26 दिसंबर होगा "वीर बाल दिवस", PM की घोषणा का देश दुनियाभर में स्वागत


गुरु गोविंद सिंहजी के चार वीर सुपुत्रों की स्मृति में मनाया जाएगा "वीर बाल दिवस"
- गुरु गोविंद सिंह जयंती : 9 साल की आयु में बनें, पंच 'क' कार बताए
- आध्यात्मिक गुरु, योद्धा, कवि और दार्शनिक थे...
- गुरु-प्रथा का अंत किया, खालसा पंथ स्थापित किया
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धर्म नगरी / DN News
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दसवें गुरू गोविन्द सिंहजी की आज 355वीं जयंती है। इसे "गुरु पर्व" या "प्रकाश परब" भी कहते हैं, क्योंकि इसी तिथि को वर्ष 1666 में पौष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उनका जन्म पटना साहेब में हुआ था। उस वर्ष से लोग इस पावन अवसर को "प्रकाश पर्व" के रूप में मनाते हैं। बिहार के पटना साहिब में तख्त श्री हरमंदिर साहब में गुरू गोबिंद सिंह की जयंती इस बार कोविड प्रतिबंधों के बीच मनाई जा रही है।

इस अवसर पर उपराष्‍ट्रपति एम. वैंकेया नायडू ने कहा है कि गुरु गोबिंद सिंह जी निस्वार्थ सेवा और धार्मिकता के वे प्रतीक हैं। PM नरेन्‍द्र मोदी ने कहा, गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन और संदेश लाखों लोगों को शक्ति प्रदान करता है। बिहार के राज्यपाल फागू चौहान और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रकाश परब के अवसर पर लोगों को बधाई दी।


सिख, हिन्दू एवं सभी राष्ट्रवादियों की इच्छा हुई पूरी-   

न केवल दुनियाभर के सिख समाज, हिन्दू एवं सभी राष्ट्रवादी मीडिया की मांग या इच्छा आज (9 जनवरी) पूरी हो गई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मांग को 'गुरु पर्व' के दिन स्वीकार कर लिया। PM ने गुरु गोविंद सिंहजी के प्रकाश-पर्व (जयंती) 26 दिसंबर "वीर बाल दिवस" मनाने की घोषणा की। उन्होंने कहा, हर वर्ष 26 दिसंबर को "वीर बाल दिवस" मनाया जाएगा, जो साहिबजादों के साहस और न्याय की खोज के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि होगी
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पीएम मोदी ने ट्वीट कर "वीर बाल दिवस" मनाए जाने की घोषणा की उन्होंने लिखा-
"आज, श्री गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के पावन अवसर पर, मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि इस साल से 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। यह साहिबजादों के साहस के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि होगी।"
"... माता गुजरी, श्री गुरु गोविंद सिंह जी और साहिबजादों की वीरता और आदर्श लाखों लोगों को शक्ति देते हैं. वे अन्याय के आगे कभी नहीं झुके. उन्होंने एक ऐसी दुनिया की कल्पना की जो समावेशी और सामंजस्यपूर्ण हो. अधिक से अधिक लोगों को उनके बारे में बताना समय की मांग है।" 
... "वीर बाल दिवस' उसी दिन मनाया जाएगा, जिस दिन साहिबजादा जोरावर सिंह जी और साहिबजादा फतेह सिंह जी को एक दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया था इन दोनों महानुभावों ने धर्म के महान सिद्धांतों से डिगने की बजाय मौत को चुना था
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गुरु गोबिंद सिंह जयंती : पौष शुक्ल सप्तमी 
9 साल की आयु में बनें, पंच ककार बताए
आध्यात्मिक गुरु, योद्धा, कवि और दार्शनिक थे...
गुरु-प्रथा का अंत किया, खालसा पंथ स्थापित किया


