चातुर्मास : देवशयनी से देवउठनी एकादशी तक, महत्व, क्या करें क्या नहीं, किसकी पूजा करें
चातुर्मास में विष्णुजी की पूजा से मिलती है मां लक्ष्मी की भी विशेष कृपा
.धर्म नगरी / DN News
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आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहते हैं। वेद-पुराणों के अनुसार, देशयानी एकादशी 10 जुलाई को है। इस तिथि को भगवान विष्णु चार माह के लिए पृथ्वी (मृत्यु लोक) से क्षीर सागर में योग-निद्रा के लिए चले जाते है। सृष्टि के संचालक श्रीहरि विष्णु चार माह (श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक) तक विश्राम पश्चात पुनः देवउठनी एकादशी को पृथ्वी लोक आ जाते हैं। इस अवधि (चातुर्मास) में उनकी जगह भगवान शिव सृष्टि के संचालक होते हैं एवं श्रीहरि विष्णु का हर काम संभालते हैं।
चातुर्मास की अवधि में भगवान विष्णु शयन करते हैं, इसलिए इस अवधि में कोई शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। कार्तिक मास में देवोत्थान या देवउठनी एकादशी पर जब भगवान विष्णु योग निद्रा से जागकर पुनः पृथ्वी लोक में आएंगे और तुलसी जी के साथ उनका विवाह होगा। उसके बाद से सारे शुभ एवं मांगलिक कार्य पुनः प्रारंभ होगा और चातुर्मास खत्म होगा।
देवशयनी से देव उठनी तक-
देवशयनी एकादशी से देव-उठनी एकादशी के बीच का समय चातुर्मास कहा जाता है। इस दौरान पृथ्वी का भार देवाधिदेव महादेव के पास रहता है। मान्यता है कि इन चातुर्मास में देवताओं के साथ श्री हरि विष्णु शयन कालांश में संत, ऋषि, मुनि एक ही जगह पर ठहर कर साधना करते हैं। यह समय साधना के साथ पुण्य अर्जन करने का होता है। इस दौरान धार्मिक कार्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। चातुर्मास में श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करना हजारों गुना फल प्रदान करता है। चातुर्मास में शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्य बंद रहते हैं। वहीं धार्मिक कार्यों का हवन पूजन का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
चातुर्मास का प्रारंभ- 10 जुलाई (रविवार) देवशयनी एकादशी से
चातुर्मास का समापन- 4 नवंबर (शुक्रवार) देवउठनी एकादशी पर
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चातुर्मास में सूर्य पूजा का बड़ा महत्व होता है। मान्यतानुसार, चातुर्मास में थाली छोड़कर पत्तल में भोजन करना चाहिए। चारपाई के स्थान पर जमीन पर सोना चाहिए। इससे भगवान सूर्यदेव अति प्रसन्न होते हैं और भक्तों को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। चातुर्मास भगवान विष्णु की पूजा करने से मां लक्ष्मी अति प्रसन्न होती है और घर में वास करती हैं। चातुर्मास की अवधि में तुलसी पूजा करनी चाहिए। शाम को तुलसी पौधे पर घी का दीपक जलाना चाहिए। इससे घर में धन का आगमन होता है और दरिद्रता समाप्त हो जाती है।
चर्तुमास में यह करें-
इस वर्ष चातुर्मास 10 जुलाई से आरंभ होगा, जबकि समापन 4 नवंबर को होगा। शास्त्रानुसार, चातुर्मास में अपने ईष्ट का चिंतन करना चाहिए। व्रत-पूजन पर ध्यान देना चाहिए।
गीता पाठ, हनुमान चालीसा पाठ करने के साथ संकीर्तन में सहभागी बनना चाहिए। प्राचीन हनुमान मंदिर में आकर भगवान का आशीर्वाद लेना चाहिए। संभव हो तो भोजन भी एक समय ग्रहण करना चाहिए। चातुर्मास में थाली छोड़कर पत्तल में भोजन करना शुभकारी माना जाता है।
पद्मपुराण के अनुसार, चातुर्मास के निमयों में चारपाई या पलंग का त्याग कर जमीन पर सोना चाहिए। इससे सूर्यदेव की कृपा मिलती है। चातुर्मास में भगवान विष्णु की पूजा अत्यंत लाभकारी है, क्योंकि इससे मां लक्ष्मी की भी कृपा (लक्ष्मी जी का आगमन) होती है। इन चार माह में लोगों को किसी से लड़ाई-झगड़ा करने से बचना चाहिए और झूठ नहीं बोलना चाहिए।
चातुर्मास की अवधि में तुलसी पूजा करनी चाहिए। शाम को तुलसी पौधे पर घी दीपक जलाएं। इसके अलावा चातुर्मास के दौरान गुड़, तेल, शहद, मूली, परवल, बैंगल, साग-पात आदि ग्रहण नहीं करना चाहिए।
चातुर्मास में क्या न करें
चातुर्मास में देव-शयन होने से कोई भी मांगलिक कार्य, जैसे- वैवाहिक कार्य, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, मुंडन, तिलकोत्सव आदि कार्य नहीं किए जाते हैं। मान्यता है, कि चातुर्मास में इन कार्यों को करने से अशुभ फल प्राप्त होता है। मान्यतानुसार, श्रावण (सावन) मास में साग, भाद्रपद (भादौ) में दही, आश्विन में दूध एवं कार्तिक में दाल नहीं खाता, वह भक्त पापमुक्त होकर परम गति को प्राप्त होता है।
शुक्र अस्त से विवाह में बाधा-
