#Ganeshotsav : प्राचीन ग्रंथों- "शारदातिलकम्", "मंत्रमहोदधि" "महामंत्र महार्णव" में गणपति विग्रह की स्थापना का है उल्लेख


गणेश चतुर्थी, पूजा-विधि, कथा, महत्व...
श्री गणेश चालीसा, आरती : जय गणेश जय गणेश... सुखकर्ता दुखहर्ता... 

धर्म नगरी / DN News  
राजेश पाठक (अवैतनिक संपादक) 
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सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार गणेश चतुर्थी का पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में पूरे देश में उल्लास से मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी के दिन गणपति प्रतिमा की स्थापना करके श्रद्धालु अपनी क्षमता और व्यवस्था के अनुरूप संकल्प लेते हैं, कि वह कितने दिनों तक गणपति की सेवा पूजा करेंगे। विधान दस दिनों का है, परन्तु अपनी सुविधा या समय के अनुसार लोग डेढ़ दिन, ढाई दिन, पांच दिन तक गणपति की स्थापना कर नित्य आरती-पूजा करते हैं। यदि आप भी गणपति प्रतिमा की स्थापना करना चाहते हैं, तो सभी विघ्नों का नाश करने वाले गणपति की प्रतिमा की स्थापना और प्रतिष्ठा पूजा शुभ मुहूर्त में करें, जिससे यह उत्तम फलदायी होगा।

चतुर्थी तिथि प्रारंभ- 26 अगस्त मंगलवार दोपहर 1:54 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त- 27 अगस्त बुधवार दोपहर 3:44 बजे

गणेश स्थापना का शुभ मुहूर्त (
 27 अगस्त 2025)
दिल्ली- प्रातः 11:05 बजे से दोपहर 1:40 बजे तक
मुंबई- प्रातः 11:24 से 1:55 मध्याह्न  
पुणे- प्रातः 11:21 से 1:51 मध्याह्न
चेन्नई- प्रातः 10:56 से 1:25 मध्याह्न
जयपुर- 
प्रातः 11:11 से 1:45 मध्याह्न
कोलकाता- प्रातः 10:22 से 12:54 मध्याह्न
अहमदाबाद- प्रातः 11:25 से 1:57 मध्याह्न
बेंगलूरु- प्रातः 11:07 से 1:36 मध्याह्न

गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और सिद्धि-विनायक कहा जाता है। वे प्रथम पूज्य देवता हैं और किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश पूजन से ही होती है। गणेश चतुर्थी का पर्व ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है। इस दिन गणेशजी की स्थापना और 10 दिन तक पूजा करने से घर में धन, वैभव और खुशहाली आती है। गणेशजी का प्रिय भोग मोदक अर्पित करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
यह पर्व न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक एकता और संस्कृति का भी प्रतीक है।

प्रतिमा स्थापना पूजा-विधि  
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को शुभ मुहूर्त में गणेशजी की यथासंभव मिट्टी की (PoP नहीं) प्रतिमा घर या पंडाल में स्थापित करें। चूँकि, मिट्टी की बड़ी प्रतिमा मिलना आसान नहीं, इसलिए प्रायः प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) की प्रतिमा दर्शन हेतु एवं उसके साथ छोटी गणपति प्रतिमा पूजा-अर्चना करने लाते हैं, जिन्हें मुख्य / बड़ी प्रतिमा के सामने नीचे विधिवत स्थापित करते हैं। गणपति प्रतिमा इस प्रकार स्थापित करें-     
 सबले पहले घर की अच्छे सफाई करें और पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें,
 अब जहां गणपति बप्पा की मूर्ति की स्थापना करनी है उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें,
 फिर एक पवित्र लकड़ी की चौकी या पट्टा लें और उस पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछायें,  
 अब उस स्थान पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाएं (स्वस्तिक बनाते समय रेखा काटे नहीं) और चावल से हलका सा चौकोर मंडप बना लें,
 ततपश्चात शुभ मुहूर्त में गणपति बप्पा मोरया का जयघोष करते हुए गणेश जी की मूर्ति को घर लाएं,
 मूर्ति को तैयार मंडप पर स्थापित करें और उनके दाएं हाथ में अक्षत साथ ही बाएं हाथ में दूर्वा रखें,
 भगवान की प्रतिमा के सामने एक तांबे या मिट्टी के कलश में जल भरकर रखें,
 अब “ॐ गं गणपतये नमः” का जाप करते हुए भगवान को आमंत्रित करें,
 गणेश जी को माला पहनाकर फूल अर्पित करें,
 गंगाजल या दूध से भगवान को प्रतीकात्मक स्नान कराएं, फिर साफ जल से शुद्ध करें,
 बप्पा के माथे पर चंदन और रोली लगाएं। इसके बाद हल्दी और अक्षत चढ़ाएं।
 घी का दीप जलाएं और सुगंधित धूप दें,
 अंत में परिवार सहित गणेश जी की आरती करें और हाथ जोड़कर बप्पा से विघ्न दूर करने की प्रार्थना करें,
विसर्जन तक गणेश जी की विधि विधान पूजा करें और दिन में कम से कम एक बार भजन, आरती अवश्य करें।
संकल्प व पूजा सामग्री
कलश स्थापना करें और प्रतिमा के सामने दीपक जलाएँ। धूप, चंदन, सिंदूर, दूर्वा, मोदक, फूल और फल अर्पित करें।

