गंगा दशहरा : गंगा स्नान का महत्व, स्नान का मंत्र, शुभ योग, गंगा तट, गंगाजी और पितर, गंगा तट पर...
गंगा में स्नान करने से होता है 10 प्रकार के पापों का शमन
- गंगा जी का महत्व
- गंगा जी के तट पर क्या करने से क्या होता है ?
- गंगा जी और पितर (पुरखे)-
- #सोशल_मीडिया में प्रतिक्रिया...
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देवी गंगा चतुर्भुजा त्रिनेता हैं। जैसे गौरी, उसी प्रकार से गंगा हैं। जैसे हरि और हर में भेद नहीं है, वैसे गौरी, उमा गंगा में भेद नहीं है। उसी प्रकार लक्ष्मी-दुर्गा में भी भेद नहीं है। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भागीरथ अपने पूर्वजों की आत्मा का उद्धार करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर ले आए थे। भागीरथ के तप के पश्चात गंगा जी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था।
वाराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन हस्त नक्षत्र में गंगा ब्रह्मा के कमंडल से पृथ्वी पर आई थीं। इसी कारण गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है। इस दिन गंगा स्नान करने और दान देने की परंपरा है। यह तिथि सनातन धर्मियों के लिए पापों से मुक्ति के लिए सबसे अहम और शुभ मानी जाती है। मान्यता है, इस दिन गंगा में स्नान करने से 10 प्रकार के पाप कट जाते हैं। इस बार गंगा दशहरा का पर्व 9 जून को मनाया जाएगा।
हिंदू पंचांग के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन चार शुभ योग का निर्माण हो रहा है। गंगा दशहरा के दिन गुरु-चंद्रमा और मंगल का दृष्टि संबंध होने से गज-केसरी और महालक्ष्मी-योग का निर्माण हो रहा है। वहीं, वृष राशि में सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य-योग भी होगा। इसके अतिरिक्त सूर्य और चंद्रमा के नक्षत्रों से पूरे दिन रवि-योग रहेगा। ऐसे चार शुभ महायोग में दान स्नान का महत्व और अधिक हो गया है।
हिंदू धर्म में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है और गंगाजल को बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य और पूजा अनुष्ठान में गंगाजल का प्रयोग अवश्य किया जाता है। गंगाजल के बिना कोई भी मांगलिक कार्य पूरा नहीं होता है। मान्यता है, सभी पापों से मुक्ति पाने के लिए गंगा दशहरा के दिन गंगा के पवित्र जल में स्नान करना चाहिए। मां गंगा भवतारिणी हैं, इसलिए हिंदू धर्म में गंगा दशहरा का विशेष महत्व माना जाता है।
पौराणिक धर्म शास्त्रों के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन मां गंगा की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन मां गंगा की पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
स्नान और दान का महत्व-
गंगा दशहरा वाले दिन प्रात: काल गंगा में स्नान करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है। साथ ही पान के पत्ते पर फूल और अक्षत रखकर जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। दशहरा का आशय है 10 विकारों का नाश, इसलिए दशहरा के दिन शुद्ध मन से मां गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के समस्त पाप धुल जाते हैं। गंगा स्नान का मंत्र (स्कन्द पुराण) स्नान के समय बोला जाने वाला है-
ॐ उं नमों भगवते ऐं ह्रीं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा... मंत्र के साथ पांच पुष्प अर्पित करना चाहिए।
स्कंद पुराण के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन पवित्र नदी में स्नान करके ध्यान और दान करना चाहिए। इससे व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। गंगा दशहरा के दिन स्नान के बाद 10 चीजों के दान देने की परंपरा है। इन चीजों के दान से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जीवन की नाना प्रकार की समस्याओं में कमी / मुक्ति मिलती है। दान करने से ग्रहों की पीड़ा से भी मुक्ति मिलना आसान हो जाती है। भीषण गर्मी को देखते हुए इस दिन गर्मी में काम आने वाली चीजों का दान किया जाता है। मान्यता है, कि इस दिन गर्मी में राहत देने वाली 10 चीजों का दान करने से भी मनुष्य को सांसारिक दुखों से मुक्ति मिल जाती है।
स्नान का शुभ मुहूर्त-
