नवरात्रि : अष्टमी- विवाह में आने वाली बाधा से मुक्ति, संतान सुख हेतु करें माँ महागौरी की पूजा, जानें...


माँ महागौरी का मंत्र, पूजा-विधि, दान, आरती...
माता का मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:
अष्टमी की पूजा- भगवती को नारियल का भोग अवश्य लगाये। इससे नाना प्रकार के पाप और पीड़ा का शमन होता है। यदि किसी जातक के दांपत्य जीवन में कलह घर कर गई है, तो महागौरी की पूजा से उसे विशेष लाभ होगा। महागौरी की साधना से सभी प्रकार के विवाद, गृह-क्लेश दूर होते हैं। मां को प्रसन्न करने इस दिन गुलाबी रंग के कपड़े पहनें। ये रंग प्रेम और दया का प्रतिनिधित्व करता है। सौभाग्य प्राप्ति एवं सुहाग की मंगल कामना को लेकर माता को चुनरी भेंट करने इस दिन का बहुत महत्व है।

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चैत्र नवरात्रि का आठवें दिन- अष्टमी (शनिवार, 9 अप्रैल 2022 ) को देवी महागौरी की पूजा-अर्चना होगी। इस दिन को दुर्गाष्टमी भी कहते हैं। अष्टमी की पूजा का नवरात्रि में विशेष महत्व होता है। इस दिन अधिकांश श्रद्धालु / लोग कन्या-पूजन भी करते हैं। धार्मिक मान्यतानुसार,  मां गौरी की विधिवत् अराधना करने से निसंतान दंपति को संतान सुख की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। देवी के आठवें स्वरूप की पूजा करने से सभी तरह की समस्याओं से मुक्ति मिलती है।  जिस किसी के विवाह में अड़चन आ रही है, वो भी आज के दिन महागौरी की पूजा करें। 

श्री शिवपुराण के अनुसार, जब माँ केवल आठ वर्ष की थी, तभी उन्हें पूर्व जन्म की घटनाओं का आभास हो गया। इसलिए इसी आयु में उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के घोर तपस्या आरम्भ कर दी थी।
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संबधित लेख-  
चैत्र नवरात्रि : राशि अनुसार नित्य मंत्र जाप, जाने...  क्या करें - क्या नहीं ? 
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राम नवमी मुहूर्त 2022
राम नवमी तिथि-
 
रविवार (10 अप्रैल 2022) 
नवमी तिथि- रविवार (10 अप्रैल) रात 1:32 बजे से आरंभ एवं सोमवार (11 अप्रैल) प्रातः 3:15 बजे समाप्त। 
पूजा का मुहूर्त- 10 अप्रैल प्रातः 11:10 बजे से 01: 32 बजे तक
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माँ महागौरी का स्वरुप-
माता का नौवां स्वरुप अति सुन्दर एवं गौर (गोरा) वर्ण होने के कारण महागौरी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, महागौरी को शिवा भी कहा जाता है। इनके हाथ में दुर्गा शक्ति का प्रतीक त्रिशूल है, तो दूसरे हाथ में भगवान शिव का प्रतीक डमरू है। अपने सांसारिक रूप में महागौरी उज्ज्वल, कोमल, श्वेत वर्णी तथा श्वेत वस्त्रधारी और चतुर्भुजा हैं। ये सफेद वृषभ अर्थात बैल पर सवार रहती हैं। मां का स्वभाव शांत है। महागौरी की उपासना से पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

देवी गौरी की पूजा-
अष्टमी तिथि के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात् मां गौरी की स्थापना करें। कलश पूजन के पश्चात् मां का विधि-विधान से पूजा करें। 
माता को श्वेत या लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। लाल रंग शुभ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, सफेद रंग मां गौरी को अत्यंत प्रिय हैं। वस्त्र अर्पित करने के पश्चात देवी मूर्ति को कुमकुम, रोली लगाएं और पुष्प अर्पित करें। मां की वंदना मंत्र का 108 बार जाप करें। तत्पश्चात् मां का स्त्रोत पाठ करें। नवरात्रि के आठवें दिन पीले वस्त्र पहन कर मां महागौरी की पूजा विशेष फलदायी होती है। इसके बाद माता महागौरी को पांच प्रकार के मिष्ठान और फल का भोग अथवा नैवेद्य का भोग अर्पित करना न भूलें। अंत में माता गौरी जी की आरती कर पूजा संपन्न करें।

देवी महागौरी मंत्र
सर्वमङ्गल  मङ्गल्ये  शिवे  सर्वार्थसाधिके,
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।

या देवी  सर्वभू‍तेषु  माँ गौरी  रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

कन्या-पूजन विधि एवं महत्व-
अष्टमी के दिन कन्या पूजन करने का विधान भी है। इसके साथ लोग नवमी को भी कन्या पूजन करते हैं। मार्केंडय पुराण के अनुसार, सृष्टि सृजन में शक्ति रूपी नौ दुर्गा, व्यस्थापाक रूपी नौ ग्रह, चारों पुरुषार्थ दिलाने वाली नौ प्रकार की भक्ति ही संसार संचालन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। प्रायः पर कन्या पूजन सप्तमी से आरंभ हो जाता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मान कर पूजा जाता है।

कन्याओं का पूजन करते समय पहले उनके पैर धो कर पंचोपचार-विधि से पूजन करें। फिर भोजन कराएं और प्रदक्षिणा करते हुए यथाशक्ति वस्त्र, फल और दक्षिणा देकर विदा करें। इस प्रकार नवरात्रि पर्व पर कन्या का पूजन करके भक्त मां की कृपा पा सकते हैं।  
 
देवी महागौरी मंत्र-
सर्वमङ्गल  मङ्गल्ये  शिवे  सर्वार्थसाधिके,
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते

या  देवी  सर्वभू‍तेषु  माँ गौरी  रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

Mantra
Om Devi Mahagauryai Namah (ॐ देवी महागौर्यै नमः)

Worshipped on 8th day- Mahagauri (The White Force)
Ma Mahagauri is worshipped on the eighth day of Navratri,
She daughter of Giri mountain, ever in the sixteenth year be,
Rides bull, holds trident, damaru, clad in white attire fully,
Her face resplendent as the moon, blessing all her devotees.

