#शारदीय_नवरात्र : द्वितीया : माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा, पूजा-विधि, भोग, मंत्र और आरती



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नवरात्र की द्वितीया (दूसरे दिन) माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, जो वैराग्य, तपस्या और ज्ञान की देवी हैं। इस दिन, भक्त उनकी पूजा करते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं, और उन्हें मिसरी और पीले रंग की वस्तुएं अर्पित करते हैं। मान्यता है, ऐसा करने से भक्तों की बाधाएं दूर होती।  

ब्रह्मचारिणी का स्वरूप सरल और राजसी है। माँ ब्रह्मचारिणी कठोर तपस्या और ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं। ब्रह्माचारिणी माँ के नाम का अर्थ दो शब्दों से मिलकर बना है- ब्रह्म अर्थात तपस्या और चारिणी अर्थात आचरण करने वाली है। माँ ब्रह्मचारिणी की तपस्या करने से व्यक्ति की सारी बाधाएं दूर होती हैं। जीवन की नाना प्रकार की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती हैं।  

माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरुप
माँ ब्रह्मचारिणी नवदुर्गा देवियों में द्वितीय हैं। ज्ञान और विद्या की देवी माँ ब्रह्मचारिणी की उपासने करने वालों क सफलता और विजय की प्राप्ति होती है। माँ ब्रह्मचारिणी की स्वरुप अत्यंत सरल, सशक्त और अति सुंदर है। माँ ब्रह्मचारिणी सफेद रंग के वस्त्र धारण करती हैं। उनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है। माँ ब्रह्मचारिणी 
ब्रह्मांड के समस्त चेतन और अचेतन ज्ञान की ज्ञाता मानी जाती हैं। इन्हें शास्त्रों, निगमागम, तंत्र, मंत्र आदि का ज्ञान है। उनके हाथों में अक्षयमाला एवं कमंडल शास्त्रों, तंत्र-मंत्र और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रतीक हैं। माता का स्वभाव बहुत ही शांत हैं, बहुत दयालु है। अन्य देवियों की तुलना में ये अत्यंत सौम्य, क्रोधरहित और शीघ्र वरदान देने वाली हैं। कहते हैं, कि माँ ब्रह्मचारिणी अपने भक्तों की भक्ति से शीघ्र प्रसन्न होती हैं। ऐसी मान्यता है, जो भी भक्त माँ दुर्गा की सच्चे मन से उपासना करता है और उनकी पूजा करता है उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।

ब्रह्मचारिणी नाम कैसे पड़ा ?
शास्त्रों के अनुसार, देवी ने राजा पार्वती की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया और देवर्षि नारद के सुझाव पर उन्होंने महादेव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अपने जीवन में कठोर तपस्या की। हजारों वर्षों की कठोर तपस्या के कारण उन्हें तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी नाम प्राप्त हुआ। इस तपस्या के दौरान उन्होंने कई वर्षों तक उपवास और कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। देवी के इस रूप की पूजा उनकी तपस्या के प्रतीक के रूप में की जाती है।

द्वितीया को कैसे कपड़े पहनें  
माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप, माँ ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। सफेद रंग पवित्रता, शांति और सादगी का प्रतीक है। यह देवी के तपस्वी और शुद्ध रूप को दर्शाता है।

मां ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र
दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।
देवी  प्रसीदतु  मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।


माँ ब्रह्मचारिणी का भोग
मां ब्रह्मचारिणी को मिसरी का भोग अधिक प्रिय हैं। इसलिए नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरुप मां ब्रह्मचारिणी को मिसरी का भोग लगाने से मानसिक शांति प्रदान होती है। साथ ही मां ब्रह्मचारिणी को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। पीले रंग के फूल और फल अर्पित किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी को पीले रंग अर्पित करने से सफलता के साथ साथ मानसिक विकास मिलता है।

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माँ ब्रह्मचारिणी पूजा विधि
इस दिन सुबह उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और इसके बाद पूजा साथल पर गंगाजल से छिड़काव करें।

मां ब्रह्मचारिणी को पीला रंग प्रिय हैं। इसलिए इस दिन मां को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। साथ ही मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत से स्नान कराएं।

फिर घी का दीपक जलाएं और मां तो मिसरी का भोग लगाएं। फिर पीले फल, दूध से बनी पीले रंग की मिठाई आदि का भोग मां को अर्पित करें।

इसके बाद लौंग, बताशे और हवन की सामग्री से आहुति दें।

अंत में मां ब्रह्मचारिणी की आरती करें और फिर, "मां ब्रह्मचारिणी की जय" के जयकारे लगाएं।

पूजा के अंत में पान सुपारी अर्पित करें फिर शाम के समय मां ब्रह्मचाणिरी की आरती करें।

माँ ब्रह्मचारिणी की आरती  
जय अंबे  ब्रह्माचारिणी  माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।

ब्रह्मा जी  के  मन  भाती  हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।

ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।

जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।

कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।

उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।

रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।

आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।

ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।

भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
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माँ दुर्गा अंबे जी की आरती-
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
तेरे भक्त जनो पर माता भीर पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पड़ो मां करके सिंह सवारी॥
सौ-सौ सिहों से बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली,
दुष्टों को तू ही ललकारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥

माँ-बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता।
पूत-कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता॥
सब पे करूणा दर्शाने वाली, अमृत बरसाने वाली,
दुखियों के दुखड़े निवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥

नहीं मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना।
हम तो मांगें तेरे चरणों में छोटा सा कोना॥
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली,
सतियों के सत को संवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥

चरण शरण में खड़े तुम्हारी, ले पूजा की थाली।
वरद हस्त सर पर रख दो माँ संकट हरने वाली॥
माँ भर दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओं वाली,
भक्तों के कारज तू ही सारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥

आरती करने के साथ इन मंत्रों का 
जाप यथासम्भव अवश्य करें- 
सर्वमंगल  मांगल्ये  शिवे  सर्वार्थ  साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।

ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’।

या  देवी  सर्वभूतेषु  शक्तिरूपेण  संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।


नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’


Disclaimer- उक्त लेख जानकारियां और सूचना ज्योतिर्विदों एवं पुस्तकों से साभार लिया गया है। इनको करने से पूर्व कर्मकांडी ब्राह्मण या विद्वान से संपर्क करें।
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