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 9 जून 2022 को प्रात:काल 8:21 मिनट से प्रारंभ होकर 10 जून 2022 को सायंकाल 7:25 मिनट तक रहेगी। 10 जून 2022 को उदया तिथि प्राप्त हो रही है। इसके आधार पर गंगा दशहरा 10 जून को मनाई जाएगी। साथ ही इस दिन हस्त नक्षत्र और व्यक्तिपात योग भी रहेगा। इस योग में स्नान और दान करना अति लाभदायक माना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाता है। इस दिन पूरे विधि-विधान से मां गंगा की पूजा की जाती है। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन गंगा में स्नान करने और इसके बाद दान-पुण्य करने का विशेष महत्व माना जाता है।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 9 जून 2022 को प्रात:काल 8:21 मिनट से प्रारंभ होकर 10 जून 2022 को सायंकाल 7:25 मिनट तक रहेगी। 10 जून 2022 को उदया तिथि प्राप्त हो रही है। इसके आधार पर गंगा दशहरा 10 जून को मनाई जाएगी। साथ ही इस दिन हस्त नक्षत्र और व्यक्तिपात योग भी रहेगा। इस योग में स्नान और दान करना अति लाभदायक माना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाता है। इस दिन पूरे विधि-विधान से मां गंगा की पूजा की जाती है। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन गंगा में स्नान करने और इसके बाद दान-पुण्य करने का विशेष महत्व माना जाता है।
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स्नान और दान का महत्व-
गंगा दशहरा वाले दिन प्रात: काल गंगा में स्नान करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है। साथ ही पान के पत्ते पर फूल और अक्षत रखकर जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। दशहरा का आशय है 10 विकारों का नाश, इसलिए दशहरा के दिन शुद्ध मन से मां गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के समस्त पाप धुल जाते हैं। गंगा स्नान का मंत्र (स्कन्द पुराण) स्नान के समय बोला जाने वाला है-
ऊँ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा। यह 20 अक्षरात्मक मंत्र है। पूजा, दान, जप, होम इसी मंत्र से किया जाता है।
ॐ नम: शिवायै नाराण्ययै दशहरायै गंगायै नम: ॐ उं नमों भगवते ऐं ह्रीं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा... मंत्र के साथ पांच पुष्प अर्पित करना चाहिए।
स्कंद पुराण के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन पवित्र नदी में स्नान करके ध्यान और दान करना चाहिए। इससे व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। गंगा दशहरा के दिन स्नान के बाद 10 चीजों के दान देने की परंपरा है। इन चीजों के दान से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जीवन की नाना प्रकार की समस्याओं में कमी / मुक्ति मिलती है। दान करने से ग्रहों की पीड़ा से भी मुक्ति मिलना आसान हो जाती है। भीषण गर्मी को देखते हुए इस दिन गर्मी में काम आने वाली चीजों का दान किया जाता है। मान्यता है, कि इस दिन गर्मी में राहत देने वाली 10 चीजों का दान करने से भी मनुष्य को सांसारिक दुखों से मुक्ति मिल जाती है।
गंगा जी का महत्व-
"धर्म नगरी" के सलाहकार एवं श्री महानिर्वाण संस्कृत वेद महाविद्यालय प्रयागराज के पूर्व प्राचार्य एवं अनेकों प्रामाणिक पुस्तकों के लेखक डॉ. अल्प नारायण त्रिपाठी 'अल्प' के अनुसार, स्कंध पुराण में गंगाजी के महत्व का वर्णन इस प्रकार है-
- गंगा-गंगा का जप करने से अलक्ष्मी, कालकर्णी, दुःस्वप्न तथा दु:श्चिता निकट नहीं आती,
- अमावस्या के दिन गंगा स्नान से सौ गुना, संक्राति के दिन शस्त्र गुना, चंद्र सूर्य ग्रहण के दिन स्नान करने से लक्ष गुना तथा व्यतिपात (उत्पात) के दिन स्नान से अनंत फल मिलता है,
- पद्म पुराण (सप्तम खंड) के अनुसार, मनुष्य गंगाजी के नाम का स्मरण करके कुंए के भी जल को प्राप्त करता है, उसे भी गंगा स्नान का फल मिलता है। मृत्यु के समय सरसों के बराबर भी गंगाजल को जो प्राणी पा लेता है, वह भगवान विष्णु के परम पद को प्राप्त कर लेता है।
स्कंद पुराण के अनुसार,
मानसिक, वाचिक तथा कायिक दोषों से युक्त व्यक्ति गंगा-दर्शन से ही पवित्र हो जाता है। कलिकाल में मात्र गंगा ही मोक्ष कारण है।
- जो व्यक्ति गंगाजल के साथ निम्नलिखित आठ द्रव्य साढ़े 12 पल लेकर (किसी पात्र में) सूर्य को (काशी में) मात्र एक बार अघ्र्य देते हैं, वे अत्यन्त तेजयुक्त विमान द्वारा सूर्यलोक में सम्मानपूर्वक नि वास करते हैं। आठ द्रव्य हैं- जल, गोदुग्ध, कुशाग्रभाग, गोघृत, मधु, गोदधि, रक्तवर्ण कनेर एवं रक्त चन्दन। यह अष्टांग अघ्र्य सूर्यदेव को अत्यन्त प्रिय है।
- अन्य जल की तुलना में गंगाजल कोटि गुणित फल है।
- गंगा जी के तट पर क्या करने से क्या होता है ?