मंत्रोच्चारण और आरती
ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें और गणेश आरती गाएँ। (आरती नीचे देखें)

व्रत का पालन
श्रद्धालु दिनभर व्रत रखते हैं और सायंकाल प्रसाद ग्रहण करते हैं।

दस दिनों तक उत्सव
प्रत्येक दिन प्रातः और सायंकाल आरती होती है, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

देखें- गणपति अभिषेक

श्री गणेश आरती
जय गणेश, जय गणेश देवा...

गणेश जन्म कथा
भगवान गणेश के जन्म की कथाएं अनेक पुराणों में मिलती हैं। कहीं माता पार्वती ने उबटन से एक पुतला बनाकर प्राण डाले, कहीं उन्हें गंगा से पुत्र मिला। देवताओं ने उन्हें गणों का अधिपति मानकर “गणेश” नाम दिया। परन्तु सबसे रोचक कथा शिवपुराण में है, जिसके अनुसार माता पार्वती स्नान करने गईं और गणेश जी को द्वार पर पहरेदार बनाकर खड़ा कर दिया। उसी समय भगवान शिव आए और अंदर जाना चाहा। गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। महादेव ने समझाया, पर गणेश अडिग रहे। क्रोधित होकर शिवजी ने त्रिशूल उठाया और…

पद्म पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती स्नान के लिए तैयार हो रही थीं। उन्होंने अपने शरीर पर चंदन और उबटन लगाया। स्नान के बाद जब यह उबटन उनके शरीर से उतरा तो पार्वती जी ने उस उबटन से एक आकर्षक प्रतिमा का निर्माण किया। उस प्रतिमा का स्वरूप विलक्षण था, उसका मुख हाथी के समान था।

प्राचीन ग्रंथों में गणपति के विग्रह की स्थापना का वर्णन 
गणेशोत्सव अब देश एवं विदेशों मेंधूमधाम से मनाया जाने लगा है। सनातन के प्राचीन ग्रंथों "शारदातिलकम्", "मंत्रमहोदधि" "महामंत्र महार्णव" तथा तंत्र शास्त्रों में जहां उन्हें भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से चतुर्दशी तक भगवान गणेश के विग्रह को स्थापित करके उनकी पूजा उपासना का वर्णन प्राप्त हो जाएगा। भगवान गणेश सर्वव्यापी हैं बिना उनका पूजन किये किसी भी देवता की पूजा का भाग उस देवता को नहीं मिल पाता है। वैसे तो भगवान गणेश को जल तत्व का कारक माना जाता है परंतु इनका दर्शन सृष्टि के पांचों तत्वों में होता है। 

