात्मकता आती है।

देश में इन स्थानों पर भव्य गणेशोत्सव 
गणेश उत्सव यानी बप्पा का आगमन केवल मुंबई तक ही सीमित नहीं है। यह त्यौहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र से दक्षिण भारत, तेलंगाना, गोवा सहित विदेशों में बसे भारतीय भी गणेशोत्सव की भव्यता को पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं।

मुंबई 
गणेशोत्सव की भव्यता का जिक्र हो और मुंबई का नाम न आए, यह संभव नहीं। लालबाग का राजा, सिद्धिविनायक मंदिर और मुंबई की गलियां गणेश भक्तों के जयकारों से गूंज उठती हैं। यहां की भक्ति और उत्सव का रंग देखते ही बनता है।

पुणे
पुणे को गणेश उत्सव की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। कस्बा गणपति, दगडुशेठ हलवाई गणपति मंदिर जैसे स्थान यहां खास आकर्षण का केंद्र होते हैं। पारंपरिक मंडल सजावट और सांस्कृतिक कार्यक्रम पुणे के उत्सव को अनोखा बनाते हैं।

हैदराबाद, तेलंगाना
तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में गणेश चतुर्थी का अपना अलग ही अंदाज देखने को मिलता है। यहां की खैरताबाद गणेश मूर्ति देश की सबसे विशाल और भव्य प्रतिमाओं में गिनी जाती है। यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

 बेंगलुरु, कर्नाटक
दक्षिण भारत में बेंगलुरु गणेश उत्सव का प्रमुख केंद्र है। यहां मंदिरों के साथ-साथ घरों में भी बप्पा का स्वागत किया जाता है। पारंपरिक संगीत, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम इस त्यौहार की शोभा बढ़ा देते हैं।

गोवा
गोवा में गणेश चतुर्थी को ‘चावथ’ कहा जाता है। यहां यह पर्व परिवारिक और धार्मिक परंपराओं के साथ-साथ प्रकृति के बीच मनाया जाता है। गांव-गांव में बप्पा की स्थापना होती है और पारंपरिक गोअन व्यंजन इस उत्सव की मिठास बढ़ा देते हैं।

विदेशों में गणेशोत्सव
गणेशोत्सव भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका, यूके, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में बसे भारतीय समुदाय भी धूमधाम से मनाते हैं। सामूहिक पूजा, शोभायात्रा और सांस्कृतिक कार्यक्रम यहां भी बप्पा की भक्ति का जश्न मनाते हैं।

घर में बनायें बप्पा के लिए लड्डू 
गणेश चतुर्थी पर अपने घर में गणपति बप्पा के लिए विशेष लड्डू बना सकते हैं, जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्द्धक भी हैं-

बेसन के लड्डू
गणेश जी को अर्पित करने के लिए सबसे आसान और पारंपरिक लड्डू है बेसन लड्डू। इसे शुद्ध घी में बेसन को धीमी आंच पर भूनकर, उसमें शक्कर और इलायची डालकर तैयार किया जाता है। इसका स्वाद और सुगंध बप्पा को जरूर भाएगा।

नारियल के लड्डू
नारियल को पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। नारियल बुरादा, कंडेंस्ड मिल्क या गुड़ से बने नारियल लड्डू बप्पा को अर्पण करने के लिए उत्तम माने जाते हैं। यह झटपट बनने वाली रेसिपी है और बच्चों को भी बहुत पसंद आती है।

रवा (सूजी) के लड्डू
सूजी, चीनी और घी से बने रवा लड्डू स्वाद और सेहत दोनों के लिए बेहतरीन हैं। इन्हें बनाना बेहद आसान है और यह लंबे समय तक खराब भी नहीं होते। पूजा के लिए यह लड्डू शुभ माने जाते हैं।

तिल-गुड़ के लड्डू
तिल और गुड़ से बने लड्डू को ऊर्जा का खजाना कहा जाता है। यह शरीर को गर्माहट देने वाले होते हैं और स्वास्थ्य के लिहाज से भी लाभकारी हैं। गणपति बप्पा को तिल-गुड़ के लड्डू अर्पित करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

पंचमेवा लड्डू
काजू, बादाम, पिस्ता, अखरोट और किशमिश जैसे ड्राई फ्रूट्स से बने पंचमेवा लड्डू बेहद खास माने जाते हैं। इन्हें शुद्ध घी और गुड़ के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है। मान्यता है कि ड्राई फ्रूट्स से बने लड्डू बप्पा को अर्पित करने से घर में बरकत और स्वास्थ्य बना रहता है।

श्राप के कारण हुए गणपति के दो विवाह
रिद्धि-सिद्धि को गणपति की पत्नियों के रूप में जाना जाता है, जो असल में दो बहने थीं। परन्तु क्या आप जानते हैं, गणेश जी के दो विवाह एक श्राप के चलते हुए थे। गणेश जी के विवाह की रोचक कथा है, जिसका पौराणिक ग्रंथों (Mythological Story) में इसका उल्लेख भी है।

