Media & Social_Media : लखनऊ : "ये हमारे देश के वो खटमल हैं, जिन्हें हम अपना ही खून पिलाकर आपने घरो में...


... पाल रहे हैं, एक दिन यह हमे हमरे घरो से बाहर निकाल देंगे
- भारत में आज भी औपनिवेशिक कानूनों के तहत संपत्ति का लेन-देन : SC

भारत बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये (फाइल फोटो)  

धर्म नगरी / DN News
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लखनऊ नगर निगम में बांग्लादेशी और रोहिंग्या सफाईकर्मियों की होगी पहचान, पुलिस करेगी जांच
मेयर सुषमा खर्कवाल ने सोमवार से अभियान चलाकर संदिग्ध कर्मियों को चिन्हित करने की बात कही है। माना जा रहा है, इन 
बांग्लादेशी और रोहिंग्या सफाईकर्मियों की संख्या हजारों में हो सकती है, जिनसे ठेकेदार "सस्ते लेबर" के लिए काम ले रहे हैं। 

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में देश में गैर-कानूनी तरीके से घुसे बांग्लादेशी मुसलमान और रोहिंग्या के घुसकर की संख्या भोपाल गर निगम में भी हजारों की बताई जा रही है।  नगर निगम में ये अवैध घुसपैठिए "सफाई कर्मियों के तौर पर" रह रहे हैं। प्रशासन को मिली रिपोर्ट के अनुसार, बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक और रोहिंग्या सफाई के कार्य में लगे हैं। रिपोर्ट के बाद हरकत में आए नगर निगम प्रशासन ने एक्शन लिया, जिसमें नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने सभी जोनल सेनेटरी अधिकारियों को निर्देश जारी कर एक हफ्ते के अंदर कार्यदायी संस्थाओं के सभी सफाईकर्मियों का पुलिस सत्यापन कराने का आदेश दिया है। 

आउट सोर्सिंग से हो रहा काम 
लखनऊ में सफाई और कूड़ा उठाने नगर निगम द्वारा प्राइवेट आउट सोर्स कम्पनियों को हायर किया गया है. इसमें हजारों कर्मचारी अलग-अलग इलाकों से कूड़ा उठाने का काम कर रहे हैं. नगर निगम को मिली रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इन कर्मियों में जयादातर बांग्लादेश के नागरिक या फिर रोहिंग्या है, जबकि ये खुद को पश्चिम बंगाल या असम का बताते हैं. ठेकेदार इनसे कम रुपयों में काम करवाते हैं.