       भगवान गणेश क्या है ? यदि जानना हो तो हमें उस प्रसंग पर ध्यानाकर्षित होना पड़ेगा जहां भगवान शिव-पार्वती ने अपने विवाह में भी भगवान गणेश का पूजन किया था। कुछ लोगों को यह प्रसंग सुनकर के भ्रम हो जाता है, परंतु सत्यता यह है कि जिस प्रकार भगवान श्री विष्णु ने अनेक अवतार धारण किए हैं उसी प्रकार भगवान गणेश ने भी अनेकों अवतार इस धराधाम पर लिए हैं। अतः किसी को भी इस विषय में भ्रम नहीं होना चाहिए। प्रेम से गणेश भगवान के जन्मोत्सव का आनंद लेते हुए जीवन को धन्य बनाना चाहिए।
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गणपति आरती, भजन, गाने (यूट्यूब) 
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चंद्रदर्शन वर्जित- 27 अगस्त 2025 को प्रातः 9:28 बजे से रात 8:57 बजे तक चंद्र दर्शन न करें।

पार्वती जी ने बड़ी ममता से उस प्रतिमा को देखा और उसे अपने पुत्र के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने उसे गंगा में स्नान कराने के लिए प्रवाहित किया। जैसे ही वह आकृति गंगा के जल में गिरी, वह तुरंत एक विशालकाय देवपुरुष के रूप में प्रकट हो गई।

देवताओं ने उनका स्वागत करते हुए उन्हें “गांगेय” कहा। स्वयं ब्रह्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा- “हे पुत्र! आज से तुम गणों के अधिपति कहलाओगे। तुम्हारा नाम होगा गणेश।”
इस प्रकार पद्म पुराण के अनुसार भगवान गणेश का प्राकट्य हुआ और वे देवताओं के बीच प्रमुख स्थान प्राप्त करने लगे।

लिंग पुराण की कथा
लिंग पुराण में गणेश जन्म का एक और रहस्यमयी प्रसंग मिलता है। एक बार देवताओं को दैत्यों से बहुत कष्ट होने लगा। दैत्य निरंतर यज्ञों और धर्मकर्मों में विघ्न डालते थे। तब सभी देवता एकत्र होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। उन्होंने कहा- “हे देवाधिदेव ! हमें एक ऐसे देवता की आवश्यकता है, जो दैत्यों के कार्यों में विघ्न डाले और हमारे धर्म की रक्षा करे।”

महादेव ने उनकी प्रार्थना सुनकर प्रसन्न होकर कहा- तथास्तु ! समय आने पर एक दिव्य स्वरूप प्रकट हुआ। उनका शरीर तेजोमय था, मुख गज (हाथी) के समान था। एक हाथ में उन्होंने त्रिशूल और दूसरे हाथ में पाश धारण किया था। देवताओं ने प्रसन्न होकर पुष्प-वृष्टि की और बार-बार उनके चरणों में प्रणाम किया। तभी भगवान शिव ने आदेश दिया- “हे पुत्र गणेश! तुम दैत्यों के दुष्कर्मों में विघ्न डालोगे और देवताओं तथा ब्राह्मणों की रक्षा करोगे। तुम सब कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य होंगे।” उस दिन से गणेश जी को विघ्नहर्ता और विघ्नकर्ता दोनों की उपाधि प्राप्त हुई।

ब्रह्मवैवर्त, स्कन्द व शिव पुराण की कथा
ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण और शिव पुराण में भगवान गणेश के अवतार से जुड़ी अनेक भिन्न-भिन्न कथाएँ वर्णित हैं। इन्हीं कथाओं के आधार पर गणेशजी की महिमा और महत्व और भी अधिक स्पष्ट होता है।
पुराणों में यह भी उल्लेख मिलता है कि प्रजापति विश्वकर्मा की दो कन्याएँ –रिद्धि और सिद्धि -भगवान गणेश की पत्नियाँ हैं। इनसे उन्हें दो पुत्र प्राप्त हुए- सिद्धि से ‘शुभ’ और रिद्धि से ‘लाभ’। ये दोनों ही संतति कल्याणकारी और मंगलदायक मानी जाती हैं।

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गणेश चालीसा में भगवान गणेश के जन्म से जुड़ी एक अद्भुत और विलक्षण कथा वर्णित है। एक समय माता पार्वती ने यह संकल्प किया कि उन्हें ऐसा पुत्र चाहिए जो असाधारण बुद्धिमान हो, गुणों की खान हो और सभी गणों का नायक बने। इसके लिए उन्होंने कठोर तपस्या की और एक बड़ा यज्ञ संपन्न किया। यज्ञ पूर्ण होने के बाद एक अद्भुत घटना घटी- श्री गणेश स्वयं ब्राह्मण का रूप धारण कर माता पार्वती के द्वार पर पधारे।