- जो व्यक्ति गंगा तट पर देवालय का निर्माण कराता है, अन्य तीर्थों में देवालय प्रतिष्ठा की तुलना में कोटि गुणा फल प्राप्त करता है। अन्यत्र पीपल, वट, आम आदि वृक्षारोपण का जो फल मिलता है तथा इसी प्रकार अन्य वापी, कूप, तड़ाग, पानीयशाला, अन्नसत्र तथा पुष्पोद्यान प्रभृति की प्रतिष्ठा का जो फललाभ होता है, गंगा स्पर्श का फल उससे कहीं अधिक है। गंगा स्नान का फल है अक्षय स्वर्ग तथा निर्वाण मुक्ति। कन्यादान तथा चन्द्रायण व्रत से भी अधिक गंगाजल पीने से फल मिलता है।
जो व्यक्ति गंगा तट, देवालय अथवा भग्न गंगाघाट का जीर्णोद्धार कराता है, वह शिवलोक में अक्षय सुख लाभ करता है। जो व्यक्ति अनेक पाप संचय करने के पश्चात वृद्धावस्था में गंगा सेवन करते हैं, उनको शुभ गति प्राप्त होती है।
गंगा जी और पितर-
- शिव का तेज रूप अग्नि इस गंगा के गर्भ में है। यह गंगा सर्व दोषदाहिका तथा सर्व पाप नाशिनी है। गमन-अवस्थान-जप-ध्यान-भोजन-जागरण-श्वास त्याग, वाक्य प्रयोग में सर्वदा जो गंगाजी का स्मरण करते हैं, वे भव-बंधन से मुक्त हो जाते हैं। जो व्यक्ति पितरों के उद्देश्य से गुड़-घृत-तिल मधुयुक्त पायस भक्तिपूर्वक गंगाजल में छोड़ता है, उसके पितर उस व्यक्ति के इस कार्य के फल द्वारा सौ वर्ष तक पर्यन्त तृप्त रहते हैं। वे (पितर) व्यक्ति की विविध कामनाओं को पूर्ण करते हैं।
मृत मानव देह की अस्थियाँ जबतक गंगा जल में पड़ी रहती हैं, उतने सहस्त्रवर्ष पर्यन्त वह स्वर्गलोक में सादर निवास करता है। जो व्यक्ति गंगाजी में एक बार भी पिण्ड प्रदान करता है, वह पितरों को भवसागर से उद्धार करता है। पितृ-कार्यार्थ जितने तिल ग्रहण करते हैं, उतने हजार वर्षों तक पितृगण स्वर्ग में निवास करते हैं। गंगा में देवगण और पितृगण सदा स्थित रहते हैं। इसलिए वहां तीर्थ आदि में आवाहन विसर्जन नहीं होता।
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- जो व्यक्ति गंगाजल के साथ निम्नलिखित आठ द्रव्य साढ़े 12 पल लेकर (किसी पात्र में) सूर्य को (काशी में) मात्र एक बार अघ्र्य देते हैं, वे अत्यन्त तेजयुक्त विमान द्वारा सूर्यलोक में सम्मानपूर्वक नि वास करते हैं। आठ द्रव्य हैं- जल, गोदुग्ध, कुशाग्रभाग, गोघृत, मधु, गोदधि, रक्तवर्ण कनेर एवं रक्त चन्दन। यह अष्टांग अघ्र्य सूर्यदेव को अत्यन्त प्रिय है।
- अन्य जल की तुलना में गंगाजल कोटि गुणित फल है।
- गंगा जी के तट पर क्या करने से क्या होता है ?
