अपने शिशु की रक्षा हेतु करें पढ़ें ये "रक्षा स्तोत्र", श्रीकृष्ण द्वारा पूतना को मारने के पश्चात...
...नन्द गोपों ने किया इस स्तुति को
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पूतना को कौन नहीं जानता ? जब कृष्ण जी गोकुल में रहते थे, तब "बल-घातिनि" पूतना ने रात्रि के समय सोते हुए बालक कृष्ण को गोद में लेकर उनके मुख में अपना स्तन दे दिया। रात्रि के समय पूतना जिस-जिस बालक के मुख में अपना स्तन दे देती, उस-उस बालक का शरीर तत्काल नष्ट हो जाता था। कृष्ण जी ने क्रोधपूर्वक उसके स्तन को अपने हाथों से खूब दबाकर पकड़ लिया और स्तनों को पूतना के प्राणों के सहित पीने लगे।
तब स्नायु-बन्धनों के शिथिल हो जाने से पूतना घोर शब्द करती हुई मरते समय महाभयंकर रूप धारण कर पृथ्वी पर गिर पड़ी। उसके घोर नाद को सुनकर भयभीत हुए व्रजवासी गण जाग उठे और देखा, कि कृष्ण जी पूतना की गोद में है और वह मारी गयी है।
तब नन्दगोप ने विधि-पूर्वक रक्षा करते हुए कृष्ण जी के मस्तकर पर गोबर का चूर्ण लगाया और श्री विष्णु पुराण (अंश-5, अध्याय-5) इस रक्षा स्तोत्र का पाठ किया-
रक्षतु त्वामशेषाणां भूतानां प्रभवो हरिः ।
यस्य नाभिसमुद्भूतपङ्कजादभवज्जगत् ॥१४॥
जिनकी नाभि से प्रकट हुए कमलसे सम्पूर्ण जगत् उत्पन्न हुआ है वे सम्पूर्ण भूतोंके आदि-स्थान श्रीहरि तेरी रक्षा करें ॥१४॥
येन दंष्ट्राग्रविधृता धारयत्यवनिर्जगत् ।
वराहरूपधृग्देवस्स त्वां रक्षतु केशवः ॥१५॥
जिनकी दाढ़ोंके अग्रभागपर स्थापित होकर भूमि सम्पूर्ण जगत्को धारण करती है, वे वराह-रूप- धारी श्रीकेशव तेरी रक्षा करें ॥१५॥
नखाङ्कुरविनिभिन्नवैरिवक्षस्स्थलो विभुः ।
नृसिंहरूपी सर्वत्र रक्षतु त्वां जनार्दनः ॥१६॥
जिन विभुने अपने नखाग्रों से शत्रुके वक्ष:स्थल को विदीर्ण कर दिया था, वे नृसिंहरूपी जनार्दन तेरी सर्वत्र रक्षा करें ॥१६॥
वामनो रक्षतु सदा भवन्तं यः क्षणादभूत् ।
त्रिविक्रमः क्रमाक्रान्तत्रैलोक्यः स्फुरदायुधः ॥१७॥
जिन्होंने क्षण मात्र में सशस्त्र त्रि-विक्रम रूप धारण करके अपने तीन पगोंसे त्रिलोकीको नाप लिया था, वे वामनभगवान् तेरी सर्वदा रक्षा करें ॥१७॥
शिरस्ते पातु गोविन्दः कण्ठं रक्षतु केशवः ।
गुह्यं च जठरं विष्णुर्जङ्गे पादौ जनार्दनः ॥१८॥
गोविन्द तेरे सिरकी, केशव कण्ठकी, विष्णु गुह्यस्थान और जठरकी तथा जनार्दन जंघा और चरणोंकी रक्षा करें ॥१८॥
मुखं बाहू प्रबाहू च मनः सर्वेन्द्रियाणि च ।
रक्षत्वव्याहतैश्वर्यस्तव नारायणोऽव्ययः ॥१९॥
तेरे मुख, बाहु, प्रबाहु(घुटने के नीचे का भाग), मन और सम्पूर्ण इन्द्रियोंकी अखण्ड-ऐश्वर्यसे सम्पन्न अविनाशी श्रीनारायण रक्षा करें ॥१९॥
शार्ङ्गचक्रगदापाणेश्शङ्खनादहताः क्षयम् ।
गच्छन्तु प्रेतकूष्माण्डराक्षसा ये तवाहिताः ॥२०॥
तेरे अनिष्ट करनेवाले जो प्रेत, कूष्माण्ड और राक्षस हों वे शार्ङ्ग धनुष, चक्र और गदा धारण करनेवाले विष्णु भगवान्की शंख-ध्वनिसे नष्ट हो जायँ ॥२०॥
आप सब भी इस रक्षा स्तोत्र को पढ़ते हुए अपने बालकों के मस्तक पर गोबर का चूर्ण लगाते हुए उन्हे नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रखें।
गच्छन्तु प्रेतकूष्माण्डराक्षसा ये तवाहिताः ॥२०॥
तेरे अनिष्ट करनेवाले जो प्रेत, कूष्माण्ड और राक्षस हों वे शार्ङ्ग धनुष, चक्र और गदा धारण करनेवाले विष्णु भगवान्की शंख-ध्वनिसे नष्ट हो जायँ ॥२०॥
आप सब भी इस रक्षा स्तोत्र को पढ़ते हुए अपने बालकों के मस्तक पर गोबर का चूर्ण लगाते हुए उन्हे नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रखें।
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