माता पार्वती ने उन्हें अतिथि मानकर बड़े आदर से सत्कार किया। गणेश प्रसन्न हुए और वरदान दिया-
“माते ! आपके तप और भक्ति से आपको गर्भ के बिना ही एक दिव्य पुत्र प्राप्त होगा। यह बालक विशिष्ट बुद्धि वाला होगा, गुणों का भंडार होगा और समस्त गणों का नायक बनेगा।”
यह कहकर गणेश वहां से अंतर्ध्यान हो गए और चमत्कारिक रूप से पालने में एक सुंदर बालक प्रकट हो गया।

उत्सव और शनि की दृष्टि
पुत्र प्राप्ति से माता पार्वती का हृदय आनंद से भर उठा। समस्त कैलाश में हर्षोल्लास छा गया। आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी। चारों दिशाओं से देवता और ऋषिगण इस विलक्षण बालक को देखने पहुंचे। उसी समय शनिदेव भी वहां आए, किंतु अपनी कठोर दृष्टि (दृष्टिदोष) को लेकर वे बालक के समीप जाने से झिझकने लगे। माता पार्वती ने उनसे आग्रह किया, कि क्या वे पुत्र प्राप्ति के इस उत्सव में सम्मिलित नहीं होना चाहते ? संकोचवश शनि देव ने बालक पर दृष्टि डाली, लेकिन जैसे ही उनकी नजर बालक पर पड़ी, एक भयानक घटना घटी।

बालक का सुंदर सिर धड़ से अलग होकर आकाश की ओर उड़ गया। यह दृश्य देखकर माता पार्वती विलाप करने लगीं और समस्त कैलाश में शोक का वातावरण छा गया।

देवताओं और ऋषियों ने शनि की दृष्टि दोष को कारण बताया। माता पार्वती की पीड़ा देखकर भगवान विष्णु ने तुरंत गरुड़ देव को आदेश दिया कि वे आकाश मार्ग से जाएं और जिस प्राणी का सिर सबसे पहले दिखे, उसे काटकर ले आएं। गरुड़ ने यात्रा प्रारंभ की और मार्ग में सबसे पहले उन्हें एक विशाल हाथी दिखाई दिया।

गरुड़ देव ने हाथी का सिर काटकर लाया और बालक के धड़ पर रख दिया। तत्पश्चात भगवान शिव ने अपने दिव्य मंत्रों से उस सिर में प्राण फूँक दिए। क्षणभर में ही वह बालक पुनः जीवित हो उठा और सबके आनंद का ठिकाना न रहा।

प्रथम पूज्य का वरदान
देवताओं ने हर्षोल्लास से पुष्पवृष्टि की। भगवान शंकर ने घोषणा की कि यह विलक्षण बालक अब गणेश कहलाएगा- गणों का नायक। सभी देवताओं ने मिलकर उनका नामकरण किया और उन्हें प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद दिया। तभी से किसी भी शुभ कार्य या पूजा का प्रारंभ भगवान गणेश की आराधना से होता है।

वराह पुराण के अनुसार, वराह पुराण में भगवान गणेश के जन्म की कथा अन्य पुराणों से कुछ अलग मिलती है। इसमें वर्णित है कि एक समय भगवान शिव ने मन ही मन इच्छा की कि वे ऐसा अद्भुत पुत्र उत्पन्न करें जो समस्त लोकों में अद्वितीय हो। उन्होंने पंच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश को लेकर बड़ी तल्लीनता से एक दिव्य बालक की रचना करना प्रारंभ किया।

भगवान शिव की कला और तपश्चर्या से वह बालक इतना रूपवान और आकर्षक बनता जा रहा था, कि उसे देखकर स्वयं देवता भी आश्चर्यचकित हो उठे। उसका स्वरूप तेजस्वी, भव्य और अत्यंत आकर्षक था। देवताओं के मन में यह भय उत्पन्न हो गया कि कहीं यह दिव्य बालक आगे चलकर हम सबके तेज और महिमा को पीछे न छोड़ दे।