अब मेयर फील्ड में उतरेंगी
सोमवार से मेयर सुषमा खर्कवाल स्वयं इस अभियान की कमान संभालेंगी. उन्होंने कहा, पहले भी इस तरह की शिकायतें मिलीं थीं, इस बार इन पर सख्त एक्शन होगा। वहीं, अखिल भारतीय वाल्मीकि महासभा ने भी सफाई कार्य में बांग्लादेशियों को प्राथमिकता देने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है, उनके मुताबिक इससे स्थनीय लोगों का रोजगार छिन रहा है। उल्लेखनीय है, इससे पहले भी भाजपा सहित लखनऊ नगर निगम के पार्षद बांग्लादेशी और रोहिंग्या सफाई कर्मियों का मुद्दा उठा चुके हैं। 
प्रतिक्रिया... 
सर में लखनऊ से ही हूं, यह बात बिल्कुल सत्य है। इसमे सबसे ज्यादा रोहंगिया मुस्लिम है उनका यहां होने का सबसे बड़ा कारण है- प्राइवेट कम्पनिया, जों कूड़ा प्रबंधन में हैं। 
यह सब कहा से शुरु हुआ है मैं इस पर अपनी जानकारी साझा करना चाहता हूं इस सबकी शुरुआत पिछली सरकारों से होती है यह रोहंगिया कूड़े से कबाड़ बिनने का काम करतें थे उसे कबाड़ी यह अन्य रिसाइकिल कम्पनी को बेच कर मोटा पैसा छापते थे। धीरे-धीरे जब इन्हे कुछ हद तक हिंदी आ गयी, तो इन्होने अपनी घुसपैठ बढ़ा दी। यह उसी स्थान पर अपना आसियाना बनाते, जहां इन्ही के मुस्लिम समुदाय के लोग रहते। 
       इनके फल फूलने का कारण यही की एक तथाकथित पार्टी के स्थानीय सभासद और विद्यायक द्वरा उनके फर्जी ढंग से पहचान पत्र बनवा दिये और फिर वोटरलिस्ट बिलजी, पानी के दस्तावेज और फिर इनही दस्तावेजों के आधार पर जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र और उसके बाद आधार कार्ड भी बनवा लिए, जिसममें नेताओं के साथ नगर निगम अधिकारी भी जिम्मेवार है। 
       जब यह यहां की व्यवस्था में अंदर तक घुस गए तो इन्होंने यहां की नागरिकता लेने के बारे में पूर्ण विचार बना लिया जिसमें सबसे बड़ी मदद उनकी उन्हें नेताओं ने मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना मौलवियों ने की और इन्हें इस समय की लखनऊ नगर निगम की प्राइवेट एजेंसियों द्वारा काम पैसे देकर दिनभर नगर निगम में काम करने के लिए प्राइवेट रख लिया गया इसमें सबसे ज्यादा फायदा उन्हें प्राइवेट कंपनियां का है, क्योंकि इन प्राइवेट कंपनियां को कम पैसे देकर ज्यादा काम करवा लेती है। इन रोंहगियों को पैसों का कोई लालच नहीं है इनको इनका तो मुख्य लालच का केंद्र यहां पर किसी तरीके से भारत की नागरिकता लेकर रहने का है पता सबको है कि आप रोहंगियाँ मुसलमान है फिर भी सब नगर निगम अधिकारी मेयर और प्राइवेट एजेंसियां चुप है और प्राइवेट एजेंसियां चुप हैं क्योंकि कम पैसों में काम ज़्यदा हो जाता है और मोटा मुनाफा प्राइवेट कंपनियां को और बाबू,अदिकारियो को बट जाता है यह तो केवल लखनऊ नगर निगम की बात नही है पूरे भारत में इसी तरीके इन्होंने अपना षड्यंत्र रच राखा है ज्या इनकी शुरुआति दौर में कूड़ा बीनने वाले व्यक्ति से होती है क्योकि इस काम में कोई भी व्यक्ति इनके इस काम को देख कर जों गंदगी से जुड़ा होने के कारण बात चित नही करता तो उनकी पेहचान भी उजागर नही हों पति है। 
ये हमारे देश के वो खटमल हैं, जिन्हें हम अपना ही खून पिलाकर आपने घरो में पाल रहे हैं, एक दिन यह हमे हमरे घरो से बाहर निकाल देंगे। पर मुझे नही समझ आता है, यह किस तरीके मुसलमान है जों आपने आप को इतना पाक सफ रखते है। पैजामे को भी चढ़ा के पहनते है और ये तो नाली नाले कूड़ा घर सीवर सबमे घुस कर काम करलेते है वह रे जिहाद का स्तर - भानु प्रताप, लखनऊ 
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आतंकियों ये 'बांग्लादेश' नहीं, लखनऊ नगर निगम है...
- मेयर ने झुग्गियों पर चलवा दिया बुलडोजर
लखनऊ नगर निगम की एक टीम इंदिरा नगर में अतिक्रमण हटाने गई थी। इस दौरान 250 लोगों की भीड़ ने उन पर हमला बोल दिया। इसके बाद नगर निगम ने 50 से ज्‍यादा झुग्गी-झोपड़ियों को बुलडोजर चलाकर ध्वस्त कर दिया है।

लखनऊ के इंदिरा नगर में अतिक्रमण हटाने गई नगर निगम की टीम पर लोगों ने हमला कर दिया। इसके बाद मेयर सुषमा खर्कवाल ने कड़ा कदम उठाया और बुलडोजर चलवाकर 50 से ज्‍यादा झुग्‍गी-झोपड़ियों को ध्वस्त करवा दिया। सुषमा खर्कवाल ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा- 'आतंकियों ये बांग्लादेश नहीं... लखनऊ नगर निगम है।' खर्कवाल ने हमलावरों को रोहिंग्या बताते हुए कहा कि इस मामले में नगर निगम की तरफ से उन पर मुकदमा दर्ज करवाया गया है।