देवउठनी एकादशी पर देवताओं के जागृत होते ही शुभ-मांगलिक काम शुरू होंगे। यह तिथि चार नवंबर को है, लेकिन इसके बाद भी विवाह नहीं हो सकेगी। इसका कारण एक अक्टूबर को शुक्र का अस्त होना होगा। ऐसे में मांगलिक काम 23 नवंबर तक नहीं हो सकेंगे। इसके पश्चात बैंड-बाजा और बारात का शोर सुनने को मिलेगा।
चतुर्मास में ये पूजा विशेष फलदायी-
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मान्यता है, कि चतुर्मास की अवधि में भगवान शिव, दुर्गा मां सहित कई देवी-देवताओं की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। सनातन हिन्दू धार्मिक मान्यताओं में चातुर्मास को बहुत महत्व दिया गया है। चातुर्मास में व्रत-पूजन को बहुत महत्व दिया गया है। मान्यता है, चार माह की इस अवधि में भगवान शिव, दुर्गा मां सहित कई देवी-देवताओं की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
सावन में भगवान शिव की पूजा
चातुर्मास का पहला महीना श्रावण मास होता है। सावन का महीना भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता है। श्रावण मास में शिवजी की विधि-विधान से पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। साथ ही सावन महीने में पड़ने वाले सोमवार का व्रत रखने वाले व्यक्ति को देवाधिदेव महादेव की विशेष कृपा प्राप्त मिलती है।
भाद्रपद में गणपति और श्रीकृष्ण की पूजा
शास्त्रानुसार भाद्रपद में भगवान गणेश और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। इस महीने में गणेश-उत्सव और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भी मनाई जाती है। साथ ही राधा रानी का जन्मोत्सव भी इसी माह मनाया जाता है।
आश्विन माह में माँ दुर्गा की पूजा
आश्विन माह में दुर्गा माता की पूजा और उपासना को बहुत महत्व दिया गया है। इस महीने माँ दुर्गा के शारदीय नवरात्रि के समय विशेष पूजन और व्रत का भी विधान है। नवरात्रि में 9 दिनों तक भक्तजन माता की चौकी और कलश स्थापित करके सुबह-शाम दुर्गा मां के नौ रूपों की आराधना करते हैं और दशमी तिथि पर व्रत का पारण करके कलश का विसर्जन करते हैं।
चातुर्मास की अवधि में तुलसी पूजा करनी चाहिए। शाम को तुलसी पौधे पर घी दीपक जलाएं। इसके अलावा चातुर्मास के दौरान गुड़, तेल, शहद, मूली, परवल, बैंगल, साग-पात आदि ग्रहण नहीं करना चाहिए।
चातुर्मास में क्या न करें
चातुर्मास में देव-शयन होने से कोई भी मांगलिक कार्य, जैसे- वैवाहिक कार्य, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, मुंडन, तिलकोत्सव आदि कार्य नहीं किए जाते हैं। मान्यता है, कि चातुर्मास में इन कार्यों को करने से अशुभ फल प्राप्त होता है। मान्यतानुसार, श्रावण (सावन) मास में साग, भाद्रपद (भादौ) में दही, आश्विन में दूध एवं कार्तिक में दाल नहीं खाता, वह भक्त पापमुक्त होकर परम गति को प्राप्त होता है।
शुक्र अस्त से विवाह में बाधा-
देवउठनी एकादशी पर देवताओं के जागृत होते ही शुभ-मांगलिक काम शुरू होंगे। यह तिथि चार नवंबर को है, लेकिन इसके बाद भी विवाह नहीं हो सकेगी। इसका कारण एक अक्टूबर को शुक्र का अस्त होना होगा। ऐसे में मांगलिक काम 23 नवंबर तक नहीं हो सकेंगे। इसके पश्चात बैंड-बाजा और बारात का शोर सुनने को मिलेगा।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मान्यता है, कि चतुर्मास की अवधि में भगवान शिव, दुर्गा मां सहित कई देवी-देवताओं की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। सनातन हिन्दू धार्मिक मान्यताओं में चातुर्मास को बहुत महत्व दिया गया है। चातुर्मास में व्रत-पूजन को बहुत महत्व दिया गया है। मान्यता है, चार माह की इस अवधि में भगवान शिव, दुर्गा मां सहित कई देवी-देवताओं की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
सावन में भगवान शिव की पूजा
चातुर्मास का पहला महीना श्रावण मास होता है। सावन का महीना भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता है। श्रावण मास में शिवजी की विधि-विधान से पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। साथ ही सावन महीने में पड़ने वाले सोमवार का व्रत रखने वाले व्यक्ति को देवाधिदेव महादेव की विशेष कृपा प्राप्त मिलती है।
भाद्रपद में गणपति और श्रीकृष्ण की पूजा
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आश्विन माह में माँ दुर्गा की पूजा
आश्विन माह में दुर्गा माता की पूजा और उपासना को बहुत महत्व दिया गया है। इस महीने माँ दुर्गा के शारदीय नवरात्रि के समय विशेष पूजन और व्रत का भी विधान है। नवरात्रि में 9 दिनों तक भक्तजन माता की चौकी और कलश स्थापित करके सुबह-शाम दुर्गा मां के नौ रूपों की आराधना करते हैं और दशमी तिथि पर व्रत का पारण करके कलश का विसर्जन करते हैं।
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