चारों ओर से बर्फ के पहाड़ से घिरा है सिखों का पवित्र हेमकुंड साहब, आज खुलेंगे कपाट
गुरु गोविंद सिंह साहिब ने यहाँ की थी महाकाल की आराधना
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जोशी मठ स्थित हेमकुंड साहब (ऊपर), बीते माह बर्फ से ढका हेमकुंड साहब (नीचे) |
.धर्म नगरी / DN News
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-राजेश पाठक
जोशी मठ (उत्तराखंड) स्थित सिखों के पवित्र तीर्थ-स्थल हेमकुंड साहब का कपाट आज प्रातः 9:30 खोले जाएंगे। सात पर्वतों के बीच बसा गुरुद्वारा अद्भुत है। सिखों का प्रमुख तीर्थ हेमकुंड साहिब और पवित्र सरोवर लाखों सिख तीर्थयात्रियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह पवित्र स्थान छह माह तक हिमाच्छादित रहता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने तपस्या की थी। यहां प्रत्येक वर्ष ग्रीष्मकाल में देश-विदेश के सिख तीर्थयात्री मत्था टेकने पहुंचते हैं।
कपाट खुलने से पूर्व हेमकुंड साहब को भव्य रूप से सजाया गया है। हेमकुंड साहब में पर्व जैसा उत्साह है। दर्शन को पहुंचने वालों में सरदार जनक सिंह और सरदार गुरुदेव सिंह का जत्था भी है, जो अनवरत 20 वर्ष से जा रहा है। पूर्व में हेमकुंड साहिब के कपाट प्रतिवर्ष 25 मई को खोले जाते थे, लेकिन दो वर्ष तक कोरोना के कारण यात्रा प्रभावित हुई और इस बार कपाट निर्धारित तिथि से तीन दिन पहले खोले जा रहे हैं।
.बीते माह आरंभ हुआ बर्फ हटाने का काम-हेमकुंड साहिब के तीन किलोमीटर पैदल ट्रेक से बर्फ हटाने का काम सेना और सेवादारों द्वारा बीते माह 15 अप्रैल से आरंभ कर दिया गया था, जब हेमकुंड में 8 से 10 फीट तक बर्फ जमी थी। यद्यपि गोविंदघाट गुरुद्वारे से लेकर घांघरिया तक 13 किमी. पैदल ट्रेक से बर्फ पिघल गई थी, लेकिन हेमकुंड साहिब से तीन किमी. पहले से ही रास्ते पर कई फीट बर्फ जमी थी। शासन-प्रशासन ने हेमकुंड साहिब के कपाट खुलने से पूर्व यात्रा व्यवस्थाएं चाक-चौबंद करने की बात कही थी।
हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे के समीप ही पवित्र सरोवर और लक्ष्मण मंदिर स्थित है। हेमकुंड साहब की तीर्थयात्रा 19 किमी पैदल सुरम्य बुग्यालों और पर्वत श्रृंखलाओं के बीच से होते हुए गुजरती है। पांच किमी तक पैदल रास्ता बर्फ से ढके बुग्याल से होकर गुजरता है। हेमकुंड की तीर्थयात्रा आस्था के साथ ही साहसिक पर्यटन का एहसास भी कराती है।
जोशी मठ (उत्तराखंड) स्थित सिखों के पवित्र तीर्थ-स्थल हेमकुंड साहब का कपाट आज प्रातः 9:30 खोले जाएंगे। सात पर्वतों के बीच बसा गुरुद्वारा अद्भुत है। सिखों का प्रमुख तीर्थ हेमकुंड साहिब और पवित्र सरोवर लाखों सिख तीर्थयात्रियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह पवित्र स्थान छह माह तक हिमाच्छादित रहता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने तपस्या की थी। यहां प्रत्येक वर्ष ग्रीष्मकाल में देश-विदेश के सिख तीर्थयात्री मत्था टेकने पहुंचते हैं।
कपाट खुलने से पूर्व हेमकुंड साहब को भव्य रूप से सजाया गया है। हेमकुंड साहब में पर्व जैसा उत्साह है। दर्शन को पहुंचने वालों में सरदार जनक सिंह और सरदार गुरुदेव सिंह का जत्था भी है, जो अनवरत 20 वर्ष से जा रहा है। पूर्व में हेमकुंड साहिब के कपाट प्रतिवर्ष 25 मई को खोले जाते थे, लेकिन दो वर्ष तक कोरोना के कारण यात्रा प्रभावित हुई और इस बार कपाट निर्धारित तिथि से तीन दिन पहले खोले जा रहे हैं।
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हेमकुंड साहब :फाइल फोटो (1 जून, 2019 को कपाट खुलने से पूर्व बर्फ हटते सेना के जवान) |