अतिक्रमण की कार्यवाही के दिन (29/12/2024) मेयर ने मीडिया से कहा- ने घटना की सूचना देने के लिये पुलिस आयुक्त को फोन किया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। इस पर मैंने उन्हें संदेश भेज कर पुलिस बल भेजने को कहा। कोई जवाब नहीं मिलने पर जिलाधिकारी को फोन किया। उन्होंने फोन उठाया और फौरन अपने अधिकारियों को मौके पर भेजा। निगम ने अवैध रूप से रह रहे इन हमलावरों की करीब 50 झुग्गी-झोपड़ियों को ध्वस्त कर दिया है।

महापौर नगर निगम लखनऊ सुषमा खर्कवाल @Sushma_Kharkwal ने (8:58 PM · Dec 29, 2024) को ये वीडियो पोस्ट किया था-
देखें-
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#BiharElections में गूंजा- आई लव यू योगी बाबा आई लव यू बुलडोजर बाबा ये गाने बजने लगे, ज्यों ही CM #YogiAdityanath नरपतगंज विधानसभा क्षेत्र #Bihar में जनसभा व चुनाव प्रचार के लिए हेलीकॉप्टर से उतरे
देखें-

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भारत में आज भी औपनिवेशिक कानूनों के तहत संपत्ति का लेन-देन : SC   
- आम लोगों के लिए 'ट्रॉमेटिक' मानसिक रूप से थका देने वाला अनुभव 
- लॉ कमीशन तैयार करें रिपोर्ट

सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा- भारत में प्रॉपर्टी खरीदना और बेचना आम लोगों के लिए 'ट्रॉमेटिक' यानी मानसिक रूप से थका देने वाला अनुभव बन चुका है। कोर्ट ने ((7 नवंबर 2025 को) कहा, औपनिवेशिक युग के कानूनों पर आधारित मौजूदा कानूनी ढांचा भ्रम पैदा कर रहा है और साथ ही वह बहुत ज्यादा मुकदमेबाजी का कारण बना हुआ है।

सर्वोच्च न्यायालय ने लॉ कमीशन से भी कहा, कि वह एक व्यापक स्टडी रिपोर्ट तैयार करे। केंद्र व राज्य सरकारों, विशेषज्ञों और हितधारकों से परामर्श के बाद अपनी सिफारिशें पेश करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- भारत में करीब 66% दीवानी मुकदमे संपत्ति विवादों से जुड़े हैं।

पुराने कानूनों के तहत चल रहा लेन-देन
भूमि विवाद देश में मुकदमेबाजी के सबसे बड़े कारणों में से एक बन गया है। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था जाली दस्तावेजों, अतिक्रमण, बिचौलियों और असमान नियमों से ग्रस्त है। कोर्ट ने कहा कि आज भी तीन पुराने औपनिवेशिक कानूनों के तहत ही संपत्ती का लेनदेन चल रहा है। यह भ्रम पैदा कर रहा है।

न्यायालय ने कहा, पुराने कानूनों में ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट-1882, इंडियन स्टैप एक्ट-1899 और रजिस्ट्रेशन एक्ट-1908 शामिल हैं। कानून भले ही एक अलग युग के लिए बने थे, लेकिन आज भी भारत की संपत्ति व्यवस्था की रीढ़ है। हालांकि, इन कानूनों ने टाइटल ( स्वामित्व) और रजिस्ट्रेशन के बीच विरोधाभास बना रखा है।

रजिस्ट्रेशन की गारंटी, 
मालिक होने का सबूत नहीं
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा- रजिस्ट्रेशन एक्ट संपत्ति के दस्तावेज के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य करता है, स्वामित्व का नहीं। सेल डीड का रजिस्ट्रेशन स्वामित्व की गारंटी नहीं देता, यह केवल एक सार्वजनिक रेकॉर्ड होता है जो एक संभावित एविडेंसरी महत्व रखता है। इसका मतलब यह है, कि सेल डीड रजिस्ट्रेशन भी टाइटल यानी मालिक होने का फाइनल सबूत नहीं है और खरीददार को दशकों पुराने दस्तावेजों की कड़ी यानी रजिस्ट्री की चेन को साबित करना होता है कि संपत्ति सही है।

