हरियाली तीज : प्रेम व समर्पण के पर्व पर का प्रतीक है हरियाली तीज, इस दिन पाएं...
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हरितालिका तीज-व्रत के देवता शिव,पार्वती, उप देवता गौरी-गणेश है। |
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प्रेम और समर्पण का प्रतीक है हरियाली तीज का पर्व, जिसमें भगवान शिव और देवी पार्वती की उपासना की जाती है। इस दिन महिलाएं पति की दीर्घायु एवं सुखी वैवाहिक जीवन के लिए श्रद्धा-विश्वास से उपवास रखेंगी। पति के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए व्रती दान-दक्षिणा जैसे पुण्य कार्य भी करती हैं। इसके प्रभाव से महादेव शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने 108 बार जन्म लिया और अपनी कठोर तपस्या से भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। हरतालिका तीज 26 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 5:56 से 8:31 तक रहेगा।
सौंदर्य, प्रेम के उत्सव और आस्था के इस हरियाली तीज, जिसे श्रावणी तीज भी कहते हैं, के व्रत का महिलाओं के लिए बड़ा महत्व है, विशेष रूप से नव विवाहिताओं के लिए। यह पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत- राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर पदेश, बिहार और झारखंड में धूमधाम से मनाया जाता है।
परंपरा के अनुसार, नवविवाहिताएं पहला व्रत मायके में रखती हैं और इसके लिए झूले सजाए जाते हैं, लोक गीत गाए जाते हैं। देश के कई हिस्सों में मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी निकाली जाती है।
पूजन सामग्री
हरतालिका तीज व्रत पूजन सामग्री- सुहाग का पिटारा तैयार करने के लिए सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, मेहंदी, काजल। इसके अलावा तुलसी, केला का पत्ता, आंक का फूल, मंजरी, शमी पत्र, जनैऊ, वस्त्र, फूल, अबीर, वस्त्र, फल, कुमकुम, चंदन, घी-तेल, दीपक, नारियल, माता की चुनरी, लकड़ी का पाटा, पीला कपड़ा, सुहाग पिटारा और तुलसी आदि।
दान की वस्तुएं
हरतालिका तीज व्रत में सुहाग का सामान चढ़ाया जाता है। जिसमें बिछिया, पायल, कुमकुम, मेहंदी, सिंदूर, चूड़ी, माहौर, कलश, घी-तेल, दीपक, कंघी, कुमकुम और अबीर आदि शामिल है।
व्रत का नियम
हरतालिका तीज व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। कई जगहों पर महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और श्रीगणेश की कच्ची मूर्ति से प्रतिमा बनाती हैं। ये व्रत निर्जला और निराहार रखा जाता है। इस व्रत में अन्न और जल ग्रहण करना मना होता है। व्रत का पारण अगले दिन यानी चतुर्थी तिथि में किया जाता है। व्रत रखने वाली महिलाओं को हरतालिका तीज व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए।
पूजा-विधि
✔ मिट्टी की वेदियों पर शिव-पार्वती और गणपति की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठापना करें। फिर संकल्प लेकर ध्यान, पूजा करें।
✔ व्रत रखने वाली महिलाए भगवान शिव को फूल, बेलपत्र और शमि की पत्तियां अर्पित करें और माता पार्वती को शृंगार की वस्तुएं चढ़ाएं।
✔ हरितालिका तीज व्रत कथा सुनने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की आरती उतारने के बाद भोग लगाएं।
✔ मिट्टी की वेदियों पर शिव-पार्वती और गणपति की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठापना करें। फिर संकल्प लेकर ध्यान, पूजा करें।
✔ व्रत रखने वाली महिलाए भगवान शिव को फूल, बेलपत्र और शमि की पत्तियां अर्पित करें और माता पार्वती को शृंगार की वस्तुएं चढ़ाएं।
✔ हरितालिका तीज व्रत कथा सुनने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की आरती उतारने के बाद भोग लगाएं।
शिव पुराण के अनुसार हरियाली तीज की पूजा-विधि
➯ इस दिन घर में साफ-सफाई कर तोरण-मंडप से सजाएं,
➯ एक चौकी पर मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, भगवान गणेश, माता पार्वती और उनकी सखियों की प्रतिमा बनाएं,
➯ मिट्टी की प्रतिमा बनाने के बाद देवताओं का आह्वान करते हुए षोडशोपचार पूजन करें,
➯ हरियाली तीज व्रत का पूजन रातभर चलता है और महिलाएं जागरण और कीर्तन भी करती हैं।
पूजन सामग्री
हरतालिका तीज व्रत पूजन सामग्री- सुहाग का पिटारा तैयार करने के लिए सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, मेहंदी, काजल। इसके अलावा तुलसी, केला का पत्ता, आंक का फूल, मंजरी, शमी पत्र, जनैऊ, वस्त्र, फूल, अबीर, वस्त्र, फल, कुमकुम, चंदन, घी-तेल, दीपक, नारियल, माता की चुनरी, लकड़ी का पाटा, पीला कपड़ा, सुहाग पिटारा और तुलसी आदि।
दान की वस्तुएं
हरतालिका तीज व्रत में सुहाग का सामान चढ़ाया जाता है। जिसमें बिछिया, पायल, कुमकुम, मेहंदी, सिंदूर, चूड़ी, माहौर, कलश, घी-तेल, दीपक, कंघी, कुमकुम और अबीर आदि शामिल है।
व्रत का नियम
हरतालिका तीज व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। कई जगहों पर महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और श्रीगणेश की कच्ची मूर्ति से प्रतिमा बनाती हैं। ये व्रत निर्जला और निराहार रखा जाता है। इस व्रत में अन्न और जल ग्रहण करना मना होता है। व्रत का पारण अगले दिन यानी चतुर्थी तिथि में किया जाता है। व्रत रखने वाली महिलाओं को हरतालिका तीज व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए।
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हरियाली तीज मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 4:46 से 5:30 बजे तक,
अमृत काल- दोपहर 1:56 से 3:34 बजे तक,
विजय मुहूर्त- दोपहर 2:55 से 3:48 बजे तक,
सायाह्न सन्ध्या- शाम 7:16 से 8:22 बजे।
एक साल में तीन तीज पड़ती है- हरियाली तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज। इन सभी तीज का अपना-अपना धार्मिक महत्व होता है, लेकिन सभी में हरतालिका तीज को सबसे बड़ी तीज कहा जाता है। श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज मनाई जाती है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला उपवास रखती हैं और शिव-पार्वती की विधि-विधान पूजा करती हैं।
शिव चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
शारद नारद शीश नवावैं ॥
नमो नमो जय नमः शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
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