देवताओं की इस आशंका को भगवान शिव ने तुरंत भांप लिया। उन्होंने सोचा कि यदि यह बालक इतना रूपवान बना रहा, तो उसका सौंदर्य स्वयं त्रिलोक में असंतुलन पैदा कर देगा। अतः शिवजी ने सृष्टि की संतुलन-व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए उस बालक का पेट बड़ा कर दिया और उसका सिर गज (हाथी) का कर दिया।

इस प्रकार एक ओर उसका स्वरूप विलक्षण और अद्भुत बना, वहीं दूसरी ओर देवताओं का भय भी समाप्त हो गया। आगे चलकर यही बालक भगवान गणेश कहलाए और वे विघ्नहर्ता, प्रथम पूज्य तथा बुद्धि-विनायक के नाम से प्रसिद्ध हुए। 
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।। श्री गणेश चालीसा ।।
॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण  मंगल  करण, जय  जय  गिरिजालाल ॥

॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ॥

जै गजबदन  सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

राजत  मणि  मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥

सुन्दर  पीताम्बर  तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित॥

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता।
गौरी  लालन  विश्व-विख्याता ॥

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे।
मूषक   वाहन  सोहत  द्वारे ॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी।
अति शुची पावन मंगलकारी॥

एक समय गिरिराज कुमारी।
पुत्र  हेतु  तप  कीन्हा  भारी ॥10॥

भयो  यज्ञ  जब  पूर्ण  अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥

अतिथि जानी के गौरी सुखारी।
बहु विधि  सेवा  करी तुम्हारी ॥

अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा।
मातु  पुत्र  हित जो तप कीन्हा॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।
बिना  गर्भ  धारण  यहि  काला॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना।
पूजित  प्रथम रूप भगवाना॥

अस  कही  अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै॥

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं।
नाभ  ते सुरन, सुमन  वर्षावहिं ॥

शम्भु  उमा,  बहुदान  लुटावहिं।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा।
देखन  भी  आये  शनि  राजा ॥20॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।
बालक,  देखन  चाहत  नाहीं ॥

गिरिजा  कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥

कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥

नहिं विश्वास,  उमा  उर  भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ॥

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा  गयो नहीं वरणी ॥

हाहाकार  मच्यौ   कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।
काटी  चक्र  सो गज सिर लाये ॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥

नाम  गणेश  शम्भु  तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥30॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।
पृथ्वी  कर  प्रदक्षिणा  लीन्हा ॥

चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे  बैठ  तुम  बुद्धि उपाई ॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।
तिनके सात  प्रदक्षिण कीन्हें॥

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे।
नभ ते सुरन  सुमन  बहु  बरसे ॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई॥

मैं  मतिहीन  मलीन  दुखारी।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥

भजत  रामसुन्दर  प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥

अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥38॥

॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण  चालीसा  भयो, मंगल  मूर्ती  गणेश ॥


श्री गणेश आरती 
जय गणेश जय गणेश, 
जय  गणेश  देवा।
माता जाकी पार्वती, 
पिता  महादेवा ॥

एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।

माथे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता  जाकी  पार्वती,  पिता महादेवा ॥


पान चढ़े फल चढ़े,
और  चढ़े  मेवा ।

लड्डुअन का भोग लगे,
संत  करें  सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता  जाकी  पार्वती,  पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत,
कोढ़िन  को  काया।

बांझन को पुत्र देत,
निर्धन  को  माया ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता  जाकी  पार्वती,  पिता महादेवा ॥

'सूर' श्याम शरण आए,
सफल  कीजे  सेवा ।

माता जाकी पार्वती,
पिता   महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता  जाकी  पार्वती,  पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखो,
शंभु  सुतकारी ।

कामना को पूर्ण करो,
जाऊं  बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता  जाकी  पार्वती,  पिता महादेवा ॥
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गणपति जी आरती सुखकर्ता दुखहर्ता  

सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची

नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची

सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची

कंठी झलके माल मुकताफळांची

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति

दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव...

रत्न खचित फरा तुझ गौरी कुमरा

चंदनाची उटी कुमकुम केशरा

हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा

रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति

दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव...

लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना

सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना

दास रामाचा वाट पाहे सदना

संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति

दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव...

सिंदूर लाल चढायो अच्छा गजमुख को

दोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को

हाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर को

महिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद को

जय जय जय जय जय

जय जय जी गणराज विद्या सुखदाता

धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव...

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