उल्लेखनीय है, चारधाम की यात्रा में केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री की यात्रा सम्मिलित है। इन चार धाम के कपाट सर्दियों में बर्फबारी के कारण बंद हो जाते हैं। पुनः गर्मियों में कपाट खुलते हैं, ताकि श्रद्धालु दर्शन कर सकें। उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशी मठ में स्थित सिखों का पवित्र धार्मिक स्थल हेमकुंड साहब है।
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बर्फ की पहाड़ियों से घिरा है-
हिमालय की गोद में बसा हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा सिख धर्म की आस्था का प्रतीक है। हजारों की संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु हर साल यहां दर्शन के लिए आते हैं। चारों ओर से पहाड़ और बर्फ से ढकी चोटियों के बीच हेमकुंड साहिब समुद्र तल से 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। हेमकुंड साहिब तक आने के लिए श्रद्धालुओं को बर्फीले रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है।
हेमकुंड साहब को लेकर सिख धर्म के श्रद्धालुओं का मानना है, यहां पर सिख धर्म के 10वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह साहिब ने कई वर्ष तक महाकाल की आराधना की थी। गुरु गोविंद सिंह जी की तपस्थली होने के कारण सिख धर्म के लोगों में इस स्थान को लेकर अपार श्रद्धा है और वे विभिन्न कठिनाइयों के बाद भी यहां पहुंचते हैं। हेमकुंड साहब की यात्रा को सबसे कठिन तीर्थ यात्राओं में से एक माना जाता है।
बताते हैं, हेमकुंड साहब की खोज 1934 में हुई, इसका उल्लेख "Devine heritage of valley of flower" पुस्तक में भी है। पुस्तक के अनुसार, 1930 के दशक में पत्रकार तारा सिंह नरोत्तम बद्रीनाथ यात्रा पर आए थे। उन्होंने पांडुकेश्वर से यहां जाकर इसकी खोज की। उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से पंजाब के निवासियों को इसकी जानकारी दी। इसके पश्चात हवलदार मोदन सिंह यहां आए। उन्होंने गुरुवाणी में लिखी पंक्तियों से इस तीर्थ (हेमकुंड साहब) का मिलान किया। 1937 ई. में यहाँ यात्रा आरंभ हुई। अगले वर्ष 1937 में गुरु ग्रन्थ साहब की पहली अरदास हुई।
कैसे पहुंचे हेमकुंड साहब-
हेमकुंड साहब पहुंचने के लिए रेल मार्ग तक ऋषिकेश और यहां से वाहन से 290 किमी दूर गोविंदघाट है। वहां से 19 किमी की पैदल दूरी तय कर पवित्र हेमकुंड साहब और लक्ष्मण लोकपाल मंदिर पहुंचा जा सकता है। यात्रा मार्ग पर गोविंदघाट से 13 किमी की दूर घांघरिया नामक स्थान स्थित है। हेमकुंड के दर्शन कर तीर्थयात्री रात्रि विश्राम के लिए यहीं पहुंचते हैं। प्रायः यहां मौसम भी अत्यधिक ठंडा रहता है। दिल्ली से गोविंदघाट तक बस से भी आया जा सकता है। दिल्ली से गोविंदघाट की दूरी 513 किमी है।
विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी जाने का मार्ग-
हेमकुंड साहब यात्रा मार्ग से ही विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी जाने का मार्ग भी है। घांघरिया से विश्व धरोहर फूलों की घाटी के लिए पैदल मार्ग है। हेमकुंड साहब के कपाटोद्घाटन के साथ ही फूलों की घाटी भी पर्यटकों के लिए खुल जाती है। इस बार हेमकुंड साहब के कपाट 22 मई को खुलेंगे, जबकि फूलों की घाटी एक जून से खुल जाएगी। हेमकुंड साहब गुरुद्वारे के समीप ही लोकपाल मंदिर है। इसे लक्ष्मण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार, इस स्थान पर लक्ष्मण ने शेषनाग के रूप में तपस्या की थी। यहां स्थित लक्ष्मण मंदिर में भ्यूंडार गांव के ग्रामीण पूजा-अर्चना करते हैं।
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इसे भी पढ़ें, देखें-
ज्ञानवापी : कैसे मंदिर परिसर में बनी मस्जिद ?
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http://www.dharmnagari.com/2022/05/Kashi-Gyanvapi-me-kaise-bani-Masjid.html
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