Importance
Mahagauri blesses with invincible powers, merits be,
Ends distress, worries; blesses with virtues devotees,
Devotees get prosperities and have fulfilment wholly,
She governess of perfection fulfils desires of devotees.
This the eighth day of Navratri puja is also certainly,
The second day of Saraswati puja, shed ‘satvik’ qualities,
Mahagauri gives comfort and happiness to devotees,
This day is also known as the Maha Ashtami day truly.
Ma Mahagauri, planet Rahu ruler, rid afflictions totally,
Caused by adverse Rahu and blesses her devotees,
With material prosperity, gifts spiritual realisation surely,
Rids confusions from the mind and instils confidence fully.

Story-
Ma Durga born on earth wanted to return subsequently,
To the divine abode by marrying Lord Shiv ever lovingly,
Advised by Narad, undertook penance to please Shiv truly,
Immersed in penance, her body covered by dust, dirt be.
She forgot food, drink; continued severe meditation only,
The scorching heat of sun rays blackened her body totally,
Shiv highly pleased, showered the Ganges on her body,
She shone like a white crystal and she white, pleasing be.

Worship-
Night blooming jasmines flowers offered to Mahagauri,
On the eighth day of Navratri with dedication and sincerity,
Start with Ganesh prarthna, then do shodasopachar truly,
Conclude the Mahagauri prayer with devotion and arati.

Prayer-
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः ।
महागौरी  शुभं दध्यान्महादेव प्रमोददा ॥
Shwete Vrishesamarudha Shwetambaradhara Shuchih
Mahagauri Shubham Dadyanmahadeva Pramodada
Ma Mahagauri calm, kind existing peacefully,

Means, Riding on a great white-elephant majestically,
In white-apparel, pure, delights Mahadeva surely,
May she bestow her favour on me serenely.

Stuti-
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै  नमो  नमः॥

Ya Devi Sarvabhuteshu Maa Mahagauri Rupena Samsthita
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah
Dhyana

वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा  महागौरी  यशस्विनीम्॥
पूर्णन्दु निभाम् गौरी सोमचक्रस्थिताम् अष्टमम् महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीयां लावण्यां मृणालां चन्दन गन्धलिप्ताम्॥

Vande Vanchhita Kamarthe Chandrardhakritashekharam
Simharudha Chaturbhuja Mahagauri Yashasvinim
Purnandu Nibham Gauri Somachakrasthitam Ashtamam Mahagauri Trinetram
Varabhitikaram Trishula Damarudharam Mahagauri Bhajem
Patambara Paridhanam Mriduhasya Nanalankara Bhushitam
Manjira, Hara, Keyura, Kinkini, Ratnakundala Manditam
Praphulla Vandana Pallavadharam Kanta Kapolam Trailokya Mohanam
Kamaniyam Lavanyam Mrinalam Chandana Gandhaliptam

Stotra-
सर्वसङ्कट हन्त्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमङ्गल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददम् चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

Sarvasankata Hantri Tvamhi Dhana Aishwarya Pradayanim
Jnanada Chaturvedamayi Mahagauri Pranamamyaham
Sukha Shantidatri Dhana Dhanya Pradayanim
Damaruvadya Priya Adya Mahagauri Pranamamyaham
Trailokyamangala Tvamhi Tapatraya Harinim
Vadadam Chaitanyamayi Mahagauri Pranamamyaham

कवच (Kavacha)-
ॐकारः पातु शीर्षो माँ, हीं बीजम् माँ, हृदयो।
क्लीं बीजम्  सदापातु  नभो  गृहो च पादयो॥
ललाटम् कर्णो हुं बीजम् पातु महागौरी माँ नेत्रम्‌ घ्राणो।
कपोत  चिबुको  फट्  पातु  स्वाहा  माँ  सर्ववदनो॥

Omkarah Patu Shirsho Maa, Him Bijam Maa, Hridayo
Klim Bijam Sadapatu Nabho Griho Cha Padayo
Lalatam Karno Hum Bijam Patu Mahagauri Maa Netram Ghrano
Kapota Chibuko Phat Patu Swaha Maa Sarvavadano

आरती-
जय महागौरी जगत की माया। जय उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरा वहा निवास॥
चन्द्रकली और ममता अम्बे। जय शक्ति जय जय माँ जगदम्बे॥
भीमा देवी विमला माता। कौशिक देवी जग विख्यता॥
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥
सती (सत) हवन कुंड में था जलाया। उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥
तभी माँ ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता। माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी माँ तेरी सदा ही जय हो॥

Disclaimer- उक्त लेख जानकारियां और सूचना ज्योतिर्विदों एवं पुस्तकों से साभार लिया गया है इनको करने से पूर्व कर्मकांडी ब्राह्मण या विद्वान से संपर्क करें। 
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