- जो व्यक्ति गंगा तट पर देवालय का निर्माण कराता है, अन्य तीर्थों में देवालय प्रतिष्ठा की तुलना में कोटि गुणा फल प्राप्त करता है। अन्यत्र पीपल, वट, आम आदि वृक्षारोपण का जो फल मिलता है तथा इसी प्रकार अन्य वापी, कूप, तड़ाग, पानीयशाला, अन्नसत्र तथा पुष्पोद्यान प्रभृति की प्रतिष्ठा का जो फललाभ होता है, गंगा स्पर्श का फल उससे कहीं अधिक है। गंगा स्नान का फल है अक्षय स्वर्ग तथा निर्वाण मुक्ति। कन्यादान तथा चन्द्रायण व्रत से भी अधिक गंगाजल पीने से फल मिलता है।
जो व्यक्ति गंगा तट, देवालय अथवा भग्न गंगाघाट का जीर्णोद्धार कराता है, वह शिवलोक में अक्षय सुख लाभ करता है। जो व्यक्ति अनेक पाप संचय करने के पश्चात वृद्धावस्था में गंगा सेवन करते हैं, उनको शुभ गति प्राप्त होती है।
गंगा जी और पितर-
- शिव का तेज रूप अग्नि इस गंगा के गर्भ में है। यह गंगा सर्व दोषदाहिका तथा सर्व पाप नाशिनी है। गमन-अवस्थान-जप-ध्यान-भोजन-जागरण-श्वास त्याग, वाक्य प्रयोग में सर्वदा जो गंगाजी का स्मरण करते हैं, वे भव-बंधन से मुक्त हो जाते हैं। जो व्यक्ति पितरों के उद्देश्य से गुड़-घृत-तिल मधुयुक्त पायस भक्तिपूर्वक गंगाजल में छोड़ता है, उसके पितर उस व्यक्ति के इस कार्य के फल द्वारा सौ वर्ष तक पर्यन्त तृप्त रहते हैं। वे (पितर) व्यक्ति की विविध कामनाओं को पूर्ण करते हैं।
मृत मानव देह की अस्थियाँ जबतक गंगा जल में पड़ी रहती हैं, उतने सहस्त्रवर्ष पर्यन्त वह स्वर्गलोक में सादर निवास करता है। जो व्यक्ति गंगाजी में एक बार भी पिण्ड प्रदान करता है, वह पितरों को भवसागर से उद्धार करता है। पितृ-कार्यार्थ जितने तिल ग्रहण करते हैं, उतने हजार वर्षों तक पितृगण स्वर्ग में निवास करते हैं। गंगा में देवगण और पितृगण सदा स्थित रहते हैं। इसलिए वहां तीर्थ आदि में आवाहन विसर्जन नहीं होता।
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#सोशल_मीडिया में प्रतिक्रिया...
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राष्ट्र नदी, जीवनदायिनी माँ गंगा के पृथ्वी पर अवतरण दिवस 'गंगा दशहरा' की सभी प्रदेश वासियों व श्रद्धालुओं को अनंत बधाई एवं शुभकामनाएं।
माँ गंगा की कृपा सभी पर बनी रहे। सभी के जीवन में सुख, शांति और आरोग्यता का वास हो।
हर-हर गंगे! -@myogiadityanath (CM, Uttar Pradesh)
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माँ गंगा की कृपा सभी पर बनी रहे। सभी के जीवन में सुख, शांति और आरोग्यता का वास हो।
हर-हर गंगे! -@myogiadityanath (CM, Uttar Pradesh)
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On #GangaDussehra - listen to the legend of Ganga. River Ganga was gifted to mankind due to the great Penance of Raja Bhagirath, after whom she is named Bhagirathi. Maa Ganga is a symbol of purity, devotion and Indian civilisation.
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May Maa Ganga is always there to bring into our lives the goodness and positivity we need. Sending warm wishes on Ganga Dussehra to you.
#GangaDussehra2022 -@tanyatyagi_01
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@RadheRadheje
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