सिक्खों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह की 355वीं जयंती इस वर्ष 9 जनवरी, 2022 को मनाई जाएगी। एक आध्यात्मिक गुरु, योद्धा, कवि और दार्शनिक गुरु गोबिंद सिंह जयंती- "प्रकाश पर्व" सिक्खों के "नानकशाही कैलेंडर" के आधार पर हर साल अलग-अलग तिथियों पर पड़ता है। पंचांग के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष माह शुक्ल पक्ष 1723 विक्रम संवत की सप्तमी तिथि को पटना के पटना साहिब में हुआ। बचपन में उनका नाम गोविंद राय था। उनके पिता गुरु तेग बहादुर थे। उन दिनों मुगलों का शासन था और गद्दी पर बैठा था औरंगजेब।
औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर का सरेआम कटवा दिया 
सिर-
औरंगजेब के शासन में इस्लाम को राजधर्म घोषित किया। वह जबरन हिंदुओं को इस्लाम धर्म मानने के लिए मजबूर कर रहा था। औरंगजेब से प्रताड़ित लोग गुरु तेग बहादुर के पास याचना लेकर पहुंचे, लेकिन औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर का सरेआम सिर कटवा दिया था। पिता के निधन के समय गोबिंद की आयु केवल 9 साल थी, फिर भी उन्हें तुरन्त गुरु बना दिया गया। 11 नवम्बर 1675 को गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु पद की जिम्मेदारी ली और उसके बाद से अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में बिता दिया।

गुरु-प्रथा का अंत-
गुरु गोबिंद ने ही गुरु-प्रथा का अंत किया। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। गुरु ग्रंथ साहिब को ही सबसे बड़ा बताया, जिसके बाद सिक्ख समुदाय गुरु ग्रंथ साहिब की पूजा करने लगे। गुरु गोबिंद बहुत ही बड़े योद्धा होने के साथ प्रकाण्ड विद्धान भी थे। उन्हें संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी आती थीं। गुरु गोबिंद जी ने कई ग्रंथों की रचना की।

बैसाखी को "खालसा पंथ" की स्थापना-
गुरु गोबिंद जी ने खालसा पंथ की स्थापना आनंदपुर साहिब में 1699 को बैसाखी के दिन की। उन्होंने खालसा वाणी भी दी, जिसमें "वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह" कहा गया। उन्होंने पांच प्यारों को अमृत पान करवाकर खालसा बनाया। स्वयं भी उनके हाथों से अमृत पान किया था।

पंच ककार-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ में जीवन के पांच सिद्धांत बताए, जिन्हें "पंच ककार" के नाम से जाना जाता है। ये "क" शब्द से शुरु होने वाले "पांच सिद्धांत हैं", जिनका अनुसरण करना हर खालसा सिक्ख के लिए अनिवार्य है। ये पांच ककार हैं- केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा।
धर्म, सच्चाई और सिक्खों की रक्षा करने वाले गुरु गोबिंद सिंह की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी। शासक उनसे डरने लगे थे। यही वजह थी, कि औरंगजेब की मौत के बाद नवाब वजीत खां ने धोखे से गुरु गोबिंद सिंह जी की हत्या करा दी थी।
 
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 कैसे, क्यों और किसके लिए गुरु तेग बहादुरजी हुए बलिदान ? 
सिखों के नौंवे गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान की कहानी में बहुत ही प्रसिद्ध है, लेकिन लगता हैं आज सिखों का बड़ा वर्ग उनके बलिदान को, मुसलमानों के अत्याचारों को या गुरु महाराज के बताए मार्ग को भूल गया है। ऐसे सिख आज भारत की तुष्टिकरण और सिख-विरोधी, हिन्दू-विरोधी राजनीति और नेताओं का पुरजोर विरोध करने के बजाय उनकी चापलूसी में लगे है। गुरु के शीश कटने वालों, गुरु पुत्रों को जिन्दा दीवाल में चुनवाने वाले कट्टर मजहबी उन्मादियों को मानने वालों के साथ हैं या साथ दे रहे हैं, फर्जी सौहार्द, झूठे और एकतरफा भाईचारे के नाम पर...! पढ़ें वो सच्ची घटना गुरु श्री तेग बहादुरजी के बलिदान की...(यदि आप नहीं जानते हों) ...और चिंतन करें हम आज कैसे नेताओं और राजनीतिक पार्टियों का साथ दे रहे हैं ? -राजेशपाठक, संपादक 6261868110  
यह बलिदान औरंगजेब के शासन काल में हुआ था। बात यह थी, कि औरंगजेब के दरबार में एक विद्वान् पंडित आकर रोज गीता के श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था, जिसमें सब धर्म को बराबर मानने की सीख थी। एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगज़ेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया, परन्तु उसे बताना भूल गया कि उसे किन किन श्लोकों का अर्थ राजा से सामने नहीं पढऩा है। पंडित के बेटे ने जाकर औरंगज़ेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया। गीता का पूरा अर्थ सुनकर औरंगज़ेब को दिमाग में आया कि उसके धर्म से बड़ा भला कोई और धर्म कैसे हो सकता है। उसने बड़ा ही बुरा फैसला कर लिया, औरंगजेब ने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दे दिया और संबंधित अधिकारी को यह कार्य सौंप दिया। औरंगजेब ने कहा- "सबसे कह दो या तो इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को गले लगा लें।"