पद्मपुराण और गणेश पुराण के अनुसार, एक बार तुलसी जी ने गणेश जी को विवाह का प्रस्ताव दिया, लेकिन गणेश जी ने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। इस पर तुलसी माता क्रोधित हो गईं और उन्होंने गणेश जी को श्राप दे दिया, कि उनके दो विवाह होंगे। इस श्राप के बदले में गणेश जी ने भी तुलसी माता को श्राप दिया, कि उनका विवाह एक राक्षस से होगा। इसी श्राप के चलते गणेश जी का विवाह रिद्धि और सिद्धि नामक दो बहनों से हुआ।

क्यों नहीं हो रहा था विवाह ?
गणेश पुराण के छठे अध्याय में उल्लेख है, कि गणेश जी के लम्बोदर स्वरूप के कारण उनका विवाह नहीं हो पा रहा था। इस कारण वे अन्य देवी-देवताओं के विवाह में विघ्न डालने लगे। सभी देवता इस समस्या से परेशान हो गए और उन्होंने ब्रह्मा जी से समाधान मांगा।

ब्रह्मा जी ने अपनी पुत्रियों रिद्धि और सिद्धि को शिक्षा ग्रहण करने के लिए गणेश जी के पास भेजा। जब भी गणेश जी अन्य देवताओं के विवाह में विघ्न डालने जाते, रिद्धि-सिद्धि उन्हें अपने ज्ञान और गुणों से रोक लेतीं। धीरे-धीरे सभी देवताओं के विवाह बिना किसी बाधा के सम्पन्न होने लगे। जब गणपति को इस बात का पता चला, तो वे रुष्ट हुए। उसी समय ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्होंने गणेश जी को अपनी दोनों पुत्रियों से विवाह करने का प्रस्ताव दिया। इस प्रकार गणेश जी का विवाह रिद्धि और सिद्धि से सम्पन्न हुआ।
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देखें-

।। श्री गणेश चालीसा ।।
॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण  मंगल  करण, जय  जय  गिरिजालाल ॥

॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ॥

जै गजबदन  सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

राजत  मणि  मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥

सुन्दर  पीताम्बर  तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित॥

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता।
गौरी  लालन  विश्व-विख्याता ॥

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे।
मूषक   वाहन  सोहत  द्वारे ॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी।
अति शुची पावन मंगलकारी॥

एक समय गिरिराज कुमारी।
पुत्र  हेतु  तप  कीन्हा  भारी ॥10॥

भयो  यज्ञ  जब  पूर्ण  अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥

अतिथि जानी के गौरी सुखारी।
बहु विधि  सेवा  करी तुम्हारी ॥

अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा।
मातु  पुत्र  हित जो तप कीन्हा॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।
बिना  गर्भ  धारण  यहि  काला॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना।
पूजित  प्रथम रूप भगवाना॥

अस  कही  अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै॥

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं।
नाभ  ते सुरन, सुमन  वर्षावहिं ॥

शम्भु  उमा,  बहुदान  लुटावहिं।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा।
देखन  भी  आये  शनि  राजा ॥20॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।
बालक,  देखन  चाहत  नाहीं ॥

गिरिजा  कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥

कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥

नहिं विश्वास,  उमा  उर  भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ॥

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा  गयो नहीं वरणी ॥

हाहाकार  मच्यौ   कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।
काटी  चक्र  सो गज सिर लाये ॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥

नाम  गणेश  शम्भु  तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥30॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।
पृथ्वी  कर  प्रदक्षिणा  लीन्हा ॥

चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे  बैठ  तुम  बुद्धि उपाई ॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।
तिनके सात  प्रदक्षिण कीन्हें॥

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे।
नभ ते सुरन  सुमन  बहु  बरसे ॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई॥

मैं  मतिहीन  मलीन  दुखारी।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥

भजत  रामसुन्दर  प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥

अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥38॥

॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण  चालीसा  भयो, मंगल  मूर्ती  गणेश ॥


श्री गणेश आरती 
जय गणेश जय गणेश, 
जय  गणेश  देवा।
माता जाकी पार्वती, 
पिता  महादेवा ॥

एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।

माथे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता  जाकी  पार्वती,  पिता महादेवा ॥


पान चढ़े फल चढ़े,
और  चढ़े  मेवा ।

लड्डुअन का भोग लगे,
संत  करें  सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता  जाकी  पार्वती,  पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत,
कोढ़िन  को  काया।

बांझन को पुत्र देत,
निर्धन  को  माया ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता  जाकी  पार्वती,  पिता महादेवा ॥

'सूर' श्याम शरण आए,
सफल  कीजे  सेवा ।

माता जाकी पार्वती,
पिता   महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता  जाकी  पार्वती,  पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखो,
शंभु  सुतकारी ।

कामना को पूर्ण करो,
जाऊं  बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता  जाकी  पार्वती,  पिता महादेवा ॥
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गणपति जी आरती सुखकर्ता दुखहर्ता  

सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची

नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची

सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची

कंठी झलके माल मुकताफळांची

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति

दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव...

रत्न खचित फरा तुझ गौरी कुमरा

चंदनाची उटी कुमकुम केशरा

हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा

रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति

दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव...

लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना

सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना

दास रामाचा वाट पाहे सदना

संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति

दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव...

शेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख को

दोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को

हाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर को

महिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद को

जय जय जय जय जय

जय जय जी गणराज विद्या सुखदाता

धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव...

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