गणेशोत्सव : जाने गणपति विसर्जन का मुहूर्त विधि, आर्थिक तंगी से मुक्ति पाने के लिए पढ़ें गणपति के...


...दारिद्र दहन गणपति स्तोत्रम्
भगवान गणेश के 8 प्रमुख अवतार और उनकी कथाएं

धर्म नगरी / DN News  
राजेश पाठक (अवैतनिक संपादक) 
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गणेश विसर्जन 2025 
गणेश चतुर्थी के दसवें दिन अर्थात भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) को गणपति विसर्जन किया जाता है।
विसर्जन तिथि- 6 सितम्बर 2025 (शनिवार)
चतुर्दशी प्रारंभ- 6 सितम्बर, प्रातःकाल 3:12 बजे
चतुर्दशी समाप्त- 7 सितंबर, प्रातःकाल 1:41 बजे

विसर्जन के शुभ मुहूर्त
प्रातःकाल: 7:36 AM से 9:10 AM
अपराह्न: 12:19 PM से 5:02 PM
सायंकाल: 6:37 PM से 8:02 PM
रात्रि: 9:28 PM से 1:45 AM (7 सितम्बर)

गणपति विसर्जन की विधि
गणेशजी को लाल या पीले कपड़े पर विराजमान करें,
फल, फूल, मोदक और प्रसाद अर्पित करें,
आरती करें और “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ” का जयघोष करें,
प्रतिमा को जल में विसर्जित करें और क्षमा प्रार्थना करें।

भगवान शिव और विष्णु की ही तरह श्री गणेश ने भी असुरों के नाश और धर्म की रक्षा के लिए कई बार अवतार लिया था। पुराणों के अनुसार, हर युग में असुरी शक्ति को खत्म करने के लिए उन्होंने विकट, महोदर, विघ्नेश्वर जैसे आठ अलग-अलग नामों के अवतार लिए हैं। ये आठ अवतार मनुष्य के आठ तरह के दोष दूर करते हैं। इन आठ दोषों का नाम काम, क्रोध, मद, लोभ, ईर्ष्या, मोह, अहंकार और अज्ञान है। ये है भगवान गणेश के 8 प्रमुख अवतार और उनकी कथाएं-

वक्रतुंड Vakratunda
श्रीगणेश ने इस रुप में राक्षस मत्सरासुर के पुत्रों को मारा था। ये राक्षस शिव भक्त था और उसने शिवजी की तपस्या करके वरदान पा लिया था कि उसे किसी से भय नहीं रहेगा। मत्सरासुर ने देवगुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। उसके दो पुत्र भी थे सुंदरप्रिय और विषयप्रिय, ये दोनों भी बहुत अत्याचारी थे। सारे देवता शिव की शरण में पहुंच गए। शिव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे गणेश का आह्वान करें, गणपति वक्रतुंड अवतार लेकर आएंगे। देवताओं ने आराधना की और गणपति ने वक्रतुंड के रुप में मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संहार किया और मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया। वही मत्सरासुर बाद में गणपति का भक्त हो गया।
एकदंत Ekadanta

महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद नाम के राक्षस की रचना की। वह च्यवन का पुत्र कहलाया। मद ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली। शुक्राचार्य ने उसे हर तरह की विद्या में निपुण बनाया। शिक्षा होने पर उसने देवताओं का विरोध शुरू कर दिया। सारे देवता उससे प्रताडि़त रहने लगे। सारे देवताओं ने मिलकर गणपति की आराधना की। तब भगवान गणेश एकदंत रूप में प्रकट हुए। उनकी चार भुजाएं, एक दांत, बड़ा पेट और उनका सिर हाथी के समान था। उनके हाथ में पाश, परशु, अंकुश और एक खिला हुआ कमल था। एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया और मदासुर को युद्ध में पराजित किया।