'प्रॉपर्टी खरीदना त्रासदी वाला अनुभव'
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि संपत्ति खरीदना आसान नहीं है। यह सही मायने में एक ट्रॉमेटिक (त्रासदी वाला) अनुभव है। भारत में लगभग 66% दीवानी मुकदमे संपत्ति विवादों से जुड़े हैं, जिससे भूमि विवाद देश में मुकदमेबाजी के सबसे बड़े कारणों में से एक बन गया है। मौजूदा व्यवस्था जाली दस्तावेजों, भूमि अतिक्रमण, देरी, बिचौलियों की भूमिका और विभिन्न राज्यों में असमान नियमों जैसी समस्याओं से ग्रस्त है, जिससे जनता का भूमि लेन-देन पर भरोसा कमजोर हुआ है।
आम नागरिक की प्रतिक्रिया...
जब तक राजस्व विभाग का ढांचा नही बदलता है, तब तक ऐसा ही होता रहेगा।
कानून को सुधारना नही बल्कि कानून को बदलना एक मात्र उपाय है - Ajay Belwal
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यह भी एक ज्वलंत मुद्दा है सरकार व सुप्रीम कोर्ट को कार्य करना चाहिए। - Suryanarayan Kumawat
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दुखद है केंद्र व राज्य सरकार इसकी सरलीकरण करनी चाहिए - Kuldip Yadav
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Lokesh Verma
65% सम्पत्ति के मुकदमे क्यों है ? मालिक तो एक ही होगा। 
यह पता करना राकेट साइंस है क्या ? हाँ झूठे दस्तावेज पर 10 बीस साल लडाई चलाई जा सकती है। SIR से सही मतदाता की पहचान हो सकती है, तो मालिक का भी पता लगाया जा सकता है। अदालत का रस्ता टेडा मेडा नही सीधा बनाना चाहिए। 
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इंदिरा का एक फैसले से पीछे हटना पड़ा देश पर भारी!
- परमाणु हथियार तो दूर भारत के घुटनों पर होता पाकिस्तान
 
पूर्व सीआईए अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने एक बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि 1980 के दशक में भारत और इजराइल ने मिलकर पाकिस्तान के कहुटा परमाणु प्लांट पर हमला करने की योजना बनाई थी। इस योजना का मकसद पाकिस्तान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना था।

अमेरिकी खुफिया एजेंसी (सीआईए) के पूर्व अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। उनका दावा है कि 1980 के दशक की शुरुआत में, भारत और इजराइल ने मिलकर पाकिस्तान की कहुटा परमाणु सुविधा पर एक गुप्त हमला करने की योजना बनाई थी। इस ऑपरेशन का मकसद पाकिस्तान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना था।

बार्लो ने तत्कालीन भारत की इंदिरा गांधी सरकार के इस हमले को रोकने के फैसले को 'शर्मनाक' बताया और कहा कि अगर यह हमला हो जाता तो बहुत सारी समस्याएं हल हो जातीं। बार्लो उस समय अमेरिकी खुफिया एजेंसी में परमाणु प्रसार रोकने वाले अधिकारी थे। बार्लों ने बताया कि उन्होंने खुफिया हलकों में इस योजना के बारे में सुना था, लेकिन वे सीधे तौर पर इसमें शामिल नहीं थे क्योंकि वे 1982 से 1985 तक सरकारी नौकरी से बाहर थे।

क्या था प्लान ?
बार्लो के अनुसार, यह योजना इजराइल और भारत की ओर से पाकिस्तान के कहुटा यूरेनियम प्लांट पर एक पूर्व-नियोजित हवाई हमला करने की थी। यह प्लांट पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का दिल था। इस हमले का मुख्य उद्देश्य इस्लामाबाद को परमाणु हथियार विकसित करने और उन्हें ईरान जैसे देशों को देने से रोकना था, जिसे इजराइल अपना एक बड़ा दुश्मन मानता है।