ऐसे अत्याचारों से परेशान होकर कश्मीर के पंडित गुरु तेग बहादुर के पास आए और उन्हें अपने पर हो रहे इस अत्याचार की कहानी सुनाई। और हाथ जोड़ कहा कि आप हमारे धर्म को बचाइए। गुरु तेग बहादुर जब लोगों की व्यथा सुन रहे थे, उनके 9 वर्षीय पुत्र बाला प्रीतम (गुरु गोविंदसिंह) वहां आए और उन्होंने पिताजी से पूछा- "पिताजी, ये सब इतने उदास क्यों हैं ? आप क्या सोच रहे हैं ?" बच्चे की बात सुन पिता ने सारी बात बताई। प्रीतम ने फिर प्रश्न किया- 'इसका हल कैसे होगा ?'
गुरु साहिब ने कहा- 'इसके लिए बलिदान देना होगा।'

यह बात सुन प्रीतम ने कहा- "आपसे महान् पुरुष कोई नहीं है। बलिदान देकर आप इन सबके धर्म को बचाइए।" उस बच्चे की बातें सुनकर वहां उपस्थित लोग चौंक गए और कहने लगे कि यदि आपके पिता बलिदान देंगे तो आप यतीम हो जाएंगे, आपकी मां विधवा हो जाएगीं।'

बात को सुनकर बाला प्रीतम ने जवाब दिया- "यदि मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों बच्चे यतीम होने से बच सकते हैं या अकेले मेरी माता के विधवा होने जाने से लाखों माताएं विधवा होने से बच सकती है तो मुझे यह स्वीकार है।"
अपने पुत्र की इस बात से प्रेरित होकर गुरु तेग बहादुर जी ने तुरंत पंडितों से कहा- "आप जाकर औरंगजेब से कह दें कि यदि गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया, तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेग बहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए, तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे।" औरंगजेब ने यह स्वीकार कर लिया।

गुरु तेग बहादुर दिल्ली पहुंचे फिर स्वंय ही औरंगज़ेब के दरबार पहुंच गए। औरंगजेब ने उन्हें बहुत से लालच दिए, पर गुरु तेग बहादुरजी नहीं माने। उन पर कई तरह के अत्याचार किया, फिर भी वे नहीं झुके, तो औरंगजेब ने उन्हें कैद कर लिया। उसके बाद भी बात नहीं बनीं तो उनके ही दो शिष्यों को मारकर गुरु तेग बहादुर जी को डराने की कोशिश की गयी, पर फिर भी वे नहीं डरें नाही मानें। उन्होंने औरंगजेब को समझाने की कोशिश भी की। उससे कहा- "यदि तुम जबर्दस्ती लोगों को मुस्लिम बनाओगे, तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो सकते हो, क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर अत्याचार करके मुस्लिम बनाया जाए।"
इस बात को सुनकर औरंगजब को बहुत तेज गुस्सा आया और  उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर जी का सिर काटने का हुक्म दे दिया। गुरु जी ने 24 नवम्बर 1675 को हंसते-हंसते बलिदान दे दिया। गुरु तेग बहादुरजी की याद में उनके 'शहीदी स्थल' पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा 'शीश गंज साहिब' है।

गुरु तेग बहादुर जी को लिखने में बहुत रूचि थी। उनकी बहुत रचनाएं ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं। उनके इस महािन बलिदान ने देश की 'सर्व धर्म सम भाव' की संस्कृति को सुदृढ़ बनाया। साथ ही सभी को धार्मिक, सांस्कृतिक, वैचारिक स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित किया।
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#सोशल_मीडिया में प्रतिक्रिया... 
Today, on the auspicious occasion of the Parkash Purab of Sri Guru Gobind Singh Ji, I am honoured to share that starting this year, 26th December shall be marked as ‘Veer Baal Diwas.’ This is a fitting tribute to the courage of the Sahibzades and their quest for justice. -@narendramodi Prime Minister (11:59 AM · Jan 9, 2022)
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Replying to @narendramodi
That’s a very nice gesture from you @narendramodi  on this auspicious day -@kulmeetbawa
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You keep Honouring those who ridicule you , blame you and consider an antagonist. Hope they will notice your relentless efforts in giving them respect and regards which some parties snatched from them brutally before.
#VeerBalDiwas -@YuktiArora9914

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Coloum to be updated later  

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