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प्राचीन ग्रंथों- "शारदातिलकम्", "मंत्रमहोदधि" "महामंत्र महार्णव" में गणपति विग्रह की स्थापना का...
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महोदर Mahodar
जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को देवताओं के खिलाफ खड़ा किया। मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की। तब गणेश ने महोदर अवतार लिया। महोदर यानी बड़े पेट वाले। वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया।
विकट Vikata
भगवान विष्णु ने जलंधर नाम के राक्षस के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया। उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, उसका नाम था कामासुर। कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया। इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। तब सारे देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया। तब भगवान गणपति ने विकट रूप में अवतार लिया। विकट रूप में भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए। उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया।
गजानन Gajanan
धनराज कुबेर से लोभासुर का जन्म हुआ। वह शुक्राचार्य की शरण में गया और उसने शुक्राचार्य के आदेश पर शिवजी की उपासना शुरू की। शिव लोभासुर से प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे निर्भय होने का वरदान दिया। इसके बाद लोभासुर ने सारे लोकों पर कब्जा कर लिया। तब देवगुरु ने सारे देवताओं को गणेश की उपासना करने की सलाह दी। गणेश ने गजानन रूप में दर्शन दिए और देवताओं को वरदान दिया कि मैं लोभासुर को पराजित करूंगा। गणेशजी ने लोभासुर को युद्ध के लिए संदेश भेजा। शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही अपनी पराजय स्वीकार कर ली।

लंबोदर Lambodar
क्रोधासुर नाम के दैत्य ने ने सूर्यदेव की उपासना करके उनसे ब्रह्माण्ड विजय का वरदान ले लिया। क्रोधासुर के इस वरदान के कारण सारे देवता भयभीत हो गए। वो युद्ध करने निकल पड़ा। तब गणपति ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया। क्रोधासुर को समझाया और उसे ये आभास दिलाया कि वो संसार में कभी अजेय योद्धा नहीं हो सकता। क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया।
विघ्नराज Vighnaraj
एक बार पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर से हंस पड़ीं। उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई। पार्वती ने उसका नाम मम (ममता) रख दिया। वह माता पार्वती से मिलने के बाद वन में तप के लिए चला गया। वहीं वो शंबरासुर से मिला। शम्बरासुर ने उसे कई आसुरी शक्तियां सीखा दीं। उसने मम को गणेश की उपासना करने को कहा। मम ने गणपति को प्रसन्न कर ब्रह्माण्ड का राज मांग लिया। शम्बर ने उसका विवाह अपनी पुत्री मोहिनी के साथ कर दिया। शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया। ममासुर ने भी अत्याचार शुरू कर दिए और सारे देवताओं को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। तब देवताओं ने गणेश की उपासना की। गणेश विघ्नेश्वर के रूप में अवतरित हुए। उन्होंने ममासुर का मान मर्दन कर देवताओं को छुड़वाया।
धूम्रवर्ण Dhoomvarna
एक बार सूर्यदेव को छींक आ गई और उनकी छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। उसका नाम था अहम। वो शुक्राचार्य के समीप गया और उन्हें गुरु बना लिया। वह अहम से अहंतासुर हो गया। उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए। उसने भी बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया। तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका रंग धुंए जैसा था। वे विकराल थे। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण के रुप में गणेश जी ने अहंतासुर को हरा दिया। उसे युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की।

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धन की समस्या से पीड़ित हैं तो...
आर्थिक तंगी से मुक्ति पाने श्रद्धा-विश्वास के साथ नियमित रूप से पढ़ें- 
(इसका प्रभाव या अनुभूति हमें अवश्य बताएं -धर्म नगरी)   

दारिद्र दहन गणपति स्तोत्रम्
सुवर्ण वर्ण सुंदरं सितैक दंत-बंधुरं
गृहीत पाश-मंकुशं वरप्रदा-ऽभयप्रधम् ।
चतुर्भुजं त्रिलोचनं भुजंग-मोपवीतिनं
प्रफुल्ल वारिजासनं भजामि सिंधुराननम्॥

किरीट हार कुंडलं प्रदीप्त बाहु भूषणं
प्रचंड रत्न कंकणं प्रशोभितांघ्रि-यष्टिकम्।
प्रभात सूर्य सुंदरांबर-द्वय प्रधारिणं
सरत्न  मनूपुर  प्रशोभितांघ्रि  पंकजम्॥

सुवर्ण दंड मंडित प्रचंड चारु चामरं
गृह प्रतीर्ण सुंदरं युगक्षण प्रमोदितम् ।
कवींद्र चित्तरंजकं महा विपत्ति भंजकं
षडक्षर स्वरूपिणं भजेद्गजेंद्र रूपिणम्॥

विरिंचि विष्णु वंदितं विरुपलोचन स्तुतिं
गिरीश दर्शनेच्छया समार्पितं पराशाया ।
निरंतरं सुरासुरैः सुपुत्र वामलोचनैः
महामखेष्ट-मिष्ट-कर्मनु भजामि तुंदिलम्॥