पाकिस्तान ने ऐसे उठाया फायदा
बार्लो ने यह भी संकेत दिया कि उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की सरकार ऐसे किसी भी हमले का कड़ा विरोध करती, खासकर अगर यह इजराइल की ओर से होता। इसकी वजह यह थी कि यह अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिका के गुप्त युद्ध प्रयासों में बाधा डाल सकता था। बार्लो ने बताया कि पाकिस्तान ने इस स्थिति का फायदा उठाया। पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग (PAEC) के पूर्व प्रमुख मुनीर अहमद खान जैसे अधिकारियों ने अमेरिकी सांसदों, जैसे स्टीफन सोलारज, को चेतावनी दी थी कि अफगानिस्तान में सहायता के प्रवाह को बाधित करने से वहां सहयोग खतरे में पड़ जाएगा।

बार्लो ने यह भी स्पष्ट किया, कि तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस ऑपरेशन को मंजूरी नहीं दी। उनके अनुसार, इस हमले से न केवल पाकिस्तान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगती, बल्कि क्षेत्र में अस्थिरता भी कम हो सकती थी। बार्लो ने यह भी माना कि अमेरिका का विरोध इस योजना के नाकाम होने का एक बड़ा कारण था, क्योंकि अमेरिका अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ अपनी लड़ाई में पाकिस्तान की मदद पर बहुत निर्भर था। इस निर्भरता का इस्तेमाल पाकिस्तान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए किया।

'... मेनाचेम बेगिन का सिर काट देते'
बार्लो ने कहा, 'मुझे लगता है कि रीगन, मेनाचेम बेगिन का सिर काट देते अगर वह ऐसा कुछ करते। क्योंकि इससे अफगान समस्या में बाधा आती।' उन्होंने इजराइल के पूर्व प्रधानमंत्री मेनाचेम बेगिन का जिक्र करते हुए यह बात कही। कहुटा परमाणु सुविधा, जिसे पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक और एक बड़े प्रसारक, ए क्यू खान के निर्देशन में बनाया गया था। बाद में पाकिस्तान के परमाणु हथियार हासिल करने में बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई। इसका नतीजा 1998 में पाकिस्तान के 'पहले' परमाणु परीक्षणों के रूप में सामने आया।

'एक बड़ा मौका हाथ से निकल गया'
बार्लो ने इस बात पर जोर दिया कि अगर भारत और इजराइल की योजना सफल हो जाती, तो पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को एक बड़ा झटका लगता और शायद दुनिया की सुरक्षा की स्थिति आज अलग होती। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा मौका था जो हाथ से निकल गया और जिसके नतीजे आज भी महसूस किए जा सकते हैं।

क्यों जरूरी थी यह योजना ?
यह योजना 1980 के दशक की शुरुआत में बनी थी, जब पाकिस्तान तेजी से अपना परमाणु कार्यक्रम आगे बढ़ा रहा था। कहुटा प्लांट, जो इस्लामाबाद के पास स्थित है, पाकिस्तान के परमाणु हथियार बनाने के प्रयासों का केंद्र था। इस संयंत्र में यूरेनियम को इस तरह से तैयार किया जाता था, कि उसका इस्तेमाल परमाणु बम बनाने में हो सके।

➯ भारत और इजराइल दोनों को पाकिस्तान के परमाणु हथियार हासिल करने से गंभीर खतरा महसूस हो रहा था। भारत को अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता थी, जबकि इजराइल को मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन बिगड़ने का डर था।
➯ इस गुप्त हमले की योजना में दोनों देशों की खुफिया एजेंसियां शामिल थीं। उनका मानना था कि कहुटा प्लांट पर हमला करके वे पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को सालों पीछे धकेल सकते हैं।
➯ यह एक ऐसा कदम होता जो शायद पाकिस्तान को परमाणु शक्ति बनने से रोक देता। लेकिन, इस योजना को अंजाम देना आसान नहीं था। इसके लिए न केवल सैन्य क्षमता की जरूरत थी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसके गंभीर परिणाम हो सकते थे। #साभार नवभारतटाइम्स.कॉम

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