मदौघ लुब्ध चंचलार्क मंजु गुंजिता रवं
प्रबुद्ध चित्तरंजकं प्रमोद कर्णचालकम् ।
अनन्य भक्ति माननं प्रचंड मुक्ति दायकं
नमामि नित्य-मादरेण वक्रतुंड नायकम्॥


दारिद्र्य विद्रावण माशु कामदं
स्तोत्रं पठॆदेत-दजस्र-मादरात्।
पुत्री  कलत्र  स्वजनेषु  मैत्री
पुमान्-भवे-देकदंत वरप्रासादात्॥
इति श्रीमच्छंकराचार्य विरचितं दारिद्र दहन गणपति स्तोत्रं संपूर्णम्॥
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लालबागचा राजा का इतिहास
मुंबई का सबसे प्रसिद्ध गणेशोत्सव लालबागचा राजा है। इसका शुभारंभ 1934 में हुई थी।
मंडल दक्षिण मुंबई के परेल इलाके में स्थित है। यहाँ प्रतिवर्ष लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
इसकी भव्यता और श्रद्धा इसे विश्व प्रसिद्ध बनाती है।

क्षेत्रीय महत्व
महाराष्ट्र: सार्वजनिक पंडाल और मंडल सबसे भव्य होते हैं।
कर्नाटक और आंध्रप्रदेश: घरों में छोटी प्रतिमा स्थापित करके पूजा की जाती है।
उत्तर भारत: मंदिरों में विशेष आराधना और शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं।
गोवा और गुजरात: सामाजिक कार्यक्रम और भक्ति संगीत की धूम रहती है।

गणेश चतुर्थी केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि यह आस्था, संस्कृति और समाज को जोड़ने वाला उत्सव है। भगवान गणेश की कृपा से भक्तों के जीवन से विघ्न दूर होते हैं और सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

गणपति बप्पा मोरया! मंगलमूर्ति मोरया !

गणेश चतुर्थी पर चन्द्र-दर्शन वर्जित 
गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्र-दर्शन निषिद्ध या वर्जित होता है। माना जाता है, इस दिन चन्द्र के दर्शन करने से मिथ्या दोष अथवा मिथ्या कलंक लगता है, जिसके कारण दर्शनार्थी को चोरी का झूठा आरोप सहना पड़ता है।

पौराणिक गाथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण पर स्यमन्तक नाम की कीमती मणि चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। झूठे आरोप में लिप्त भगवान कृष्ण की स्थिति देख कर देवर्षि नारद ने उन्हें बताया, कि भगवान कृष्ण ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को देखा था, जिसके कारण उन्हें मिथ्या दोष का श्राप लगा है। देवर्षि नारद ने श्री कृष्ण को आगे बताया, कि भगवान गणेश ने चन्द्र देव को श्राप दिया- जो व्यक्ति भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दौरान चन्द्र के दर्शन करेगा वह मिथ्या दोष से अभिशापित हो जायेगा और समाज में चोरी के झूठे आरोप से कलंकित हो जायेगा। देवर्षि नारद के परामर्श पर भगवान कृष्ण ने मिथ्या दोष से मुक्ति के लिये गणेश चतुर्थी के व्रत को किया और मिथ्या दोष से मुक्त हो गये।

मिथ्या दोष निवारण मंत्र  
चतुर्थी तिथि के प्रारम्भ और अन्त समय के आधार पर चन्द्र-दर्शन लगातार दो दिनों के लिये वर्जित हो सकता है। धर्म सिन्धु के नियमों के अनुसार सम्पूर्ण चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र दर्शन निषेध होता है और इसी नियम के अनुसार, चतुर्थी तिथि के चन्द्रास्त के पूर्व समाप्त होने के बाद भी, चतुर्थी तिथि में उदय हुए चन्द्रमा के दर्शन चन्द्रास्त तक वर्ज्य होते हैं।

अगर भूलवश से गणेश चतुर्थी (27 अगस्त 2025 को थी) के दिन चन्द्रमा के दर्शन हुए हों, तो मिथ्या दोष से बचाव के लिये निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिये-
सिंहः प्रसेन मवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥
Simhah Prasenamavadhitsimho Jambavata Hatah.
Sukumaraka Marodistava Hyesha Syamantakah.
गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और गणेश चौथ के नाम से भी जाना जाता है।

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